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    Home»अन्य खबर»संकट के मित्र इजरायल का साथ देने का वक्त
    अन्य खबर

    संकट के मित्र इजरायल का साथ देने का वक्त

    adminBy adminOctober 17, 2023No Comments7 Mins Read
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    चरमपंथी संगठन हमास ने इजरायल पर अचानक हमला करके जिस तरह का नृशंस भीषण कत्लेआम किया, उसकी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की तरफ से की गई त्वरित निंदा से यह साफ हो गया है कि भारत अब इजरायल से किसी प्रकार की दूरी बनाने के लिए तैयार नहीं है। हां, भारत की यह दिली चाहत है कि फिलिस्तीनी संकट का कोई स्थायी समाधान निकले। हमास के इजरायल पर बिना कारण अचानक हमले के बाद दुनिया के बहुत से देश इजरायल के साथ स्वाभाविक रूप से खड़े हो गए। भारत भी इजरायल के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़ा है। इजरायल भारत के सच्चे मित्र के रूप में संकट के समय लगातार सामने आता रहा है। यह बात अलग है कि फिलिस्तीन मसले पर इंदिरा गांधी के समय आजतक भारत आंखें मूंद कर अरब संसार के साथ खड़ा रहा। कश्मीर के सवाल पर अरब देशों ने सदैव पाकिस्तान का ही साथ दिया। लेकिन, इजरायल ने संकट के समय तो हमेशा भारत की हर तरह से मदद की। हमारे यहां के कुछ तत्व हमेशा इजरायल का खुलकर विरोध ही करते रहते हैं। उनमें वामपंथी मित्र सबसे आगे ही रहते हैं। वे भूल जाते हैं कि इजरायल हमारा संकट का मित्र है। वे युद्ध काल में भी हर पल हमारे साथ रहा है। इन सब तथ्यों की अनदेखी करते हुए हाल ही में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (एएमयू) के छात्रों द्वारा फिलिस्तीन के समर्थन में प्रदर्शन किया गया। वर्तमान परिस्थितियों में यह भारत के राष्ट्रहित के खिलाफ ही कार्रवाई मानी जायेगी । इन छात्रों ने फिलिस्तीन के समर्थन में विरोध मार्च भी निकाला। एएमयू के छात्रों का कहना है कि जिस तरह इजरायल द्वारा फिलिस्तीन पर जुल्म किया जा रहा है, वह सही नहीं है।

    लेकिन, वास्तव में अभी तो कार्रवाई बिना वजह फिलिस्तीनी आतंकी गुट हमास द्वारा इजरायल के खिलाफ हो रही है । इन छात्रों ने स्थानीय पुलिस प्रशासन से बिना अनुमति लिए ही प्रदर्शन किया। ये भी अस्वीकार्य है। उन्होंने प्रदर्शन के दौरान आतंकी संगठन हमास के कत्लेआम की कोई निंदा नहीं की। ये शर्मनाक भी है। इसे कहते हैं, “उल्टे चोर कोतवाल को डांटे।” बहरहाल, अगर हम भारत- इजरायल संबंधों के इतिहास को देखें तो पता चलता है कि भारत ने 17 सितम्बर 1950 को इजरायल को ही आधिकारिक तौर पर मान्यता प्रदान कर दी थी। वह सरदार पटेल का जमाना था । उसके बाद इजरायल के साथ भारत के 1992 में राजनयिक सम्बन्ध स्थापित हुए। वह भी तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिंह राव ने इजरायल के साथ कूटनीतिक सम्बन्ध शुरू करने को मंजूरी दी। इसके लिए वे बधाई के पात्र हैं। उसके बाद नई दिल्ली और तेल अवीव में दोनों देशों की एंबेसी भी स्थापित हुईं। इजरायल ने शुरू में राजधानी के बाराखंभा रोड पर स्थित गोपालदास टावर्स में अपनी एंबेसी स्थापित की थी। हालांकि कुछ सालों के बाद इजरायल ने लुटियंस दिल्ली के पृथ्वीराज रोड पर अपनी एंबेसी स्थापित कर ली। अटल बिहारी वाजपेयी के प्रधानमंत्रित्वकाल में इजरायल के साथ सम्बन्धों को नए आयाम तक पहुंचाने की ठोस कोशिशें भी की गईं।

    इजरायल तब भी भारत के साथ खड़ा था, जब उसे मदद की सर्वाधिक आवश्यकता थी। इजरायल ने 1965 और 1971 में पाकिस्तान के खिलाफ लड़ाइयों के दौरान भी भारत को मदद दी। उसने 1965 और 1971 में भारत को गुप्त जानकारियां देकर मदद की थी। 1999 के करगिल युद्ध में इजरायल मदद के बाद भारत और इजरायल खासतौर पर करीब आए। तब इजरायल ने भारत को एरियल ड्रोन, लेसर गाइडेड बम, गोला बारूद और अन्य हथियारों की मदद दी, जबकि इसके लिये भारत को अमेरिका से भी मदद नहीं मिली थी । बेशक, पाकिस्तान के परमाणु बम ने दोनों देशों को नजदीक लाने में मदद की। इजरायल को यह स्वाभाविक डर रहा है कि कहीं यह परमाणु बम ईरान या किसी इस्लामी चरमपंथी संगठन के हाथ न लग जाए।

    भारत- इजरायल संबंधों को मजबूती कृषि क्षेत्र में आपसी सहयोग से भी मिलती है। दोनों देशों की सरकारें कृषि सहयोग में विकास के लिए प्रतिबद्ध हैं। दोनों देशों के बीच लगातार बढ़ती द्विपक्षीय साझेदारी की पुष्टि करते हुए द्विपक्षीय संबंधों में कृषि और जल क्षेत्रों की प्रमुखता को मान्यता दी गई है। भारत-इजरायल को करीब लाने में भारत में सदियों से बसे हुये यहूदियों के योगदान को कम करके नहीं देखा जा सकता है। भारत में केरल, महाराष्ट्र, दिल्ली वगैरह में हजारों यहूदी बसे हुए हैं। राजधानी के हुमायूं रोड पर जूदेह हयम सिनगॉग है। ये उत्तर भारत का एक मात्र सिनगॉग है। इसे आप यहूदियों का मंदिर भी कह सकते हैं। यहां राजधानी में रहने वाले यहूदी परिवार नियमित रूप से पूजा करने के लिए आते हैं।

    इस बीच, आप जब नई दिल्ली रेलवे स्टेशन की तरफ से पहाड़गंज मेन बाजार में दाखिल होते हैं, तो आपको यहूदियों का खाबड़ हाउस मिलेगा। इधर अंग्रेजी और हिब्रु में लिखा है ‘खाबड़ हाउस’। आप कह सकते हैं कि ये राजधानी में यहूदियों का घर से दूर का घर है। यहां पर दुनियाभर से दिल्ली आने वाले यहूदियों को छत मिल जाती है। इजरायल-हमास जंग का असर खाबड़ हाउस पर भी नजर आता है। यहां पर सन्नाटा पसरा हुआ है। फिलहाल इसकी कुछ सुरक्षा कर्मी निगाहबानी कर रहे हैं। इजरायल के टूरिस्ट पहाड़गंज को पसंद करने लगे हैं, तो इसके लिए खाबड़ हाउस को भी क्रेडिट देना होगा। उन्हें पहाड़गंज में आकर लगता है कि वे अपने घर में हैं। पहाडगंज बीते कम से कम तीन दशकों से इजरायल के टूरिस्टों की सबसे पसंदीदा जगह के रूप में उभरा है। वे यहां आकर ठहरते हैं और यहां से हिमाचल प्रदेश और दूसरे राज्यों में घूमने के लिए निकल जाते हैं।

    इजरायल से आने वाले टूरिस्ट गर्मियों के मौसम में पहाड़गंज के होटलों में भर जाते हैं। इन्हें हर तरह से बहुत बढ़िया टूरिस्ट माना जाता है। ये वक्त पर अपना बिल दे देते हैं और कोई गैर-कानूनी काम भी नहीं करते। जानकार बताते हैं कि मुंबई में 2009 में हुए हमलों के बाद भारत में विदेशी टूरिस्ट आने लगभग बंद हो गए थे। भारत का टूरिज्म सेक्टर घुटनों पर पहुंच गया था। उस दौर में भी इजरायली टूरिस्ट पहाडगंज को गुलजार कर रहे थे। ये भारत को प्यार करते हैं। इन्हें भारत पसंद है। हां, कोविड काल में तो सब कुछ ही बंद हो गया था। बता दें कि खाबड़ हाउस और सिनगॉग में वही फर्क होता है जो मंदिर और गुरुकुल या मस्जिद और मदरसे में होता है। मुंबई में भी काफी यहूदी हैं। इनका मुंबई के महालक्ष्मी में ज्यूइश सेमेटरी भी है। जैसा कि इसके नाम से ही साफ है कि ये मुंबई के यहूदियों का कब्रिस्तान है। इस कब्रिस्तान में 1927 से दफनाए जा रहे हैं शहर के यहूदी।

    हिन्दी फिल्मों के गुजरे दौर के एक्टर डेविड भी यहां ही दफन हैं। वे भी यहूदी ही थे। अंग्रेजी के नामवर लेखक और कवि निजिम एजिकल और दूसरे कई यहूदी भी यहां दफन हैं। महाराष्ट्र के सभी यहूदी मराठी बोलते हैं। भारतीय यहूदियों की हमेशा चाहत रही है कि भारत-इजरायल आपसी सहयोग और मैत्री आगे बढ़ती रहे। अच्छी बात यह है कि वे जैसा चाहते हैं, वैसा हो भी रहा है। मतलब भारत-इजरायल लगातार करीब आ रहे हैं। फिलहाल इजरायल एक कठिन दौर से गुजर रहा है। इस समय भारत और भारत की जनता को इजरायल का हर मुमकिन में साथ देना ही चाहिए। दोस्तों की पहचान संकट के वक्त में ही होती है ।

    (लेखक, वरिष्ठ संपादक, स्तंभकार और पूर्व सांसद हैं।)

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