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    Home»विशेष»दिलचस्प तो है, पर अप्रत्याशित नहीं होगा उपराष्ट्रपति चुनाव
    विशेष

    दिलचस्प तो है, पर अप्रत्याशित नहीं होगा उपराष्ट्रपति चुनाव

    shivam kumarBy shivam kumarAugust 22, 2025Updated:August 23, 2025No Comments8 Mins Read
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    विशेष
    राष्ट्रवाद बनाम धर्मनिरपेक्षता की सियासी लड़ाई के रणनीतिक मायने
    आंकड़े एनडीए के पक्ष में, पर इंडी अलायंस भी पूरे आत्मविश्वास में
    क्रॉस वोटिंग, निर्दलीय और छोटे दल पलट सकते हैं चुनाव परिणाम
    नमस्कार। आजाद सिपाही विशेष में आपका स्वागत है। मैं हूं राकेश सिंह।
    उपराष्ट्रपति के चुनाव के लिए अब नौ सितंबर को मतदान होना तय है। एनडीए उम्मीदवार सीपी राधाकृष्णन के मुकाबले इंडिया गठबंधन ने जस्टिस बी सुदर्शन रेड्डी को मैदान में उतारा है। दोनों ने नामांकन दाखिल भी कर दिया है। दोनों गठबंधन अपनी रणनीतियों को अंतिम रूप देने में लगे हैं। इंडिया गठबंधन ने जैसे ही अपना उम्मीदवार खड़ा किया, एनडीए ने अपनी रणनीति में बदलाव लाना शुरू कर दिया। अभी तक एनडीए की कोशिश थी कि उसके उम्मीदवार सीपी राधाकृष्णन के नाम पर आम सहमति बन जाये। इसके लिए राजनाथ सिंह विपक्ष के नेताओं से बात भी कर रहे थे। लेकिन बात नहीं बनी और इंडी अलायंस ने पूर्व जज बी सुदर्शन रेड्डी को प्रत्याशी बना दिया। इसके बाद एनडीए अब इस कोशिश में है कि सीपी राधाकृष्णन को ज्यादा से ज्यादा वोट मिले। इसके लिए वह इंडी गठबंधन के कुछ घटक दलों को अपने पाले में करने की कोशिश में है। उधर इंडी गठबंधन ने तेलंगाना से प्रत्याशी देकर एनडीए में सेंध लगाने की रणनीति तैयार की है, लेकिन यह कामयाब होगी, ऐसा फिलहाल तो लगता नहीं है। उपराष्ट्रपति चुनाव में संख्या बल के हिसाब से एनडीए मजबूत स्थिति में है। एनडीए ने वाइएसआर कांग्रेस पार्टी का समर्थन हासिल कर लिया है, जिससे उनकी स्थिति और मजबूत हुई है। हालांकि बीजू जनता दल ने एनडीए उम्मीदवार को समर्थन नहीं देने का फैसला किया है, जिससे गठबंधन को अपनी रणनीति को और पुख्ता करने की जरूरत है। उधर इंडी गठबंधन को पता है कि एनडीए के पास संख्या बल है, फिर भी वह इस चुनाव को एक मजबूत राजनीतिक संदेश देने के अवसर के रूप में देख रहा है। बी सुदर्शन रेड्डी के चयन से गठबंधन की कोशिश है कि वह बीजेपी के कुछ असंतुष्ट सांसदों या सहयोगी दलों को क्रॉस-वोटिंग के लिए प्रेरित करे। गठबंधन निर्दलीय सांसदों, बीजद और अन्य छोटे दलों से समर्थन जुटाने में लगा है। उपराष्ट्रपति का चुनाव इस बार राष्ट्रवाद बनाम धर्मनिरपेक्षता का चोला ओढ़ चुका है। क्या है इसके पीछे की सियासी रणनीति और राष्ट्रीय राजनीति में इसका क्या हो सकता है असर, बता रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।

    उपराष्ट्रपति पद के लिए अब एनडीए और इंडिया ब्लॉक दोनों तरफ से उम्मीदवारों का एलान हो चुका है। एनडीए ने जहां महाराष्ट्र के राज्यपाल सीपी राधाकृष्णन को अपना उम्मीदवार बनाया है, वहीं उनसे मुकाबले के लिए इंडी ब्लॉक ने सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज बी सुदर्शन रेड्डी को चुनाव मैदान में उतारा है। दोनों ने नामांकन दाखिल भी कर दिया है। इस प्रकार एक तरफ जहां मोदी ने एनडीए उम्मीदवार की तारीफ करते हुए कहा है कि राधाकृष्णन सियासी खेल नहीं करते हैं, बल्कि सुलझे हुए राजनेता हैं। वहीं दूसरी तरफ विपक्ष ने इंडी ब्लॉक के उम्मीदवार रेड्डी को गैर-राजनीतिक चेहरा बताते हुए कहा है कि मौजूदा चुनाव विचारधारा की लड़ाई है। साधारण भाषा में कहें, तो उपराष्ट्रपति चुनाव को भी राष्ट्रवाद बनाम धर्मनिरपेक्षता की सियासी लड़ाई का नया अखाड़ा बना दिया गया है, जिसके रणनीतिक मायने भी दिलचस्प हैं। इस चुनाव में वैसे तो संख्या बल में एनडीए, यानी सत्ता पक्ष का पलड़ा भारी है, लेकिन यह लड़ाई आंकड़ों से ज्यादा प्रतीकात्मक प्रतीत होता है। देखा जाये तो अपने-अपने सियासी अहम के सवाल पर विभाजित विपक्ष ने भी पुन: एकजुटता प्रदर्शित करते हुए एक मजबूत प्रत्याशी उतारकर सत्ता पक्ष को यह संदेश देने का प्रयास किया है कि वह किसी मोर्चे पर सरकार को फ्री हैंड नहीं देने जा रहा है। उसके इस कदम से विपक्ष को फायदा हो या न हो, लेकिन एनडीए में शामिल दलों की पूछ-परख बढ़ जायेगी। वहीं किसी भी सहयोगी ने यदि थोड़ा सा घात कर दिया, तो फिर सत्ता पक्ष की किरकिरी भी हो सकती है। हालांकि इसकी संभावना नहीं के बराबर है।

    पहली बार दोनों प्रत्याशी दक्षिण से
    यही वजह है कि मौजूदा उपराष्ट्रपति चुनाव के दृष्टिगत कतिपय सवाल खड़े हो रहे हैं- खासकर उम्मीदवार चयन को लेकर। सर्वप्रथम तो यह कि जिस तरह से दोनों केंद्रीय सियासी गठबंधनों ने अपने-अपने उम्मीदवार के नाम दक्षिण भारत से दिये हैं, उससे भी उत्तर भारत के राजनेता ठगे रह गये हैं। उल्लेखनीय है कि सर्वसम्मति से एनडीए कैंडिडेट बने राधाकृष्णन तमिलनाडु से आते हैं, जबकि सुदर्शन रेड्डी तेलंगाना (पुराने आंध्रप्रदेश) से। लिहाजा दोनों चेहरों का दक्षिण भारत से होना महज सियासी संयोग नहीं हो सकता, बल्कि इसके पीछे दोनों प्रतिस्पर्धी राजनीतिक गठबंधनों की कोई सुनियोजित राजनीतिक योजना है और इसी वजह से यह चुनाव और भी अधिक दिलचस्प हो गया है।

    राष्ट्रवाद बनाम धर्मनिरपेक्षता
    दूसरा, विपक्षी दल एनडीए उम्मीदवार राधाकृष्णन और इंडी ब्लॉक उम्मीदवार रेड्डी की लड़ाई को विचारधारा यानी धर्मनिरपेक्षता की लड़ाई बता रहे हैं, क्योंकि उनका कहना है कि जब एनडीए संघ के आदमी पर भरोसा कर रहा है, तो वो एक प्रोग्रेसिव विचारधारा यानी धर्मनिरपेक्ष उम्मीदवार को सामने रख रहे हैं। जिस तरह से कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने गठबंधन के सभी दलों के प्रतिनिधियों के साथ मंच से एक संक्षिप्त से नोट पढ़कर इंडी ब्लॉक के उपराष्ट्रपति उम्मीदवार रेड्डी के नाम का एलान किया, वह खासा अहम है।

    विपक्षी एकता के लिए बड़ा संदेश
    जैसा कि कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा है कि सभी दलों ने सर्वसम्मति से रेड्डी की उम्मीदवारी पर मुहर लगायी है, यह विपक्षी एकता के लिहाज से लोकतंत्र के लिए एक बड़ा क्षण है। लिहाजा उन्होंने रेड्डी को राजनीतिक न्याय का चैंपियन करार दिया, जबकि मंच से ही टीएमसी के राज्यसभा सांसद डेरेक ओ ब्रायन ने कहा कि इस फैसले में आम आदमी पार्टी भी ब्लॉक के साथ है। बताया गया है कि इंडी ब्लॉक के अंदर सभी दलों के साथ इस मसले पर अनौपचारिक बातचीत हुई थी।
    दरअसल, इस पूरी प्रक्रिया में चार-पांच नामों को लेकर चर्चा भी हुई, पर वे किसी ना किसी वजह से पूरे मापदंड पर खरे नहीं उतर पा रहे थे। इसी दौरान भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के पूर्व निदेशक और तमिलनाडु से आने वाले माइलस्वामी अन्नादुरई और सामाजिक कार्यकर्ता तुषार गांधी के नामों पर चर्चा की। जब इन अहम नामों पर भी आम सहमति नहीं बन पायी, तब खड़गे की ओर से सभी घटकों के नुमाइंदों के सामने रेड्डी का नाम सामने रखा गया, जिस पर किसी की ओर से आपत्ति नहीं जतायी गयी।

    इसलिए रेड्डी के नाम पर बनी सहमति
    बताया जाता है कि रेड्डी का नाम कांग्रेस शासित तेलंगाना की सोशल इंजीनियरिंग से भी जुड़ा रहा है। वहां की सरकार ने सामाजिक, आर्थिक, शैक्षिक, रोजगार, राजनीतिक और जातिगत सर्वेक्षण के डेटा के विश्लेषण के लिए जिस पैनल का गठन किया था, उसकी अगुआई रेड्डी ने ही की है। वहीं, टीएमसी जैसे दलों की ओर से यह साफ कर दिया गया था कि इंडी ब्लॉक की ओर से उम्मीदवारी में जो भी व्यक्ति सामने आये, वह गैर राजनीतिक हो। इसलिए रेड्डी के नाम पर आम सहमति बन गयी। बताया जाता है कि टीएमसी नेत्री व पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने तमिलनाडु के नेता स्टालिन से कहा था कि चुनाव को तमिलनाडु बनाम तमिलनाडु बनाने का अच्छा संकेत नहीं जायेगा। फिर बात आयी कि बिहार या उत्तर प्रदेश के किसी व्यक्ति को चुना जाये। इस पर कहा गया कि इसे बीजेपी दक्षिण में भुना लेगी। फिर छोटे राजनीतिक नाम से भी परहेज करने पर सहमति बनी। तब सबमें सहमति जस्टिस सुदर्शन रेड्डी के नाम पर हुई। इससे कांग्रेस को लगता है कि वह इस नाम को पेश कर आंध प्रदेश में भी अपनी साख जमा सकती है।

    तमिल बनाम तेलुगु का मुकाबला
    चूंकि, विपक्ष गठबंधन की दक्षिणी राज्यों के दलों पर भी नजर है। विपक्ष के एक नेता ने कहा भी है कि उन्हें उम्मीद है कि वाइएसआरसीपी अब अपने रुख पर फिर से विचार करेगा। बता दें कि वाइएसआरएसीपी ने घोषणा की है कि वह उपराष्ट्रपति पद के लिए एनडीए के उम्मीदवार राधाकृष्णन का समर्थन करेगी। इसे विपक्ष राधाकृष्णन की उम्मीदवारी का काउंटर मान रहा है, जिसके जरिये एनडीए, डीएमके जैसे दलों को सोच में डालना चाहता है।
    तीसरा, एनडीए के लिए दक्षिण भारत में अपनी जड़ें जमाना अब भी मुश्किल भरा कार्य है। चूंकि कर्नाटक में उसकी जमी-जमायी सियासी जड़ें भी सूखती चली गयी, इसलिए उसकी राजनीतिक मुश्किलों को समझा जा सकता है, जबकि विपक्ष की सियासत के लिए दक्षिण भारत शुरू से ही एक ऐसा उर्वर राजनीतिक मैदान रहा है, जहां से उसने भाजपा को सदैव मजबूत चुनौती पेश की है। इसलिए कहा जा सकता है कि जारी उपराष्ट्रपति चुनाव में इस पद के लिए घोषित उम्मीदवार रेड्डी पूर्व निर्धारित सियासी लड़ाई का विस्तारित रूप ही है।
    खासकर जिस तरह से एनडीए सहयोगी टीडीपी ने इंडी ब्लॉक प्रत्याशी राधाकृष्णन के समर्थन का एलान किया है, उसका प्रभावी असर भी अब सत्ता पक्ष की रणनीति पर साफ-साफ दिखने भी लगा है और प्रधानमंत्री मोदी ने विपक्षी दलों से भी उपराष्ट्रपति चुनाव में एनडीए प्रत्याशी राधाकृष्णन के लिए सहयोग मांगा है। उनके लिए खुशी की बात यह है कि इंडी ब्लॉक के डीएमके ने एनडीए प्रत्याशी राधाकृष्णन का समर्थन करने का फैसला किया है।

    दोनों पक्षों के लिए अवसर और चुनौती
    इसलिए कहा जा रहा है कि उपराष्ट्रपति पद के लिए हो रहा चुनाव दोनों केंद्रीय सियासी गठबंधनों के लिए मौका और चुनौती दोनों लेकर आया है। अगर सौ फीसदी वोटिंग होती है, तो दोनों सदनों में मिलाकर चुनाव में जीत के लिए 394 वोट चाहिए होंगे, जबकि एनडीए के पास 422 का संख्या बल है। चूंकि उपराष्ट्रपति का चुनाव गुप्त मतदान द्वारा होता है और सदस्य पार्टी व्हिप से नहीं बंधे होते हैं, इसलिए सरकार और विपक्ष, दोनों के शक्ति प्रदर्शन के लिए यह मौके के साथ साथ चुनौती भी है।

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