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    Home»राज्य»बिहार»कीचड़ में कमल : भीख नहीं मांग कर स्वाभिमान से जीता है दिव्यांग रामलगन
    बिहार

    कीचड़ में कमल : भीख नहीं मांग कर स्वाभिमान से जीता है दिव्यांग रामलगन

    adminBy adminJune 12, 2023No Comments3 Mins Read
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    बेगूसराय। एक ऐसी शख्सियत, जो अपनी कहानी को व्यक्त करने के लिए ना बोल सकता है और ना सुन सकता है। ईश्वर इतने में संतुष्ट नहीं हुए। बचपन में ही मां का आंचल छिन गया। किस्मत का कहर यहीं खत्म नहीं हुआ। कुछ समय बाद ही पिता रूपी छांव भी छीन गया। ऊपर से एक बहन की जिम्मेदारी, संयोगवश वह भी मानसिक रुप अस्वस्थ थी।

    यह कहानी है बेगूसराय के बखरी प्रखंड स्थित सुग्गा मुसहरी निवासी रामलगन की। रामभरोस सदा का दिव्यांग पुत्र रामलगन 90 प्रतिशत विकलांग हैं। सुन नहीं सकता, बोल नहीं सकता लेकिन हौसला, हुनर और सोच काबिले तारीफ है। अपने स्वाभिमान के साथ समझौता नहीं किया। श्मशान घाट से कपड़ा चुनकर लाता है, जंगलों से दांतुन काटता बाजार में जाकर बेचता है, खेतों में काम कर अपना जीविकोपार्जन करता है। लेकिन कभी उसने भीख नहीं मांगी।

    भले लक्ष्मी ने इस गुदरी के लाल पर अपनी रहमत नहीं बरसाई, लेकिन सरस्वती ने इसे भरपूर आशीर्वाद दी है। वह गरीबी की वजह से अपने लिए खिलौने तो नहीं खरीद सकता। लेकिन अपने हाथ और हुनर से बनाई मिट्टी, पुराने चप्पल, तार, तिनके आदि से बने खिलौनों से उसे खुश रखते हैं। एक बार जिस चीज को देख लेता है मिट्टी से हुबहु आकृति प्रदान कर देता है।

    इसकी कुशलता बच्चों को मनाने में नहीं है, इसकी कुशलता देखनी हो तो उनके द्वारा बनाए खिलौनों को देखिए जो विशिष्ट कारीगरी का अहसास दिलाती है। खिलौनों के रूप में ट्रेन, ट्रक, ट्रैक्टर, खेत की जुताई करने वाला नौफाड़ा, जेनरेटर, जेसीबी, किरान, मोटरसाइकिल सबकुछ इतनी कुशलता से बनाता है, जो किसी को भी अचरज में डाल दे।

    रामलगन स्वाभिमानी इतना है कि मेहनताना के सिवा उसे कुछ भी स्वीकार नहीं। रहने के लिए घर नहीं था तो भी किसी से मांगा नहीं, ठंड शुरू होने पर श्मशान में फेंका गया कपड़ा और बिछावन लाकर रहने लायक घर बना लिया। अपने हंसी और हुनर के कमाल से राम लगन बगैर बोले ही कह रहा है कि प्रतिभा किसी की मोहताज नहीं होती है, यह ना तो रुप देखकर आती है और ना ही शिक्षा या धन की बदौलत।

    बखरी के एक चिकित्सक डॉ. आर.एन. झा के पुत्र डॉ. रमण झा ने एक बच्चे के हाथ में मिट्टी का खिलौना देखा। पूछने पर बच्चे ने बताया कि पगलहबा बनाया है। जानकर रमण की रामलगन से मिलने की उनकी इच्छा हुई। मुलाकात होते ही कई वर्षो से निःस्वार्थ भाव से जरूरतमंद की सेवा करते आ रहे डॉ. रमण रामलगन तरह से ह्रदय से जुड़ गए। उसके बाद विश्वमाया चैरिटेबल ट्रस्ट ने उस गांव की पहचान रामलगन से दिया गया।

    वहां रामलगन सुगम शिक्षा केंद्र और रामलगन स्वास्थ्य केंद्र संचालित हो रहा है। समय-समय पर रामलगन स्वास्थ्य कैंप भी लगाया जाता है। शारिरिक, मानसिक, बौद्धिक, आर्थिक, सामुदायिक तथा पारिवारिक पिछड़ेपन के बावजूद राम लगन की प्रतिभा हैरान करने वाली है। अगर समाजिक बौद्धिकता से एक प्लेटफॉर्म दे दिया जाए तो अद्भुत कलाकारी और कारीगरी का अनुपम उदाहरण प्रस्तुत हो सकता है। हौसला को उड़ान मिले तो यह समाज, क्षेत्र और दिव्यांगजनों के लिए आदर्श साबित हो सकता है।

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