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    Home»Top Story»सरना और सनातन की आस्था का केंद्र है तपिंगसरा का सूमीदान सरना मठ
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    सरना और सनातन की आस्था का केंद्र है तपिंगसरा का सूमीदान सरना मठ

    shivam kumarBy shivam kumarJuly 24, 2025Updated:July 24, 2025No Comments3 Mins Read
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    खूंटी। कहा जाता है कि झारखंड के कंकड़-कंकड़ में भोलेनाथ का वास है। यही कारण है कि यहां पहाड़ों, कंदराओं, गुफाओं, खेतों, नदियों और पेड़ों पर भी बाबा भोलेनाथ के दर्शन हो जाते हैं। ऐसे ही लोगों की आस्था का महत्वपूर्ण केंद्र है खूंटी और पश्चिमी सिंहभूम जिले की सीमा पर मुरहू प्रखंड के तपिंगसरा गांव के टेवांगड़ा में स्थित सूमीदान सरना मठ। सूमीदार ने सिर्फ सरना आदिवासी समुदाय की आस्था और भक्ति का प्रमुख केंद्र हैं, बल्कि गैर आदिवासी भी यहां भारी संख्या में पूजा-अर्चना के लिए यहां पहुंचते है। हालांकि यहां का रास्ता कठिन और जोखिम भरा है। घने जंगलों और पहाड़ियों के बीच बसे इस मठ में सदियों से स्वंयभू शिवलिंग की पूजा-अर्चना होती आ रही है।

    मान्यता है कि यहां
    शिव और पार्वती अर्धनारीश्वर के रूप में विराजमान हैं। मठ में पूजा-अर्चना के लिए दूर दराज से श्रद्धालु पहुंचते हैं, विशेष रूप से मंगलवार और श्रावण मास के प्रत्येक सोमवार को यहां भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है। गांव के लोग बताते हैं कि वर्षों पहले अड़की के नरकागड़ा गांव के बुजुर्ग जन्मजात सुरदास चुरन नाग (अब दिवंगत), थे। उन्हें कुछ भी दिखाई नहीं देता था। इसके बावजूद वे हर मंगलवार को अपने सपरिवार सदस्यों के साथ जंगलों और पहाड़ों को पार कर पैदल सूमीदान मठ पहुंचते थे और श्रद्धा के साथ पूजा करते थे। गांव के बड़े-बुजुर्ग बताते है कि यह तपिंगसरा गांव के पतरस नामक व्यक्ति को बाबा भोलनाथ ने स्वप्न में तीन बार दर्शन दिये और बताया कि वे तपिंगसरा गांव में हूं। यहा आकर खुदाई कराओ और पूजा-अर्चना करो। टेवागड़ा में खुदाई करो। दूसरे ही दिन पतरस ने गांव वालों के सहयोग से वहां खुदाई का काम शुरू किया। खुदाई के दौरान जब उनका सबल एक पत्थर में फंस गया। बाद में पतरस वहां वे पूजा सामग्री लेकर पुनः पहुंचे, तो उन्हें शिवलिंग के दर्शन हुए। यह घटना 1963-64 की बताई जाती है। इसके बाद वे उस स्थान पर लगातार पूजा-अर्चना करने लगे और धीरे-धीरे वह स्थान प्रसिद्ध धार्मिक स्थल के रूप में विख्यात हो गया। दिवंगत बिरसिंग मुंडरी भी वहां हर दिन पूजा-अर्चना करते थे। गांव के लोग बताते हैं कि जब भी वे बिरसिंग मुंडारी मठ के पास जाते, तो उन्हें नींद आ जाती थी। नींद में उन्हें भगवान शिव के दर्शन होते और वे निर्देश देते थे। इन दिव्य अनुभवों के बाद बिरसिंग ने पहले सात दिन, फिर 21 दिन का उपवास कर कठोर साधना की थी। तमाम बाधाओं के बावजूद साधना पूरी कर उन्होंने लगातार 108 दिनों तक शिवलिंग का जलाभिेषेक किया था और वे आजीवन शिव-पार्वती की भक्ति में लीन रहे। देवागड़ा तपिंगसरा सहित आसपास के आदिवासी समुदाय की आस्था और विश्वास का बहुत बड़ा केंद्र है। गांव वालों का विश्वास है कि महादेव की कृपा से उन्हें हर प्रकार की सुरक्षा मिलती है और उनकी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। मठ न सिर्फ एक धार्मिक स्थल है, बल्कि यह क्षेत्रीय सांस्कृतिक चेतना और श्रद्धा का प्रतीक भी है।

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