विशेष
-दक्षिण के दुर्ग को भेदने के लिए भाजपा ने तैयार की है व्यापक रणनीति
-काशी-तमिल संगमम जैसे अभियान भी इसी रणनीति का अहम हिस्सा हैं
-तमिलनाडु और केरल का दौरा कर पीएम ने एक साथ साध लिये कई निशाने
2024 के चुनाव में उत्तर-दक्षिण का अंतर पाटने की कोशिशों के तहत भाजपा ने दक्षिण भारत के दुर्ग को भेदने के लिए ‘मिशन द्रविड़ फतह’ तय किया है। इस मिशन की कमान सीधे पीएम नरेंद्र मोदी ने थाम ली है। पीएम ने नये साल की शुरूआत दक्षिण भारत से की है, जहां उन्होंने हजारों करोड़ की परियोजनाओं का शिलान्यास और लोकार्पण किया। दरअसल 2024 के लोकसभा चुनाव के मद्देनजर भाजपा के लिए दक्षिण भारत खासा अहम है। इसके पीछे वजह है कि उत्तर भारत में लोकसभा सीटों के लिहाज से भाजपा अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन कर चुकी है। उत्तर भारत में भाजपा के पास अब लोकसभा की सीटें और बढ़ने की संभावना नहीं है, क्योकि यहां वह सैचुरेशन के स्तर पर है। भाजपा को यह भी एहसास है कि कर्नाटक विधानसभा चुनाव में पार्टी की हार के चलते तेलंगाना में उसे नुकसान हुआ है। ऐसे में भाजपा को लगता है कि अगर लोकसभा चुनाव में उसकी सीटें कम होती है,ं तो उसकी भरपाई या उसको बढ़ाने की गुंजाइश दक्षिण भारत में वोट और लोकसभा सीट लेकर की जा सकती है। साल 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने उत्तर भारत के राज्यों में ज्यादा जोर लगाया और सीटें जीतीं। साल 2019 में भाजपा ने पूर्वोत्तर, मसलन असम, पश्चिम बंगाल, ओड़िशा और दूसरे छोटे राज्यों पर फोकस किया था। अब 2024 में भाजपा की नजर दक्षिण भारत पर है, जहां से वह बेहतर प्रदर्शन की उम्मीद में जी-तोड़ मेहनत कर रही है। भाजपा को लगता है कि दक्षिण भारत में अच्छे प्रदर्शन का फायदा उसे वोट प्रतिशत और सीट बढ़ाने में मददगार साबित हो सकता है। इसी मकसद से पीएम नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह, भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा, निर्मला सीतारमण, स्मृति इरानी, पीयूष गोयल, प्रह्लाद जोशी जैसे केंद्रीय मंत्री लगातार दक्षिण भारत के राज्यों में दौरा कर रहे हैं। इसके अलावा मोदी सरकार परियोजनाओं और इंफ्रास्ट्रक्चर के विकास के जरिये दक्षिण भारत में भाजपा का रास्ता आसान बनाने की कोशिशों में लगी है, तो वहीं सांस्कृतिक कार्यक्रमों के जरिये भी उत्तर से दक्षिण भारत के बीच में भाजपा के लिए सेतु बनाने की कोशिश में लगी है। भाजपा की इसी रणनीति और इसके संभावित असर के बारे में विस्तार से बता रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।
भाजपा ने नये साल में 2024 के लिए ‘मिशन 400’ की धमाकेदार शुरूआत की है। पार्टी ने इस बार दक्षिण भारत पर फोकस किया है और ‘मिशन द्रविड़ फतह’ के तहत दक्षिण भारत की 84 सीटों को जीतने की रणनीति तैयार की है। भाजपा के लिए इस बार दक्षिण का दुर्ग भेदना कितना जरूरी है, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इस मिशन की कमान सीधे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हाथों में सौंपी गयी है। इसलिए पीएम मोदी ने नये साल की शुरूआत दो दिन के तमिलनाडु, केरल और लक्षद्वीप के दौरे से की है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दौरे के पहले दिन तमिलनाडु के तिरुचिरापल्ली में एयरपोर्ट के नये टर्मिनल का उद्घाटन किया और भारतीदासन यूनिवर्सिटी के दीक्षांत समारोह में भी शामिल हुए। पीएम मोदी ने तमिलनाडु के तिरुचिरापल्ली में करीब 20 हजार करोड़ रुपये की लागत से कई विकास परियोजनाओं का लोकार्पण और शिलान्यास भी किया।
प्रधानमंत्री मोदी का इस चुनावी साल में किसी राज्य का पहला दौरा भी है। ऐसे समय में, जब भाजपा को लेकर उत्तर बनाम दक्षिण की बहस भी छिड़ी हुई है, पीएम मोदी के इस दौरे के सियासी मायने निकाले जा रहे हैं। प्रधानमंत्री मोदी के इस दौरे को कुछ ही महीने बाद होने जा रहे लोकसभा चुनाव और भाजपा के ‘मिशन द्रविड़ फतह’ से जोड़ कर देखा जा रहा है।
दक्षिण में भाजपा की चुनौतियां
दक्षिण में विस्तार के लिए भाजपा की रणनीति क्या है, यह जानने से पहले इसकी चर्चा जरूरी है कि दक्षिण में भाजपा के सामने चुनौतियां क्या हैं। दक्षिण के राज्यों में भाजपा के लिए सबसे बड़ी चुनौती हिंदी पट्टी की पार्टी वाली छवि से बाहर निकलने की है। गृह मंत्री अमित शाह ने पिछले दिनों एक निजी चैनल के कार्यक्रम के मंच पर कहा था कि 2024 के चुनाव के बाद यह बहस समाप्त हो जायेगी। चुनावी साल की शुरूआत के साथ ही भाजपा ने विपक्ष का दक्षिणी दुर्ग भेदने के लिए अपने सबसे बड़े चेहरे पीएम मोदी को मैदान में उतार दिया है, तो इसके अपने रणनीतिक मायने भी हैं।
दक्षिण भारत की 84 सीटों पर भाजपा का फोकस
दक्षिण भारत में 131 लोकसभा सीटें हैं। इसमें से तमिलनाडु में 39, आंध्रप्रदेश में 25, कर्नाटक में 28, केरल में 20, तेलंगाना में 17, पुद्दुचेरी और लक्षद्वीप में एक-एक सीट है। इनमें भाजपा का फोकस उन 84 सीटों पर है, जो भाजपा कभी नहीं जीती है। इन सीटों का क्लस्टर बना कर इनकी जिम्मेदारी केंद्रीय मंत्रियों को दी गयी है। तेलंगाना, कर्नाटक, आंध्रप्रदेश, केरल और तमिलनाडु को लेकर लगातार भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा और अमित शाह बैठकें कर रहे हैं। तेलंगाना विधानसभा में भाजपा का वोट प्रतिशत सात फीसदी से बढ़ कर 14 फीसदी हो गया। कर्नाटक में भाजपा ने 2019 में 28 में से 25 सीटें जीती थी। अब जेडीएस से तालमेल के बाद भाजपा ने 2024 में वही प्रदर्शन दोहराने का लक्ष्य रखा है। आंध्रप्रदेश को लेकर भाजपा दुविधा में है। टीडीपी से गठबंधन को लेकर उसने अभी तक मन नहीं बनाया है। तमिलनाडु और केरल में भाजपा के सामने चुनौतियां हैं। तमिलनाडु में अन्नाद्रमुक से गठबंधन टूटने के बाद भाजपा के लिए चुनौतियां बढ़ गयी हंै, पर भाजपा लोकसभा चुनाव से पहले अन्नाद्रमुक से गठबंधन को लेकर आशान्वित है।
दक्षिण को लेकर क्या है भाजपा की रणनीति
दक्षिण भारत की सियासत में पैर जमाने की जुगत में जुटी भाजपा की रणनीति सांस्कृतिक राष्ट्रवाद और भ्रष्टाचार को लेकर जीरो टॉलरेंस की नीति और केंद्र सरकार की विकास योजनाओं के सहारे अपनी विश्वसनीयता स्थापित करने के इर्द-गिर्द नजर आती है। ‘मिशन द्रविड़ फतह’ में भाजपा का फोकस कर्नाटक और तेलंगाना के बाद अब तमिलनाडु पर है। तमिलनाडु से भाजपा को उम्मीद नजर आ रही है, तो इसके पीछे 2021 के विधानसभा चुनाव में चार सीटों पर पार्टी को मिली जीत भी है। हालांकि तब भाजपा ने अन्नाद्रमुक के साथ गठबंधन कर चुनाव लड़ा था और अब यह गठबंधन टूट चुका है।
सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की बुनियाद तैयार की भाजपा ने
इसलिए तमिलनाडु को लेकर भाजपा ने रणनीति में बदलाव किया है। उसने तमिल प्रदेश को साधने के लिए पीएम मोदी के निर्वाचन क्षेत्र वाराणसी को केंद्र बना कर सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की बुनियाद तैयार की। साल 2022 में पहली बार काशी-तमिल संगमम का आयोजन हुआ और हाल ही में दूसरे काशी तमिल संगमम का भी आयोजन हुआ था। इस आयोजन में खुद पीएम मोदी ने भी शिरकत की थी। काशी-तमिल संगमम में भी पीएम के संबोधन का केंद्र तमिल साधु-संत-कवि और महापुरुष थे। पीएम मोदी ने अब तिरुचिरापल्ली से तमिलनाडु को करीब 20 हजार करोड़ रुपये की विकास परियोजनाओं की सौगात तो दी ही, लगे हाथ साधु-संतों के साथ ही तमिलनाडु की समृद्ध भाषा और संस्कृति की भी चर्चा कर डाली। तमिलनाडु भाषा विवाद को लेकर चर्चा में रहता है और ऐसे में पीएम मोदी का भाषा और संस्कृति पर बात करना भाजपा की सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की रणनीति से ही जोड़ कर देखा जा रहा है। इसके अलावा भाजपा ने दक्षिण भारत में जीत के लिए सांस्कृतिक पहल भी की है। संसद में सेंगोल रखा गया। काशी तमिल संगमम और सौराष्ट्र तमिल संगमम का आयोजन किया गया। अयोध्या के मंदिर शिल्पकार और मूर्तिकारों का दक्षिण भारत से कनेक्शन है।
संगठन खड़ा करने की कवायद
कर्नाटक को छोड़ दें, तो दक्षिण भारत के अधिकतर राज्यों में भाजपा ठीक से अपना संगठन भी खड़ा नहीं कर पायी थी। पिछले कुछ साल में भाजपा ने तेलंगाना और तमिलनाडु के साथ ही केरल और दूसरे राज्यों में संगठन खड़ा करने पर फोकस किया है। भाजपा इसके लिए अपने तेलंगाना मॉडल को आगे रख कर काम कर रही है। तेलंगाना में भाजपा ने तत्कालीन केसीआर सरकार के खिलाफ भ्रष्टाचार और कुप्रबंधन, परिवारवाद को लेकर सड़कों पर उतर आंदोलन किया और अब पार्टी तमिलनाडु में भी इसी फॉर्मूले पर आगे बढ़ती दिख रही है।
लोकप्रिय हस्तियों को पार्टी से जोड़ने पर फोकस
लोकसभा चुनाव से पहले गठबंधन का गणित साधने के साथ ही भाजपा का फोकस लोकप्रिय हस्तियों को पार्टी से जोड़ने पर भी है। कर्नाटक में एचडी देवगौड़ा की पार्टी जनता दल सेक्यूलर के साथ गठबंधन हो या आंध्रप्रदेश में पवन कल्याण की जनसेना पार्टी से तालमेल भाजपा की इसी रणनीति का हिस्सा है। केरल, आंध्रप्रदेश, कर्नाटक और तेलंगाना के चार लोकप्रिय चेहरों पीटी उषा, इलैयाराजा, वीरेंद्र हेगड़े और वी विजयेंद्र प्रसाद को राज्यसभा के लिए मनोनीत किया जाना भी भाजपा की इसी रणनीति का हिस्सा बताया जा रहा है।