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    Home»विशेष»यूपी को पूरी तरह साध लिया है योगी आदित्यनाथ ने, नगर निकाय चुनाव परिणाम ने फिर साबित किया भाजपा का प्रभुत्व
    विशेष

    यूपी को पूरी तरह साध लिया है योगी आदित्यनाथ ने, नगर निकाय चुनाव परिणाम ने फिर साबित किया भाजपा का प्रभुत्व

    adminBy adminMay 16, 2023No Comments8 Mins Read
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    विशेष
    -योगी का नेतृत्व और धर्मपाल सिंह की रणनीति ने जमा दिया रंग
    कर्नाटक विधानसभा चुनाव के परिणाम के शोर में देश के सबसे बड़े राज्य उत्तरप्रदेश में नगर निकाय चुनाव के परिणाम की गूंज हालांकि सुनायी नहीं दी, लेकिन इस चुनाव परिणाम ने एक बार फिर साबित कर दिया कि देश के राजनीतिक क्षितिज पर भाजपा का सूर्य अभी पूरी तरह चमक रहा है। यूपी नगर निकाय चुनाव में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के असरदार प्रचार और संगठन महामंत्री धर्मपाल सिंह की ठोस रणनीति से अब शहर-शहर में भाजपा की सरकार बन गयी है। इस नगर निकाय चुनाव के लिए सीएम योगी ने भाजपा प्रत्याशियों के पक्ष में करीब 55 रैलियां कीं। इसका असर यह हुआ कि राज्य के सभी नगर निगमों के महापौर अब भाजपा के हैं और अधिकतर नगर निकायों में भाजपा की सरकार है। इस प्रकार अब यूपी में भाजपा की ट्रिपल इंजन की सरकार बन गयी है। नगर निकाय चुनाव में इस शानदार कामयाबी का श्रेय यदि किसी को जाता है, तो वह मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ हैं, जिन्होंने पूरे प्रचार अभियान की जिम्मेदारी अकेले संभाल रखी थी। इसके उलट सपा, बसपा और कांग्रेस के स्टार प्रचारकों की सभाएं बहुत कम रहीं। योगी ने जहां चुनावी रैलियों की हाफ सेंचुरी लगायी, वहीं विपक्षी नेता गिने-चुने जिलों में ही पहुंचे। संगठन महामंत्री धर्मपाल सिंह की रणनीति इतनी मारक रही कि विपक्ष को हिलने का भी मौका नहीं मिला। इसलिए भाजपा की इस सफलता को योगी-धर्मपाल की जोड़ी की सफलता कही जा रही है। पीएम मोदी ने भी इसी अंदाज में योगी आदित्यनाथ और धर्मपाल सिंह को बधाई भी दी। उन्होंने लिखा कि यह जीत योगी जी के नेतृत्व में प्रदेश में हो रहे अभूतपूर्व विकास पर मुहर है। पीएम मोदी के साथ ही गृह मंत्री अमित शाह और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने भी यूपी के भाजपा कार्यकर्ताओं को जीत की बधाई देते हुए योगी की मेहनत को सराहा है। यूपी के निकाय चुनाव परिणाम देश की राजनीति पर दूरगामी असर डालेंगे और इस चुनाव ने योगी के कद को और बड़ा कर दिया है। यूपी के नगर निकाय चुनाव परिणाम का राजनीतिक विश्लेषण कर रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।

    देश के सबसे बड़े राज्य उत्तरप्रदेश में नगर निकाय चुनाव के परिणाम जिस दिन घोषित हुए, उस दिन दक्षिणी राज्य कर्नाटक में विधानसभा चुनाव के परिणाम भी आ रहे थे। इसलिए यूपी के चुनाव परिणामों का शोर अपेक्षाकृत कम रहा, लेकिन यह एक हकीकत है कि इस चुनाव परिणाम ने एक बार फिर साबित किया है कि हिंदी पट्टी के राज्यों में अब भी भाजपा लगभग अपराजेय स्थिति में है। यूपी के नगर निकाय चुनाव में भाजपा ने सभी 17 नगर निगमों के पदों पर जीत हासिल कर एकतरफा महापौर का चुनाव जीता है। प्रदेश के 75 जिलों में 760 नगर निकायों के लिए दो चरणों में वोटिंग हुई थी। इनमें 17 नगर निगम, 199 नगर पालिका और 544 नगर पंचायत हैं। नगर पालिका में 199 सीटों में से 94 सीटें भाजपा और उसके सहयोगियों के दलों के खाते में गयी हैं। सपा ने 39, कांग्रेस ने चार, बसपा ने 16 और अन्य ने 46 सीटों पर जीत दर्ज की है। वहीं नगर पंचायत सीटों की बात करें, तो भाजपा ने 196, सपा ने 91, कांग्रेस ने 14, बसपा ने 38 और अन्य ने 205 सीटों पर जीत दर्ज की है।
    निकाय चुनाव में भाजपा की प्रतिष्ठा सबसे अधिक दांव पर लगी थी, क्योंकि शहरी इलाके हमेशा से भाजपा के गढ़ रहे हैं। पिछली बार भाजपा ने मेयर चुनाव में बेहतर प्रदर्शन किया था, लेकिन नगर पालिका और नगर पंचायत में पिछड़ गयी थी। इस बार के चुनाव में भाजपा ने मेयर से लेकर नगर पालिका और पंचायत अध्यक्ष सीटों पर भी जीत का परचम फहराया है।

    समीकरण भाजपा के पक्ष
    निकाय चुनाव में अहम भूमिका सवर्ण मतदाताओं की रही। शहरी क्षेत्र में ब्राह्मण, वैश्य, कायस्थ, पंजाबी मतदाता निर्णायक भूमिका में हैं, जिसके चलते भाजपा का सवर्णों को मैदान में उतारने का दांव पूरी तरह सफल रहा। मेयर के लिए भाजपा ने पांच ब्राह्मण, चार वैश्य प्रत्याशी उतार कर शहरी सीटों के समीकरण को पूरी तरह से अपने पक्ष में कर लिया। सवर्ण वोटर भाजपा का कोर वोटर है, जिसके चलते पार्टी ने एकतरफा जीत हासिल की है।

    शहरों में भाजपा का प्रदर्शन बेहतर रहा
    शहरी इलाकों में भाजपा का प्रदर्शन हमेशा से बेहतर रहा है। भाजपा 2017 से पहले जब सत्ता से बाहर थी, तब भी निकाय चुनाव में शानदार प्रदर्शन करती रही है। भाजपा का राजनीतिक जनाधार शहरी इलाकों में हमेशा से रहा है, जिसके दम पर वह निकाय चुनाव में जीत दर्ज करती रही है। मौजूदा समय में भाजपा सत्ता में रही है, जिसका सियासी फायदा भी उसे मिला है। पिछली बार 16 मेयर में 14 मेयर पदों पर जीत दर्ज की थी और इस बार क्लीन स्वीप कर गयी।

    प्रत्याशियों का चयन बेहतर रहा
    भाजपा ने नगर निकाय चुनाव की तैयारी 2022 के विधानसभा चुनाव नतीजे आने के बाद ही शुरू कर दी थी। उसने अपने मंत्रियों और विधायकों के परिवार के सदस्यों को टिकट न देकर पार्टी के कार्यकर्ताओं को चुनावी मैदान में उतारा। इसके अलावा नगर निगम और नगर पालिक के लिए जिन सीटों पर मौजूदा मेयर और अध्यक्ष के खिलाफ माहौल नजर आ रहा था, उनका टिकट काट दिया। भाजपा की अपनी आधे से ज्यादा मौजूदा मेयर की जगह नये और युवा चेहरे को उतार कर सत्ता विरोधी लहर से निपटने की रणनीति काम आयी। यह योजना पूरी तरह से संगठन महामंत्री धर्मपाल सिंह की थी, जिन्होंने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के साथ मिल कर बखूबी अंजाम तक पहुंचाया।

    योगी टीम का उतरना सफल रहा
    नगर निकाय चुनाव में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से लेकर डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य और बृजेश पाठक सहित सभी मंत्री पूरे दमखम के साथ जुटे थे। सीएम योगी ने ताबड़तोड़ जनसभाएं कीं। उन्होंने 75 में से आधे से ज्यादा जिलों में चुनावी रैलियां कीं। इसके अलावा दोनों डिप्टी सीएम, सभी मंत्री, विधायक, सांसद भी चुनावी रण में जुटे रहे। भाजपा ने विधानसभा और लोकसभा की तरह निकाय चुनाव लड़ा, जिसका उसे सियासी फायदा मिला। अखिलेश यादव ने कुछ चुनिंदा सीटों पर ही जाकर प्रचार किया, जबकि मायावती और प्रियंका गांधी नजर नहीं आयीं।

    पसमांदा दांव आया काम
    भाजपा ने नगर निकाय चुनाव में पहली बार 350 मुस्लिम उम्मीदवार मैदान में उतारे और उसमें 90 फीसदी पसमांदा मुस्लिम थे। नगर निगम में पार्षद उम्मीदवार, नगर पालिका की छह अध्यक्ष और सभासद सीटों पर मुस्लिम प्रत्याशी दिये। इसी तरह नगर पंचायत में अध्यक्ष पद की 38 सीट पर मुस्लिम उम्मीदवार उतारे।

    आधी आबादी पर भाजपा का फोकस
    भाजपा ने आधी आबादी यानी महिला वोटरों पर फोकस बढ़ाया था, क्योंकि निकाय चुनाव में 37 फीसदी सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित हैं। इसके लिए पार्टी ने महिला मोर्चा को काफी पहले से काम के लिए जमीन पर उतार रखा था। भाजपा ने महिलाओं के लिए ‘सहभोज’ का आयोजन किया। इस सहभोज में मुस्लिम और दलित महिलाओं को खास तौर कर बुलाया गया था। इस सहभोज की परिकल्पना भी धर्मपाल सिंह ने की थी और इसका बड़ा असर हुआ।

    सपा ने फिर दोहरायी 2022 की गलती
    नगर निकाय चुनाव में सपा ने फिर 2022 वाली गलती दोहरायी, जिसका चुनावी फायदा सीधा भाजपा को मिला। सपा ने कई ऐसे प्रत्याशियों को मैदान में उतारा, जो न समीकरण में कहीं फिट बैठ रहे थे और न ही उनका कोई सियासी आधार था। शाहजहांपुर में सपा ने जिसे टिकट दिया, वह भाजपा में शामिल होकर चुनावी मैदान में उतर गयी। बरेली में सपा ने अपने प्रत्याशी से नामांकन दाखिल होने के बाद पर्चा उठवा कर निर्दलीय को समर्थन दिया। रायबरेली नगर पालिका सीट पर बगावत का खामियाजा सपा को भुगतना पड़ा, तो पश्चिमी यूपी में सपा रालोद के साथ तालमेल बना कर नहीं रख सकी।

    कांग्रेस अपने गढ़ से बाहर बेहाल
    कांग्रेस को नगर निकाय चुनाव में करारी मात खानी पड़ी है, लेकिन अपने गढ़ को बचाये रखने में सफल रही है। रायबरेली की नगर पालिका और अमेठी की जायस सीट कांग्रेस की झोली में गयी। ऐसे ही अमेठी की मुसाफिरखाना सीट पर भी निर्दलीय को समर्थन कर उसने जीत दर्ज की। इसके अलावा मुरादाबाद मेयर सीट पर जरूर बेहतर प्रदर्शन किया, लेकिन बाकी जगह पर कोई खास असर नहीं रहा। कांग्रेस के दिग्गज नेता भी चुनाव प्रचार से दूर रहे, जिसके चलते पार्टी का कोर वोट बैंक दूसरे दलों में शिफ्ट हो गया। इसका भाजपा को फायदा मिला।

    योगी का कद बढ़ा गया परिणाम
    नगर निकाय चुनाव का परिणाम योगी आदित्यनाथ का कद बढ़ा गया। इसमें कोई संदेह नहीं है कि हिंदी पट्टी में योगी आदित्यनाथ बहुत प्रभावशाली नेता बन गये है। यूपी में ट्रिपल इंजन की सरकार का असर अब क्षेत्रीय और राष्ट्रीय राजनीति के फलक पर पड़ेगा, जिसमें योगी आदित्यनाथ की भूमिका हर दिन बढ़ती चली जायेगी। कुल मिला कर यूपी के नगर निकाय चुनाव ने योगी आदित्यनाथ को भाजपा का एक मजबूत चेहरा बना दिया है।

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