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    Home»Jharkhand Top News»राहत की सांस ले रहे ग्रामीण, जिनकी सांसत में पड़ी थी जान
    Jharkhand Top News

    राहत की सांस ले रहे ग्रामीण, जिनकी सांसत में पड़ी थी जान

    sunil kumar prajapatiBy sunil kumar prajapatiMay 10, 2023No Comments4 Mins Read
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    सोनू कुमार गुप्ता
    गढ़वा। हमने खबर का शीर्षक दिया है नक्सलियों से आजाद हुए बूढ़ा पहाड़ पहुंचा आजाद सिपाही। इसे पढ़ने के बाद शायद मुझे बताने की जरूरत नहीं है कि मैं किस बूढ़ा पहाड़ और उसकी चर्चा किस संदर्भ में कर रहा हूं।
    मैं बूढ़ा पहाड़ का विस्तृत चर्चा करूं उससे पहले आपको तस्वीर के जरिए उस रास्ते को दिखाता हूं जिससे आज गुजरना भले सुगम हो गया हो, पर दुर्गम पहाड़ी पर पहुंचने के लिए यही रास्ता कितना कठिन था। देख कर समझा जा सकता है। पर उसी कठिनाई को झेलते और चुनौती को स्वीकार कर एक लंबी लड़ाई लड़ते हुए नक्सलियों के हुकूमत वाले बूढ़ा पहाड़ को आजाद करा लिया गया। पर उस गुलामी के वक्त कैसे हालात थे उसे गांव वालों से जानने के साथ-साथ अब वो कैसी जिंदगी जी रहे हैं उसे उनके चेहरे को देख कर बेशक जाना जा सकता है।

    जहां कभी बमों के धमाके और गोलियों की तड़तड़ाहट सुनाई पड़ती थी। अब वहां बच्चों के ककहरा सुनाई पड़ते हैं। जिस बूढ़ा पहाड़ की चोटी पर मौजूद रह कर नक्सली खतरनाक रणनीति बनाने के साथ-साथ उसे अंजाम दिया करते थे। आज उसी जगह पर बच्चे पढ़ाई कर रहे हैं। ये वही अबोध बच्चे हैं जिनका बचपन सिसक रहा था, इनकी आंखों में घर कर चुके खौफ को देख कर अहसास किया जा सकता है कि किस विषम हालात में इनकी जिदगी गुजरी है। पर अब उस विषम हालात से इन्हें निकालने के साथ-साथ ऐसा प्रयास किया जा रहा है कि इनके मन से दहशत का घना कोहरा भी छंट जाए। क्योंकि जिन बच्चों के हाथों में कुछ ही अरसा में हथियार आ जाते आज उनकी नन्हीं उंगलियों को पेंसिल दे दी गयी। जो जुबान कल को लाल सलाम और प्रशासन मुर्दाबाद के नारे लगाते आज वो ककहरा बोलते हुए प्रगति की राह पर चल पड़े हैं। जो बच्चे बाहर की दुनिया से अनजान थे। खुशियों की बरसात की जगह जिनकी नजरें दुख के बादल देखे थे। वो आज कंप्यूटर के जरिए पढ़ाई करते हुए बाहर की दुनिया से वाकिफ भी हो रहे हैं।

    स्कूल यूनिफॉर्म में बैठ पढ़ाई करने वाले इन बच्चों की जिंदगी संवार रहे सीआरपीएफ 172 बटालियन के कमांडेंट नृपेंद्र कुमार सिंह कहते हैं कि जहां कभी विध्वंस की नीति तैयार होती थी। अब वहीं निर्माण की रणनीति बन रही है। हम ऐसा केवल कह नहीं रहे बल्कि आपको तस्वीरों के जरिए दिखा भी रहे हैं। ये वही ग्रामीण हैं जो कल जब इस पहाड़ पर नक्सली काबिज थे उस वक्त क्या ये विध्वंस की बात ज्यादा सुनते होंगे या निर्माण की इन्हें प्रशासन और सरकार की मुखालफत करना सिखाया जाता था या वकालत करना बेशक समझा जा सकता है। देखिए और सोचिए कि जो गुजरे वक्त में डर के मारे नक्सलियों के गलत मंसूबों के अंजाम देते वक्त सशरीर मौजूद रहा करते थे। आज वही बेखौफ हो निर्माण में जुटे हुए हैं। यह बात नहीं कि वो चुप्पी साधे हुए हैं बल्कि उनके द्वारा बताया भी जा रहा है कि किस तरह उनके द्वारा दहशत भरी जिंदगी जिया गया है। और अब वो किस तरह सुकून का जीवन जी रहे हैं।

    दशकों बाद की लंबी लड़ाई के बाद बूढ़ा पहाड़ को नक्सलियों से मुक्त कराने के बाद अब वहां के लोगों की बेपटरी हो चुकी जिंदगी को सीआरपीएफ द्वारा पटरी पर लाई जा रही है। जहां ग्रामीणों को संचालित हो रहे विकास योजनाओं में काम करते देखा जा सकता है। वहीं नि:शुल्क शिक्षा केंद्र में बच्चों को पढ़ते हुए भी आप देख सकते हैं। इन सबके साथ साथ आपको एक महत्वपूर्ण जानकारी दे दूं कि बूढ़ा पहाड़ की तलहटी में अवस्थित पुनदाग गांव में सीआरपीएफ द्वारा बाजार की शुरुआत कराई गई है। उक्त बाजार में बिक्री और खरीददारी करते लोग पहले तो यह कहते हैं कि हमें तो मालूम भी नहीं था कि ग्रामीण हाट बाजार क्या होता है। मारे खौफ के जीवन जीने वाले हम लोगों के लिए यह सब दिन में देखे जाने वाले दिवास्वप्न जैसा था। पर आज हम सबों की जिंदगी पूरी तरह से बदल चुकी है। अब हम सभी यही दुआ करते हैं कि फिर से वो खौफ का मंजर ना देखना पड़े।
    पहले सुन कर और आज बूढ़ा पहाड़ पहुंच वहां के पूर्व वाले विषम हालात को जानने और अब वर्तमान को देख कर सीआरपीएफ और प्रशासन के कार्यों की सहृदय सराहना करने के साथ-साथ यही कहना चाहूंगा कि मन ही मन रोते हुए सिसकते बच्चों को कलेजे से लगा दोराहे वाली जिंदगी दशकों से जीकर अब हर पल सुकून का जीने वाले लोगों की आंखों के सामने फिर से वो खौफ का मंजर ना आये इसकी कोशिश अनवरत करनी होगी।

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