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    Home»विशेष»भारतीयता का उद्घोष है पीएमओ-राजभवनों का नाम बदलना
    विशेष

    भारतीयता का उद्घोष है पीएमओ-राजभवनों का नाम बदलना

    shivam kumarBy shivam kumarDecember 4, 2025No Comments6 Mins Read
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    विशेष
    प्रधानमंत्री मोदी के इस एक फैसले ने भारत की राष्ट्रीय चेतना को जगाया है
    गुलामी के प्रतीक चिन्हों को जल्द से जल्द खत्म करना उद्देश्य
    आजादी के अमृत वर्ष में सरकार का यह कदम भारत की जड़ें मजबूत करेगा

    नमस्कार। आजाद सिपाही विशेष में आपका स्वागत है। मैं हूं राकेश सिंह।
    लगातार तीसरी बार दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र का नेतृत्व संभालने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारत की राष्ट्रीय सांस्कृतिक चेतना के प्रभावशाली उदय के लिए प्रधानमंत्री कार्यालय और राजभवनों के नाम बदलने का जो फैसला किया है, वह केवल राजनीतिक या प्रशासनिक फैसला नहीं है, बल्कि यह भारत की जड़ों को मजबूत करने का एक प्रभावी कदम है। पीएम मोदी के फैसले के अनुसार प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) अब ह्यसेवा तीर्थह्ण के नाम से जाना जायेगा। सरकार ने यह महत्वपूर्ण फैसला पीएमओ की कार्यशैली और जनसेवा के प्रति समर्पण को देखते हुए लिया है। इस बदलाव का मुख्य उद्देश्य पीएमओ को जनता के लिए और अधिक सुलभ बनाना है, ताकि नागरिक अपनी समस्याओं और सुझावों को आसानी से रख सकें। इसके अलावा देश भर में अवस्थित राजभवन के नाम अब ह्यलोकभवनह्ण कर दिये गये हैं। इससे पहले पीएम मोदी ने राजधानी स्थित अपने सरकारी आवास 7, रेस कोर्स रोड का नाम बदल कर लोक कल्याण मार्ग कर दिया था, जिसका पूरे देश में सकारात्मक संदेश गया। अब पीएमओ और राजभवनों के नाम बदलने के बाद गुलामी के प्रतीक चिह्नों को जल्द से जल्द खत्म करने की जरूरत की बात होने लगी है, ताकि देश की राष्ट्रीय चेतना को वह ऊंची उड़ान मिल सके, जिसकी वह हकदार है। क्या है पीएमओ और राजभवनों के नाम बदलने के पीछे का मकसद, बता रहे हैं आजाद सिपाही के संपादक राकेश सिंह।

    उपनिवेशकालीन नामों से दूरी
    प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कार्यकाल में सरकारी प्रतिष्ठानों के उपनिवेशकालीन प्रतीकों और नामों को बदलने का अभियान लगातार जारी है। पिछले वर्षों में राजभवनों का नाम बदलकर लोकभवन, राज पथ का नाम बदलकर कर्तव्य पथ और प्रधानमंत्री आवास 7, रेस कोर्स रोड का नाम बदलकर 7, लोक कल्याण मार्ग किया जा चुका है। इसके बाद केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) के नाम और उसके प्रशासनिक ढांचे में बड़ा बदलाव करते हुए इसे ह्यसेवा तीर्थह्ण नाम देने का निर्णय लिया है। माना जा रहा है कि प्रधानमंत्री कार्यालय जल्द ही अपने नये परिसर में स्थानांतरित होगा और उसी भवन को यह नया नाम दिया गया है।

    प्रशासनिक ढांचे में नयी सोच
    सरकार के अनुसार ये बदलाव महज नाम बदलने का प्रयास नहीं हैं, बल्कि शासन की मूल भावना को पुनर्परिभाषित करने की कोशिश है, जहां सत्ता और दूरी की बजाय सेवा, कर्तव्य और जवाबदेही को केंद्र में रखा जाये। नये बदलावों के तहत केंद्रीय सचिवालय यानी सेंट्रल सेक्रेटेरियट की जगह अब ह्यकर्तव्य भवनह्ण प्रशासनिक केंद्र माना जायेगा। नॉर्थ और साउथ ब्लॉक के नये परिसर को ह्यसेवा तीर्थह्ण नाम दिया गया है, जिसे नीति निर्माण का पवित्र स्थल बताया जा रहा है।

    राजभवनों के नाम भी बदले
    मोदी सरकार के फैसले के बाद एक के बाद एक प्रदेशों की राजधानियों में राज भवनों के नाम बदले जा रहे हैं। अब इन्हें राज भवन के स्थान पर लोक भवन के नाम से जाना जायेगा। झारखंड, उत्तराखंड, पश्चिम बंगाल, त्रिपुरा, केरल, तमिलनाडु आदि राज्यों में राज भवनों का नाम अब लोक भवन रख दिया गया है। कई राज्यों के राज्यपालों ने स्वयं ही सोशल मीडिया के माध्यम से इसकी जानकारी दी है। बताया गया है कि केंद्रीय गृह मंत्रालय के निर्देश के बाद यह कदम उठाया गया है। राज भवनों का नाम बदलने के पीछे एक बड़ी सोच छिपी है और यह केवल राज भवनों का नाम बदलने तक ही सीमित नहीं है, बल्कि इसका प्रदर्शन पहले भी कई अवसरों पर हो चुका है।

    नाम बदलने का गहरा प्रतीकात्मक संदेश
    सरकार का कहना है कि भारत जैसे सांस्कृतिक रूप से समृद्ध देश में नाम परिवर्तन केवल औपचारिकता नहीं, बल्कि मानसिकता में परिवर्तन लाने का माध्यम है। इमारतों और सड़कों के नये नाम सरकार के कामकाज में जनकेंद्रित सोच को दशार्ते हैं। इन छोटे-छोटे बदलावों से सरकार यह संदेश देना चाहती है कि लोकतंत्र की धुरी शक्ति नहीं, बल्कि जनता है और शासन का लक्ष्य नियंत्रण के बजाय सेवा होना चाहिए।

    राजभवन को लोकभवन करने के पीछे पीएम मोदी की सोच
    राजभवन का नाम बदलने के पीछे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सोच है, जो जन सेवा के लिए उनके दीर्घकालिक दृष्टिकोण को परिलक्षित करती है। पिछले एक दशक में कई मौकों पर इसका परिचय मिला है। शुरूआत खुद ही प्रधानमंत्री आवास के पते से हुई थी, जब दशकों से चले आ रहे पते को बदला गया था। पहले प्रधानमंत्री का सरकारी आवास सात रेसकोर्स रोड के नाम से जाना जाता था, लेकिन नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद 2016 में इसका नाम बदल कर लोक कल्याण मार्ग किया गया। इसके पीछे जनता की सेवा और कल्याण का उद्देश्य है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में सरकारी कार्यस्थलों और सार्वजनिक स्थलों के नामकरण से कर्तव्य और पारदर्शिता की भावना प्रकट होती है। इसके पीछे का संदेश यही है कि सरकार का काम है जनता की सेवा करना।

    स्टेटस के बजाय सेवा को महत्व
    देखने में ये परिवर्तन चाहे सांकेतिक लगें, लेकिन गहराई से देखने पर ये एक बड़े वैचारिक परिवर्तन का परिचायक हैं। भारतीय लोकतंत्र अब सत्ता की बजाय उत्तरदायित्व और स्टेटस की बजाय सेवा को महत्व दे रहा है। नाम बदलना, मानसिकता बदलना भी है, क्योंकि संस्थान बोलते हैं। आज वे सेवा, कर्तव्य और नागरिक प्रथम शासन की भाषा बोल रहे हैं।

    नाम बदलने के पीछे का असली मकसद
    केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने इस बदलाव को लेकर लोगों के मन में उठ रहे सवालों का कारण स्पष्ट किया है। अमित शाह ने कहा कि पिछले 11 वर्षों से पीएम मोदी की अगुवाई वाली सरकार हमेशा सेवा के लिए समर्पित रही है, सत्ता के लिए नहीं। प्रधानमंत्री खुद को प्रधान सेवक मानते हैं और लगातार 24 घंटे, सप्ताह के सातों दिन जनता के लिए काम करते हैं। शाह ने कहा कि इस दिशा में प्रधानमंत्री ने सेवा की प्रतिबद्धता को और स्पष्ट किया है। इसलिए पीएमओ का नाम अब ह्यसेवा तीर्थह्ण रखा गया है। उन्होंने कहा कि सिर्फ पीएमओ ही नहीं, बल्कि अन्य सरकारी आवासों के नाम भी बदले जा रहे हैं। राजभवन और राज निवास को क्रमश: लोक भवन और लोक निवास के नाम से जाना जायेगा। अमित शाह ने कहा कि यह कदम भारत को हर क्षेत्र में विकसित और श्रेष्ठ बनाने की स्वर्णिम यात्रा में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है, जिसमें सेवा और अच्छे प्रशासन को सर्वोपरि रखा गया है। शाह ने यह भी बताया कि यह बदलाव केवल नामों तक सीमित नहीं है। यह जनता के प्रति प्रतिबद्धता और सरकार की सेवा भावना का प्रतीक है। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी हमेशा जनता की भलाई को सर्वोच्च प्राथमिकता देते हैं और सरकार के हर फैसले में सेवा भाव दिखाई देता है।

    विशेषज्ञों के मुताबिक, इस पहल से सरकारी कार्यप्रणाली में सुविधा और पारदर्शिता बढ़ेगी। लोग उम्मीद कर रहे हैं कि ह्यसेवा तीर्थह्ण, ह्यलोक भवनह्ण और ह्यलोक निवासह्ण जैसी पहलें सरकार और जनता के बीच संबंधों को और मजबूत करेंगी। यह कदम सरकार की सेवा केंद्रित सोच और जनता के प्रति प्रतिबद्धता को दशार्ता है और प्रशासनिक बदलाव के माध्यम से लोगों में विश्वास बढ़ाने की दिशा में एक अहम प्रयास माना जा रहा है।

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