नई दिल्ली। पहलगाम आतंकी हमले के बाद भारत ने सख्त कदम उठाते हुए पाकिस्तान के साथ सिंधु जल संधि को निलंबित कर दिया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में सुरक्षा मामलों की कैबिनेट कमेटी (सीसीएस) की बैठक में बुधवार 23 अप्रैल को यह फैसला लिया गया है। इस तरह भारत में राजनयिक स्तर पर पाकिस्तान के खिलाफ कार्रवाई की है।
प्रधानमंत्री मोदी की अध्यक्षता में हुई सीसीएस की बैठक में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, विदेश मंत्री एस जयशंकर, गृह मंत्री अमित शाह के अलावा राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एनएसए) अजीत डोभाल शामिल हुए।
भारत ने पहले भी सिंधु जल संधि पर ‘पुनर्विचार’ करने को कहा था। यह पहली बार है जब संधि को औपचारिक रूप से निलंबित किया गया है। सिंधु जल संधि निलंबित करने के बाद भारत की तरफ से पाकिस्तान को कोई जानकारी साझा नहीं की जाएगी। साथ ही भारत जल संधि से जुड़ी किसी बैठक में भाग नहीं लेगा।
फिलहाल पाकिस्तान सरकार की तरफ से भारत के इस फैसले पर आधिकारिक रूप से विरोध नहीं जताया गया है। लेकिन पाकिस्तान के पूर्व सूचना मंत्री और पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) के नेता चौधरी फवाद हुसैन ने कहा कि अंतरराष्ट्रीय कानून से बधा हुआ है और ऐसा कदम नहीं उठा सकता है।
पीटीआई नेता चौधरी ने एक्स पर एक पोस्ट में कहा, “अंतरराष्ट्रीय कानूनों के तहत भारत सिंधु जल संधि पर रोक नहीं लगा सकता। ऐसा फैसला सिंध से जुड़े कानून का उल्लंघन होगा।
सिंधु जल संधि क्या है?
भारत ने पाकिस्तान के साथ 19 सितंबर, 1960 को सिंधु जल संधि (IWT) पर हस्ताक्षर किए थे, जो सीमा पार जल बंटवारे के लिए काफी महत्वपूर्ण मानी जाती है। 9 साल की लंबी बातचीत के बाद विश्व बैंक की मध्यस्थता में यह समझौता हुआ था। दोनों देशों में बहने वाली नदियों के जल प्रबंधन के लिए भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और पाकिस्तान के तत्काल राष्ट्रपति अयूब खान ने इस पर हस्ताक्षर किए था।
संधि की जरूरत क्यों पड़ी?
ब्रिटिश शासन में दक्षिण पंजाब में सिंधु नदी घाटी पर एक बड़ी नहर बनाई गई थी। इसके चलते इस क्षेत्र के किसानों को बहुत फायदा हुआ और यह एक प्रमुख कृषि क्षेत्र बनकर उभरा। 1947 में भारत के बंटवारे के बाद पंजाब भी दो हिस्सों में विभाजित हो गया। पूर्वी पंजाब भारत में आया, जबकि पश्चिमी पंजाब पाकिस्तान में चला गया। इसके दौरान सिंधु नदी घाटी और इसकी नहरों का भी बंटवारा किया गया। इससे मिलने वाले जल के लिए पाकिस्तान पूरी तरह भारत पर निर्भर था।
पानी के प्रवाह को बनाए रखने के उद्देश्य से 20 दिसंबर 1947 को पूर्वी और पश्चिमी पंजाब के चीफ इंजीनियरों के बीच एक समझौता हुआ। जिसमें तय हुआ कि देश के विभाजन से पहले निर्धारित निश्चित जल का हिस्सा भारत 31 मार्च 1948 तक पाकिस्तान को देता रहेगा। समझौता खत्म होने के बाद भारत ने 1 अप्रैल 1948 को दो नहरों का पानी रोक दिया, जिससे पाकिस्तान के हिस्से वाले पंजाब में लाखों एकड़ कृषि भूमि के लिए सिंचाई जल मिलना काफी मुश्किल हो गया।
हालांकि, दोनों देशों के बीच बाद में हुए समझौते के बाद भारत पानी छोड़ने पर सहमत हो गया। रिपोर्ट के मुताबिक, प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने 1951 में टेनसी वैली अथॉरिटी के पूर्व अध्यक्ष डेविड लिलियंथल को भारत बुलाया। वह पाकिस्तान भी गए। अमेरिका वापस लौटने के बाद लिलियंथल ने सिंधु नदी घाटी जल बंटवारे पर एक आर्टिकल लिखा। इस आर्टिकल को तत्कालीन विश्व बैंक प्रमुख डेविड ब्लैक ने भी पढ़ा, जो लिलियंथल के मित्र थे। लेख पढ़ने के बाद डेविड ब्लैक ने भारत और पाकिस्तान के राष्ट्र प्रमुखों से संपर्क किया। इसके बाद दोनों देशों के बीच इस संबंध में बैठकों का दौर शुरू हुआ।
वर्षों की बातचीत के बाद, भारत के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और पाकिस्तानी राष्ट्रपति अयूब खान ने 19 सितंबर 1960 को कराची में नदी जल के शांतिपूर्ण प्रबंधन और बंटवारे के लिए सिंधु जल संधि पर हस्ताक्षर किए।
सिंधु जल संधि कैसे काम करती है?
संधि के अनुसार, भारत को पूर्वी नदियों – रावी, ब्यास और सतलुज का पानी मिलता है, जबकि पाकिस्तान को पश्चिमी नदियों – सिंधु, झेलम और चिनाब का पानी मिलता है। यह संधि पाकिस्तान के लिए इसलिए फायदेमंद है, क्योंकि इन नदियों से कुल जल प्रवाह का लगभग 80 प्रतिशत उसे प्राप्त होता है, जो पाकिस्तान में विशेष रूप से पंजाब और सिंध प्रांतों में कृषि के लिए महत्वपूर्ण है।
विश्व बैंक के अनुसार, इस संधि ने सिंधु नदी प्रणाली के निष्पक्ष और सहकारी प्रबंधन के लिए एक रूपरेखा तैयार की, जो भारत और पाकिस्तान दोनों में कृषि, पेयजल और उद्योग के लिए जरूरी है। संधि में नदी और उसकी सहायक नदियों के जल के न्यायसंगत बंटवारे के लिए स्पष्ट दिशा-निर्देश दिए गए, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि दोनों देश अपनी जल आवश्यकताओं को पूरा कर सकें।
- सिंधु जल संधि के प्रावधान
- पश्चिमी पंजाब की ओर बहने वाली नदियों सिंधु, झेलम और चिनाब का पानी पाकिस्तान को दिया गया।
- पूर्वी पंजाब की नदियों रावी, ब्यास और सतलुज के पानी पर भारत का नियंत्रण है।
- भारत अपने हिस्से की नदियों का पानी बिना किसी रुकावट के इस्तेमाल कर सकता है।
- भारत को पश्चिमी पंजाब की नदियों के जल के सीमित इस्तेमाल का भी कुछ अधिकार है।
- सिंधु जल संधि के तहत दोनों देशों के बीच समझौते को लेकर बातचीत कर सकते हैं और साइट का मुआयना भी कर सकते हैं
- समझौते के तहत सिंधु आयोग भी स्थापित किया गया और दोनों देशों के कमिश्नर मिलने का प्रावधान है।
- दोनों देशों के आयोग कमिश्नर किसी भी विवादित मुद्दे पर बातचीत कर सकते हैं।
- संधि के मुताबिक, अगर कोई पक्ष किसी परियोजना पर काम करता है और दूसरे पक्ष को उसे लेकर कोई आपत्ति है तो पहला पक्ष
- उसका जवाब देगा और इस मुद्दे पर दोनों पक्षों की बैठकें होंगी।
- अगर बैठकों में कोई हल नहीं निकलता है तो दोनों देशों की सरकारें मिलकर मुद्दे का समाधान निकालेंगी।
- किसी भी विवादित मुद्दे पर दोनों पक्ष कोर्ट ऑफ ऑर्बिट्रेशन में भी जा सकते हैं या तटस्थ विशेषज्ञ की मदद ले सकते हैं।
संधि के निलंबन का पाकिस्तान पर क्या प्रभाव होगा?
पाकिस्तान की 80% खेती योग्य भूमि यानी लगभग 16 मिलियन हेक्टेयर सिंधु नदी प्रणाली के पानी पर निर्भर है। इस पानी का 93% हिस्सा सिंचाई के लिए इस्तेमाल किया जाता है, जो देश की कृषि के लिए मुफीद है। सिंधु जल संधि 237 मिलियन से अधिक लोगों का भरण-पोषण करती है, जिसमें पाकिस्तान की सिंधु बेसिन की आबादी का 61% हिस्सा है।
पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था तीन नदियों सिंधु, झेलम और चिनाब के पानी पर बहुत हद तक निर्भर करती है। कपड़ा से लेकर चीनी और कृषि से लेकर उद्योग तक, सिंधु जल संधि देश के आर्थिक चक्र को गतिमान रखने में प्रमुख भूमिका निभाती है।
सिंधु जल संधि के निलंबन से पाकिस्तान की जल आवश्यकताओं और कृषि क्षेत्र के लिए जरूरी पानी की कमी हो सकता है, क्योंकि समझौता सिंधु नदी प्रणाली और उसकी सहायक नदियों से पानी के उपयोग और आवंटन को नियंत्रित करता है।
सिंधु नदी घाटी में झेलम, चिनाब, रावी, ब्यास और सतलुज नदियां शामिल हैं, जो पाकिस्तान के प्रमुख जल संसाधन हैं और एक बड़ी आबादी इस पानी पर निर्भर है।
कुल जल प्रवाह का लगभग 80 प्रतिशत भाग पाकिस्तान को मिलता है, इसलिए संधि के निलंबन से पाकिस्तान में कृषि विपरीत असर पड़ सकता है।
पाकिस्तान सिंचाई, खेती और पेयजल के लिए काफी हद तक इन्हीं नदियों के जल पर निर्भर है।
पाकिस्तान की राष्ट्रीय आय में कृषि क्षेत्र का 23 प्रतिशत योगदान है, जो गिर सकता है।
यह लगभग 68 प्रतिशत ग्रामीण आजीविका का प्रत्यक्ष रूप से समर्थन करता है।
जल प्रवाह में कावट से पाकिस्तान के कृषि क्षेत्र पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ेगा।
जल की कमी से फसल की पैदावार में कमी, खाद्यान्न की कमी और आर्थिक अस्थिरता उत्पन्न होगी।
कराची, लाहौर और मुल्तान शहरों को इन नदियों से सीधे मिलता है।
भंडारण में कमी पाकिस्तान को बेहद असुरक्षित बना देगी।
यह प्रणाली पाकिस्तान के सकल घरेलू उत्पाद में लगभग 25% का योगदान देती है।
पानी रोकने से होने वाले तत्काल प्रभाव
खाद्य उत्पादन में गिरावट आ सकती है
लाखों लोगों की खाद्य सुरक्षा को खतरा हो सकता है
शहरी जल आपूर्ति बाधित हो सकती है।
शहरों में जल संकट हो सकता है
बिजली उत्पादन ठप हो जाएगा, जिसका उद्योगों पर असर पड़ेगा
ग्रामीण क्षेत्रों में बेरोजगारी और पलायन बढ़ सकता है
भारत का अगला कदम क्या हो सकता है
यह संधि भारत को सिंधु, झेलम और चिनाब पर जलाशय बांध बनाने से रोकती है। हालांकि, भारत जलविद्युत परियोजनाएं विकसित कर सकता है। इसका मतलब है कि परियोजनाएं पानी के प्रवाह को बदल नहीं सकती हैं या इसे बाधित नहीं कर सकती हैं। संधि को निलंबित करने का मतलब है कि भारत इन प्रतिबंधों का पालन नहीं कर सकता है, और पानी के प्रवाह को रोकने के लिए जलाशय बांधों का निर्माण शुरू कर सकता है। इन नदियों पर बड़े जलाशय बनाने में कई साल लग सकते हैं। पारिस्थितिकी प्रभाव को देखते हुए इस तरह की चीज को सफल बनाने के लिए व्यापक सर्वेक्षण और धन की आवश्यकता होगी।
भारत के फैसले पर प्रतिक्रियाएं
भारत सरकार के सिंधु जल संधि निलंबित करने के फैसले पर पाकिस्तान की तरफ से प्रतिक्रियाएं भी आई हैं। पूर्व पाकिस्तानी राजनयिक अब्दुल बासित ने डॉन न्यूज से बातचीत में कहा कि भारत सिंधु जल संधि पर एकतरफा निर्णय नहीं ले सकता है। उन्होंने कहा कि भारत ने संधि निलंबित करने का निर्णय ले लिया है, लेकिन सिंधु, झेलम और चिनाब का पानी रोकने के लिए उसके पास इन्फ्रास्ट्रक्चर नहीं है। उनका कहना है कि पाकिस्तान सरकार को भी फौरी तौर पर ठोस फैसले लेने होंगे और विश्व बैंक को रिपोर्ट करना चाहिए, जिसने सिंध में मध्यस्थता की थी।
वहीं, पाकिस्तान के विदेश मंत्री इसहाक डार ने कहा कि भारत पहले ही सिंधु जल संधि खत्म करना चाह रहा है और पानी रोकने के लिए कुछ वाटर रिजर्व भी बनाए हैं। उन्होंने कहा कि भारत इस संधि का पालन करने के लिए बाध्य है, क्योंकि विश्व बैंक भी इसमें शामिल है।