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    Home»देश»सार्थक संवाद और प्रामाणिक अभिव्यक्ति के क्षरण से उत्पन्न होती हैं संस्थागत चुनौतियां: उपराष्ट्रपति 
    देश

    सार्थक संवाद और प्रामाणिक अभिव्यक्ति के क्षरण से उत्पन्न होती हैं संस्थागत चुनौतियां: उपराष्ट्रपति 

    shivam kumarBy shivam kumarDecember 14, 2024No Comments4 Mins Read
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    नई दिल्ली। उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने शनिवार को संस्थागत चुनौतियों पर प्रकाश डालते हुए जोर दिया कि आज की संस्थागत चुनौतियां भीतर और बाहर से अक्सर सार्थक संवाद और प्रामाणिक अभिव्यक्ति के क्षरण से उत्पन्न होती हैं। अभिव्यक्ति की आजादी और सार्थक संवाद दोनों ही लोकतंत्र के अनमोल रत्न हैं। अभिव्यक्ति और संचार एक दूसरे के पूरक हैं। दोनों के बीच सामंजस्य ही सफलता की कुंजी है।

    धनखड़ आज नई दिल्ली में आईसीडब्ल्यूए में भारतीय डाक एवं दूरसंचार लेखा एवं वित्त सेवा (आईपीएंडटीएएफएस) के 50वें स्थापना दिवस कार्यक्रम को बतौर मुख्य अतिथि संबोधित कर रहे थे। धनखड़ ने कहा कि हमारे अंदर अहंकार अदम्य है, हमें अपने अहंकार को नियंत्रित करने के लिए बहुत मेहनत करनी होगी। अहंकार किसी के काम नहीं आता, बल्कि सबसे ज्यादा नुकसान उस व्यक्ति को होता है जिसके पास यह होता है। लोकतंत्र में मूल्यों के महत्व को रेखांकित करते हुए धनखड़ ने कहा कि लोकतंत्र केवल व्यवस्थाओं पर नहीं, बल्कि मूल्यों पर पनपता है। इसे अभिव्यक्ति और संवाद के नाजुक संतुलन पर केंद्रित होना चाहिए। अभिव्यक्ति और संवाद, ये जुड़वां ताकतें लोकतांत्रिक जीवन शक्ति को आकार देती हैं। उनकी प्रगति को व्यक्तिगत पदों से नहीं, बल्कि व्यापक सामाजिक लाभ से मापा जाता है। भारत की लोकतांत्रिक यात्रा इस बात का उदाहरण है कि विविधता और विशाल जनसांख्यिकीय क्षमता राष्ट्रीय प्रगति को कैसे बढ़ावा दे सकती है।

    स्व-लेखा परीक्षा की आवश्यकता पर जोर देते हुए धनखड़ ने कहा कि मित्रों, लेखा परीक्षा, स्व-लेखा परीक्षा बहुत महत्वपूर्ण है। किसी व्यक्ति या संस्था के पतन का सबसे पक्का तरीका है, उसे या सज्जन या सज्जन महिला को जांच से दूर रखना। आप जांच से परे हैं, आपका पतन निश्चित है। इसलिए, स्व-लेखा परीक्षा आवश्यक है। सिविल सेवकों को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि आधुनिक सिविल सेवकों को तकनीक के जानकार, बदलाव के सूत्रधार और पारंपरिक प्रशासनिक सीमाओं से परे होना चाहिए। सेवा हमारी आधारशिला बनी हुई है। प्रशासक, वित्तीय सलाहकार, विनियामक और लेखा परीक्षक के रूप में आपकी भूमिकाएं कल की चुनौतियों का सामना करने के लिए विकसित होनी चाहिए। यह विकास मांग करता है कि हम सेवा वितरण को पारंपरिक तरीकों से बदलकर अत्याधुनिक समाधानों में बदलें।

    उन्होंने कहा कि हम एक और औद्योगिक क्रांति के मुहाने पर खड़े हैं। डिजिटल तकनीक ने हम पर आक्रमण कर दिया है। हम आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, इंटरनेट ऑफ़ थिंग्स, मशीन लर्निंग, ब्लॉकचेन और इसी तरह की दूसरी तकनीकों की तीव्रता महसूस कर रहे हैं। हमें चुनौतियों का सामना करना होगा, चुनौतियों को अवसरों में बदलना होगा और इस देश में हर किसी के जीवन को उसकी महत्वाकांक्षाओं से सहज रूप से जोड़ना होगा। धनखड़ ने कहा कि हमारी सेवाओं को और अधिक गतिशील होने की आवश्यकता है। उन्हें मूलभूत अखंडता को बनाए रखते हुए तेज़ तकनीकी चुनौतियों, सामाजिक चुनौतियों के अनुकूल होना होगा। राष्ट्र निर्माण का हमारा विशेषाधिकार अब और अधिक ज़िम्मेदारी वहन करता है क्योंकि हमें 2047 में एक विकसित राष्ट्र के सपने को साकार करने के लिए पटकथा और शिल्प भी बनाना है।

    विभागों के बीच समन्वय और तालमेल पर जोर देते हुए उन्होंने कहा कि एक दूसरे से जुड़ी दुनिया में विभागों के बीच सहयोग बहुत महत्वपूर्ण हो जाता है। हमें एक दूसरे के साथ तालमेल में रहना चाहिए, हमें एक दूसरे के साथ तालमेल बिठाना चाहिए। शक्तियों के पृथक्करण का सिद्धांत कुछ और नहीं बल्कि तीन संस्थाओं, न्यायपालिका, कार्यपालिका और विधायिका, को एक साथ मिलकर काम करना चाहिए। सिविल सेवकों से डिजिटल डिवाइड को पाटने का आग्रह करते हुए धनखड़ ने कहा कि ग्रामीण प्रौद्योगिकी अपनाने के लिए अभिनव वित्तपोषण मॉडल के माध्यम से डिजिटल डिवाइड को पाटने पर ध्यान केंद्रित करें। इस अवसर पर संचार एवं पूर्वोत्तर क्षेत्र विकास मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया, डिजिटल संचार आयोग के वित्त सदस्य मनीष सिन्हा और अन्य गणमान्य व्यक्ति भी उपस्थित थे।

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