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    Home»विशेष»जब चंपाई सोरेन और जेएमएम समर्थक हुए आमने-सामने, फिर भी न कोई टशन न कोई खटास, पूरा सम्मान
    विशेष

    जब चंपाई सोरेन और जेएमएम समर्थक हुए आमने-सामने, फिर भी न कोई टशन न कोई खटास, पूरा सम्मान

    shivam kumarBy shivam kumarSeptember 15, 2024No Comments9 Mins Read
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    चंपाई ने जेएमएम को सींचा है, यह कार्यकर्ता नहीं भूले हैं
    क्षेत्र में ऐसे ही कोल्हान टाइगर के नाम से प्रचलित नहीं हैं चंपाई
    राकेश सिंह
    यों तो आज की भारतीय राजनीति में एक-दूसरे के विरोधी दलों के तेवर खूब देखने को मिलते हैं। गिला-शिकवा भी खूब सुनने को मिलती है। एक दूसरे की पोल-पट्टी खोलने के अनगिनत दृष्टांट हैं। साथ छूटते ही नेता भाषा की मर्यादा तोड़ देते हैं, व्यवहार को दागदार बना देते हैं। यहां तक कि घर-परिवार पर भी व्यक्तिगत आक्षेप की झड़ी लगा देते हैं। लंबे समय तक जिसके साथ उन्होंने गुजारा, दुख-दर्द बांटे, एक साथ मिल कर पार्टी को सींचा, उसकी नीतियों को जन-जन तक पहुंचाया, उन बातों को एक पल में बिसार देते हैं। उनमें ऐसा वैमनस्यता का भाव देखने को मिलने लगता है, जिसकी कल्पना इंसान से तो नहीं की जा सकती। यह भारतीय राजनीति की बड़ी बीमारी बन गयी है और इस बीमारी के कमोबेश सभी शिकार हो रहे हैं। लेकिन पिछले गुरुवार को बहरागोड़ा विधानसभा क्षेत्र के केरोकोचा गांव में एक ऐसा दृश्य देखने को मिला, जो निश्चित रूप से सुकून देनेवाला है। यह सब कुछ देखने को मिला चंपाई सोरेन और झामुमो कार्यकर्ताओं के एक कार्यक्रम में। अवसर था शहीद साबुआ हांसदा का शहादत दिवस। इस अवसर पर दोनों तरफ से काफी संख्या में समर्थक जुटे थे, अपने-अपने झंडे के साथ, लेकिन सुकून देनेवाली बात यह रही है कि न तो चंपाई सोरेन के समर्थकों ने झामुमो समर्थकों के मान-सम्मान को ठेस पहुंचायी और न ही झामुमो के कार्यकर्ताओं ने। वहां क्या कुछ देखने को मिला और वह भारतीय राजनीतिज्ञों को क्या संदेश देता है, बता रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।

    दिन गुरुवार। तारीख 12 सितंबर। आजाद सिपाही की टीम बहरागोड़ा विधानसभा क्षेत्र के कोकपाड़ा टोल नाके के पास थी। अवसर था शहीद साबुआ हांसदा का शहादत दिवस को कवर करना। इस बार साबुआ हांसदा का शहादत दिवस इस लिए भी खास था, क्योंकि भाजपा में शामिल होने के बाद पहली बार चंपाई सोरेन शहीद स्थल पर आनेवाले थे। वैसे पूर्व में जेएमएम की तरफ से कई बार मुख्य अथिति के तौर पर चंपाई सोरेन इस कार्यक्रम में शिरकत करते रहे हैं। हेमंत सोरेन, शिबू सोरेन भी प्रमुखता से इस अवसर पर आते रहे हैं। इस बार शुरू-शुरू में जेएमएम की ओर से कल्पना सोरेन के आने की चर्चा थी। दोनों ओर से भारी संख्या में समर्थकों के जुटान के भी कयास लागये जा रहे थे। राजनीतिक दृष्टिकोण से भी यह दिन हमेशा से चर्चा में रहा है। लेकिन इस बार वहां का नजारा दिलचस्प होने की चर्चा जोरों से थी। दोनों के समर्थकों का जुटान चर्चा का केंद्र बना हुआ था। हमारी टीम केरोकोचा गांव की ओर बढ़ रही थी। अचानक देखा कि करीब तीन हजार मोटरसाइकिल टोल नाके से पहले खड़ी थी। हर मोटरसाइकल करीब दो-दो लोग बैठे थे। भीड़ देख कर हमने अपनी गाड़ी रोक दी। हमें पता था कि चंपाई सोरेन केरोकोचा गांव जानेवाले हैं और वहां शहीद साबुआ हांसदा को श्रद्धांजलि देंगे। मोटरसाइकिल रैली की भी बात पता थी। सो हम वहीं रुक गये और चंपाई सोरेन का इंतजार करने लगे। इसी बीच एक अनोखी चीज देखने को मिली।

    चूंकि जेएमएम का भी कार्यक्रम केरोकोचा गांव में था और कल्पना सोरेन की भी आने की चर्चा थी। जेएमएम हर साल 12 सितंबर को शहीद साबुआ हांसदा का शहादत दिवस बड़े पैमाने पर मनाता आ रहा है। कई कार्यक्रमों का भी आयोजन करवाता रहा है। इस बार 37वां शहादत दिवस मनाया जा रहा था। जैसे-जैसे हम शहादत स्थल कीओर बढ़ रहे थे, जेएमएम के कार्यकर्ता भी भारी संख्या में सड़कों पर दिखाई दे रहे थे। लेकिन यहां गौर करनेवाली बात यह रही कि जब भी जेएमएम ओर चंपाई के कार्यकर्ता आमने-सामने होते तो वैसी हूटिंग देखने को नहीं मिली। इक्का-दुक्का समर्थकों ने चंपाई सोरेन की तरफ से जय श्रीराम का नारा जरूर लगाया, लेकिन कटुता का भाव देखने को नहीं मिला। भारतीय राजनीति में यह बात सुकून देनेवाली है। खैर चंपाई सोरेन कोकपाड़ा टोल नाका के पास पहुंचे। हजारों की संख्या में समर्थकों ने उनका स्वागत किया। मैंने भी उनसे थोड़ी देर बात की। सवाल पूछा कि शहादत स्थल पर क्या संकल्प लेने जा रहे हैं। उनका जवाब था कि वह हर साल श्रद्धांजलि अर्पित करने जाते हैं। उनका कहना था कि आप यह जो भीड़ देख रहे हैं, यह परिवर्तन की लहर है, आने वाले दिनों में भाजपा की सरकार बनेगी। मैंने उनसे पूछा कि झारखंड को लेकर आपका क्या विजन है। उनका कहना था कि परिवर्तन होने के बाद झारखंड को अच्छे से संवारेंगे। हर समस्या का समाधान करेंगे। वहीं मैंने जब जमशेदपुर के सांसद विद्युत वरण महतो से पूछा कि क्या भाजपा कार्यकर्ताओं का समर्थन चंपाई सोरेन को मिल रहा है। उनका कहना था कि बिल्कुल मिल रहा है। आने वाले दिनों में मजबूती के साथ हेमंत सरकार का सफाया होगा। उसके बाद आजाद सिपाही की टीम शहीद साबुआ हांसदा के शहादत स्थल पर पहुंची। वहां जेएमएम के कार्यकर्ता और नेता माल्यार्पण कर, थोड़ी दूर पर सभा स्थल पहुंच रहे थे, जहां जेएमएम का कार्यक्रम भी चल रहा था। इस बीच चंपाई सोरेन के समर्थकों का भी जुटान शहीद स्थल पर होना शुरू हुआ। लेकिन यहां भी दोनों ओर के समर्थकों में कोई टशन देखने को नहीं मिला। शांतिपूर्ण तरीके से सड़क पर समर्थक एक दूसरे को देख रहे थे ओर अपना-अपना कार्य कर रहे थे। चंपाई सोरेन ने साबुआ हांसदा की प्रतिमा पर माल्यार्पण किया, साथ में बाबूलाल सोरेन और जमशेदपुर के सांसद विद्युत वरण महतो भी थे। उसके बाद चंपाई सोरेन का काफिला आगे की ओर बढ़ा। यहां से सबको उम्मीद थी कि अब चंपाई समर्थकों और जेएमएम समर्थकों का आमना-सामना डायरेक्ट होगा। क्योंकि वहां पर साबुआ हांसदा की एक और प्रतिमा थी, जहां श्रद्धांजलि अर्पित की जा रही थी। यहीं पर जेएमएम का भी कार्यक्रम चल रहा था। भारी संख्या में ग्रामीण कार्यक्रम का आनंद ले रहे थे। चंपाई सोरेन आये, श्रद्धांजलि दिये। यहां सबसे गौर करनेवाली बात यह थी कि एक बार भी चंपाई सोरेन ने झामुमो का नाम नहीं लिया।

    झामुमो के किसी नेता पर किसी तरह का व्यक्तिगत आरोप नहीं मढ़ा। उन्होंने कांग्रेस पर हमला बोलते हुए कहा कि कोल्हान में सबसे ज्यादा गोलीकांड कांग्रेस ने ही करवाया है। इसके बाद चंपाई सोरेन चले गये। यहां पर भी दोनों ओर के समर्थकों में कोई टशन देखने को नहीं मिला। वहीं सभास्थल से एक दो किलोमीटर पहले जेएमएम नेताओं की 10-12 गाड़ियां एक ढाबे में रुकी हुई थीं। जैसे ही चंपाई सोरेन वहां से निकले, वे गाड़ियां सभास्थल पहुंचीं। लंबे समय तक चंपाई के साथ राजनीति करनेवाले इन नेताओं ने इस बात का ध्यान रखा कि चंपाई सोरेन के कार्यक्रम के दौरान किसी तरह का व्यवधान नहीं हो। उन गाड़ियों में दीपक बिरुआ, समीर मोहंती, जोबा मांझी और रामदास सोरेन निकले। यहां समझने वाली बात यह है कि इतनी भारी संख्या में समर्थकों का जुटान हुआ, लेकिन कहीं भी कोई भी कड़वाहट नजर नहीं आयी। यानी चंपाई सोरेन का सम्मान जेएमएम नेताओं और कार्यकर्ताओं में आज भी कम नहीं हुआ है। राजनीतिक मंच पर भले कोई कुछ कह दे, लेकिन असलियत जो दिखी, हम वही लिख रहे हैं। हां जेएमएम आलाकमान में उनको लेकर नाराजगी हो सकती है, लेकिन चंपाई सोरेन किसी भी मंच पर जेएमएम और उनके नेताओं पर हमला नहीं बोल रहे हैं। चंपाई सोरेन झारखंड मुक्ति मोर्चा के विरुद्ध कुछ भी नहीं बोल रहे हैं। क्योंकि उनका मानना है कि उन्होंने भी गुरुजी शिबू सोरेन के साथ पार्टी को सींचा है। अब परिस्थितयां भले ही विपरीत हैं, लेकिन कोई भी माली अपने द्वारा उगाये हुए फूल को तोड़ने से परहेज करता है। वैसे चंपाई अब भाजपा के रंग में रंग चुके हैं। वह जय श्रीराम का नारा लगा रहे हैं। उनके समर्थक भी जय श्रीराम का नारा बुलंद कर रहे हैं। जेएमएम के कार्यक्रम में भले ही किन्हीं कारणों से कल्पना सोरेन नहीं पहुंचीं, लेकिन वहां की जनता में उनके नहीं आने का कोई रोष नहीं था। जेएमएम समर्थकों की एक खासियत है, उन्हें इन सब बातों से नाराजगी नहीं होती। उन्हें सिर्फ तीर धनुष के निशान से मतलब है। वहीं अगर किसी अन्य दल का कार्यक्रम होता, और उनका नेता किन्हीं कारणों से वहां नहीं पहुंच पाता, तो उनके समर्थकों का गुस्सा देखते बनता। समर्थक मायूस भी होते। लेकिन यहां ऐसा कुछ भी नहीं देखने को मिला। मतलब साफ है कि जेएमएम कार्यकर्ताओं का भरोसा हेमंत सोरेन और कल्पना सोरेन पर है।

    यहां लोकसभा चुनाव से पूर्व एक घटना का जिक्र करना जरूरी है। जब सीता सोरेन ने भाजपा का दामन थामा था। सीता सोरेन ने हेमंत सोरेन और कल्पना सोरेन पर कई आरोप मढ़े थे। उन्होंने तो शिबू सोरेन तक को नहीं छोड़ा था। हालांकि बाद में उन्होंने इसके लिए खेद भी प्रकट किया और कहा कि उनके ट्वीटर हैंडल से अनजाने में गुरुजी के प्रति ऐसे शब्दों का इस्तेमाल हो गया है। उन्होंने भ्रष्टाचार के भी आरोप लगाये। सीता सोरेन तो उनके घर की थीं, फिर भी उन्होंने खुले मंच से जेएमएम, हेमंत-कल्पना ओर शिबू सोरेन पर आरोप लगाये थे। वहीं चंपाई सोरेन उनके सगे, तो नहीं, लेकिन उन्होंने कभी भी, कहीं भी कोई आरोप नहीं मढ़ा। हां बस इतना कहा कि उनके साथ नाइंसाफी हुई है। एक इमोशनल पत्र लिखा और पार्टी छोड़ दी। उन्होंने कभी भी सार्वजनिक मंच से सोरेन परिवार के खिलाफ बयान नहीं दिया। इसके पहले जितने भी नेता जेएमएम छोड़ भाजपा में शामिल हुए थे, सभी ने पार्टी और आलाकमान पर आरोप लगाया, दिल खोल कर खिलाफ में बयानबाजी की। लेकिन गुरुवार को मैंने जो नजारा देखा, वह एक स्वस्थ राजनीति की तस्वीर पेश करती है। वह यह भी तसवीर पेश करती है कि चंपाई सोरेन को यों ही कोल्हान का टाइगर नहीं कहा जाता। उनके झामुमो छोड़ने के बाद भी जेएमएम कार्यकर्ताओं की तरफ से उनके मान-सम्मान में कोई कमी नहीं देखने को मिली। यानी चंपाई सोरेन आज भी झामुमो कार्यकर्ताओं के लिए चंपाई दा हैं।

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