-केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने तय कर दी भाजपा की लाइन
-विपक्ष को अब इस मुद्दे पर करनी होगी नये सिरे से तैयारी
भाजपा के ‘चुनावी चाणक्य’ और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने 2024 के आम चुनाव का सबसे बड़ा एजेंडा सेट कर दिया है। उन्होंने इसको लेकर इशारों-इशारों में तो कई बार कहा है, लेकिन पहली बार उन्होंने दो दिन पहले महाराष्ट्र के कोल्हापुर में खुल कर कहा कि देश में भाजपा शासित राज्य इस दिशा में आगे बढ़ रहे हैं। यह एजेंडा है समान नागरिक संहिता यानी यूसीसी का, जो बहुत पहले से भाजपा की प्राथमिकता सूची में है। भाजपा की राष्ट्रवादी विचारधारा में जनसंघ के जमाने से ही तीन मुद्दे सबसे बड़े रहे हैं। इनमें पहला मुद्दा अयोध्या में राम मंदिर निर्माण, दूसरा मुद्दा कश्मीर से धारा 370 को हटाना और तीसरा समान नागरिक संहिता शामिल हैं। पहले दो मुद्दों को भाजपा ने निर्णायक तरीके से हल कर लिया है और अब उसे तीसरे मुद्दे पर काम करना है। स्वाभाविक रूप से अमित शाह का यह एलान देश के कट्टरपंथियों और यूसीसी का विरोध करने वालों को मिर्ची की तरह लगा है। अमित शाह ने डंके की चोट पर कहा कि जिन मुद्दों को लेकर जनता से वादे किये, उन सभी को पूरा किया गया। धारा 370 हटाना या ट्रिपल तलाक खत्म करना जैसे फैसलों पर सरकार को बहुत विरोध का सामना करना पड़ा, लेकिन ये फैसले लिये गये। अब समान नागरिक संहिता लाने की बात की जा रही है। इस एलान के साथ ही माना जा रहा है कि वर्ष 2024 के आम चुनाव का सबसे बड़ा मुद्दा यही रहने वाला है। अमित शाह के एलान के बाद यह भी साफ हो गया है कि विपक्ष को इस मुद्दे पर नये सिरे से तैयारी करनी होगी, क्योंकि भाजपा इस पर बहुत आगे बढ़ चुकी है। आखिर क्या है समान नागरिक संहिता और क्यों हो रहा है इसका विरोध, बता रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने दो दिन पहले साफ कर दिया कि भाजपा 2024 में लगातार तीसरी बार सत्ता हासिल करने के लिए पूरी तरह तैयार है। इसके लिए पार्टी ने अपनी प्राथमिकताएं भी तय कर ली हैं और इस पर काम भी शुरू कर दिया गया है। अमित शाह ने साफ तौर पर कहा कि उनकी पार्टी अब देश में समान नागरिक संहिता, यानी यूसीसी लागू करने की दिशा में कदम उठाने का फैसला कर चुकी है। कई राज्यों में इस पर काम शुरू हो चुका है। आनेवाले चुनाव में जीत हासिल करने के बाद भाजपा सरकार इसे लागू करने की दिशा में निर्णायक कदम उठायेगी।
समान नागरिक संहिता लागू करना केंद्र सरकारों के लिए बड़ी चुनौती रही है। कोई भी इस कानून को लागू करने का जोखिम अब तक नहीं उठा पाया है। गृह मंत्री के बयान ने इस पर नयी बहस छेड़ दी है। भाजपा हमेशा एक देश में दो निशान, दो प्रधान, दो विधान के खिलाफ हमेशा मुखर रही है। राष्ट्रवादी समूह हमेशा से मांग करते रहे हैं कि देश में यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू होना चाहिए। लोग अपने धार्मिक कानूनों को सरेंडर नहीं करना चाहते हैं। यही वजह है कि कभी कोई सरकार इसे लागू करने का साहस नहीं कर पायी। भाजपा सरकार के प्रमुख एजेंडे में यह शुमार हो रहा है। अब अनुच्छेद 370, तीन तलाक और राम मंदिर की तरह यह भी भाजपा सरकार की प्राथमिकता बनता जा रहा है।
क्या है यूनिफॉर्म सिविल कोड
भारतीय संविधान का भाग 4 में ‘राज्य की नीति के निर्देशक तत्व’ हैं। ये तत्व केवल राज्यों को एक निर्देश देते हैं। ये किसी भी कोर्ट में प्रवर्तनीय नहीं हैं। राज्य की नीति के निर्देशक तत्व राज्यों के लिए एक सलाह की तरह हैं। इसे मुताबिक, केंद्र और राज्य सरकारों को निर्देशित किया जाता है कि कानून बनाते समय उन्हें निर्देशक तत्वों का ध्यान रखना चाहिए। संविधान का अनुच्छेद 44 कहता है कि नागरिकों के लिए एक समान सिविल संहिता होनी चाहिए। इसके अलावा राज्य भारत के समस्त राज्यक्षेत्र में नागरिकों के लिए एक समान सिविल संहिता प्राप्त करने का प्रयास करेगा। इससे स्पष्ट है कि यह महज एक सलाह है। यूनिफॉर्म सिविल कोड एक पंथनिरपेक्ष या सेक्युलर कानून है, जिसके लागू होने के बाद सभी धर्मों के व्यक्तिगत कानून खत्म हो जायेंगे। अभी हिंदू, मुस्लिम, क्रिश्चियन और पारसी समुदाय के अलग-अलग धार्मिक कानून हैं। हिंदू लॉ ही बुद्ध, जैन और सिख धर्मों के अनुयायियों पर भी लागू होता है। वसीयत और शादी जैसे विषयों पर इन कानूनों को मानना ही होता है। तलाक और उसके बाद के भरण-पोषण को लेकर भी नियम पर्सनल लॉ के जरिये ही तय किये जाते हैं। ऐसे में अगर यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू होता है, तो ये सभी व्यक्तिगत कानून खत्म हो जायेंगे और नागरिकों को एक समान सिविल संहिता पर जोर देना होगा। धार्मिक संगठन यूनिफॉर्म सिविल कोड का विरोध करते हैं। धार्मिक संगठनों को लगता है कि अगर यह कानून लागू हो गया, तो उनके व्यक्तिगत कानून खतरे में पड़ जायेंगे। इस कानून का सबसे ज्यादा विरोध इस्लामिक संगठन करते हैं, क्योंकि उनके व्यक्तिगत कानून कट्टरता का समर्थन करते हैं।
क्यों यूनिफॉर्म कोड का विरोध करते हैं धार्मिक संगठन?
यूनिफॉर्म सिविल कोड अगर लागू किया जाता है, तो सभी धर्मों को अपने व्यक्तिगत कानून सरेंडर करने होंगे। अभी हिंदू, मुस्लिम, इसाइ, पारसी समुदाय के लिए अलग-अलग नियम हैं। मुसलमान शरियत कानूनों को मानते हैं। द मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरीयत) एप्लीकेशन एक्ट, 1937 उनका व्यक्तिगत कानून है, जो अधिकांशत: कुरान और हदीस पर आधारित है। इस्लामिक संगठन अपने धार्मिक कानूनों में किसी भी तरह का कानूनी दखल नहीं मानते हैं। ऐसे में वह लगातार इसका विरोध करते हैं। मुस्लिम विवाह विघटन अधिनियम, 1939 कहता है कि एक मुस्लिम पुरुष को बिना पहली पत्नी की सहमति के चार शादियां करने की इजाजत है। अगर यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू होता है, तो अन्य धर्मों की तरह मुस्लिम पुरुषों को भी बहुविवाह प्रथा का पालन करने पर जुर्माना और जेल हो सकती है। इससे पहले तीन तलाक, हलाला और बहुविवाह जैसी कुप्रथाओं को लेकर सरकार कड़े कदम उठा चुकी है। शरीयत कानून इनकी इजाजत देता है, लेकिन ये कानून मानवाधिकारों की नजर से भी गलत हैं। इन्हें तत्काल खत्म करने की जरूरत है। संवैधानिक और विधिक दृष्टि से अगर समान नागरिक संहिता लागू की जाती है, तो इसमें कुछ भी गलत नहीं होगा। यह मौजूदा समय की मांग है।
व्यक्तिगत कानूनों को खत्म करेगी समान नागरिक संहिता
इस्लाम में तलाक से संबंधित अधिकार पुरुषों के पास अधिक हैं। महिलाओं के अधिकार बेहद सीमित हैं। इस्लाम में वयस्कता उम्र और विवाह से जुड़े नियम दूसरे धर्मों की तुलना में अलग है। अगर यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू होता है, तो सभी को शादी और जमीन-जायदाद और वसीयत को लेकर बनाये गये एक कानून को ही मानना होगा। अभी धर्मों के अलग-अलग कानून हैं, जिसके हिसाब से कोर्ट में मुकदमे चलते हैं। यूनिफॉर्म सिविल कोड अगर लागू होता है, तो व्यक्तिगत कानून खत्म हो जायेंगे।
यूनिफॉर्म सिविल कोड को लागू कराना आसान नहीं है। वजह इसके पीछे की राजनीति है। धार्मिक संगठन इसके खिलाफ खड़े हो जाते हैं। हिंदू संगठन अपने व्यक्तिगत कानूनों को सरेंडर कर चुके हैं। जब-जब यूनिफॉर्म सिविल कोड पर बहस होती है, तब-तब इस्लामिक संगठन इसके खिलाफ खड़े हो जाते हैं।
किन राज्यों में यूनिफॉर्म सिविल कोड पर चल रहा है विचार?
गोवा में यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू है। हाल ही में गुजरात सरकार ने समान नागरिक संहिता के लिए एक समिति का गठन किया है। असम सरकार इसे लागू करने पर विचार कर रही है। उत्तराखंड में समान नागरिक संहिता पर ड्राफ्ट तैयार हो गया है। कर्नाटक, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश में समान नागरिक संहिता पर विचार चल रहा है। झारखंड, बिहार, पश्चिम बंगाल और पूर्वोत्तर के दूसरे राज्यों में डेमोग्राफी में तेजी से हो रहे बदलाव ने भी केंद्र सरकार के कान खड़े कर दिये हैं। ऐसे में अमित शाह के इस बयान से संकेत लगाये जा रहे हैं कि अब इस पर भी केंद्र सरकार कानून बना सकती है।
भाजपा के लिए यह मुद्दा इसलिए भी अहम है, क्योंकि इस पर उसकी अब तक की तैयारी विपक्षी दलों से काफी आगे है। इसलिए चुनाव में उसे आसानी होगी, जबकि विपक्ष को अब इस मुद्दे पर नये सिरे से तैयारी करनी होगी, रणनीति बनानी होगी, जो काफी मुश्किल साबित होनेवाला है।