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    Home»दुनिया»इस्लामाबाद हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश डोगर के खिलाफ पांच जजों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की
    दुनिया

    इस्लामाबाद हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश डोगर के खिलाफ पांच जजों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की

    shivam kumarBy shivam kumarSeptember 20, 2025No Comments4 Mins Read
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    इस्लामाबाद। इस्लामाबाद उच्च न्यायालय के पांच जज अभूतपूर्व कदम उठाते हुए शुक्रवार को व्यक्तिगत रूप से उच्चतम न्यायालय पहुंचे। सभी ने अलग-अलग संवैधानिक याचिका दायर की। पांचों ने इस्लामाबाद उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश सरदार मोहम्मद सरफराज डोगर के कई प्रशासनिक कदमों को चुनौती दी है। याचिका दायर करने वाले न्यायाधीशों में मोहसिन अख्तर कयानी, बाबर सत्तार, तारिक महमूद जहांगीरी, सरदार एजाज इशाक खान और समन रफत इम्तियाज शामिल हैं। इन्होंने 11 मांग की हैं।

    द एक्सप्रेस ट्रिब्यून की एक रिपोर्ट के अनुसार, यह याचिकाएं संविधान के अनुच्छेद 184(3) के तहत दायर की गई हैं। न्यायमूर्ति जहांगीरी को न्यायिक कार्य से रोकने वाले उच्च न्यायालय के आदेश को रद्द करने की मांग प्रमुख है। 16 सितंबर को मुख्य न्यायाधीश डोगर और न्यायमूर्ति मोहम्मद आजम खान की खंडपीठ ने न्यायमूर्ति जहांगीरी पर संदिग्ध एलएलबी डिग्री रखने का आरोप लगाते हुए एक क्वो वारंटो याचिका पर सुनवाई करते हुए उन्हें अपने कर्तव्यों का निर्वहन करने से रोक दिया था।

    साथ ही खंडपीठ ने पाकिस्तान के अटॉर्नी जनरल (एजीपी) मंसूर अवान से भी इस प्रश्न पर सहायता मांगी कि क्या याचिका विचारणीय है। पीठ ने वरिष्ठ अधिवक्ता बैरिस्टर जफरुल्लाह खान और अश्तर अली औसाफ को न्यायमित्र भी नियुक्त किया। पीठ ने कहा कि जब तक सर्वोच्च न्यायिक परिषद और न्यायाधीशों का जवाबदेही मंच इस मामले का फैसला नहीं कर लेता, तब तक न्यायाधीश जहांगीरी मामलों को नहीं देख सकते।

    इस्लामाबाद उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों ने उच्चतम न्यायालय से कहा कि किसी उच्च न्यायालय के न्यायाधीश को केवल संविधान के अनुच्छेद 209 के तहत ही न्यायिक कर्तव्यों के निर्वहन से रोका जा सकता है। उन्होंने तर्क दिया कि किसी न्यायाधीश को पद से हटाने की मांग करने वाली क्वो-वारंटो याचिका संविधान के अनुच्छेद 199(1) के साथ अनुच्छेद 209(7) के अनुसार विचारणीय नहीं है।

    अपनी याचिका में न्यायमूर्ति जहांगीरी ने 16 सितंबर के आदेश को अनुच्छेद 10-ए के तहत अपने मौलिक अधिकारों का उल्लंघन बताया। सूत्रों ने बताया कि न्यायाधीश की याचिका को डायरी संख्या 23409 दी गई है और वह उच्चतम न्यायालय में स्वयं अपना पक्ष रख सकते हैं। याचिकाकर्ताओं ने उच्चतम न्यायालय से यह भी अनुरोध किया कि वह घोषित करे कि प्रशासनिक शक्तियों का प्रयोग उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की न्यायिक शक्तियों को कमजोर करने या उन पर हावी होने के लिए नहीं किया जा सकता है और एक बार जब कोई मामला किसी पीठ के पास पहुंच जाता है तो मुख्य न्यायाधीश को पीठ गठित करने या मामलों को स्थानांतरित करने का अधिकार नहीं है।

    पांचों जजों ने न्यायालय से यह भी घोषित करने का आग्रह किया कि किसी उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश अपनी इच्छानुसार उपलब्ध न्यायाधीशों को रोस्टर से बाहर नहीं कर सकते और न्यायाधीशों को न्यायिक कार्य करने से रोकने के लिए रोस्टर जारी करने की शक्ति का प्रयोग नहीं कर सकते। उच्चतम न्यायालय से यह घोषणा करने का आग्रह भी किया गया है कि राजा आमेर खान बनाम पाकिस्तान संघ सहित अन्य निर्णयों में ‘रोस्टर के स्वामी’ के सिद्धांत को रद्द कर दिया गया है और पीठों के गठन, मामलों के स्थानांतरण या रोस्टर जारी करने के संबंध में निर्णय लेने का अधिकार केवल मुख्य न्यायाधीश के हाथों में नहीं हो सकता।

    न्यायाधीशों ने उच्चतम न्यायालय से यह भी अनुरोध किया कि वह तीन फरवरी 2025 और 15 जुलाई 2025 की अधिसूचनाओं के माध्यम से इस्लामाबाद उच्च न्यायालय प्रशासन समितियों के गठन और उनके द्वारा की गई सभी कार्रवाई को अवैध घोषित करे। उल्लेखनीय है कि इस्लामाबाद उच्च न्यायालय के इन्हीं न्यायाधीशों ने इस वर्ष फरवरी में न्यायमूर्ति डोगर सहित तीन न्यायाधीशों के अन्य उच्च न्यायालयों से इस्लामाबाद उच्च न्यायालय में स्थानांतरण का विरोध किया था।

    तत्कालीन इस्लामाबाद उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश आमिर फारूक ने इन जजों के अभ्यावेदन को अस्वीकार कर दिया था। इसके बाद इन न्यायाधीशों ने उच्चतम न्यायालय का दरवाजा खटखटाया। उच्चतम न्यायालय की संवैधानिक पीठ ने 20 जून को उनकी याचिकाएं खारिज कर दीं। इस आदेश के विरुद्ध न्यायाधीशों की अंतर-न्यायालयीय अपील अभी भी लंबित है। 26 मार्च 2024 को याचिकाकर्ता न्यायाधीशों सहित छह इस्लामाबाद उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों ने पाकिस्तान की सर्वोच्च न्यायिक परिषद को एक पत्र लिखा था, जिसमें न्यायिक मामलों में एक खुफिया एजेंसी के हस्तक्षेप का आरोप लगाया गया था। पत्र में न्यायाधीशों पर उनके रिश्तेदारों के अपहरण, यातना और उनके आवासों में गुप्त निगरानी के माध्यम से दबाव डालने के उदाहरणों का उल्लेख किया गया था।

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