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    Home»विशेष»साहिबगंज में कमजोर दिलवालों के लिए कोई जगह नहीं
    विशेष

    साहिबगंज में कमजोर दिलवालों के लिए कोई जगह नहीं

    shivam kumarBy shivam kumarSeptember 25, 2024No Comments10 Mins Read
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    विशेष
    राजनीति और माफियाओं से जकड़ा हुआ है शहर
    आज सिसक रहा है संभावनाओं से भरा यह जिला
    एक समय औद्योगिक नगरी के नाम से प्रसिद्ध, आज पत्थर की रॉयल्टी से ग्रसित
    घुसपैठिये, डेमोग्राफिक परिवर्तन और माफिया राज की बात तो सभी करते हैं, लेकिन दबी जुबान से
    कहते हैं मोदी नहीं होते, तो दुकानों और घरों में ताला लगा कर रहना पड़ता
    गंगा नगरी से विभूषित यह शहर, फायदा नहीं उठा पा रहा झारखंड

    नमस्कार। आजाद सिपाही विशेष में आपका स्वागत है। मैं हूं राकेश सिंह।
    साहिबगंज के लोग बहुत ही मिलनसार हैं। जो दिल में है, वही जुबान पर है। वसुधैव-कुटुंबकम की प्रथा आज भी यहां के लोगों में वास करती है। यहां के लोग आपकी खातिरदारी पूरे दिल से करते हैं। गरम-गरम दाल की कचौरी, आलू-चने की सब्जी के साथ मिट्टी के बर्तन में रबड़ी और रसगुल्ले परोसने वाले यहां के लोग सादगी से भरे पड़े हैं। आप थोड़ा पूछियेगा, वे ज्यादा बताते हैं। अपने शहर के हर पहलू से आपको अवगत करा देते हैं। सबको पता है कि उनका शहर राजनीति का शिकार हो गया। माफियाओं के चक्कर में जकड़ गया। मफियाओं की हिम्मत इतनी बढ़ी हुई है कि किसी की भी जमीन पर एक बार दृष्टि पड़ जाये, तो उसे हथियाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ते। कमजोर दिलवालों के लिए साहिबगंज में कोई जगह नहीं है। यहां वही रह सकता है, जो अपने अस्तित्व की लड़ाई खुद लड़ सकता है। यह वीर सिदो-कान्हू, चांद-भैरव, फूलो-झानो की धरती है, जिन्होंने संथाल हूल क्रांति का आगाज किया था। साहूकारों, महाजनों और अंग्रेजी शासन के खिलाफ संघर्ष का एलान किया था। इन्होंने अपने और अपने समाज के अस्तित्व की लड़ाई खुद लड़ी थी। दामिन-ए-कोह आज सरकारी कृपादृष्टि के लिए तरस रहा है। यह झारखंड का अंतिम छोर है, शायद इसीलिए इसे अपने हाल पर छोड़ दिया गया है। जिस शहर को मां गंगा का आशीर्वाद मिला हो, उसकी उपेक्षा कहीं से भी सही नहीं है। एक वक्त साहिबगंज में पटसन उद्योग और सरसों तेल की बड़ी-बड़ी फैक्टरियां हुआ करती थीं। गंगा में बड़े-बड़े जहाज चला करते थे। लेकिन साहिबगंज धीरे-धीरे राजनीति का शिकार होता चला गया। राजनीति से प्रेरित एक पुल के निर्माण ने साहिबगंज के वैभव पर ग्रहण लगा दिया। जो पुल साहिबगंज में बनना था, वह फरक्का चला गया। कैसे साहिबगंज जिला राजनीति, माफिया राज, बांग्लादेशी घुसपैठ और धर्मांतरण से ग्रसित है, बता रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।

    सुबह के छह बजे थे। चाय पीने का मन किया। दिन और रात भर की उमस के बाद सुबह का मौसम बड़ा ही सुहावना लग रहा था। मैंने चायवाले को चाय बनाने को कहा। कुछ लोग पहले से वहां चाय पी रहे थे। चाय बनने लगी। मैं भी स्टूल पर बैठ गया। मेरे साथ आजादी सिपाही के संवाददाता सुनील सिंह भी थे। मैंने एक राजनीतिक विषय छेड़ दिया, क्योंकि सुबह-सुबह चाय की टपरी पर अखबार पढ़ते लोग ही आपको हर तरह की जानकारी दे सकते हैं। मैंने कहा कि शुक्रवार को गृह मंत्री अमित शाह आये थे। ठीक-ठाक भीड़ हुई। उनका कहना था कि साहिबगंज के राजनीतिक कार्यक्रम में वैसे ज्यादा भीड़ नहीं हुआ करती, लेकिन अमित शाह वाली सभा में अच्छी भीड़ दिखी। फिर मैंने पूछा कि यहां राजनीतिक लड़ाई किनके-किनके बीच में है। जवाब आया कि अनंत ओझा, जो भाजपा से विधायक हैं और एमटी राजा, जो पिछली बार आजसू पार्टी से लड़े थे। मैंने पूछा कि विधायक अनंत ओझा ने कैसा काम किया है। उनका कहना था कि उन्होंने काम तो किया है, लेकिन बहुत ऐसे विषय हैं, जिनमें काम होना जरूरी है। विधायक वैसे बहुत मुखर हंै, प्रयास भी बहुत करते हैं। कुछ का कहना था कि सरकार बदल जाने के कारण बहुत से ऐसे काम हैं, जो लटके पड़े हैं। पश्चिमी और पूर्वी रेलवे फाटक पर लग रहे जाम को लेकर चर्चा हुई। खासमहाल के मुद्दे को लेकर भी लोगों ने चर्चा की। एमटी राजा के बारे में लोगों का कहना था कि वह भी मजबूत दावेदार हैं। टक्कर में हैं। पढ़ाई-लिखाई, स्वास्थ व्यवस्था के बारे में भी बातचीत हुई। बातचीत तो साहिबगंज से शुरू होकर यूपी, बिहार, बंगाल तक छिड़ गयी। इतने में मेरी चाय आ गयी। चाय बहुत गरम थी। मुंह भी जल गया। थोड़ी बहुत उंगली पर भी गिर गयी।

    घुसपैठिये हैं सर, बस एक बार इन गांवों में घुस कर के तो देखिये
    खैर, मेरे मन में एक सवाल आया कि यहां के लोग हर मुद्दों पर बेबाकी से बोल रहे हैं, लेकिन अभी तक यहां का जो सबसे बड़ा मुद्दा है, उस पर कोई बात नहीं कर रहा। मैंने पूछ ही लिया कि क्या यहां बांग्लादेशी घुसपैठिये भी हैं। उसके बाद लोग एक-दूसरे का चेहरा देखने लगे। चंद सेकंड की शांति के बाद एक व्यक्ति ने कहा कि जी भाई जी, यहां घुसपैठिये भरे पड़े हैं। मैंने पूछा कहां ? उसने कहा कि एक बार आप जरा मनसिंघा, श्रीधर, जामनगर, अमानत जाकर देखिये। राजमहल के फुलवरिया मोड़ से लेकर कई गांव होते हुए उधवा क्षेत्र में जाकर देखिये। सब पता चल जायेगा कि खेला क्या है। यहां तो सबको पता है। लेकिन कोई कुछ करता कहां है। इन लोगों को कौन बसाया है, यह भी सबको पता है। सब वोट की राजनीति है सर। कांग्रेस के बड़े नेता हैं नाम नहीं लूंगा, लेकिन उनकी भी महत्वपूर्ण भूमिका है। आप समझ सकते हैं। वही हाल पियारपुर, राधानगर, बरहड़वा का भी है। पाकुड़, लिट्टीपाड़ा का तो सबको पता है। लेकिन कोई बोलता नहीं है। दुमका और गोड्डा क्षेत्र में भी ये बहुतायत में हैं। एक व्यक्ति ने कहा कि सर आप कई इलाकों में तो शाम सात बजे के बाद जा ही नहीं सकते। सब अपने रूप में दिख जायेंगे। उनकी बोलचाल भी बांग्लादेशी वाली ही है। फोटोग्राफी, मोबाइल से फोटो कुछ नहीं ले सकते।

    मिलीभगत से आधार कार्ड, राशन कार्ड, वोटर कार्ड आसानी से बन रहा
    मैंने पूछा कि कुछ लोग बता रहे थे कि उनका आधार कार्ड, राशन कार्ड, वोटर कार्ड तक आसानी से बन जा रहा है। उस व्यक्ति का कहना था कि सर बिल्कुल सही बोल रहे हैं आप। आपको जानकर हैरानी होगी कि सरकारी डाक्यूमेंट्स के मामले में यहां वर्गों में भी फर्क किया जा रहा है। एक वर्ग है, जिसे आधार कार्ड, राशन कार्ड, वोटर कार्ड के लिए दौड़ाया जाता है और वहीं विशेष धर्म वालों के लिए आसानी से सारे डाक्यूमेंट्स बना दिये जा रहे हैं। यहां के कुछ पार्षद भी भेदभाव करते हैं। उसके दरवाजे पर अगर कोई सामान्य व्यक्ति राशन कार्ड या अन्य योजनाओं के लिए डॉक्यूमेंट्स बनवाने पहुंच जाये, तो डांट कर कहते हैं कि क्या सुबह-सुबह आ गया, बाद में आना। लेकिन वहीं कोई धर्म विशेष का व्यक्ति उनके यहां पहुंच जाता है, तो तुरंत उसका सभी काम करवा देते हैं। यह सब वोट बैंक की राजनीति से प्रेरित है सर। बातचीत में लोग कहते हैं, बांग्लादेशी घुसपैठियों ने इन इलाकों में पहले से रहने वाले लोगों से रिश्ता-नाता जोड़ लिया है और राजस्व कर्मचारियों से मिलीभगत कर के राशन कार्ड, वोटर कार्ड और आधार कार्ड बनवा लिया है।

    सरकारी योजनाओं का लाभ ले रहे हैं घुसपैठिये
    मेरी चाय खत्म हुई और मैं आगे बढ़ा। दिन भर मैं साहिबगंज के लोगों से मिलता ही रहा। बहुत सारी जानकारियां इकट्ठी भी हुईं। मैं साहिबगंज के इतिहास और मौजूदा हाल के बारे में जानकर दंग रह गया। एक सज्जन से मुलाकात हुई। नाम नहीं छापने की शर्त पर उनका कहना था कि यहां बैंक मित्र भी विशेष धर्म वाले लोग ज्यादा संख्या में हैं और वे अपने ही लोगों का ज्यादा सहयोग करते हैं। लेकिन दिक्कत यह है कि इसमें कई बांग्लादेशी घुसपैठिये भी हैं। हर सरकारी योजना का लाभ वे आसानी से उठा रहे हैं। यहां एक बात उन्होंने बतायी कि इस क्षेत्र में धर्मांतरण का खेल जोर-शोर से चल रहा है। आदिवासी क्रिश्चियन में कन्वर्ट तो हो ही रहे थे, अब भारी संख्या में मुस्लिम धर्मं में कन्वर्ट हो रहे हैं। अचानक से गांवों में आप पायेंगे कि उनके घरों के सामने जो गेट लगे हैं, उसमें मुस्लिम धर्म के चिह्न मिल जायेंगे। यह एक नया पैटर्न बन गया है। इसके पीछे सोच यही है कि एक बार क्रिश्चियन भाजपा को वोट देने के बारे में सोच सकता है, लेकिन मुसलमान भाजपा को वोट नहीं करेगा।

    मोदी सरकार नहीं होती, तो घर और दुकान में ताला लगा कर बैठना पड़ता
    बांग्लादेशी घुसपैठिये और माफियाओं को लेकर एक बुजुर्ग व्यक्ति का कहना था कि अगर केंद्र में मोदी सरकार नहीं होती, तो घर और दुकान में ताला लगा कर बैठना पड़ता। स्थिति इतनी भयावह है। उस व्यक्ति का कहना था कि बांग्लादेशी घुसपैठिये संथाल परगना की तीन लोकसभा क्षेत्रों का चुनाव परिणाम प्रभावित करने की स्थिति में आ चुके हैं। इनकी संख्या इतनी बढ़ चुकी है कि अगर केंद्र सरकार एनआरसी नहीं लागू करेगी, तो आने वाले 15-20 सालों में हमें यहां से भागना पड़ेगा। मुझे अपने बच्चों को लेकर बहुत चिंता होती है। यहां पर जिस हिसाब से डेमोग्राफी में बदलाव हो चुका है, इसका अंदाजा भी आप नहीं लगा सकते। प्रशासन की भी बात अब ये लोग मानते नहीं हैं। प्रशासन भी इनके सामने नतमस्तक है। माफियाओं का जलवा इतना है कि यहां गंगा पुल के आसपास किनकी जमीन है, आप बस पता लगवा लीजिए। इन लोगों ने पहाड़ के पहाड़ साफ कर दिये। हरे-भरे पहाड़ों को टकला कर दिया। यहां स्टोन माइनिंग में इन लोगों का वर्चस्व है। सबको रॉयल्टी चाहिए। ये लोग मौजूदा सरकार में भी बहुत प्रभाव रखते हैं। एक व्यक्ति तो फरार है, दूसरा तो खुद को मालिक ही समझता था। मैंने पूछा कौन, दाहू यादव और दूसरा पंकज मिश्रा। उनका कहना था, वही समझ लीजिए।

    वोट जिहाद का भी सामना करना पड़ेगा भाजपा को
    वहीं साहिबगंज के लोगों से जब राजनीति पर चर्चा हुई, तो उनका कहना था कि यहां फाइट हिंदू और मुस्लिम वोटर्स में ही है। एक धड़ा मौजूदा विधायक अनंत ओझा को सपोर्ट करता है, तो दूसरा एमटी राजा को। एमटी राजा 2019 के विधानसभा चुनाव में आजसू के टिकट से लड़ चुके हैं। उन्हें कुल 76532 वोट मिले थे, वहीं अनंत ओझा को 88904 वोट मिले थे। राजनीति के जानकारों का कहना है कि यहां बनिया और यादव मतदाता निर्णायक होते हैं। यादव वोट बिखरता रहता है। ऐसा देखा गया है कि वे जेएमएम के साथ जाना ज्यादा पसंद करते हैं। मुसलमान तो जेएमएम के साथ हंै ही। वैसे वर्ष 2014 के विधासभा चुनाव में राजमहल सीट पर भाजपा का बोलबाला रहा। भाजपा के उम्मीदवार अनंत कुमार ओझा ने 77481 (39.71 प्रतिशत) वोट पाकर पहली बार जीत दर्ज की। उन्होंने झामुमो के मोहम्मद ताजुद्दीन को पराजित किया। ताजुद्दीन को कुल 76779 (39.35 फीसदी) वोट मिले थे। वहीं निर्दलीय उम्मीदवार बजरंगी प्रसाद यादव 18866 पाकर तीसरे स्थान पर रहे। वैसे 2009 में भाजपा प्रत्याशी अरुण मंडल ने झामुमो प्रत्याशी मुहम्मद ताजुद्दीन उर्फ एमटी राजा को हराया था। एमटी राजा फिलहाल झामुमो से टिकट की ताक में हैं। हर वर्ग में घूम रहे हैं। मुसलमानों के साथ-साथ अन्य वर्गों को साधने का भी प्रयास कर रहे हैं। इस बार भी राजमहल का चुनावी परिदृश्य बड़ा ही दिलचस्प होनेवाला है। वहीं अनंत ओझा का कहना है कि इस चुनाव में भाजपा को लव जिहाद, लैंड जिहाद के साथ-साथ वोट जिहाद का भी सामना करना पड़ेगा। वह कहते हैं, हजारों लोगों के नाम वोटर लिस्ट से गायब कर दिये गये हैं, लेकिन वह इससे घबड़ा नहीं रहे हैं। लोगों का पूरा साथ उन्हें मिलेगा।

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