विशेष
पप्पू यादव और कन्हैया को रोकने के बाद कांग्रेस के भीतर भारी आक्रोश
कांग्रेस कार्यकर्ता इस घटना को बता रहे तेजस्वी के सामने पार्टी का सरेंडर
नमस्कार। आजाद सिपाही विशेष में आपका स्वागत है। मैं हूं राकेश सिंह।
बुधवार को बिहार बंद के दौरान महागठबंधन की भीतर की जो तस्वीर सामने आयी, उसे देखकर तो यही लगता है कि राज्य में सत्तारूढ़ एनडीए को चुनौती देने वाले महागठबंधन के भीतर सब कुछ ठीक नहीं है। महागठबंधन द्वारा आहूत बिहार बंद के दौरान कांग्रेस नेता कन्हैया कुमार और निर्दलीय सांसद पप्पू यादव की राहुल गांधी के सामने जिस तरह से बेइज्जती की गयी, उससे कांग्रेस कार्यकर्ताओं में भारी आक्रोश है। कांग्रेसी तो यहां तक कहने लगे हैं कि पार्टी ने खुद को राजद नेता तेजस्वी यादव के सामने सरेंडर कर दिया है। अब जगह गाड़ी में कम थी या दिल में, यह तो राहुल गांधी जानें, लेकिन पटना में जो हुआ, उसने साफ कर दिया कि कन्हैया कुमार और पप्पू यादव की हैसियत अभी इतनी बड़ी नहीं हो पायी है कि वे अपने सबसे बड़े नेता के अलावा बिहार में महागठबंधन के नेता तेजस्वी यादव के साथ खड़े हो सकें। कहा जा रहा है कि इन दोनों को रथ पर चढ़ने से रोकने के पीछे तेजस्वी यादव थे, क्योंकि राजद नेता का इन दोनों से ‘36’ का रिश्ता किसी से छिपा नहीं है। कन्हैया कुमार और पप्पू यादव को राहुल गांधी के रथ पर सवार होने से रोकने के बाद स्वाभाविक तौर पर बिहार की सियासत गर्म हो गयी है। एक तरफ कांग्रेस के भीतर आक्रोश पैदा हुआ है, तो दूसरी तरफ एनडीए के घटक दल भी हमलावर हो गये हैं। विधानसभा चुनाव के मुहाने पर खड़े बिहार की राजधानी में हुई इस बड़े सियासी घटनाक्रम के पीछे क्या है कहानी और क्या होगा इसका परिणाम, बता रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।
विधानसभा चुनाव के मुहाने पर खड़े बिहार की राजधानी पटना में महागठबंधन की ओर से बुलाये गये बिहार बंद के दौरान नौ जुलाई को एक घटना ने सियासी हलकों में हलचल मचा दी है। कांग्रेस नेता राहुल गांधी और राष्ट्रीय जनता दल के नेता तेजस्वी यादव एक खुले वाहन पर सवार होकर कार्यकर्ताओं को संबोधित कर रहे थे। इस रथ पर महागठबंधन के अन्य प्रमुख नेता, जैसे दीपांकर भट्टाचार्य (भाकपा-माले) और मुकेश सहनी (वीआइपी पार्टी) मौजूद थे। लेकिन इस दौरान कांग्रेस नेता कन्हैया कुमार और पूर्णिया के निर्दलीय सांसद पप्पू यादव को वाहन पर चढ़ने से रोक दिया गया। इन दोनों के साथ धक्का-मुक्की भी की गयी। यह घटना सोशल मीडिया पर वायरल हो गयी और महागठबंधन की एकता पर सवाल उठाने लगी। इस घटना के बाद सवाल उठने लगे हैं कि क्या यह घटना बिहार विधानसभा चुनाव से पहले महागठबंधन की आंतरिक खींचतान को उजागर करती है और क्या इस तरह महागठबंधन बिहार में सत्ता हासिल कर पायेगा। बिहार बंद का आयोजन मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण के विरोध में किया गया था। राहुल गांधी ने इस दौरान आरोप लगाया कि चुनाव आयोग संविधान की रक्षा करने की बजाय भाजपा के लिए काम कर रहा है, जबकि तेजस्वी यादव ने इसे मोदी-नीतीश की दादागिरी करार दिया। इस प्रदर्शन का उद्देश्य विपक्षी एकता का प्रदर्शन करना था, लेकिन कन्हैया कुमार और पप्पू यादव को रथ पर जगह न मिलने ने गठबंधन की एकता पर सवाल खड़े कर दिये। वायरल वीडियो में कन्हैया को रथ से उतरते और पप्पू यादव को सुरक्षाकर्मियों द्वारा रोके जाते देखा जा सकता है। इसने सियासी विश्लेषकों को यह सोचने पर मजबूर कर दिया कि क्या यह तेजस्वी यादव की रणनीति थी।
क्यों रोका गया कन्हैया और पप्पू को
सवाल है कि कन्हैया कुमार और पप्पू यादव को क्यों रोका गया। क्या वजह सिर्फ यह थी कि जिस गाड़ी पर राहुल गांधी सवार थे, उस पर खुद तेजस्वी यादव भी मौजूद थे। अब राहुल गांधी अपनी पार्टी के सबसे बड़े नेता हैं। सियासी शब्दों में कहें तो कांग्रेस के आलाकमान हैं और यही हाल तेजस्वी यादव का भी है। राजद के आलाकमान तो वही हैं। और तेजस्वी से कन्हैया कुमार और पप्पू यादव, इन दोनों की अनबन किसी से छिपी नहीं है।
कन्हैया को देखना नहीं चाहते तेजस्वी
यहां 2019 का लोकसभा चुनाव का वाकया याद आता है। तब कन्हैया भाकपा में हुआ करते थे। बेगूसराय से उम्मीदवार भी थे। भाकपा का राजद के साथ गठबंधन भी था। इसके बावजूद तेजस्वी यादव ने कन्हैया कुमार के खिलाफ उम्मीदवार दिया और नतीजा यह हुआ कि न कन्हैया जीते और न तेजस्वी के तनवीर हसन और बाजी मार ले गये गिरिराज सिंह। यह तेजस्वी और कन्हैया के बीच के द्वंद्व का चरम था, जिसमें कन्हैया के कांग्रेसी बनने के बाद भी कोई कमी नहीं आयी। न तेजस्वी कभी सीधे तौर पर कन्हैया के साथ दिखे और न ही कन्हैया कभी तेजस्वी की तारीफ करते नजर आये। लेकिन 2025 के चुनाव के लिए जो गठबंधन बना है, उसमें कन्हैया तेजस्वी पर नरम दिखे और जब मुख्यमंत्री चेहरे पर सवाल हुआ, तो कन्हैया ने पिछले दिनों ही साफ कर दिया कि तेजस्वी यादव के चेहरे पर कोई भ्रम नहीं है।
पप्पू यादव और लालू यादव का रिश्ता जगजाहिर
पप्पू यादव और लालू यादव की दोस्ती और दुश्मनी की कहानी जगजाहिर है। जब दोनों में दोस्ती थी, तो पप्पू ने वह दोस्ती निभायी, जिसकी मिसाल दी जाती है। और अब जब दुश्मन है, तो तल्खी दिखती है, जिसमें दोस्ती की गुंजाइश बरकरार रहे। इसी गुंजाइश के लिए पप्पू यादव कांग्रेस में शामिल भी हुए, टिकट की कोशिश भी की और जब टिकट नहीं मिला तो निर्दलीय चुनाव जीतकर सांसद बन गये और फिर से कांग्रेस के सुर में सुर मिलाने लगे। लेकिन शायद तेजस्वी से उनके सुर तो अभी नहीं ही मिल रहे हैं।
तेजस्वी को लेकर जोखिम नहीं ले सकते राहुल गांधी
ऐसे में कांग्रेसी सवाल कर रहे हैं राहुल गांधी पर कि उनकी मौजूदगी में उनके दो बड़े नेताओं के साथ ऐसा व्यवहार क्यों हुआ। क्या इसकी सिर्फ एक वजह है कि तेजस्वी यादव इन दोनों ही लोगों को व्यक्तिगत तौर पर पसंद नहीं करते हैं और राहुल गांधी बिहार में तेजस्वी के साथ अपने संबंधों को लेकर कोई जोखिम नहीं ले सकते हैं। क्या पहले कन्हैया और फिर पप्पू यादव को राहुल गांधी की गाड़ी से राहुल गांधी की सहमति से ही दूर रखा गया, ताकि तेजस्वी नाराज न हों और गठबंधन पर कोई प्रतिकूल प्रभाव न पड़े। यह बहुत हद तक मुमकिन है कि एक बड़े लक्ष्य को हासिल करने के लिए छोटी-छोटी कुर्बानियां देनी पड़ती हैं। और कन्हैया-पप्पू को गाड़ी से दूर रखना कोई इतनी भी बड़ी बात नहीं है, लेकिन अगर ऐसा करना था, अगर यही होना था तो कन्हैया और पप्पू यादव को अकेले में समझाया जा सकता था, बताया जा सकता था, बड़ी लड़ाई के लिए समझौता करने को तैयार किया जा सकता था। वो मान भी जाते, उस गाड़ी के पास फटकते भी नहीं। भीड़ का बहाना भी बन ही जाता और उनकी सार्वजनिक छवि को कोई नुकसान भी नहीं पहुंचता। लेकिन गाड़ी के पास पहुंच कर भी वहां न पहुंच पाना और इस पूरे वाकये का वीडियो में कैद हो जाना कन्हैया कुमार और पप्पू यादव की राजनीति को बहुत हद तक कमजोर करेगा। दोनों नेता चाहे जो तर्क दें, अपने नेता के बचाव में चाहे जो सफाई पेश करें, लेकिन वो वीडियो तो गवाह हैं ही और हमेशा ही रहेंगे।
कन्हैया और पप्पू यादव की हैसियत
कन्हैया कुमार जेएनयू छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष रहे हैं। बिहार में कांग्रेस के युवा चेहरे के रूप में उभरे हैं। वह कांग्रेस के छात्र संगठन एनएसयूआइ के प्रभारी हैं और कांग्रेस कार्यसमिति में विशेष आमंत्रित सदस्य भी हैं। उनकी ‘नौकरी दो, पलायन रोको यात्रा’ ने युवाओं और बेरोजगारों के बीच खासी लोकप्रियता हासिल की थी। दूसरी ओर पप्पू यादव कोसी-सीमांचल क्षेत्र में अपने सामाजिक आधार के लिए जाने जाते हैं। 2024 के लोकसभा चुनाव में उन्होंने पूर्णिया से निर्दलीय जीत हासिल की। उन्होंने राजद की उम्मीदवार बीमा भारती को हराया। दोनों नेताओं की बढ़ती सक्रियता राजद और विशेष रूप से तेजस्वी यादव के लिए असहजता का कारण बन रही है। जानकारों का कहना है कि तेजस्वी को कन्हैया और पप्पू की लोकप्रियता से खतरा महसूस हो रहा है, खासकर तब जब बिहार विधानसभा चुनाव नजदीक है।
तेजस्वी की रणनीति
सियासी हलकों में चर्चा है कि तेजस्वी यादव ने इस घटना के जरिये अपनी ताकत दिखाने की कोशिश की। राजद का एमवाइ (मुस्लिम-यादव) समीकरण उसकी सबसे बड़ी ताकत है और तेजस्वी नहीं चाहते कि कन्हैया या पप्पू यादव की लोकप्रियता इस समीकरण को कमजोर करे। पप्पू यादव ने हाल ही में दावा किया कि अगर 2024 में तेजस्वी ने उनका साथ दिया होता, तो महागठबंधन मजबूत होता और शायद राहुल गांधी प्रधानमंत्री बन सकते थे। यह बयान तेजस्वी और पप्पू के बीच पुरानी अदावत को और उजागर करता है।
कांग्रेस के लिए जटिल स्थिति
कांग्रेस के लिए यह स्थिति और जटिल है। पार्टी बिहार में अपनी पहचान मजबूत करने की कोशिश कर रही है और कन्हैया को इसके लिए एक बड़ा चेहरा माना जा रहा है। लेकिन तेजस्वी की अगुवाई में राजद का दबदबा कांग्रेस को सीमित कर रहा है। जानकारों का कहना है कि राजद ने कांग्रेस को साफ संदेश दिया है कि अगर कन्हैया को ज्यादा बढ़ावा दिया गया, तो महागठबंधन में सीट बंटवारे पर फिर से विचार हो सकता है। सोशल मीडिया पर इस घटना पर तीखी प्रतिक्रिया आयी है। कुछ लोगों ने इसे तेजस्वी की तानाशाही करार दिया, तो कुछ ने कांग्रेस पर परिवारवाद और फोटो-आॅप की राजनीति का आरोप लगाया। एक पोस्ट में कहा गया कि तेजस्वी ने राहुल के सामने अपनी ताकत दिखायी, जिससे महागठबंधन की एकता पर सवाल उठ रहे हैं।
महागठबंधन के लिए चेतावनी
यह घटना महागठबंधन के लिए एक चेतावनी है। अगर गठबंधन के भीतर ऐसी खींचतान जारी रही, तो 2025 के विधानसभा चुनाव में एनडीए को फायदा हो सकता है। तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री उम्मीदवार घोषित करने की चर्चा चल रही है, लेकिन कांग्रेस के भीतर इस पर सहमति नहीं है। कन्हैया और पप्पू जैसे नेताओं को किनारे करना गठबंधन की एकता को कमजोर कर सकता है।