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    Home»Top Story»आधार मामला:सरकार ने SC में कहा-“निजता के अधिकार से बड़ा है जीने का अधिकार”
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    आधार मामला:सरकार ने SC में कहा-“निजता के अधिकार से बड़ा है जीने का अधिकार”

    आजाद सिपाहीBy आजाद सिपाहीJuly 26, 2017No Comments3 Mins Read
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    सुप्रीम कोर्ट में आधार कार्ड मामले में गोपनीयता के मुद्दे पर जारी बहस के दौरान केंद्र सरकार ने अपनी दलील में कहा कि ‘जीवन जीने का अधिकार’ (राइट टू लाइफ) ‘निजता का अधिकार’ (राइट टू प्राइवेसी) से बड़ा और ज्यादा महत्वपूर्ण है। सु्प्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार ने अपना पक्ष रखते हुए कहा कि ‘राइट टू प्राइवेसी’ मौलिक अधिकार नहीं हो सकता। सरकार ने कहा कि अगर ‘राइट टू प्राइवेसी’ और ‘राइट टू लाइफ’ के बीच में से किसी एक को तरजीह देने की बात आए तो ‘राइट टू लाइफ’ को तवज्जो मिलनी चाहिए।

    केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि गोपनीयता का अधिकार स्वतंत्रता के अधिकार का हिस्सा है। लेकिन इसके कई पहलू हैं। कोर्ट में सरकार का पक्ष रखते हुए अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कहा कि राइट टू प्राइवेसी के पहलू और उसके मायने स्थिति के अनुसार बदलते रहते हैं। उन्होंने कहा कि आधार को ऐसे स्कीम के साथ लिंक किया जा रहा है, जो कि गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले 270 मिलियन भारतीयों के जीवन जीने के हक को सुरक्षित करता है। मामले की सुनवाई मुख्य न्यायाधीश जेएस खेहर की अध्यक्षता वाली नौ सदस्यीय पीठ कर रही है, जिसे तय करना है कि निजता का अधिकार मौलिक अधिकार के दायरे में आता है या नहीं।

    270 मिलियन लोगों को भोजन मुहैया कराने के लिए बॉयोमेट्रिक डाटा जरूरी

    केके वेणुगोपाल ने कहा कि 270 मिलियन लोगों को भोजन मुहैया कराने को लेकर उनके बॉयोमेट्रिक और पता लेना आवश्यक है, जिससे कि उन्हें आसानी से खाना मुहैया कराया जा सके। उन्होंने कहा कि विश्व बैंक ने भी आधार की उपयोगिता को माना है। उन्होंने बताया कि विश्व बैंक ने कहा है कि आधार का सभी विकासशील देशों में उपयोग किया जाना चाहिए, जिससे कि गरीबों को दिए जाने वाले भोजन में पारदर्शिता बरती जा सके।

    राइट टू प्राइवेसी के मुद्दे पर नए सिरे से हो सुनवाई: कपिल सिब्बल

    वहीं कपिल सिब्बल की ओर से कहा गया कि तकनीक ने प्राइवेसी के मुद्दे को कठिन बना दिया है। उन्होंने कहा कि इस जटिल मुद्दे को वर्ष 1954 और 1962 के सुप्रीम कोर्ट के फैसले के आधार पर संवैधानिक कसौटी पर नही कसा जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि राइट टू प्राइवेसी के मुद्दे पर नए सिरे से सुनवाई की जानी चाहिए। सिबब्ल ने कहा कि तकनीकी के इस युग में कई प्राइवेसी के पुराने मायने बदल चुके हैं और लोगों के निजी डाटा का दुरुपयोग किया जा रहा है।

    गौरतलब है कि कर्नाटक और पश्चिम बंगाल की कांग्रेस और टीएमसी सरकारों ने सुप्रीम कोर्ट में आधार मामले में अपना पक्ष रखने के लिए कपिल सिब्बल का वकील के रूप में चयन किया है। सिब्बल पंजाब और पांडुचेरी सरकार की ओर से पहले ही कोर्ट में आधार मामलें में बहस कर रहे हैं। सिब्बल ने राइट टू प्राइवेसी के मुद्दे पर यूएस, कनाडा, आस्ट्रेलिया कें संविधान का हवाला देते हुए कहा कि वहां मौलिक अधिकार में राइट टू प्राइवेसी को शामिल नहीं किया गया है।

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