ज्ञान रंजन
रांची। भाजपा के दीपक प्रकाश, सत्येंद्र मल्लिक, रमेश पुष्कर, तो कांग्रेस के अनादि ब्रह्म, शशि भूषण राय, झामुमो के सुप्रियो भट्टाचार्या, बिनोद पांडेय, राजद के अनिल सिंह आजाद का नाम ऐसे नेताओं में शुमार है। इन नेताओं ने अपनी जिंदगी पार्टी का झंडा ढोने में खपा दी, लेकिन एक टिकट तक नहीं मिला। झारखंड की राजनीति ने ऐसे नेता सभी पार्टियों में मिलेंगे। भाजपा, कांग्रेस हो या राज्य की क्षेत्रीय पार्टियां झामुमो, राजद सभी में ऐसे नेताओं की लंबी फेहरिस्त है। एक मशहूर गाना है- अच्छा सिला दिया तूने मेरे प्यार का, यार ने ही लूट लिया घर यार का। इन नेताओं ने जीवन का स्वर्णिम समय पार्टी हित में खपा दिया, लेकिन जब-जब चुनाव का समय आया, पार्टी ने ऐसे नेताओं की सुध नहीं ली। संगठन को मजबूत करने में इन नेताओं की काबिलियत की पूछ हुई, लेकिन चुनाव के समय इन नेताओं को दूध में पड़ी मक्खी की तरह निकालकर फेंक दिया गया। देश की सबसे बड़ी पार्टी भाजपा में ऐसे नेताओं की लिस्ट सबसे बड़ी है। भाजपा में प्रदेश महामंत्री दीपक प्रकाश, सत्येंद्र मल्लिक, लक्ष्मीकांत दीक्षित, रमेश पुष्कर, प्रेम कटारुका, उमाशंकर केडिया, प्रेम मित्तल, प्रदीप सिन्हा, धनीराम साहू, डॉ समर सिंह, बीके नारायण, अरविंद सिंह, मधुराम साहू सहित दर्जनों ऐसे नेता हैं, जिन्होनें पार्टी के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया।
सभी पार्टियों में हैं ऐसे नेताओं की लंबी फेहरिस्त
बात करते हैं भाजपा के प्रदेश महामंत्री दीपक प्रकाश की। भाजपा के स्थापना काल से ही दीपक प्रकाश पार्टी में सक्रीय रहे। संगठन को मजबूत करने में इनके योगदान को कम नहीं आंका जा सकता है। अटल-आडवाणी के समय भाजपा का थिंक टैंक कहे जानेवाले गोविंदाचार्य और पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी के साथ मिल कर झारखंड में भाजपा की जमीन तैयार करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया। एकीकृत बिहार के समय से ही दक्षिणी बिहार में भाजपा की नींव कैसे मजबूत हो, इसके लिए इन्होंने अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया। एक समय था जब टिकट बंटवारे में इनसे पार्टी राय लेती थी, लेकिन कभी भी अपने लिए इन्होंने टिकट नहीं मांगी। बस भाजपा को झारखंड में मजबूत करने का उद्देश्य से काम करते रहे। संगठन में इनकी जबरदस्त पकड़ थी। राष्ट्रीय नेतृत्व में पहले की बात तो दूर, आज भी इनकी जबरदस्त पहचान है। 80 के दशक से लेकर आज तक संगठन का काम देख रहे हैं। बीच में भले ही कुछ समय के लिए इन्होंने भाजपा का दामन छोड़ा था, लेकिन पुन: भाजपा में वापसी कर संगठन के काम में जुट गये। कभी पद के लिए लड़ाई में नहीं रहे। आज भी संगठन में सबसे मजबूत हैं। कभी टिकट की मांग नहीं की। दुर्भाग्य है कि इन्हें पार्टी ने आज तक टिकट नहीं दिया। पिछली बार राज्यसभा चुनाव के समय इनका नाम सामने आया था, मगर यहां भी इन्हें टिकट नहीं मिला। मगर दीपक प्रकाश ने पार्टी के खिलाफ एक शब्द नहीं कहा।
पार्टी के गठन के समय से ही गामा सिंह भाजपा से जुडे थे
झारखंड भाजपा में ऐसे ही एक और नेता थे गामा सिंह। पार्टी के गठन के समय से ही गामा सिंह भाजपा से जुडे रहे। रांची महानगर अध्यक्ष के रूप में इनके कार्यकाल को आज भी पार्टी के नेता याद करते हैं। सांगठनिक रूप से देखा जाये, तो इन्होंने संगठन को मजबूत करने के लिए बढ़-चढ़ कर काम किया। ऐसे ही नेताओं के बदौलत राजधानी और आसपास की सीटें लंबे समय तक भाजपा के कब्जे में रही। दुर्भाग्य यह रहा कि पार्टी ने कभी भी इन्हें सांसद या विधायक के लायक नहीं समझा। पार्टी का काम करते-करते वह आज इस दुनिया को छोड़ चुके हैं।
भाजपा की स्थापना काल से ही पार्टी का झंडा ढो रहे मल्लिक
भाजपा के एक और नेता हैं सत्येंद्र मल्लिक। जयप्रकाश आंदोलन से राजनीति में जुड़े मल्लिक भाजपा की स्थापना काल से ही पार्टी का झंडा ढो रहे हैं। कभी पद की कामना नहीं की। पार्टी ने जो कार्य सौंपा, उसे ईमानदारी के साथ कर रहे हैं। इनका भी नाम कभी विधानसभा, लोकसभा या अन्य चुनाव के लिए नहीं आया। रमेश पुष्कर, प्रेम कटारुका, प्रेम मित्तल, डॉ समर सिंह, उमाशंकर केडिया, अरविंद सिंह, प्रदीप सिन्हा, धनीराम साहू, मधुराम साहू, डॉ समर सिंह, बीके नारायण, लक्ष्मीकांत दीक्षित सहित दर्जनों ऐसे नेता हैं जिन्होंने भाजपा को शुरुआत समय से झारखंड में सींचने का कम किया है। जब झारखंड में भाजपा का आधार नहीं तैयार हुआ था। इनमें से कई नेता अपनी जवानी पार्टी को खड़ा करने में लगा दी। नतीजा है कि आज भाजपा राज्य में सबसे मजबूत स्थिति में है, लेकिन इन नेताओं की स्थिति कैसी है, इस पर ध्यान देनेवाला कोई नहीं है। पार्टी में जब-जब इन्हें जिम्मेदारी दी गयी ईमानदारी से उसे निभाया।
कभी भी नहीं की डिमांड
प्रदेश प्रवक्ता के रूप में उमाशंकर केडिया, प्रेम कटारुका, रमेश पुष्कर, प्रेम मित्तल, प्रदीप सिन्हा ने अपने समय में सराहनीय काम किया। कभी पार्टी से कोई पद की डिमांड नहीं की। झारखंड में भले ही गठबंधन में ही भाजपा नेतृत्व की लंबे समय तक सरकार रही, लेकिन इन नेताओं ने कभी भी सरकारी पद की मांग नहीं की। सच्चाई यह है कि पिछले दो चुनावों से यह देखा जा रहा है कि दूसरी पार्टी को छोड़ भाजपा में शामिल होनेवाले नेताओं को पार्टी खुशी-खुशी टिकट दे रही है। आज भी आधा दर्जन से ज्यादा विधायक भाजपा में ऐसे हैं, जो कभी भाजपा के सदस्य नहीं थे, लेकिन उन्हें पार्टी ने दूसरी पार्टी छोड़कर आने का उपहार टिकट देकर दिया। इसके बावजूद भी इन नेताओं ने पार्टी के खिलाफ जबान नहीं खोली।
सुप्रियो और बिनोद हमेशा रहे पार्टी के लिए वफादार
झामुमो: झारखंड की दूसरी सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी झामुमो की बात करें, तो भाजपा और कांग्रेस से कम इस पार्टी में भी ठगे जानेवाले नेताओं की कमी नहीं है। सुप्रियो भट्टाचार्य हों या बिनोद पांडेय अन्य, सभी ने झामुमो का झंडा ढोने में अपना समय बिताया है। झारखंड अलग राज्य बने 18 साल हो गये, इन नेताओं को कभी भी पार्टी की तरफ से चुनाव में नहीं उतारा गया। कभी गठबंधन के नाम पर तो कभी कुछ, इनका नाम कटता रहा। यह सच है कि शहरी क्षेत्र में झामुमो की पकड़ भाजपा और कांग्रेस से कमजोर है, लेकिन झारखंड अलग राज्य बनने के बाद आधे दर्जन से ज्यादा बार राज्यसभा के चुनाव हुए। झामुमो हमेशा इस स्थिति में था कि वह कम से कम राज्यसभा चुनाव में एक प्रत्याशी को खड़ा कर सकता था। झामुमो के टिकट पर कई बाहरी प्रत्याशी राज्यसभा गये, मगर जिन्होंने अपना सबकुछ पार्टी के लिए खपा दिया, उन्हें कभी राज्यसभा चुनाव के लिए पार्टी ने उपयुक्त नहीं समझा। आज भी ये नेता नि:स्वार्थ भाव से पार्टी-संगठन के लिए काम कर रहे हैं।
राजद: 90 के दशक में एकीकृत बिहार में राजद की तूती बोलती थी। राजद प्रमुख लालू यादव का ऐसा जलवा था कि वह जिसे चाहते थे लोकसभा या विधानसभा भेज देते थे। जब राजद, जनता दल के रूप में था, उसी समय से झारखंड में अनिल सिंह आजाद पार्टी के लिए समर्पित रहे। युवावस्था को राजद के नाम समर्पित कर दिया। लेकिन इन्हें एक बार भी पार्टी ने लोकसभा या विधानसभा के लायक नहीं समझा। आज भी अनिल सिंह आजाद राजद के लिए समर्पित हैं।