नये साल में भी पारा शिक्षकों की समस्या का नहीं हुआ समाधान, तो , तो भाजपा को पड़ेगा भारी
शिक्षा सचिव महोदय, सवाल 67 हजार का नहीं, 67 लाख लोगों का है
रघुवर सरकार की सेवा के चार साल पर कहीं पानी न फेर दें अधिकारी
विधायक–सांसद पारा शिक्षक का महत्व जानते हैं, लेकिन अधिकारियों ने बना दी मुंछ की लड़ाई, पिस रहे गरीब मासूम
रांची। नया साल-2019 में भी पारा शिक्षकों की समस्या का समाधान नहीं हुआ, तो भाजपा की मुश्किलें बढ़ सकती हैं। कारण लोकसभा और विधानसभा का चुनाव भी होनेवाला है। लोकसभा का चुनाव मई के पहले हो जाना है। ऐसे में पारा शिक्षकों की हड़ताल 14 सीट जीतने की राह में रोड़ा पैदा कर देगा। इस बात को सांसद और नेता बखूबी जानते हैं, इसलिए वह पारा शिक्षक के पक्ष पर खड़े दिखायी पड़ रहे हैं। लेकिन शिक्षा विभाग के अधिकारियों ने इसे मुंछ की लड़ाई बना दी है। इसका खामियाजा पारा शिक्षकों के साथ पढ़नेवाले गरीब मासूम के अलावा उनके परिजन भी भुगत रहे हैं। शिक्षा सचिव को यह समझना चाहिए कि सवाल सिर्फ 67 हजार पारा शिक्षकों का नहीं है। अगर हम एक पारा शिक्षक पर औसतन 20 बच्चे को अटैच करते हैं और इनके इन बच्चों के घर में औसतन पांच लोगो को जोड़ते हैं, तो यह संख्या 67 लाख पहुंच जाती है। आज शिक्षा विभाग की लापरवाही का दंश 67 लाख लोग झेल रहे हैं। वैसे, इन अधिकारियों को गरीबों से क्या वास्ता। ये गरीबी का दंश क्या जानते हैं। इनको समझना चाहिए कि इनके बच्चे अगर एक दिन स्कूल नहीं जाते हैं, तो कैसे इनकी चिंता बढ़ने लगती है। गरीब बच्चों की विगत 16 नवंबर से
पढ़ाई बंद है। इसके बाद भी अधिकारी टस से मस नहीं हो रहे हैं। अगर ऐसा ही रहा, तो रघुवर सरकार की चार साल की उपलब्धि को ये अधिकारी मटियामेट कर देंगे।
अधिकारियों की कार्यशैली से आप भी अंदाजा लगा सकते हैं कि ये अधिकारी 67 लाख लोगों की चिंता को लेकर कितने चिंतित हैं। इन्हें यह समझना होगा कि लोकतंत्र में आंदोलन करने का अधिकार सबको है। इसके बावजूद स्थापना दिवस के पहले अधिकारियों ने पारा शिक्षकों को हायतौबा मचा दिया। कारण पारा शिक्षकों ने स्थापना दिवस पर विरोध का निर्णय लिया था। अधिकारियों ने मोरहाबादी मैदान को अ•ोद सुरक्षा किला बना दिया था। इसके बावजूद जब पारा शिक्षक स्थापना दिवस समारोह में आ गये, तो लाठीचार्ज और आंसू गैस के गोले दागे गये। नतीजतन 16 नवंबर से पारा शिक्षक हड़ताल पर चले गये। सांसद–विधायकों के घर के सामने धरना प्रदर्शन करने लगे। इसमें एक दर्जन पारा शिक्षकों की मौत तक हो गयी। दूसरी बार अधिकारियों की लापरवाही तब झलकी, जब पारा शिक्षकों को वार्ता के लिए बुलाया गया। उस वक्त सिर्फ शिक्षा सचिव ने निमंत्रण तो दिया, लेकिन स्थान, समय और कौन–कौन वार्ता में शामिल होगा, इसका कोई जिक्र नहीं था। विरोध होने के 72 घंटे बाद पारा शिक्षकों को वार्ता के लिए स्थान, समय, नाम का निर्धारण किया गया। वार्ता से पहले ही शिक्षा सचिव ने कह दिया कि टेट पास को स्थायी किया जायेगा। इससे साफ झलकता है कि अधिकारी पहले से मन बना चुके थे कि उन्हें करना क्या है। सवाल है कि जब पहले से अधिकारी तय चुके थे तो फिर वार्ता का मतलब क्या है। पारा शिक्षकों के आंदोलन का •ाूत किस कदर अधिकारियों को सता रहा है, इसकी बानगी पीएम के कार्यक्रम को लेकर दिखी। पांच जनवरी को पीएम नरेंद्र मोदी पलामू आनेवाले हैं। इधर, पारा शिक्षकों ने भी पीएम के विरोध का निर्णय लिया है। बस क्या था अधिकारियों ने फरमान जारी कर दिया कि कोई भी शख्स काला कपड़ा में कार्यक्रम स्थल पर नहीं दिखेगा। बात सिर्फ काला कपड़ा पहनने की होती तो चलता, लेकिन हद तो तब हो गयी जब यह फरमान जारी किया गया कि कार्यक्रम स्थल पर किसी भी तरह का काला वस्तु नहीं ले जाया जा सकता है। सरकारी कर्मी हों या आम लोग, काले रंग का मोजा पहन कर जाने पर भी प्रतिबंध रहेगा। काला बैग, जूता, मोजा, पर्स, टोपी भी नहीं पहन सकेंगे। ऐसे में बड़ा सवाल है कि पारा शिक्षकों के विरोध के बिगुल फूंकने पर अधिकारी रेस हो जा रहे हैं, काश इतनी सक्रियता पारा शिक्षकों की हड़ताल खत्म कराने में अधिकारी दिखाते।
जब अधिकारियों पर गाज गिरती है, तो क्यों चढ़ जाता है पारा
झारखंड में ब्यूरोक्रेसी का अजब–गजब खेल करती है। जब भ्रष्ट अधिकारियों पर गाज गिरती है और जब सीएम कामचोर अधिकारी की क्लास लगाते हैं, तो अधिकारियों का पारा चढ़ जाता है। हजारीबाग में घूसखोर सीओ को जब एसीबी की टीम ने पकड़ा, तो अधिकारियों ने कलमबंद हड़ताल कर दिया। उस वक्त छवि खराब होता देख सीएस तक को मैदान में कूदना पड़ा और हस्तक्षेप कर भ्रष्ट अधिकारी के मामले का पटाक्षेप कर दिया गया। वहीं दूसरी ओर एक सप्ताह पहले जब मुख्यमंत्री द्वारा कामचोर सीओ को हटाने और उनके कारण सरकार की छवि खराब होने की बात कही जाती है, तो अधिकारी इसे आड़े हाथों लेते हैं। अखबार में बयान जारी कर कहा जाता है कि अगर सीओ के कारण सरकार की छवि खराब हो रही है, तो उन्हें जो जिम्मेवारी दी गयी है, हटा ली जाये। बड़ा सवाल है कि कामचोर और भ्रष्ट अधिकारी पर तो बड़े अधिकारियों के कान खड़े हो जाते हैं, लेकिन 67 लाख लोगों की चिंता से उन्हें कुछ लेना–देना नहीं है।
67 लाख लोगों की पुकार: हुजूर हमारा क्या कसूर
हड़ताल के कारण मासूम समेत 67 लाख गरीबों के माथे पर बल है। वे अब पूछ रहे हैं कि हुजूर हमारा क्या कसूर है। हमारा कसूर सिर्फ इतना है कि हम गरीब हैं। हमारे बच्चे सरकारी स्कूल में पढ़ते हैं। क्या गरीब होना अ•िाशाप है और सरकारी स्कूल में बच्चों को पढ़ाना कलंक है। जरा सोचिये आपके बच्चे के साथ ऐसा होता, तो आप पर क्या बीतती। खैर, आपके बच्चे तो बड़े–बड़े कॉन्वेंट स्कूल पढ़ते हैं, इस कारण आप इस दर्द को कैसे महसूस कर सकते हैं। आलम यह है कि सरकारी स्कूल में पढ़नेवाले मासूम बच्चे को यह नहीं पता कि उनके •ाविष्य पर लगा ग्रहण कब छंटेगा। पारा शिक्षकों की हड़ताल से प्राथमिक शिक्षा व्यवस्था पूरी तरह से चरमरा गयी है। अगर कहें कि अधिकारियों की मुंछ की लड़ाई में पढ़Þनेवाले बच्चे समेत 67 लाख लोगों की चिंताएं बढ़ गयी हैं, तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। 16 नवंबर से पारा शिक्षकों की हड़ताल के कारण खासकर ग्रामीणों स्कूलों में ताला लटका है। मध्याह्न •ोजन योजना भी प्रभावित है।
झारखंड में क्यों गरम है पारा शिक्षक
पारा शिक्षकों का आंदोलन 15 नवंबर से उग्र हो गया। स्थापना दिवस के जश्न के दौरान रांची के मोरहाबादी मैदान में भारी संख्या में पारा शिक्षक पहुंचे थे। ये लोग नौकरी स्थायी करने की मांग कर रहे थे जैसा कि छत्तीसगढ़ में हो चुका है। झारखंड में करीब 67 हजार की तादाद में पारा शिक्षक हैं, जो अस्थायी तौर पर स्कूलों में पढ़ा रहे हैं। 15 नवंबर को पुलिसिया कार्रवाई के बाद पारा शिक्षकों का पारा सातवें आसमान पर चला गया। इसके बाद अधिकारी रह–रह कर इसमें इस आग में घी डालते रहे।
क्या चाहते हैं पारा शिक्षक
नौकरी को स्थायी करना या वेतन में इजाफा ही पारा शिक्षकों की मुख्य मांग है। फिलहाल अप्रशिक्षित पारा शिक्षक को 7800 रुपये मानदेय मिलता है। वहीं प्रशिक्षित को 8200 रुपये मेहनताना मिलता है। मध्य विद्यालयों में प्रशिक्षित पारा शिक्षकों को 8800 रुपये और टेट पास को 9200 रुपये मिलता है। लंबे समय तक सेवा देने के बाद भी इन पारा शिक्षकों की तनख्वाह में ज्यादा इजाफा नहीं हुआ है। पारा शिक्षक के आंदोलन की अगुवाई करनेवाले ऋषिकेश पाठक कहते हैं कि 67 हजार पारा शिक्षकों में से अधिकतर के पास 10 साल से ज्यादा का अनु•ाव है। हमने अपना बहुमूल्य समय झारखंड के शिक्षा विभाग को दिया है। लेकिन दुख की बात है कि आज की तारीख में हमारे पास स्थायी नौकरी नहीं है और तनख्वाह के नाम पर भी मामूली पैसे ही मिलते हैं। अगर मान लें कि हम में से किसी की मौत हो जाती है, तो हमारे परिजनों को अनुकंपा के आधार पर नौकरी मिलने का कोई प्रावधान भी नहीं है। जैसा कि इस आंदोलन के दौरान भी देखने को मिल रहा है। इस दौरान करीब एक दर्जन पारा शिक्षकों की मौत हो गयी, लेकिन कोई भी सरकारी सहायता नहीं मिली है।
तमाम विधायक और सांसद पारा शिक्षकों के साथ खड़े
इस आंदोलन में पक्ष और विपक्ष के तमाम विधायक और सांसद पारा शिक्षकों के साथ खड़े दिखायी पड़ रहे हैं, लेकिन अधिकारियों की अकर्मण्यता के कारण समाधान नहीं निकल पा रहा है। अरविंद केजरीवाल की अगुवाई वाली दिल्ली सरकार का हवाला देते हुए पारा शिक्षक नेता विनोद तिवारी कहते हैं कि वहां सरकार ने शिक्षकों को स्थायी नौकरी दी है और उनकी सैलरी में भी अच्छी–खासी वृद्धि की है। छत्तीसगढ़ में भी बेहतर व्यवस्था है।देश में कहीं भी शिक्षकों को मरने के लिए नहीं छोड़ दिया जाता, लेकिन झारखंड में तो अधिकारियों के कारण शिक्षक तिल–तिल कर मर रहे हैं।
इतना स्पष्ट है कि अगर अधिकारी अपनी जिद छोड़ इस दिशा में पहल करें, तो 67 लाख लोगोें की चिंता एक झटके में खत्म हो जायेगी। अब देखना दिलचस्प होगा कि मासूम बच्चों और उनके परिजनों की चिंताओं को लेकर अधिकारी कब चिंतित होते हैं।