विशेष
-भ्रष्टाचार-परिवारवाद और तुष्टीकरण पर किया करारा प्रहार
-पांच साल की ‘गारंटी’ दे मांग लिया देशवासियों का आशीर्वाद
स्वतंत्रता दिवस प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 10वीं बार लाल किले के प्राचीर से तिरंगा फहरा कर विश्व को एक बार फिर बताया कि भारत क्या है और भारतवासी होने के क्या मायने हैं, हमारी क्या ताकत है। हम एक ऐसे दौर में हैं, जब विश्व के कई देशों में युद्ध का माहौल है। कई देश ऐसे हैं, जहां के नागरिक अपने मुल्क के हालात देखकर उसे छोड़कर भागने और दूसरे देशों में शरण लेने को मजबूर हैं। कई देश ऐसे हैं, जहां कब्जे की जंग चल रही है। कुछ ऐसे भी हैं, जहां भुखमरी और अराजकता के हालात हैं। उन देशों के पास संभलने का मौका नहीं है। अगर इस दौर में भारत एक शक्तिशाली आजाद मुल्क के तौर पर विश्व की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है, तो इसकी पहचान, लालकिले की प्राचीर से शान से लहराता तिरंगा ही है। ये सब पीएम मोदी के भाषण की अंतर्निहित बातें हैं। उनके भाषण में भारत की शक्ति की झलक और आने वाले आम चुनाव के मुद्दों के संकेत मिले हैं। यह पहली बार था, जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने भाषण का शुरूआती संबोधन बदल दिया। ‘मित्रों’, ‘साथियों’ या ‘देशवासियों’ के बदले उन्होंने शुरूआत ‘मेरे प्रिय परिवारजनों’ के साथ की थी। यह शब्द साबित करता है कि पीएम मोदी का परिवार 140 करोड़ लोगों का है। भारत को लेकर, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी क्या सोचते हैं, उनका विजन क्या है, और आगे आने वाले समय में वह क्या करने के बारे में सोच रहे हैं, इसका पता उनके स्वाधीनता दिवस पर दिये गये भाषण से बखूबी चलता है। भाषण में उन्होंने भारत शब्द 110 बार बोला। वहीं 63 बार विश्व, 48 बार परिवारजन, 43 बार सामर्थ्य, 23 बार गांव, 20 बार संकल्प, 19 बार नारी या महिलाएं, 17 बार आजादी, 14 बार भ्रष्टाचार और 13 बार युवा शब्द का इस्तेमाल किया। क्या है पीएम मोदी के भाषण के भीतर छिपी हुईं बातें, विश्लेषण कर रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।
देश की आजादी की वर्षगांठ पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लाल किले से राष्ट्र को संबोधित किया। यह बतौर प्रधानमंत्री उनका 10वां और उनके दूसरे कार्यकाल का आखिरी स्वतंत्रता दिवस संबोधन था। भले 15 अगस्त पर लाल किले से प्रधानमंत्री का संबोधन पारंपरिक होता हो, लेकिन पीएम मोदी ने इसके जरिये ही 2024 के आम चुनावों की लड़ाई की पिच भी तैयार कर दी है। साथ ही इन चुनावों के अंतिम नतीजों के संकेत भी दे दिये हैं। करीब डेढ़ घंटे के इस संबोधन के दौरान प्रधानमंत्री ने अपने सरकार के कामकाज का हिसाब दिया। आंकड़ों के साथ उपलब्धियां गिनायीं। ग्रामीण क्षेत्र में दो करोड़ ‘लखपति दीदी’ बनाने का सपना दिखाया, तो ‘विश्वकर्मा योजना’ लाने की घोषणा की। अगले पांच साल में भारत को दुनिया की तीन सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था में शामिल करने की गारंटी दी। मध्यमवर्ग के ‘अपना घर’ के सपने को साकार करने के लिए बैंक लोन में रियायत का वादा किया। विपक्ष का नाम लिये बिना परिवारवाद, भ्रष्टाचार और तुष्टिकरण को ‘बीमारी’ बताते हुए भारतीय लोकतंत्र को इनसे मुक्ति दिलाने की अपील की।
लाल किले की प्राचीर से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से पूरे विश्व को जो संदेश दिया है, उसका असर दूरगामी लगता है। उन्होंने देश को स्थायित्व देने की बात दोहरायी और कहा कि अगले साल फिर से लाल किले पर मिलने का वादा किया। यह उनका आत्मविश्वास और भरोसा ही है, जिसमें उन्होंने साफ कर दिया है कि एक बार फिर से मोदी सरकार वापस आयेगी। प्रधानमंत्री मोदी ने गांव, शहर, राज्य, देश, पर्यावरण, अर्थव्यवस्था जैसे सभी मुद्दों पर न सिर्फ छुआ, बल्कि गहराई से अपनी बात रखी।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस दौरान जी-20 की बात भी की, जिसकी अध्यक्षता फिलहाल भारत के पास है। उन्होंने पड़ोसी देश पर हमला तो बोला, लेकिन बिना नाम लिये। मणिपुर में हो रही हिंसा पर उन्होंने पीड़ितों को मरहम लगाया। उन्होंने विपक्षी पार्टियों पर भी निशाना साधा, लेकिन राष्ट्र प्रथम की नीति के हिसाब से।
प्रधानमंत्री के भाषण पर पूरी दुनिया की नजर रहती है, इसे समझते हुए उन्होंने चुन-चुन कर अपनी बातें रखी। अपने संबोधन में उन्होंने चुनावी मुद्दों की तो बात की, लेकिन सावधानीपूर्वक। उनका पूरा भाषण विकास के एजेंडे पर रहा और कुछ जरूरी हिस्सों में उन्होंने विपक्ष को ललकारने का भी काम किया।
पीएम मोदी ने एक तरफ विपक्षी दलों के ‘परिवारवाद’ पर निशाना साधा, तो दूसरी तरफ ‘परिवारजन’ संबोधन से देश के लोगों को यह बताने की कोशिश की कि उनके लिए पूरा देश ही परिवार है। वह जो कुछ कर रहे हैं, इसी परिवार के लिए कर रहे हैं। यही कारण है कि उनके संबोधन के दौरान 48 बार ‘परिवारजन’ शब्द का जिक्र आया। इससे ऐसा प्रतीत होता है कि 2024 की राजनीतिक लड़ाई में यह शब्द बार-बार सुनाई पड़ सकता है। इसके अलावा प्रधानमंत्री ने अपने संबोधन में 12 बार युवा, तो 35 बार महिलाओं का जिक्र किया। साथ ही अपनी सरकार की मजबूती को बताने के लिए 43 बार सामर्थ्य और 19 बार संकल्प शब्द का उपयोग किया।
एक तरफ प्रधानमंत्री ने एक हजार साल की गुलामी की चर्चा करते हुए राष्ट्रवाद के एजेंडे को धार दी, वहीं दूसरी तरफ लोगों को यह भी बताने की कोशिश की कि उनका आज का फैसला भारत के अगले हजार साल की तकदीर लिखेगा। संकेतों में उन्होंने आम चुनावों के लिए जनता से आशीर्वाद भी मांगा। साथ ही देश के मूड का संकेत देते हुए यह भी कहा कि 2047 के सपने को साकार करने का सबसे बड़ा स्वर्णिम पल आने वाले पांच साल हैं। अगली बार 15 अगस्त को इसी लाल किले से मैं आपको देश की उपलब्धियां, आपके समार्थ्य, आपके संकल्प उसमें हुई प्रगति, उसकी जो सफलता है, उसके गौरवगान उससे भी अधिक आत्मविश्वास के साथ, आपके सामने में प्रस्तुत करूंगा। साल 2014 और 2019 में मिले जनादेश का जिक्र करते हुए पीएम मोदी ने 2024 में वापसी का एक और संकेत देते हुए यह भी कहा, जिसका शिलान्यास हमारी सरकार करती है, उसका उद्घाटन भी हम अपने कालखंड में ही करते हैं। इन दिनों मैं जो शिलान्यास कर रहा हूं, उनका उद्घाटन भी मेरे नसीब में है।
अगले साल फिर से लाल किला पर आने की बात कहकर उन्होंने यह बात साफ कर दी है कि अभी उनका देश के आगे ले जाने का सपना पूरा नहीं हुआ है। ऐसा प्रतीत होता है कि तीसरे कार्यकाल में जब देश दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन चुका होगा, उसके बाद वह इन चीजों के बारे में सोचेंगे या फिर नेतृत्व किसी और को सौंपेंगे। हालांकि, देश की आजादी के दो सौ साल पूरे होने तक उन्होंने देश को विकसित राष्ट्र की श्रेणी में खड़े करने का एलान कर दिया है।
दिलचस्प यह है कि हाल ही में संपन्न हुए संसद के मानसून सत्र के दौरान विपक्षी दलों ने जिन-जिन मुद्दो पर हंगामा कर सदन की कार्यवाही में व्यवधान डाला था, एक-एक कर उन सभी मुद्दों पर देश के सामने प्रधानमंत्री ने लाल किले से अपनी सरकार का पक्ष रखा है। ऐसे में भले आज 2024 के आम चुनाव दूर दिख रहे हों, उससे पहले कई राज्यों में विधानसभा के चुनाव भी होने हैं, लेकिन ऐसा लगता है कि इन सभी राजनीतिक लड़ाइयों की लकीर पीएम ने अपनी ओर से खींच दी है। अंतिम नतीजे तो 2024 में ही पता चलेंगे, लेकिन यह आगे बढ़कर लड़ाई की दशा और दिशा तय करने की नरेंद्र मोदी की काबिलियत ही है कि वह गुजरात से लेकर केंद्र तक अजेय बने हुए हैं। इतने सालों बाद भी विपक्ष उनके सामने निस्तेज और दिशाहीन दिखता है।