- झटका : निर्वाचन आयोग के निर्णय से हिल गयी है गुपकार संगठन की जमीन
- तंकियों के खिलाफ बनने लगा है माहौल, खौफ में हैं आतंकी
- धारा 370, परिसीमन और सीटों की संख्या बढ़ने का झटका जोरदार है
जम्मू कश्मीर में चुनाव का बिगुल बज चुका है। इसे लेकर वहां की सियासी पारा चढ़ गया है। चारों दिशाओं से सियासी शोरगुल की आवाज आने लगी है। शोरगुल इसलिए हो रहा है, क्योंकि वहां की दो परंपरागत पार्टियां पीडीपी और नेशनल कांफ्रेंस, जिन्हें गुपकार गुट भी कहा जाता है, जिनका एक वक्त वहां पर राज हुआ करता था, आज वहां उनकी राजनीतिक जमीन ध्वस्त होने के कगार पर है। ऐसा हुआ है, निर्वाचन आयोग के उस आदेश से, जिसमें उसने कहा है कि देश के अन्य राज्यों की तरह जम्मू-कश्मीर में रहनेवाला देश का कोई भी नागरिक अब जम्मू-कश्मीर में मतदान कर सकेगा। जम्मू-कश्मीर का मतदाता बनने के लिए उसे यहां के डोमिसाइल की जरूरत भी नहीं होगी। अगर वह वहां रोजगार कर रहा है, बिजनेस कर रहा है, नौकरी कर रहा है और वहीं रह रहा है, तो उसका नाम वोटर लिस्ट में जुटेगा। अनुच्छेद 370 समाप्त होने के बाद जम्मू कश्मीर में पहली बार बन रही मतदाता सूचियों में विशेष संशोधन से करीब 25 लाख नये मतदाता बनेंगे। मतदाता सूचियों में विशेष संशोधन की प्रक्रिया को 25 नवंबर तक पूरा कर लिया जायेगा। केंद्र सरकार के इस फैसले के बाद जम्मू कश्मीर को अपनी बपौती समझनेवाली राजनीतिक पार्टियां जहां इस फैसले का विरोध कर रही हैं, वहीं वहां पर आतंक का अपना झंडा बुलंद करनेवाले आतंकी दहशत में आ गये हैं। उनके खौफ का आलम यह है कि वे अब वहां के भिखारियों को भी अपना निशाना बनाना चाहते हैं। खौफजदा लश्कर-ए-तैयबा समर्थित आतंकी ग्रुप कश्मीर फाइट ने गैर कश्मीरियों पर हमले तेज करने की धमकी दी है। आतंकियों का कहना है कि इस फैसले से वे खुश नहीं हैं। अब इन आतंकियों को कौन समझाये कि उन्हें खुश रखनेवाले अभी सरकार में नहीं हैं। अभी धारा 370 हटानेवालों की सरकार है। पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) की अध्यक्ष महबूबा मुफ्ती और नेशनल कांफ्रेंस केंद्र के इस फैसले का पुरजोर विरोध कर रहे हैं। महबूबा कह रही हैं कि लोकतंत्र को खत्म किया जा रहा है। एक तरफ जहां कश्मीर को अपनी बपौती समझनेवाले इन सियासतदानों की राजनीतिक जमीन खिसकने का डर सता रहा है, वहीं टारगेट किलिंग कर रहे आतंकियों में भी खौफ का मंजर साफ दिखाई पड़ रहा है। उन्हें एहसास हो चुका है कि अब जो वहां सरकार बनेगी, वह आतंकियों का हित पोषक नहीं होगी। धारा 370 के बाद पहली बार जम्मू कश्मीर में चुनाव को लेकर कैसी बह रही बयार, कैसे वहां मजबूत हो रहा लोकतंत्र, क्यों बौखलाये हुए हैं आतंकी संगठन और क्यों विरोध जता रहे हैं गुपकार गुट, बता रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।
जम्मू कश्मीर में विधानसभा चुनावों की गर्माहट शुरू हो गयी है। इस गर्माहट से जहां वहां की परंपरागत दो क्षेत्रीय पार्टियां तिलमिला गयी हैं, वहीं वहां के आम मतदाताओं के कलेजे में ठंडक पड़नी शुरू हो चुकी है। अनुमान लगाया जा रहा है कि चुनाव आयोग अपनी तमाम तैयारियों के साथ राज्य में चुनाव की तारीखों का एलान जम्मू-कश्मीर के मौसम को देखते हुए कर सकता है। एक अनुमान के मुताबिक 2023 के मार्च या अप्रैल महीने में जम्मू कश्मीर में चुनाव होने के आसार हैं। वहीं दूसरी ओर धारा 370 खत्म होने के बाद अब कोई भी व्यक्ति जम्मू-कश्मीर का मतदाता बन सकता है। राजनीतिक हलकों में यह एक बड़ा मास्टर स्ट्रोक माना जा रहा है। इससे पहले वहां के मूल निवासियों के पास ही वोट देने का अधिकार था। वर्षों बरस से वहां रह रहे भारतीय सिर्फ चुनाव के समय तमाशबीन की भूमिका में थे।
कब हो सकते हैं चुनाव
जम्मू-कश्मीर में धारा-370 खत्म होने के बाद ही परिसीमन आयोग ने चुनावी तैयारियों के लिए सर्वे कराने की तैयारियां शुरू कर दी थी। विधानसभा क्षेत्रों का परिसीमन होने के बाद जम्मू कश्मीर की सात सीटें बढ़ कर 90 हो गयीं। जम्मू में 43 और कश्मीर घाटी में 47 सीटों पर मतदान होंगे। ऐसे तो कुल सीट बढ़ा कर 114 कर दी गयी है, लेकिन इनमें से 24 सीट पीओके ( पाक अधिकृत कश्मीर ) के लिए रिजर्व कर दी गयी हैं, क्योंकि भारत पीओके को अपना अभिन्न हिस्सा मानता है। इसलिए ये सीटें सुरक्षित रख दी गयी हैं। कुछ सीटों को विलोपित किया गया है और इनकी जगह नये नाम से विधानसभा क्षेत्र बना है। जम्मू कश्मीर और लद्दाख के मुख्य चुनाव अधिकारी हृदेश कुमार के मुताबिक 15 सितंबर को समग्र मतदाता सूचियों के मसौदे का प्रकाशन होगा। उसके बाद 10 नवंबर तक दावे और आपत्तियों का निराकरण किया जायेगा। मुख्य चुनाव अधिकारी के मुताबिक दावे और आपत्तियों के निराकरण के बाद 25 नवंबर को अंतिम मतदाता सूची का प्रकाशन किया जायेगा। मुख्य चुनाव आयोग से जुड़े एक वरिष्ठ अधिकारी का मानना है कि चुनाव कराने से पहले अंतिम मतदाता सूची का प्रकाशन सबसे महत्वपूर्ण होता है। जम्मू-कश्मीर में अंतिम मतदाता सूची का प्रकाशन 25 नवंबर को कर दिया जायेगा। जानकारों का मानना है चूंकि अंतिम मतदाता सूची 25 नवंबर को प्रकाशित कर दी जायेगी, इसलिए यह तय है कि चुनावी रूपरेखा को पूरी तरीके से अमली जामा पहना दिया गया है। सूत्रों के मुताबिक चुनाव आयोग 25 नवंबर के बाद चुनाव कराने की स्थिति में होगा। लेकिन दिसंबर से लेकर मार्च के शुरूआती दिनों में जम्मू-कश्मीर का मौसम चुनाव के लिहाज से मुफीद नहीं होगा, क्योंकि सर्दियों में घाटी में अच्छी खासी बर्फबारी होती है। ऐसे में चुनाव कराना किसी भी लिहाज से मुफीद नहीं है। जानकारों का मानना है कि मार्च के अंतिम दिनों या अप्रैल के दौरान जब बर्फबारी कम होगी, तब जम्मू-कश्मीर में चुनाव आयोग तारीखों का एलान कर सकता है। धारा 370 हटने के बाद पहली बार कश्मीर में चुनाव होने जा रहा है। चुनाव आयोग के लिए भी यह बड़ी परीक्षा होगी कि वोट प्रतिशत ज्यादा से ज्यादा रहे।
मतदाताओं की संख्या बढ़नेवाली है
परिसीमन आयोग की रिपोर्ट के मुताबिक राज्य में तकरीबन 25 लाख मतदाताओं की संख्या बढ़ने का अनुमान है। चूंकि धारा 370 की समाप्ति के बाद कश्मीर में देश का कोई भी नागरिक मतदाता बन सकता है। मतदाता बनने के लिए किसी भी तरीके के डोमिसाइल की आवश्यकता नहीं है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि बढ़े हुए वोटरों और परिसीमन आयोग की नयी व्यवस्था के मुताबिक जम्मू-कश्मीर में होनेवाले चुनाव भाजपा के लिए मास्टर स्ट्रोक साबित हो सकते हैं। जम्मू-कश्मीर से बाहर रहनेवाले कश्मीरी पंडितों की बड़ी संस्था रूट्स इन कश्मीर के प्रवक्ता अमित रैना का कहना है कि चुनाव आयोग का यह फैसला स्वागत योग्य है। अमित कहते हैं कि जम्मू कश्मीर के डोमिसाइल होल्डर होने के बाद जब वह उत्तरप्रदेश के वोटर हो सकते हैं, तो उत्तरप्रदेश या बिहार का कोई व्यक्ति कश्मीर का वोटर क्यों नहीं हो सकता है। वह कहते हैं कि धारा-370 खत्म होने के बाद पूरे देश में जो वोटर बनने की व्यवस्था है, वही कश्मीर में भी लागू हुई है। इसलिए 25 लाख वोटर बढ़ना कोई छोटी बात नहीं है। रूट्स इन कश्मीर से जुड़े लोगों का मानना है कि कश्मीर में आनेवाले दिनों में एक बेहतरीन और स्थायी सरकार से लोगों का न सिर्फ जीवन बेहतर होगा, बल्कि पूरी व्यवस्था और तंत्र मजबूत होगा। सुरक्षा के लिहाज से भी यह फैसला स्वागत योग्य है। हालांकि मतदाता सूची में बढ़ रहे 25 लाख नये वोटरों को लेकर सियासत भी गरम हो गयी है। कश्मीर के राजनीतिक दलों में कोहराम मचा हुआ है। उनकी धड़कनें बढ़ चुकी हैं। वे अच्छी तरह समझ रहे हैं कि नये मतदाता जम्मू-कश्मीर में आमूल चूल बदलाव के लिए मतदान करेंगे। आतंकियों को सबक सिखाने के लिए मतदान करेंगे। जम्मू कश्मीर को देश की मुख्यधारा में लाने के लिए बदलाव करेंगे।
कश्मीर को बपौती समझनेवाली राजनीतिक पार्टियां कर रहीं विरोध
चुनाव आयोग की घोषणा के बाद जम्मू कश्मीर की विपक्षी पार्टियों ने केंद्र में सत्तारूढ़ भाजपा पर हमला तेज कर दिया है। पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने ट्वीट कर कहा है कि भाजपा चुनाव से पहले डर गयी है। इन लोगों को कश्मीर का सपोर्ट नहीं मिलने जा रहा है। ऐसे में बाहरी लोगों के बूते पर सरकार में आने की कोशिश कर रही है। वहीं पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने ट्वीट कर लिखा है कि पहले कश्मीर में चुनाव स्थगित करवाना और फिर बाहरी लोगों को वोटर लिस्ट में नाम शामिल करने के पीछे क्या मंशा है? दिल्ली वाले कश्मीर पर सख्त शासन करना चाहते हैं। उनका कहना है कि लोकतंत्र खत्म हो रहा है। ऐसा कहते वक्त महबूबा मुुफ्ती यह भूल जाती हैं कि जब जम्मू कश्मीर के नेता केंद्र में मंत्री बन कर देश पर शासन कर सकते हैं। अपना हुक्म चला सकते हैं तो जम्मू-कश्मीर में देश का नागरिक वोट क्यों नहीं दे सकता। वहीं पलटवार करते हुए बीजेपी ने कहा कि महबूबा मुफ्ती किसी और युग में जी रही हैं। दरअसल पीडीपी और नेशनल कांफ्रेंस की दुकानदारी खत्म हो गयी है। इसलिए वो इस तरह की बातें कर रहे हैं। बीजेपी ने कहा कि पीडीपी और नेशनल कांफ्रेंस तो पाकिस्तानी वोटर को शामिल करते थे।
दहशत में आतंकी
जब से निर्वाचन आयोग ने जम्मू-कश्मीर में अन्य राज्यों के लोगों को मतदान का अधिकार देने का फैसला किया है, तब से लश्कर-ए-तैयबा समर्थित आतंकी ग्रुप कश्मीर फाइट गैर कश्मीरियों पर हमले तेज करने की धमकी दे रहा है। उसने आतंकी वेबसाइट पर यह धमकी दी है। पोस्ट में कहा गया है कि जब जीतने का बड़ा कारण होता है, तो कैजुएलिटी भी होती है। हममें से कोई भी इससे खुश नहीं है, लेकिन यही सच्चाई है। सभी गैर कश्मीरियों को वोट देने के अधिकार के बाद यह सामने आ गया है कि दिल्ली में गंदा खेल खेला जा रहा है। ऐसे में यह आवश्यक हो गया है कि हम अपने हमलों को तेज करें और अपने लक्ष्यों को प्राथमिकता दें। इस पोस्ट में टारगेट्स की लिस्ट भी दी गयी है।
जाहिर है, आतंकी संगठन इसलिए विरोध कर रहे हैं, क्योंकि वे अच्छी तरह जानते हैं कि अब जो जम्मू-कश्मीर में सरकार आयेगी, वह आतंकियों की इच्छा के मुताबिक काम नहीं करेगी। आम मतदाता आतंकियों के हित पोषक उम्मीदवारों को चुन कर नहीं भेजेंगे। अब वहां पाकिस्तान का गुण नहीं गाया जायेगा, बल्कि वंदे मातरम और भारत माता के जयकारे लगेंगे। सच तो यही है कि आजादी के बाद जम्मू कश्मीर में पहली बार मतदाता बेखौफ होकर वोट करेंगे।
जम्मू-कश्मीर में चुनाव से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारियां
जम्मू-कश्मीर में आखिरी बार 2014 में विधानसभा का चुनाव हुआ था। नवंबर 2018 में विधानसभा को भंग कर दिया गया था। जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 हटने के बाद से विधानसभा के चुनाव नहीं हुए हैं। यह इस साल के अंत या अगले साल के शुरू तक प्रस्तावित है। वहीं मतदाता वोटर लिस्ट में नाम दो तरीके से जुड़वा सकते हैं। पहला, चुनाव आयोग शिविर लगाता है, जहां आप जाकर आसानी से अपना नाम जुड़वा सकते हैं। वहीं दूसरा तरीका आॅनलाइन नाम जुड़वाने का है। इसके लिए आपको चुनाव आयोग की वेबसाइट एनवीएसपी डॉट इन पर जाना होगा और वहां रजिस्ट्रेशन कर फॉर्म अप्लाई करना होगा।