- राजनीति : ट्वेंटी-ट्वेंटी ही नहीं, टेस्ट मैच के लिए भी पूरी तरह तैयार हैं लालू की विरासत के उत्तराधिकारी
आधुनिक भारत में राजनीतिक रूप से सबसे संवेदनशील प्रदेश बिहार ने दुनिया को सियासत का एक से एक खिलाड़ी दिया है, लेकिन पिछले करीब सात साल से जिस एक शख्स की सबसे अधिक चर्चा हो रही है, उसका नाम है तेजस्वी यादव। बिहार के सर्वाधिक चर्चित और लोकप्रिय राजनेता लालू प्रसाद यादव के दूसरे पुत्र तेजस्वी यादव को इन दिनों बिहार की राजनीति का नया बाजीगर कहा जा रहा है। तेजस्वी यादव ने राजनीति के फलक पर न केवल अपनी दमदार उपस्थिति दर्ज करायी है, बल्कि साबित कर दिया है कि वह अब बच्चे नहीं हैं। और उन्हें बच्चा समझने की गलती कोई न करे। महज 31 साल की उम्र और सात साल से थोड़ा अधिक का राजनीतिक अनुभव लेकर राजनीति जैसे पथरीले रास्ते पर लगातार आगे बढ़ रहे इस नेता की खासियत यह है कि वह चांदी का चम्मच मुंह में लेकर जरूर पैदा हुए हैं, लेकिन जब मुसीबतों का पहाड़ टूटा, तब उससे वह भागे नहीं, बल्कि जूझे और डट कर सामना किया। शुरूआती राजनीतिक अनुभवों ने भी उन्हें काफी मैच्योर बना दिया। साथ ही समय के साथ उन्होंने खुद को तराशा भी। डिसीजन लेने की क्षमता भी उन्होंने डेवेलप की। इसका परिणाम भी उन्हें मिला। आज तेजस्वी यादव बिहार की सबसे बड़ी पार्टी का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। तेजस्वी ने अपने पिता और राजनीतिक गुरु लालू यादव की विरासत को बखूबी संभाला है, साथ ही अपना मजबूत वजूद भी बनाया है। बड़े-बड़े नेताओं और मठाधीशों को समझ में आ चुका है कि बिहार का भविष्य तेजस्वी ही हैं। तेजस्वी मॉडर्न भी हैं, साथ ही उन्हें जमीनी अनुभव भी है। तेजस्वी का यही चेहरा उन्हें दूसरे युवा नेताओं से अलग करता है। अल्पशिक्षित होने के बावजूद राजनीतिक-सामाजिक मुद्दों पर उनकी सोच और बेबाक राय ने उन्हें दूसरे तमाम नेताओं की जुबान पर तो जरूर चढ़ा दिया है। तेजस्वी की सबसे बड़ी कामयाबी यही है। इस युवा नेता ने साबित कर दिया है कि वह राजनीति के मैदान में लंबी रेस के लिए पूरी तरह तैयार हैं। तेजस्वी यादव के व्यक्तित्व के इसी पहलू का विश्लेषण कर रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।
बात 2019 के जुलाई महीने की है। लोकसभा चुनाव में राजद बुरी तरह पराजित हो गया था और बिहार की राजनीति से लालू यादव की पार्टी की समाप्ति की भविष्यवाणी लगभग पक्के तौर पर कर दी गयी थी। लालू के राजनीतिक उत्तराधिकारी तेजस्वी यादव को पूरी तरह खारिज कर दिया गया था। तेजस्वी खुद भी सीन से गायब थे। यहां तक कि पार्टी कार्यसमिति की बैठक में भी वह शामिल नहीं हुए। राजद के नेता भी उन्हें पार्टी और पूरे विपक्ष के लिए परेशानी का कारण बताने लगे थे। उन्होंने न तो बाढ़ प्रभावित इलाकों का दौरा किया और न ही चमकी बुखार से प्रभावित लोगों से मिलने के लिए गये। तभी तेजस्वी ने 30 जुलाई को फेसबुक पर एक लंबा पोस्ट लिखा। इसमें उन्होंने बिहार की स्थिति से लेकर कई गंभीर मुद्दे पर संजीदगी से सवाल उठाया था। इसकी बहुत तारीफ हुई और 10 दिन बाद 9 अगस्त को जब वह पटना लौटे, तो उनका सब कुछ बदला हुआ था। उनकी सोच, हाव-भाव और मुद्दों पर बात करने का तरीका। राजनीति के गंभीर विषयों पर भी वह बेबाकी से बात करने लगे।
तब लोगों को एप्पल के संस्थापक स्टीव जॉब्स का वह मशहूर वक्तव्य याद आने लगा, जिसमें उन्होंने कहा था कि एक सफल व्यक्ति को यदि अचानक से खारिज कर दिया जाये, तो यह उसके लिए बहुत बड़ा वरदान होता है, क्योंकि तब उसके मन में फेल होने का डर खत्म हो जाता है और वह नये उत्साह से नयी यात्रा शुरू करने का मन बना लेता है। तेजस्वी यादव के साथ भी यही हुआ। पिता की विशाल राजनीतिक विरासत से उन्हें जब खारिज कर दिया गया, तब उन्होंने अपने लिए रास्ता बनाया और आज स्थिति यह है कि हर जुबान पर उनका नाम अनिवार्य रूप से है। राजनीति में यह सफलता कमतर नहीं आंकी जा सकती। कुल मिला कर तेजस्वी का यह मेक ओवर न केवल बिहार, बल्कि पूरे देश की सियासत के लिए एक सकारात्मक बदलाव था। आज तेजस्वी बिहार में नीतीश कुमार सरकार में डिप्टी सीएम ही नहीं हैं, बल्कि अपनी पार्टी के साथ-साथ महागठबंधन की कमान भी संभाल चुके हैं। तेजस्वी जानते हैं कि उनके पास पिता की बनायी पार्टी भर है। बाकी का रास्ता उन्हें खुद बनाना भी है और तय भी करना है। इस चुनौती को तेजस्वी ने स्वीकार किया है और आज उन्हें बिहार की सियासत का नया बाजीगर कहा जा रहा है। उन्होंने अपना जो चेहरा बनाया है, वह साबित करता है कि सियासत की पिच पर वह ट्वेंटी-ट्वेंटी का मुकाबला ही नहीं, टेस्ट मैच भी खेलने के लिए तैयार हैं।
तेजस्वी महज 26 साल की उम्र में विधायक और उप मुख्यमंत्री बने। उनके पिता भी 1977 में जब पहली बार सांसद बने थे, तब उनकी उम्र महज 29 साल थी। तेजस्वी ने क्रिकेट मोह के कारण पढ़ाई छोड़ दी, लेकिन उनकी बातें और मुद्दों पर उनकी सोच ने कभी यह झलकने नहीं दिया कि वह बहुत अधिक पढ़े नहीं हैं। वह कभी संयम नहीं खोते और न ही भाषा की मर्यादा लांघते हैं। उनके भाषण की सबसे खास बात यह होती है कि वह कभी अपने राजनीतिक विरोधियों पर निजी हमले नहीं करते, जबकि उन पर लगातार निजी हमले होते हैं। यह तेजस्वी की राजनीतिक परिपक्वता को दिखाता है। तेजस्वी को नजदीक से जाननेवाले कहते हैं कि वह एक टीम मैन हैं। वह सुनते सबकी हैं, लेकिन करते अपने हिसाब से हैं। एक और बात, जो तेजस्वी को बाकी नेताओं से अलग करती है, वह यह है कि तेजस्वी हर वक्त कुछ नया सीखने की कोशिश करते हैं। उनके मन में जिज्ञासाओं का गुबार हमेशा उठता रहता है। इसलिए सवाल उठाने में वह कभी पीछे नहीं रहते।
कभी अपने मजाकिया अंदाज के लिए राजनीति में अलग स्थान रखनेवाले लालू प्रसाद ने भी यह नहीं सोचा होगा कि उनका राजनीतिक उत्तराधिकारी इतने कम समय में ही उनसे आगे निकल जायेगा और गंभीर मुद्दों की इतनी बारीक समझ उसे बिना किसी मार्गदर्शक के ही हासिल हो जायेगी।
लालू प्रसाद के छोटे बेटे 33 साल के तेजस्वी यादव ने 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में राजद की चुनावी कमान संभाली और प्रभावी प्रदर्शन किया। राजद ने इस चुनाव में करीबी मुकाबले में 75 सीटें जीत कर अब तक का अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया और सबसे बड़े दल का तमगा हासिल किया। वह भी ऐसी परिस्थिति में, जब पार्टी सुप्रीमो लालू प्रसाद जेल में थे और उनके उत्तराधिकारी में स्पष्ट रूप से कौशल की कमी दिख रही थी। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार द्वारा तेजस्वी को दूसरी बार उप मुख्यमंत्री बनाये जाने के फैसले के पहले तेजस्वी एक सशक्त विपक्ष के नेता के रूप में प्रभाव छोड़ रहे थे और अपने पिता के कट्टर प्रतिद्वंद्वी के नेतृत्व वाली सरकार को वह विधानसभा से लेकर सड़क पर चुनौती दे रहे थे। नाटकीय तरीके से जदयू और राजद के बीच गठबंधन से ठीक पहले राज्य की प्रमुख विपक्षी पार्टी ने कांग्रेस और वाम दलों के साथ मिल कर केंद्र की राजग की सरकार के खिलाफ व्यापक प्रतिरोध मार्च निकाला था और स्पष्ट संकेत दिया था कि राज्य में विपक्ष के पास संघर्ष की भूख अभी है।
आज तेजस्वी यादव की स्थिति यह है कि उनके पिता के समकक्ष राजनीति के धुरंधर खिलाड़ी नीतीश कुमार उन्हें अपने बराबर का स्थान देते हैं। इतना ही नहीं, महाराष्ट्र के जिस ठाकरे परिवार से लालू का छत्तीस का रिश्ता था, उसी परिवार के आदित्य ठाकरे अपनी टीम के साथ पटना आकर तेजस्वी से मिलते हैं और राजनीतिक मुद्दों पर बातचीत करते हैं। अपने पिता के खराब स्वास्थ्य के कारण जिस बेटे को मानसिक रूप से उद्वेलित-चिंतित दिखना चाहिए, वह तेजस्वी बिहार के लोगों के लिए लगातार काम में जुटे हैं। इतना ही नहीं, पार्टी कार्यकर्ताओं और अपने पिता के लिए मर-मिटने तक का जज्बा रखनेवाले बिहार के करोड़ों लोगों को वह कभी लालू की कमी महसूस नहीं होने देते। उनकी यही खूबियां उन्हें राजनीति में लगातार ऊपरी सीढ़ी पर चढ़ा रही हैं। उन्हें आज सरकार में जो कुछ हासिल हुआ है, उसके वह योग्य हैं। संकट के समय में भी तेजस्वी कभी अपने चेहरे पर शिकन नहीं आने देते। धैय से समस्याओं का समाधान ढूंढ़ते हैं। राजनीति के असली खिलाड़ी की यही पहचान है।