विशेष
गुदरी इलाके के ग्रामीणों ने अब तक आधा दर्जन लोगों को उतारा मौत के घाट
पुलिस प्रशासन की तमाम कोशिशों के बावजूद थम नहीं रही हैं हिंसक घटनाएं
स्थिति पर जल्द नियंत्रण नहीं हुआ, तो विस्फोटक हो सकती है गांवों की स्थिति
नमस्कार। आजाद सिपाही विशेष में आपका स्वागत है। मैं हूं राकेश सिंह।
झारखंड का कोल्हान क्षेत्र राजनीतिक रूप से जितना संवेदनशील है, प्रशासनिक दृष्टिकोण से उतना ही दुरूह। जमशेदपुर जैसा औद्योगिक शहर इस इलाके में होने के बावजूद कोल्हान प्रमंडल के तीनों जिलों में घने जंगल और पहाड़ हैं, जो स्वाभाविक रूप से आदिवासियों के घर हैं। इन जंगलों की भीतर पाये जानेवाले बेशकीमती खनिजों की वजह से यहां अक्सर आदिवासियों को अशांत किया जाता है। औद्योगिक कंपनियों की मनमर्जी के अलावा नक्सलियों की धमक ने कोल्हान इलाके को एक ऐसे इलाके में बदल कर रख दिया है, जहां अब कोई किसी पर विश्वास नहीं करता। यही वजह कोल्हान को प्रशासनिक दृष्टिकोण से दुरूह बनाता है। यहां अक्सर ग्रामीणों और नक्सलियों के बीच संघर्ष होता रहता है। अपने उग्र प्रतिरोध के लिए चर्चित कोल्हान के आदिवासी अक्सर नक्सलियों के खिलाफ हथियार उठाते रहे हैं और इस बार भी ऐसा ही हो रहा है। पिछले एक सप्ताह से चाइबासा का गुदरी इलाका ग्रामीणों के सेंदरा अभियान के कारण हिंसा की आग में जल रहा है। ग्रामीणों ने अब तक दो नक्सलियों के अलावा पांच निर्दोष लोगों की हत्या कर दी है, जिन्हें वे नक्सली मानते थे। पुलिस प्रशासन के तमाम प्रयासों के बावजूद हिंसा का दौर थम नहीं रहा है। ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि आखिर कोल्हान के आदिवासियों को हथिायर उठाने के लिए कौन उकसा रहा है और पुलिस प्रशासन उन्हें समझाने में सफल क्यों नहीं हो रहा है। चाइबासा का गुदरी इलाका आज अशांत है और लोग वहां जाने से भी डर रहे हैं। यह झारखंड के लिए अच्छा संकेत नहीं है। क्या है चाइबासा के गुदरी इलाके की पूरी कहानी और क्या हैं कारण, बता रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।
झारखंड का कोल्हान इलाका इन दिनों एक बार फिर चर्चा में है। इस चर्चा का कारण चाइबासा के गुदरी इलाके में ग्रामीणों द्वारा नक्सलियों के खिलाफ चलाया जा रहा हथियारबंद आंदोलन है, जिसमें अब तक सात लोगों की मौत हो चुकी है। गुदरी-गोइलकेरा के गांवों में इन दिनों माहौल बेहद तनावपूर्ण है। कहने को तो यह आंदोलन नक्सलियों के खिलाफ है, लेकिन इसकी चपेट में निर्दोष लोग भी आने लगे हैं। इलाके के दर्जनों गांवों के हजारों लोग तीर-धनुष लेकर अभियान चला रहे हैं। किसी भी बाहरी व्यक्ति को देखते ही वे उसे नक्सली मान लेते हैं और जन अदालत लगा कर हत्या कर देते हैं। आंदोलन की शुरूआत करीब 15 दिन पहले हुई, जब प्रतिबंधित नक्सली संगठन पीएलएफआइ ने दो ग्रामीणों की हत्या कर दी। इसके अलावा नक्सलियों की बढ़ती गतिविधियों से आम तौर पर शांतिप्रिय आदिवासी तंग हो गये। नक्सलियों की हिंसा और इलाके में बढ़ती आपराधिक घटनाओं से आक्रोशित ग्रामीणों ने पीएलएफआइ के कमांडर मेटा टाइगर और उसके एक सहयोगी का सेंदरा, यानी पीट-पीटकर हत्या कर दी। जनजातीय समाज में सेंदरा का अर्थ शिकार करना है। इसके बाद ग्रामीण हथियारबंद होकर इलाके में घूमने लगे और किसी भी बाहरी व्यक्ति को देखते ही उसकी जान लेने पर उतारू हो गये। इसकी चपेट में पहले बिहार के दो युवक आये, जो अपने कारोबार के सिलसिले में वहां गये थे। फिर ओड़िश के मयूरभंज जिले के तीन मवेशी कारोबारी भी यहां के ग्रामीणों के हत्थे चढ़ गये और उनकी भी हत्या कर दी गयी।
डुमरिया के लांगो की घटना की याद ताजा हो गयी
चाइबासा के गुदरी इलाके में हो रही घटना ने डुमरिया के लांगो की घटना की याद ताजा कर दी है। पूर्वी सिंहभूम, यानी जमशेदपुर के डुमरिया इलाके के गांव में आठ अगस्त 2003 को ग्रामीणों ने नक्सलियों के खिलाफ प्रतिशोध दिखाया था। यह प्रतिशोध भारत के इतिहास में नक्सलियों के खिलाफ पहली घटना थी। यह दिन नक्सलियों के लिए भी एक काला दिन था, जिसे वे आज भी भूल नहीं पाये हैं। नक्सलियों के आतंक से लांगो गांव काफी त्रस्त था। आये दिन नक्सली ग्रामीणों को मारपीट कर जबरन भोजन करते थे। संपन्न लोगों से लेवी वसूलते थे। जन अदालत लगाकर निदोर्षों को भी बेहरमी से सजा देते थे। हद तो तब हो गयी, जब नक्सलियों ने ग्रामीणों को खेती करने से ही मना कर दिया था। चेतावनी दी थी कि अगर किसी ने खेती करने की कोशिश की, तो उसे जान से हाथ धोना पड़ेगा। खेतों में लाल झंडे गाड़ दिये गये थे। यह बात ग्रामीणों को नागवार गुजरी। उसके बाद ग्रामीणों ने नक्सलियों के खिलाफ आर-पार की लड़ाई लड़ने का निर्णय ले लिया। इसके लिए रणनीति बनी। इसमें तत्कालीन एसपी अरुण उरांव द्वारा बनायी गयी नागरिक सुरक्षा समिति ने भी साथ देने का वचन दिया। उसके बाद ग्रामीणों ने योजना बनाकर नौ नक्सलियों को घेरकर सेंदरा किया था। इस घटना के बाद सरकार की ओर से इस गांव में विकास की कई घोषणाएं की गयी। यहीं नहीं, बल्कि साहस को सलाम करने के लिए 25 युवाओं को पुलिस में सरकारी नौकरी दी गयी। उसके बाद 14 और 22 अगस्त को चार अन्य नक्सलियों को ग्रामीणों ने मार गिराया था। इस घटना के बाद नक्सली बैकफुट पर आ गये थे।
नक्सली संगठनों ने पत्र जारी कर दी सफाई
गुदरी इलाके के ग्रामीणों के तेवर देख नक्सली संगठन पीएलएफआइ बैकफुट पर आ गया है। जिन लोगों को संगठन कल तक अपना कार्यकर्ता बताता था, अब उनकी मौत के बाद संगठन उन लोगों को चोर गिरोह का सदस्य बता रहा है। दिनेश गोप के जेल जाने के बाद पीएलएफआइ के प्रभारी मार्टिन जी ने पत्र जारी कर चाइबासा में आतंक मचाने वाले लोगों के बारे में लिखा कि वे किसी दूसरे गिरोह के लोग हैं। पुलिस को ग्रामीणों के साथ मिलकर इसकी भी जांच करनी चाहिए। मार्टिन जी ने अपने पत्र में लिखा है कि वे गुदरी के आम लोगों को यह संदेश देना चाहते हैं कि उस इलाके में मेटा टाइगर नाम का कोई व्यक्ति संगठन में भर्ती नहीं हुआ है। उनका संगठन इस बात से इनकार करता है। जरूर कोई चोर गिरोह का व्यक्ति होगा, जो संगठन को बदनाम करने के लिए इन घटनाओं को अंजाम दे रहा है।
इलाके में फैल रही है अशांति
हकीकत चाहे कुछ भी हो, यह सच है कि इस खून-खराबे से इलाके में अशांति फैल रही है। कोल्हान का इलाका वैसे भी नक्सलियों के गढ़ के रूप में जाना जाता है। नक्सलियों के खिलाफ पुलिस प्रशासन के तमाम अभियान यहां अब तक नाकाफी साबित हुए हैं। ऐसे में यदि बाहरी लोगों के प्रवेश पर स्थानीय ग्रामीणों द्वारा इस तरह की हिंसक कार्रवाई जारी रही, तो मामला बिगड़ सकता है। इसलिए जरूरी है कि पुलिस प्रशासन इलाके के लोगों को विश्वास में लेकर उन्हें इस तरह की हिंसक कार्रवाई से रोके। यह इलाके की शांति व्यवस्था के साथ झारखंड के भविष्य के लिए भी जरूरी है और पुलिस प्रशासन के इकबाल के लिए भी।