-ममता ने दो सालों में सिर्फ आश्वासन दिया, केवल चंद्रप्रकाश ने की मदद
-ममता साल में एक बार आती थीं, माला पहनाती थीं और चली जाती थीं
-कांग्रेस प्रत्याशी बजरंग बच्चा लेकर पूरे विधानसभा क्षेत्र में रो रहे हैं
-सिर्फ उनका ही बच्चा है, क्या पीड़ितों के बच्चे नहीं हैं, वहां तो झांकने भी नहीं आयी ममता
यह राजनीति, और खास कर चुनावी राजनीति की एक विडंबना ही है कि चुनावी मैदान में उस कारण की चर्चा भी नहीं हो रही है, जिसे लेकर पूरा इलाका चर्चा में है। सब कुछ चुनावी गहमा-गहमी में डूबा हुआ है, लेकिन न तो असली मुद्दे की चर्चा है और न इस मुद्दे के पीछे के लोगों की। जी हां, हम बात कर रहे हैं रामगढ़ विधानसभा उपचुनाव की, जहां 27 फरवरी को मतदान होना है। पूरे इलाके में चुनाव प्रचार जोर-शोर से चल रहा है, जीत के दावे किये जा रहे हैं, लेकिन पूरे परिदृश्य से वह परिवार गायब है, जिसके सदस्यों ने इलाके के लिए अपने प्राणों की आहुति दी थी। इनलैंड पावर लिमिटेड (आइपीएल) गोलीकांड में मारे गये दो लोगों के परिजन इस चुनावी शोर में कहीं गुम हैं, जिनकी बदौलत पहले कांग्रेस की ममता देवी विधायक बनीं और अब विधायकी गंवा कर जेल में हैं। गोलीकांड में मारे गये दोनों लोगों के परिजनों का चुनावी परिदृश्य में कहीं नाम भी नहीं लिया जा रहा है। उनका तो यहां तक कहना है कि ममता देवी ने भी विधायक बनने के बाद उनके लिए कुछ नहीं किया। वोट लेकर विधायक बन गयीं, लेकिन आइपीएल गोलीकांड के शहीदों को ही भूल गयीं। पहले उन्होंने अपनी बेटी के नाम पर वोट मांगा था, अब बेटे के नाम पर उनके पति वोट मांग रहे हैं। लेकिन रामगढ़ की जनता अब यह खेल समझ चुकी है। इस बार सहानुभूति की वह लहर काम नहीं आयेगी। रामगढ़ उपचुनाव की गहमा-गहमी के बीच दुलमी स्थित आइपीएल फैक्ट्री गोलीकांड में मारे गये लोगों के परिजनों की पीड़ा को शब्दों में बयां कर रहे हैं आजाद सिपाही के रामगढ़ ब्यूरो प्रभारी बीरू कुमार।
आइपीएल गोली कांड के शहीदों के नाम पर और एक दुधमुंहे बच्चे को सामने रख कर महागठबंधन प्रत्याशी बजरंग महतो द्वारा लड़ा जा रहा रामगढ़ उपचुनाव की असलियत जब आप जानेंगे, तो आप चौंक जायेंगे। 2019 के विधानसभा चुनाव में तो जनता ने जिस ममता देवी को रिकॉर्ड मतों से जियाता था, वह आज निराश है। वह ठगा हुआ महसूस कर रही है। एक तो जनता को ममता से सहानुभूति थी, दूसरे जनता ममता से उम्मीद कर रही थी कि वह जब विधायक बनेंगी, तो क्षेत्र की जनता और गोलीकांड के शहीदों के परिजनों लिए कुछ करेंगी। उस वक्त ममता देवी ने 2019 के विधानसभा चुनाव के दौरान जेल में बंद अपनी और बाहर खड़ी दो साल की बेटी की तस्वीर आगे कर आमजनों की भावनाओं को छुआ था। ममता तो जीत गयीं, लेकिन बदले में जनता और पीड़ितों को मिला वही नेताओं का आश्वासन। आजाद सिपाही की टीम ने जब आइपीएल गोलीकांड के शहीदों के परिवार वालों से बात की, तो पाया कि ममता ने तो उनसे खूब बड़े-बड़े वादे किये थे, नौकरी, आवास इत्यादि, लेकिन मिला सिर्फ आश्वासन।
विधायक बनने के बाद ममता ने पूछा तक नहीं
आइपीएल गोलीकांड में मारे गये रामलखन महतो की पत्नी सविता देवी का कहना है कि 2016 के बाद के छह साल बहुत कष्टों भरा रहा। हम क्या खा रहे हैं, क्या पी रहे हैं, कोई भी पूछने वाला नहीं था। खेती के सहारे जिंदगी चल रही थी। लेकिन जब नहीं सकी, तो खुद ही प्लांट गयी, नौकरी मांगी। जब गोलीकांड हुआ, तब बहुत सारे नेता आये। किसी ने कहा, 40 देंगे-50 देंगे, नौकरी देंगे, लेकिन किसी ने कुछ नहीं दिया। हां आश्वासन जरूर दिया। तीन-तीन बच्चों को मैंने कैसे पाला है, वह सिर्फ मैं ही जानती हूं। 2019 के बाद जब ममता देवी विधायक बनीं, तो उन्होंने सिर्फ आश्वासन दिया। पहले तो उन्होंने कहा था कि वह नौकरी देंगी और कई सुविधाएं देंगी, लेकिन कुछ नहीं मिला। महागठबंधन के नेता मंच से सिर्फ गोलीकांड का जिक्र कर रहे हैं। मंच से गोलीकांड का जिक्र कर मेरे जख्मों को सिर्फ कुरेदा जा रहा है और कुछ नहीं।
ममता ने सिर्फ दिया आश्वासन, चंद्रप्रकाश ने की असली मदद
वहीं गोलीकांड में मारे गये रामलखन महतो के भतीजे दीपक कुमार का कहना है कि 2016 के गोलीकांड के बाद के छह साल बहुत दुखों भरे रहे। ममता देवी विधायक बनने से पूर्व में कहती थीं कि जब वह विधायक बनेंगी और उनकी सरकार आयेगी, तब वह हर सरकारी सुविधा पड़ितों के लिए उपलब्ध करवायेंगी। आवास मिलेगा, पेंशन मिलेगी, सरकारी नौकरी मिलेगी। लेकिन जिस क्षेत्र में गोलीकांड हुआ, वह वहां झांकने तक नहीं आतीं। सिर्फ साल में एक बार शहीदों को माला पहनाने आती हैं। क्या सिर्फ माला पहनाने से पीड़ितों के परिवारों का भरण-पोषण हो जायेगा। सिर्फ उनका ही छोटा बच्चा है। मेरे चाचा का छोटा बच्चा नहीं है क्या। अभी बजरंग महतो अपने बच्चे को प्रचार के नाम पर लेकर पूरे विधानसभा क्षेत्र में रो रहे हैं, लेकिन हमारे बच्चों को देखने के लिए कौन है। क्या गरीब का बच्चा, बच्चा नहीं होता। वह तो भला हो सांसद चंद्रप्रकाश चौधरी का, जिन्होंने मेरे दिवंगत चाचा के तीनों बच्चों को पढ़ाने की जिमेदारी उठायी है। वह उन्हें अच्छी शिक्षा प्रदान करा रहे हैं। दो बच्चों को राधा गोविंद में पढ़ाया जा रहा है। तीसरा बच्चा अपेक्स पब्लिक स्कूल मगरमरचा में पढ़ रहा है। वह और भी सुविधाएं परिवार को दे रहे हैं। लेकिन जब हम तत्कालीन विधायक ममता देवी के आवास पर गये, तब उन्होंने सिर्फ आश्वासन ही दिया और कुछ नहीं। जिन मुद्दों को लेकर ममता देवी चुनाव जीतीं, वे मुद्दे धराशायी हो गये। कुछ नहीं किया उन्होंने। महागठबंधन के नेताओं को बताना चाहिए कि सरकार तो उनकी है, लेकिन फिर भी गोलीकांड के पीड़ितों के लिए कोई कुछ क्यों नहीं कर रहा है। सिर्फ वोट मांगा जा रहा है। उस वक्त बच्ची के नाम पर, आज बच्चा के नाम पर। हर बार सिर्फ जेल वाली तस्वीर वायरल की जा रही है और वोट की राजनीति की जा रही है।
क्या हुआ था आइपीएल फैक्ट्री में
दरअसल रामगढ़ के दुलमी स्थित आइपीएल फैक्ट्री में 2016 में विस्थापित रैयतों ने 16 सूत्री मांगों को लेकर आंदोलन किया था। आंदोलन को भाजपा नेता राजीव कुमार ने धार दी थी और ममता देवी ने उसका नेतृत्व किया था। उस वक्त वह गोला क्षेत्र से जिला परिषद सदस्य थीं। करीब एक माह तक चले आंदोलन में ममता देवी की सक्रिय भागीदारी रही थी। इसके बाद उग्र प्रदर्शन हुआ और पुलिस को अश्रु गैस के गोले के अलावा आत्मरक्षार्थ गोली चलानी पड़ी थी। इस घटना में दो लोगों की मौत हो गयी थी और कई गंभीर रूप से घायल हो गये थे। इस घटना के बाद भाजपा नेता राजीव जायसवाल और तत्कालीन जिला परिषद सदस्य ममता देवी को जेल जाना पड़ा था। ममता देवी और राजीव पर चार विभिन्न प्राथमिकीयां दर्ज की गयी थीं। इनमें दो गोला और दो रजरप्पा थाना में दर्ज थीं। ममता देवी जब जेल गयी थीं, उस वक्त उनकी बेटी दो साल की थी। ममता देवी के जेल जाने की घटना ने उनके जीवन को बदलकर रख दिया था। 2017-18 में वह क्षेत्र में प्रसिद्ध हो चुकी थीं और आंदोलनकारी नेता की उनकी छवि बन गयी। 2019 में विधानसभा चुनाव हुए और वह कांग्रेस की प्रत्याशी घोषित की गयीं। क्षेत्र में पकड़, आंदोलन और मां-बेटी के रिश्तों के भावनात्मक पहलू ने चुनाव में उन्हें लोकप्रिय बना दिया और परिणामस्वरूप वह चार बार के विधायक चंद्रप्रकाश चौधरी की पत्नी को मात देकर विजयी हुईं। जिस गोला गोलीकांड के बाद प्रसिद्धि के शिखर पर ममता देवी चढ़ीं, उसी कांड में आये कोर्ट के फैसले के बाद उनकी विधानसभा की सदस्यता रद्द हो गयी। कोर्ट ने ममता देवी सहित अन्य को पांच साल की सजा सुनायी है। विधानसभा चुनाव 2019 में ममता देवी ने जेल में बंद अपनी और बाहर खड़ी दो साल की बेटी की तस्वीर आगे कर आमजनों की भावनाओं को छुआ था। यह तस्वीर सोशल मीडिया पर भी वायरल हुई थी। उसके बाद 2019 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी ममता देवी को 99 हजार 944 मत हासिल हुए थे। वहीं आजसू की सुनीता देवी को 71 हजार 226 मत हासिल हुए थे। भाजपा प्रत्याशी को 31 हजार 874 वोट मिले थे। उस विधानसभा चुनाव में भाजपा और आजसू ने अलग-अलग चुनाव लड़ा था। यानी वोट बंट गया और ममता देवी बाजी मार गयीं। अगर भाजपा और आजसू के वोटों को जोड़ दिया जाये, तो 71226+31874=103100 होते हैं। यानी ममता देवी के वोट से से 3156 ज्यादा।
अब एक बार फिर वह जेल में बंद हैं और रामगढ़ में उपचुनाव होने वाला है। अबकी बार सहानुभूति के लिए उनका दुधमुंहा बच्चा सामने है। पूर्व की तरह ही एक बार फिर से एक और फोटो वायरल किया जा रहा है, जिसमें ममता देवी को जेल में और बाहर चार माह के उनके बेटे को दिखाया जा रहा है। इस बार प्रत्याशी हैं ममता देवी के पति बजरंग कुमार महतो। लेकिन नॉमिनेशन से पहले तो रामगढ़ में सियासी लड़ाई घर की लड़ाई में तब्दील होने लगी थी। ममता देवी के पति और देवर ही टिकट के लिए आमने-सामने खड़े हो गये थे। दोनों भाइयों ने विधानसभा उपचुनाव के लिए कांग्रेस की ओर से दावेदारी पेश कर दी थी। उसके बाद क्षेत्र में चर्चाओं का बाजार गर्म हो गया था। मैसेज तो यही गया कि देखो ममता तो जेल में बंद हैं, बाहर उनके पति और देवर कुर्सी की होड़ में आपस में ही लड़ रहे हैं। मतलब कुर्सी महत्वपूर्ण है, व्यक्ति नहीं। जनता भी यह समझ रही है।
जरा सोचिये, जिस गोलीकांड की सहानुभूति पर ममता विधायक बनीं, विधायक बनने के बाद उन्होंने पीड़ित परिवार वालों के लिए कुछ भी नहीं किया। सिर्फ वोट मांगा, आज भी वही हो रहा है। आज भी 2019 कहानी दोहरायी जा रही है, लेकिन पीड़ित परिवार वालों की बात तक नहीं हो रही। हो भी कैसे, राज जो खुल जायेगा।