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    Home»विशेष»आस्था, विश्वास, बलिदान और अभिमान का प्रतीक है राम मंदिर
    विशेष

    आस्था, विश्वास, बलिदान और अभिमान का प्रतीक है राम मंदिर

    adminBy adminJanuary 12, 2024Updated:January 13, 2024No Comments17 Mins Read
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    -यह महज एक मंदिर नहीं, करोड़ों सनातनियों का इमोशन है
    -22 जनवरी को एक दीया श्रीराम के आगमन की खुशी में जले, तो दूसरा बलिदानियों के सम्मान में

    किसी ने सच कहा था कि एक दिन आयेगा, जब भारत का बच्चा-बच्चा ‘जय श्रीराम’ बोलेगा। वह दिन आ गया है। 22 जनवरी 2024 को रामलला की प्राण प्रतिष्ठा होनेवाली है। भव्य राम मंदिर का उद्घाटन होनेवाला है। करोड़ों सनातनियों का सपना साकार होनेवाला है। नन्ही से लेकर बूढ़ी आंखों को रामलला के दर्शन का सौभाग्य मिलनेवाला है। भाग्यशाली हैं वे लोग, जो जीते-जी भगवान राम के मंदिर निर्माण और रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के गवाह बन रहे हैं। किसी के नयन खुशी से छलक रहे हैं, तो किसी का रोम-रोम राम नाम से समाहित है। लेकिन यह सुनहरा दिन लाखों सनातनियों के बलिदान और पांच सौ वर्षों के लंबे इंतजार के बाद आया है। 22 जनवरी को जब देश श्रीराम के लिए दीया जलायेगा, तब एक और दीया उन बलिदानियों के नाम पर जलना चाहिए, जिन्होंने राम मंदिर के लिए अपने प्राण न्योछावर कर दिये। राम मंदिर निर्माण में आये अहम पड़ावों से रू-ब-रू करा रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।

    दो हजार वर्ष पूर्व राजा विक्रमादित्य ने अयोध्या में राम मंदिर का जीर्णोद्धार किया
    धार्मिक मान्यता है कि त्रेतायुग में अयोध्या की पावन धरती पर भगवान विष्णु के सातवें अवतार के रूप में भगवान राम का जन्म हुआ था। भगवान राम ने उस समय मानवता की जो भव्य मिसाल कायम की, वह कलियुग में भी कण-कण और जन-जन में विद्यमान है। प्राचीन काल में भी हमारे पूर्वजों ने अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण करवाया था। उस समय भी एक बड़ा तबका नहीं चाहता था कि मंदिर का निर्माण हो। माना जाता है कि आज से दो हजार वर्ष पूर्व राजा विक्रमादित्य ने अयोध्या की खोज की थी। फिर उसी स्थान पर जीर्णोद्धार कर भगवान राम का भव्य मंदिर बनवाया। अयोध्या से जुड़े महंत और संत बताते हैं कि तीर्थराज प्रयाग ने कलियुग में राम जन्मभूमि को खोजने में राजा विक्रमादित्य की मदद की थी। तीर्थराज प्रयाग ने राजा विक्रमादित्य को एक गाय दी थी और कहा था कि जिस जगह पर गाय के थन से दूध निकलने लगे, समझ लेना वही भगवान राम की पावन धरती है। विक्रमादित्य गाय को लेकर चल दिये। अयोध्या पहुंचते ही गाय खड़ी हो गयी और उसके थन से दूध बहने लगा। विक्रमादित्य को समझ में आ गया कि यही उनके राजा राम की धरती है। अयोध्या की खोज करने के बाद राजा विक्रमादित्य ने यहां 84 कसौटियों के खंभे से भगवान राम का भव्य मंदिर बनवाया।

    लखनऊ से दिखती थी राम मंदिर के शिखर पर लगी चंद्रकांत मणि
    ऐसा बताया जाता है कि यह मंदिर इतना ऊंचा था कि मुगल शासक बाबर जब पहली बार लखनऊ आया, तो उसे वहां से ही यह मंदिर नजर आने लगा। लखनऊ आकर बाबर ने जब पूर्व दिशा की ओर देखा, तो उसे दो चंद्रमा दिखाई दिये। उसने अपने सेनापति मीरबांकी से पूछा कि दिल्ली में तो मुझे एक ही चांद दिखता है, मगर यहां दो चांद कैसे दिख रहे हैं। तब उसे मीरबांकी ने बताया कि जिसे वह दूसरा चांद समझ रहा है, वह अयोध्या स्थित भव्य राम मंदिर के शिखर पर लगी चंद्रकांत मणि है।

    राम मंदिर को ध्वस्त कर बाबरी मस्जिद का निर्माण
    ऐसी कथा है कि चंद्रकांत मणि को देख कर बाबर के मन में लालच आ गया और उसने मीरबांकी को निर्देश दिया कि उसे वह मणि चाहिए। इसी क्रम में 10 हजार सैनिकों के साथ मिल कर भव्य राम मंदिर को ध्वस्त कर मीरबांकी ने बाबर को खुश करने के लिए वहां बाबरी मस्जिद का निर्माण करा दिया। इस दौरान हजारों हिंदुओं का रक्त बहा। मीरबांकी ताशकंद का रहनेवाला था। बाबर ने उसे अवध प्रांत का गवर्नर बना कर भेजा था। मीरबांकी ने 1528 में बाबरी मस्जिद का निर्माण बाबर को खुश करने के लिए करवाया, जो बाद में इतिहास का सबसे विवादित स्थान बन गया। महाभारत के युद्ध के बाद अयोध्या उजड़ सी गयी थी, लेकिन उस दौर में भी श्रीराम जन्मभूमि का अस्तित्व सुरक्षित था और लगभग 14वीं सदी तक बरकरार रहा। तथ्यों के मुताबिक 1527-28 में अयोध्या में राम जन्मभूमि पर बने भव्य राम मंदिर को तोड़ कर बाबरी मस्जिद का निर्माण कराया गया।

    पांच सौ साल पहले बाबर के शासन काल में सरयू हुई थी लाल
    आज से 494 साल पहले 1528 में भव्य राम मंदिर को ध्वस्त कर वहां बाबर ने जब बाबरी मस्जिद का निर्माण करवाया था, तब कितने हिंदुओं की धार्मिक भावनाओं के साथ खिलवाड़ किया गया था, यह समझा जा सकता है। उस वक्त कितनों के रक्त से सरयू नदी रक्तरंजित हुई होगी, इसकी मात्र कल्पना ही की जा सकती है।

    मंदिर के लिए मुहिम आजादी के बाद तेज
    अयोध्या में राम जन्मभूमि पर बाबर के सेनापति मीरबांकी के मस्जिद बनाने के 330 साल बाद 1858 में राम मंदिर के लिए कानूनी लड़ाई शुरू हुई थी। हालांकि, मंदिर के लिए मुहिम आजादी के बाद तेज हुई। देश के आजाद होने के दो साल बाद 22 दिसंबर 1949 को ढांचे के भीतर गुंबद के नीचे मूर्तियों का प्रकटीकरण हुआ। इस घटना के बाद इलाके में कानून-व्यवस्था की स्थिति गड़बड़ हो गयी थी। 29 दिसंबर 1949 को फैजाबाद की एक अदालत ने बढ़ते सांप्रदायिक तनाव को नियंत्रित करने के लिए इस स्थल को सरकार को सौंप दिया। कुछ ही समय बाद विवादित परिसर में ताला लग गया। जब यह सब कुछ हुआ, उस वक्त देश के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू थे।

    1990 में भी मुलायम के शासन कल में सरयू और अयोध्या की गालियां रक्तरंजित हुई थीं
    अब 22 जनवरी को भव्य राम मंदिर की प्राणप्रतिष्ठा होने वाली है। इस सुनहरे वक्त को लाने के लिए न जाने कितने राम भक्तों, कार सेवकों के रक्त से अयोध्या की धरती लाल हुई है। इसका एक उदाहरण 1990 में मिला, जब उत्तरप्रदेश में मुलायम सिंह यादव की सरकार थी। लाखों की संख्या में भक्त अयोध्या में उमड़े थे और उनके सामने यूपी पुलिस बंदूकें ताने खड़ी थी। हजारों राउंड फायरिंग और सरयू नदी में जान बचाने के लिए छलांग लगाते युवक। साफ है कि इस मंदिर के लिए देश के असंख्य भक्तों ने बलिदान दिया है। उस वक्त अयोध्या की गलियां रक्तरंजित हो गयी थीं और सरयू नदी के किनारे जलती लाशों का दृश्य पीड़ादायी था। अयोध्या की राम जन्मभूमि के इतिहास को अगर खंगालें, तो आजादी के बाद कई अहम पड़ाव आये। 30 अक्टूबर 1990 राम जन्मभूमि के आंदोलन का सबसे अहम पड़ावों में से एक था। इसे समझने के लिए तीन साल पहले चलते हैं।

    राम मंदिर को लेकर कांग्रेस का रुख विरोधभासी
    जब इतिहास के पन्ने पलटते हैं, तो राम मंदिर को लेकर देश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी कांग्रेस का रुख विरोधभासी सा प्रतीत होता है। राम जन्मभूमि को लेकर लड़ी जा रही कानूनी लड़ाई को सबसे बड़ी हवा मिली पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के कार्यकाल में। दरअसल, 1986 में राजीव गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने शाहबानो केस में सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलट दिया था। सरकार के इस फैसले से न केवल बुद्धिजीवी वर्ग नाराज हो गया था, बल्कि दक्षिणपंथ के विचार को भी बढ़ावा मिला था। उस वक्त राजनीतिक विश्लेषकों ने महसूस किया कि कांग्रेस मुस्लिम रुढ़ीवादिता का पक्ष ले रही है। इस कठिन सियासी मोड़ पर राजीव गांधी ने विवादित बाबरी मस्जिद परिसर के ताले खोलने को हरी झंडी दे दी। विशेषज्ञों का मानना है कि शाहबानो विवाद से ध्यान भटकाने के लिए केंद्र सरकार के कहने पर अयोध्या में स्थानीय प्रशासन के प्रतिनिधि व्यक्तिगत रूप से फैजाबाद में जिला न्यायालय के समक्ष उपस्थित हुए और मुख्य न्यायालय से ताला हटाने की बात कही। अंतत: फरवरी 1986 में ताले खोले गये और परिसर में पुजारियों को पूजा-पाठ की अनुमति दे दी गयी।
    1987 में विवादित स्थल का ताला खोले जाने के बाद से ही लगातार अयोध्या में राम मंदिर बनाने की मांग जोर पकड़ रही थी। आंदोलन के लगातार बढ़ते दबाव के बाद 1989 में चुनावों की आहट के बीच केंद्र की राजीव गांधी सरकार और उत्तरप्रदेश की नारायण दत्त तिवारी सरकार ने मंदिर निर्माण के लिए शिलान्यास तो करा दिया, लेकिन 1989 के चुनावों में ये मुद्दा धार्मिक के साथ-साथ राजनीतिक भी हो गया। 1989 में जनता दल की सरकार भले ही भाजपा के सहयोग से बनी, लेकिन पार्टी के दो बड़े नेता और उत्तरप्रदेश और बिहार की कमान संभाल रहे मुलायम सिंह यादव और लालू प्रसाद यादव भाजपा की इस चाल से परेशान थे। उन्हें कभी भी यह मंजूर नहीं था कि उनके सरकार में रहते देश में इस तरह की राजनीति हो। तारीख 10 नवंबर 1989 को राम भक्तों ने श्रीराम जन्मभूमि मंदिर का शिलान्यास संपन्न किया। लोकसभा का चुनाव सामने था। विश्व हिंदू परिषद् नहीं चाहती थी कि मंदिर का निर्माण चुनावी मुद्दा बने। इसलिए चुनाव संपन्न होने तक निर्माण कार्य स्थगित रखा गया। नव निर्वाचित प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह को अवसर देने के लिए सर्वाधिकार समिति ने उनकी अपील पर निर्माण कार्य 8 जून तक स्थगित करने का निश्चय किया। लेकिन प्रधानमंत्री वीपी सिंह और उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री मुसलमानों को साधने के लिए, उनका वोट पाने के लिए अपनी तरह की राजनीति करने लगे। फिर क्या था! 31 अगस्त 1990 से पत्थरों की गढ़ाई महंत परमहंस रामचंद्र जी महाराज और महंत नृत्य गोपाल दास जी महाराज ने पूजन कर प्रारंभ करवायी। एक सितंबर 1990 को आरएसएस के मोरोपंत पिंगले की उपस्थिति में अरणी मंथन द्वारा जागृत हुई अग्नि से श्रीराम ज्योति प्रज्ज्वलित की गयी। श्रीराम मंदिर में पूजित ज्योति प्रदेश के केंद्रों तक भेजी गयी, जहां से वह ज्योति लाखों गांवों तक पहुंची। करोड़ों राम भक्तों के घर उस साल दीपावली में उसी दीप से प्रज्ज्वलित हुए। जन जागरण के अभियान में तत्कालीन भाजपा अध्यक्ष लालकृष्ण आडवाणी की रथ यात्रा की शुरूआत 25 सितंबर 1990 को गुजरात के सोमनाथ से शुरू होकर अयोध्या की ओर बढ़ चली।

    लालकृष्णा आडवाणी गिरफ्तार
    फिर आया 23 अक्टूबर 1990 का दिन। जगह-समस्तीपुर, समय-सुबह के चार बजे। बिहार की लालू प्रसाद यादव की सरकार ने आडवाणी को गिरफ्तार कर लिया। गिरफ्तारी के बाद सड़कों पर उमडेÞ लोगों को देख कर लालू प्रसाद यादव ने लालकृष्ण आडवाणी को संथाल परगना के मसानजोर स्थित गेस्ट हाउस में नजरबंद करवा दिया। गिरफ्तारी की सूचना पूरे देश में फैल गयी और लोगों में असंतोष की भावना पैदा होने लगी।

    राम भक्त कार सेवकों का कारवां अयोध्या के लिए निकल पड़ा
    आडवाणी की गिरफ्तारी के विरोध में 24 अक्टूबर 1990 को भारत बंद रहा और देश के हर कोने से राम भक्त कार सेवकों का कारवां अयोध्या के लिए निकल पड़ा। 22 अक्टूबर से ही उत्तरप्रदेश की सरकार ने अपना कड़ा रुख अख्तियार कर लिया। देश के कोने-कोने से आ रहे कार सेवकों और विश्व हिंदू परिषद के कार्यकर्ताओं और नेताओं को पकड़ कर जेल में बंद किया जाने लगा।
    जगद्गुरु शंकराचार्य को बंदी बनाया और अटल बिहारी वाजपयी को गिरफ्तार किया
    हजारों कार सेवकों के साथ कार सेवा समिति के अध्यक्ष जगद्गुरु शंकराचार्य वासुदेवानंद जी को इलाहाबाद में बंदी बना लिया गया। 28 अक्टूबर 1990 को भारतीय जनता पार्टी की उपाध्यक्ष राज माता विजयाराजे सिंधिया को उनके 50 हजार कार सेवकों के साथ उत्तरप्रदेश में मुलायम सरकार ने गिरफ्तार कर लिया। भाजपा के तत्कालीन संसदीय दल के नेता अटल बिहारी वाजपेयी को लखनऊ में गिरफ्तार कर लिया गया। 29 अक्टूबर तक लाखों कार सेवकों की गिरफ्तारी के कारण उत्तरप्रदेश का सारा प्रशासनिक ढांचा चरमरा गया।

    मुलायम ने कहा था-बाबरी मस्जिद के इर्द-गिर्द कोई परिंदा भी पर नहीं मार सकता
    तारीख 30 अक्टूबर 1990। हिंदू संगठनों ने अयोध्या में कार सेवा का एलान कर दिया था। कार सेवा को विफल करने के लिए उत्तरप्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव नजर गड़ाये हुए थे और उन्होंने एलान कर दिया कि बाबरी मस्जिद के इर्द-गिर्द कोई परिंदा भी पर नहीं मार सकता। पूरी अयोध्या में कर्फ्यू लगा हुआ था। पुलिस ने बाबरी मस्जिद के डेढ़ किलोमीटर के दायरे को बैरिकेडिंग कर छावनी में तब्दील कर दिया था। उसके बाद भी हजारों कार सेवक हनुमान गढ़ी पहुंच चुके थे, जो विवादित ढांचे से लगभग एक किलोमीटर की दूरी पर था। अयोध्या पहुंचने वाले हजारों कार सेवक तो ऐसे थे, जिन्हें पुलिस ने बंदूक की नोंक पर अयोध्या की सीमा के बाहर ही रोक दिया था। युगों-युगों से अयोध्या में 14 कोशी तथा देवउठनी एकादशी के दिन पंचकोशी परिक्रमा होती आयी है। इसमें लाखों यात्री भाग लेते रहे हैं। लेकिन उस साल पंचकोशी परिक्रमा में न्यायपालिका के आदेशों की अवहेलना करते हुए उत्तरप्रदेश की मुलायम सरकार ने भाग लेने पहुंचे यात्रियों और कार सेवकों को रोकने के लिए पुलिस बल तैनात कर दिया था। पंचकोशी परिक्रमा में भाग लेने पहुंचे यात्रियों को निराशा का मुंह देखना पड़ा।

    मुलायम का फरमान और गुंबद पर चढ़ कर सेवकों ने लहरा दिया भगवा
    एक तरफ मुलायम सिंह यादव ने फरमान जारी कर रखा था कि किसी भी तरीके से विवादित ढांचे को नुकसान नहीं पहुंचना चाहिए। दूसरी तरफ कार सेवक विवादित ढांचे की ओर बढ़ रहे थे। पुलिस भीड़ को तितर-बितर करने के लिए लाठीचार्ज, कई राउंड फायरिंग और आंसू गैस के गोले छोड़ती रही। पुलिस घरों की छतों पर चढ़ कर गोलियां चला रही थी और कार सेवकों को भगाने की कोशिश कर रही थी। तभी कार सेवकों से भरी एक बस, जिसे पुलिस अयोध्या से बाहर का रास्ता दिखाने वाली थी, की ड्राइवर की सीट पर एक साधु बैठा और उसने बस का रुख विवादित ढांचे की ओर मोड़ दिया। बस बैरिकेडिंग को तोड़ गेट के अंदर प्रवेश कर गयी। बस के पीछे-पीछे सैकड़ों कार सेवक भी विवादित ढांचे के अंदर प्रवेश कर गये। इस प्रकार कार सेवक विवादित ढांचे और मुलायम की किलेबंदी को भेद पाने में सफल रहे। फिर ढांचे की गुंबद पर चढ़ कर सेवकों ने भगवा झंडा लहरा दिया।

    पुलिस ने की गोलियों की बौछार और अयोध्या हुई लाल
    यह नजारा देख पुलिस बिफर गयी और लाठी-डंडों की बरसात के साथ गोलियों की बौछार करने लगी। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक लाखों कार सेवकों पर कई राउंड फायरिंग, लाठी चार्ज, आंसू गैस के गोले दागे गये। उसके बाद भगदड़ मच गयी। शुरू में पुलिस की तरफ से यह सूचना आयी कि पांच लोग मारे गये हैं। लेकिन वहां के लोगों का कहना है कि यह आंकड़ा कई गुना ज्यादा था और घायलों की संख्या की गिनती नहीं।

    अयोध्या जय श्रीराम के नारों से गूंज उठी
    फिर आया 2 नवंबर 1990 का दिन। कार्तिक पूर्णिमा का स्नान करके कार सेवक विवादित ढांचे की ओर बढ़ने लगे और इस दिन कार सेवक जगह-जगह से अयोध्या में भारी संख्या में पहुंच चुके थे। पूरी अयोध्या जय श्रीराम के नारों से गूंज रही थी। इस दरम्यान पुलिस की लाठियां भी चल रही थीं। पुलिस ने फिर घर की छतों पर चढ़ कर मोर्चा संभाला और कार सेवकों पर प्रहार करने लगी। इसका असर कार सेवकों पर नहीं हुआ और वे विवादित ढांचे की ओर बढ़ चले। उन्हें रोकने के लिए पुलिस ने आंसू गैस के गोले छोड़े, लेकिन कार सेवकों के कदम पीछे हटने का नाम नहीं ले रहे थे। एक तरफ गोलियों की आवाज, तो दूसरी तरफ राम नाम की गूंज। पत्रकारों का भी रास्ता पुलिस ने रोक रखा था। अयोध्या लाल हो चुकी थी। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक उस दिन लाखों कार सेवक वहां जमा हुए थे। उन्हें रोकने के लिए हजारों राउंड आंसू गैसे के गोले छोड़े गये, फायरिंग की गयी। उस दिन सरकार की तरफ से 16 लोगों की मौत की सूचना आयी।

    कोठारी बंधुओं की मौत
    इसी दिन कोलकाता से आये कोठारी बंधुओं की भी मौत हुई थी। कोठरी बंधु वही थे, जिन्होंने गुंबद पर भगवा झंडा फहराया था। शरद कोठारी की उम्र 20 साल और रामकुमार कोठारी की उम्र 23 साल थी। भगवा फहराने के बाद दोनों एक घर में छिप गये थे। इधर पुलिस उन्हें ढूंढ़ रही थी। अंतत: 2नवंबर को वे एक घर में मिले। पुलिस के हाथों वे 2नवंबर को मारे गये। 4 नवंबर 1990 को शरद और रामकुमार कोठारी का सरयू के घाट पर हजारों की भीड़ की मौजूदगी में अंतिम संस्कार किया गया। वहीं 4 नवंबर को ही अन्य शहीद कार सेवकों का भी अंतिम संस्कार किया गया और उनकी राख को देश के अलग-अलग हिस्सों में ले जाया गया था।

    सरयू नदी का विदू्रप दृश्य और घायलों से भरे अस्पताल
    प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार उस वक्त सरयू नदी का दृश्य बहुत विदू्रप हो गया था। फैजाबाद के अस्पताल घायलों से भर गये थे। यह दृश्य देख कर फैजाबाद की महिलाओं में आक्रोश उत्पन्न हो गया और उन्होंने फैजाबाद कमिश्नर का घेराव भी किया। कहा जाता है कि इन महिलाओं में अधिसंख्य पुलिसकर्मियों और अधिकारियों की पत्नियां थीं। महिलाएं कमिश्नर से कह रही थीं कि आप लोग मनुष्य की तरह बर्ताव करें और आप अपने अफसरों को भी कह दें कि वे भी मनुष्य जैसा ही बर्ताव करें। हिंसक कार्रवाई तत्काल बंद करें। इस घटना के दो साल बाद 6 दिसंबर 1992 के दिन विवादित ढांचे को गिरा दिया गया था।

    मुलायम की सत्ता गयी
    1990 के गोलीकांड के बाद हुए विधानसभा चुनाव में मुलायम सिंह यादव बुरी तरह पराजित हुए और कल्याण सिंह सूबे के नये मुख्यमंत्री बने। अगस्त 2016 में मुलायम सिंह ने कहा था, अयोध्या में गोली चलने से 16 जानें गयीं, अगर 30 भी जातीं तो देश की एकता और अखंडता के लिए मुझे मंजूर था। अयोध्या में एकता बचाने के लिए गोली चलानी पड़ी थी। गोली चलवाने के बाद मेरी आलोचना हुई थी, मुझे मानवता का हत्यारा कहा गया था। नवंबर 2017 में टाइम्स आॅफ इंडिया की एक रिपोर्ट के मुताबिक मुलायम सिंह यादव ने अपने 79वें जन्मदिन के अवसर पर पार्टी मुख्यालय में कहा कि 30 अक्टूबर 1990 को 28 लोग मारे गये थे, जो मुझे छह महीने बाद पता चला और मैंने उनकी मदद अपने तरीके से की। इसी को लेकर मेरी देश के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहरी वाजपेयी से कई बार बहस भी हुई, क्योंकि उनका कहना था कि उस दिन 56 लोग मारे गये थे। इन घटनाओं का जिक्र इसलिए किया जा रहा है, ताकि लोग यह जान सकें कि करोड़ों की आस्था, असंख्य भक्तों के बलिदान की बुनियाद पर खड़ा हुआ है राम मंदिर।

    राम मंदिर के पक्ष में फैसला
    09 नवंबर 2019 को सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की बेंच ने राम मंदिर के पक्ष में फैसला सुनाया। 2.77 एकड़ विवादित जमीन हिंदू पक्ष को मिली। मस्जिद के लिए अलग से पांच एकड़ जमीन मुहैया कराने का आदेश हुआ। 25 मार्च 2020 को तकरीबन 28 साल बाद रामलला टेंट से निकल कर फाइबर के मंदिर में शिफ्ट हुए।

    खुदाई में मिले थे मंदिर के प्रमाण
    मई 2020 में जब राम मंदिर निर्माण के लिए नींव की खुदाई की जाने लगी, तो उस दौरान जमीन के अंदर से भारी मात्रा में अवशेष मिले। इन अवशेषों के बारे में कहा गया कि ये विक्रमादित्य द्वारा बनवाये गये उसी मंदिर के अवशेष हैं। अवशेष में सुदर्शन चक्र की कलाकृतियां, अमृत कलश, पुष्प कलश और ऊंचे-ऊंचे खंभे मिले थे। भारी संख्या में देवी-देवताओं की खंडित मूर्तियों के अलावा सात ब्लैक टच स्टोन के स्तंभ, छह रेड सैंड स्टोन के स्तंभ सहित चार फीट से बड़ा एक शिवलिंग भी मिला था।

    राम मंदिर का भूमि पूजन
    05 अगस्त 2020 को अयोध्या में राम मंदिर का भूमि पूजन हुआ। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राम मंदिर के निर्माण के लिए भूमि पूजन कर शिलान्यास किया। पीएम मोदी सबसे पहले हनुमानगढ़ी जाकर दर्शन किये और आरती उतारी। राम मंदिर निर्माण के लिए पहले नौ शिलाओं का पूजन किया गया। 12 बज कर 44 मिनट पर चांदी की कन्नी से नींव रखी गयी। पीएम नरेंद्र मोदी, यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ और साधु-संतों समेत 175 लोग इसमें शामिल हुए।
    22 जनवरी 2024 वह ऐतिहासिक दिन होगा, जब अयोध्या में प्रभु श्रीराम के बाल रूप रामलला की प्राण प्रतिष्ठा का समारोह आयोजित किया जायेगा। वह दिन, जब करोड़ों सनातनियों का सपना साकार होगा। पीएम नरेंद्र मोदी इस कार्यक्रम के मुख्य अतिथि होंगे। भव्य राम मंदिर दर्शन का सिलसिला देश भर में शुरू होगा। विकास के नये द्वार खुलेंगे। सही मायने में अयोध्या का राम मंदिर आस्था, विश्वास, बलिदान और अभिमान का प्रतीक है।

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