रांची। लोकसभा चुनाव की आहट के साथ ही झारखंड में राजनीति के नये-नये रंग सामने आ रहे हैं। झारखंड में महागठबंधन की कवायद परवान पर है। लोकसभा चुनाव से पहले कांग्रेस चाहती है कि भाजपा को रोकने के लिए मजबूत महागठबंधन हो। यह भी सत्य है कि अगर महागठबंधन होता है, तो विपक्ष की शक्ति बढ़ेगी, वहीं दलों के अस्तित्व पर संकट भी गहरायेगा। मुख्यत: कांग्रेस, झाविमो और राजद पिछले चार साल से मुख्यधारा में लौटने की कोशिश कर रहे हैं।
झाविमो और राजद की ओर से महागठबंधन की मजबूती के लिए की जा रही वकालत इसी का हिस्सा है। कांग्रेस भी लगातार झाविमो और राजद के साथ कदमताल मिलाये हुए है। कांग्रेस, झाविमो और राजद में टूट नहीं हुई है, तो इसके पीछे कार्यकर्ताओं का यही विश्वास है कि पार्टी की झारखंड में राजनीतिक पकड़ है। उन्हें लगता है कि भविष्य में वे भी सांसद-विधायक बन सकते हैं।
इसमें कोई दो राय नहीं कि झामुमो को लेकर विपक्ष का महागठबंधन बनता है, तो कांग्रेस, झाविमो और राजद के नेता-कार्यकर्ताओं के मंसूबे तार-तार हो जायेंगे। बता दें कि अभी तक महागठबंधन में झामुमो अकेले 81 में से 40 सीट की मांग कर रहा है। ऐसे में महागठबंधन में शामिल अन्य दलों को 41 सीटों में बंटवारा करना होगा। जो किसी भी दल को मान्य नहीं होगा। पिछले चुनाव की बात करें तो झामुमो के इसी रवैये के कारण महागठबंधन नहीं बन पाया था। पिछली बार झामुमो 40 सीट से कम पर मानने को तैयार नहीं हुआ। इस बार भी झामुमो उसी हिसाब से काम कर रहा है। आजसू को अभी छोड़ भी दें, तो यदि झामुमो को साथ लेकर महागठबंधन होता है, तो कांग्रेस के हिस्से में सिर्फ 15-16 सीट ही आयेगी। झाविमो को भी 10 से 12 सीटों पर संतोष करना पड़ेगा। राजद के हिस्से आठ से 10 सीट का हिसाब आयेगा। वामपंथियों की सहभागिता के बिना महागठबंधन कामयाब नहीं होगा। ऐसे में भाकपा माले को कम से कम दो सीटें चाहिए होंगी और एक सीट मासस को देनी ही पड़ेगी। राजद को दल बचाने के लिए हर हाल में 10 सीट चाहिए ही।
राजद में अन्नपूर्णा देवी, गिरिनाथ सिंह, संजय कुमार सिंह यादव, सुरेश पासवान, संजय प्रसाद यादव, मनोज भुइयां, रामचंद्र सिंह चेरो, जनार्दन पासवान को इग्नोर नहीं किया जा सकता है। भले ही इनमें से अभी कोई विधायक नहीं है लेकिन अपने-अपने क्षेत्र में इनकी पकड़ आज भी सबसे मजबूत हैं। पिछले चुनाव में ये दूसरे स्थान पर थे। इन्हें किनारे कर लालू यादव महागठबंधन की सोच भी नहीं सकते। यदि लालू दवाब में कोई कदम भी उठाते हैं तो झारखंड में उनकी पार्टी का सत्यानाश हो जायेगा। पिछले 18 वर्षों में यह देखा गया कि सभी दल के नेता टूटे, लेकिन राजद हमेशा एकजुट रहा। बहुत बार राजद को तोड़ने की कोशिश हुई, सफलता नहीं मिली।
महागठबंधन में झामुमो को दरकिनार किया जाता है, तो सीटों के बंटवारे में भी परेशानी नहीं होगी। राजनीतिक गलियारे में यह बात जोर पकड़ रही है कि महागठबंधन में झामुमो को किनारे कर आजसू को साथ लिया जाये। इस विकल्प पर सभी को हर लिहाज से फायदा दिख रहा है। सबसे बड़ी बात, जो सीटों के बंटवारे का पेंच झामुमो के महागठबंधन में रहते फंस रहा है, उसका समाधान हो जायेगा। झामुमो को दरकिनार करने से सीटों का बंटवारा आसानी से हो जायेगा। यह कटु सत्य है कि महागठबंधन नहीं भी होता है, तो कांग्रेस पार्टी को 10 से 12 सीट मिल सकती है। उसी तरह बाबूलाल, जिन्हें सीटों का कारखाना माना जाता है, 8 से 10 सीट निकालना उनके लिए कोई मुश्किल नहीं है।
पिछले विधानसभा चुनाव परिणाम ने इस बात को स्थापित कर दिया था।
बाबूलाल की पार्टी से आधा दर्जन के करीब विधायकों को भाजपा ने चुनाव से पहले अपने पाले कर लिया था, इसके बाद भी झाविमो ने आठ सीटों पर जीत दर्ज की थी। सांगठनिक कार्यक्रमों की बात करें तो विपक्ष में आज भी झाविमो का ही ज्यादा कार्यक्रम होता है और हर बार टूट कर भी यह पार्टी मजबूती से अपनी उपस्थिति दर्ज कराती है। राजद भी बिना गठबंधन तीन से चार सीट निकाल सकता है। खासकर अन्नपूर्णा देवी के प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद से पार्टी में जान आयी है और लगातार कार्यक्रम भी किये जा रहे हैं।
महागठबंधन में आने से आजसू को भी फायदा नजर आ रहा है। पार्टी सूत्रों का कहना है कि पिछले चुनाव में भाजपा से गठबंधन करने पर आजसू को हर स्तर पर नुकसान हुआ। एक तो कम सीट पर समझौता हुआ। इसके कारण कार्यकर्ताओं में नाराजगी हुई और गलत संदेश भी गया। दूसरा आजसू की मजबूत सीटें उसे नहीं दी गयीं। परिणाम यह हुआ कि उसके दो-दो संभावित विधायक पार्टी से छिटक गये और नवीन जयसवाल ने झाविमो से और योगेंद्र प्रसाद ने झामुमो से विजय पताका फहरा दिया। इस बार आजसू में यह बात जोरों पर चल रही है कि गठबंधन करें तो जीतने के लिए न कि पार्टी को तोड़ने के लिए। आजसू विपक्ष के महागठबंधन में शामिल होता है तो 15 से 20 सीट पर दावेदारी कर सकती है और बहुत संभावना है कि आजसू को 15 सीट मिल भी जाये। आजसू के महागठबंधन में शामिल होने पर कोई विवाद भी नहीं होगा।
झामुमो कोे दरकिनार कर आजसू के साथ महागठबंधन करन पर 25 से 30 सीट कांग्रेस, 20 से 22 सीट झाविमो, 15-20 सीट आजसू, 8 से 10 सीट राजद और तीन सीट वामपंथी के कोटे में रखकर गठबंधन का स्वरूप तैयार किया जा सकता है। कांग्रेस पार्टी का मुख्य फोकस लोकसभा चुनाव है। लोकसभा में कांग्रेस को ज्यादा सीटें चाहिए। इस महागठबंधन में कांग्रेस आसानी से अपने खाते में आठ सीटें रख सकती है और बाकी बची छह सीटों को अपने सहयोगियों के बीच बांट सकती है। लोकसभा में किसी तरह की मारामारी नहीं होगी। सबसे बड़ी बात तो यह है कि कांग्रेस और राजद का पारंपरिक गठबंधन है। आजसू और झाविमो ऐसी पार्टी है, जिसके वोटर पार्टी की लाइन पर काम करते हैं। यानि झामुमो के साथ महागठबंधन करने पर वोट के विखराव का जो खतरा महागठबंधन पर मंडरा रहा था, वह भी नहीं रहेगा। लोकसभा में झाविमो को दो, आजसू को दो और राजद को दो सीट देकर बाकी आठ सीट कांग्रेस अपने पास रख सकती है। वैसे कांग्रेस, झाविमो और राजद को यह पता है कि लोकसभा चुनाव से पहले झारखंड में बड़ा धमाका होगा। इतना बड़ा धमाका होगा कि झामुमो संभल नहीं पायेगा।