देवघर: बाबा बैद्यनाथ मंदिर के इतिहास में गुरुवार को एक नया अध्याय जुड़ गया। 46 वर्षों के बाद अजीतानंद ओझा सरदार पंडा की गद्दी पर विराजमान हो गये। पूरे विधि-विधान एवं परंपरा के साथ सरदार पंडा की ताजपोशी की गयी। गुरुवार की सुबह से ही बाबा मंदिर में अनुष्ठान शुरू हो गया था। गद्दी संभालने से पहले मंदिर प्रांगण में ही अजीतानंद ओझा का मुंडन हुआ। गंगा समेत देश की सात प्रमुख नदियों और समुद्र के जल से उनका अभिषेक हुआ। चांदी की छतरी में गद्दी तक घर के बड़े बुजुर्ग उन्हें लेकर आये। 28वें सरदार पंडा के रूप में अजीतानंद ओझा की ताजपोशी के हजारों भक्त गवाह बने। मंत्री राज पलिवार, विधायक नारायण दास, बादल पत्रलेख, उपायुक्त राहुल कुमार सिन्हा, पंडा धर्मरक्षिणी सभा के अध्यक्ष और महामंत्री सहित तीर्थ पुरोहित वर्ग के तमाम लोग इस क्षण के गवाह बने।
गौरतलब है कि अब बाबा मंदिर की पूजन व्यवस्था पर सरदार पंडा का अधिकार होगा। सरदार पंडा की गद्दी को लेकर 46 वर्षों तक चली कानूनी लड़ाई में जीत अजीतानंद ओझा और उनके परिजनों को मिलने के बाद मुख्यमंत्री रघुवर दास ने 6 जुलाई को गद्दी पर बिठाये जाने संबंधी घोषणा की थी। इसके बाद उन्हें सरदार पंडा की गद्दी पर बिठाया गया। न्यायालय के फैसले में सरदार पंडा को कोई भी प्रशासनिक और वित्तीय अधिकार नहीं दिया गया है, जबकि मंदिर की सभी पूजन व्यवस्था उन्हीं के नेतृत्व में होगी।
संत का जीवन व्यतीत करेंगे
गद्दी संभालते ही सरदार पंडा संत का जीवन व्यतीत करेंगे। वह फलाहार पर ही रहेंगे। सरदार पंडा को उनके कर्तव्य निभाने में जो धनराशि की जरूरत होगी, वह श्राइन बोर्ड उपलब्ध करायेगा। साथ ही सरदार पंडा के लिए आवास और अन्य जरूरी सुविधाएं भी श्राइन बोर्ड ही उपलब्ध करायेगा। गौरतलब है कि तत्कालीन सरदार पंडा भवप्रीतानंद ओझा का निधन 11 मार्च 1970 को होने के बाद से अब तक सरदार पंडा की गद्दी खाली ही थी।