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    Home»झारखंड»भाजपा के पास मुद्दा नहीं रह गया इसलिए कम्युनल डेमोग्राफी की बात कर रहे: सुप्रियो भट्टाचार्य
    झारखंड

    भाजपा के पास मुद्दा नहीं रह गया इसलिए कम्युनल डेमोग्राफी की बात कर रहे: सुप्रियो भट्टाचार्य

    shivam kumarBy shivam kumarSeptember 13, 2024Updated:September 13, 2024No Comments3 Mins Read
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    रांची। झामुमो के वरिष्ठ नेता सुप्रियो भट्टाचार्य ने शुक्रवार को भाजपा पर जमकर हमला बोला। वह झामुमो के कार्यायल में प्रेस कॉन्फ्रेंस कर रहे थे। इस दौरान उन्होंने केंद्र सरकार द्वारा घुसपैठ मामले में हाइकोर्ट में जमा किये गये शपथ पत्र का जिक्र किया। उन्होंने कहा कि हाइकोर्ट में एक केस चल रहा है हमारे राज्य में घुसपैठ को लेकर। वो शपथ पत्र को हमने भी पढ़ा। कल शपथ पत्र दायर हुआ। और फिर उसकी सुनवाई अगले मंगलवार को होगी। लेकिन उसके पहले ही एक पॉलिटिकल बयान सामने आ गया बीजेपी का कि डेमोग्राफी चेंज हो गया। संथाल में बांग्लादेशी घुसपैठिया हंै। भारत सरकार की तरफ से या आधार की जो आॅथोरिटी है उसके तरफ से कहीं इस बात का जिक्र नहीं है कि बांग्लादेश से कुछ लोग संथाल परगना के इलाके में आकर रह रहे हैं। शपथ पत्र में 2011 के सेंसस को एक आधार बनाया गया। उसमें 1961 को बेसलाइन माना गया और 2011 का सेंसस दिया गया। मतलब 50 साल का समय।

    बंगाली दूसरी सबसे बड़ी कम्युनिटी थी
    उन्होंने शपथ पत्र का जिक्र करते हुए कहा कि उसमें यह भी कहा गया कि तब आदिवासियों का प्रतिशत इतना था और मुस्लिमों का इतना थ और ईसाइयों का इतनी था और अब ये रह गया है। उसमें कहीं संख्या नहीं है। ये छह जिले को लेकर न्यायलय में शपथ पत्र दायर किया। मैं रांची के बहुत पुराने वासिंदे से बात कर रहा था। उनकी उम्र लगभग 97-98 साल थी। हमने उनसे पूछा कि रांची में लोग कब से आ रहे हैं। तब उन्होंने हमसे कहा कि 1952 से जब एचइसी का निर्माण होना शुरू हुआ तब से लोग आने लगे। उस वक्त रांची में पूरे जिले की आबादी 3 लाख से भी कम थी और आज रांची शहर की आबादी 35 लाख से ज्यादा है। उस वक्त मूलत: रांची में आदिवासी सबसे बड़ी कम्युनिटी थी और बंगाली उसके बाद की कम्युनिटि थी शहर के अंदर। लेकिन आज की स्थिति ऐसी है कि बंगाली कम्युनिटी कई कारण से दूसरी सबसे बड़ी कम्युनिटी नहीं है। ये डेमोग्राफी चेंज इन 50 वर्षों में पूरे हिंदुस्तान का हुआ है।

    दफ्तरों में कोर्ट की आलोचना हो रही
    जब देश आजाद हुआ था तब 33 करोड़ लोग थे आज 150 करोड़ है। ये 75 साल का आंकड़ा है। अब भ्रम की स्थिति पैदा की जा रही है। चंूकी चुनाव सामने आ रहा है, भाजपा के पास मुद्दा नहीं रह गया इसलिए सांप्रदायिक डेमोग्राफी की बात कर रहे हैं। ये कौन सा खेल चल रहा है और न्यायालय को इसमें क्यों लाया जा रहा है। आप आदिवासी लिखते हैं तो बताइयेगा ना वो सरना है या गैर सरना। संथाल परगना में पुराने समय से खासकर साहिबगंज, राजमहल, पाकुड़ ये इलाका बंगला भाषी इलाका है। भाषा से धर्म विभाजित नहीं होता है। इनके सांसद संथाल परगना को तोड़ने की बात कहते हंै। ये खेल हमलोग समझते हैं। ये बहुत खतरनाक खेल है। इस प्रकार से राज्य में जो विभाजनकारी तेज किये गये हैं। ये कबीर का देश है। ये गुरुनानक का देश है। ये देश बुद्ध का है। महावीर का है।

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