नयी दिल्ली। आलोक वर्मा को सीबीआइ के निदेशक पद से हटा दिया गया है। वह बुधवार को ही सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद 77 दिन बाद अपने काम पर लौटे थे। दोबारा पदभार संभालते ही उन्होंने तबादले के पुराने आदेश रद्द कर दिये थे। इसके अलावा गुरुवार को ही पांच अफसरों के तबादले का आदेश दिया था।
बता दें कि राकेश अस्थाना से विवाद के बाद उन्हें सरकार ने लंबी छुट्टी पर भेज दिया था।
गुरुवार को आलोक वर्मा के भविष्य को लेकर प्रधानमंत्री आवास पर उच्चस्तरीय कमेटी की बैठक हुई, जिसमें यह फैसला लिया गया। इस कमेटी में कांग्रेस नेता मल्लिकार्जुन खड़गे और जस्टिस एके सीकरी भी शामिल थे। इससे पहले बुधवार को भी सेलेक्ट कमेटी की बैठक हुई थी। इसमें सीवीसी ने केंद्रीय जांच एजेंसी के निदेशक आलोक वर्मा से जुड़े मामले की फाइलें कमेटी को दिखायी थी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, जस्टिस सीकरी और लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे की मौजूदगी में करीब डेढ़ घंटे तक चली बैठक में आलोक वर्मा को लेकर कोई अंतिम निष्कर्ष नहीं निकल पाया था।
सीबीआइ निदेशक के मामले को लेकर बुधवार रात पीएम आवास पर हुई सेलेक्ट कमेटी की बैठक के दौरान सीवीसी ने आलोक वर्मा से जुड़े कई दस्तावेज रखे थे। सूत्रों का कहना है कि सीवीसी ने कमेटी के समक्ष जांच एजेंसी के विशेष निदेशक राकेश अस्थाना द्वारा आलोक वर्मा पर जो आरोप लगाये गये थे, वे फाइलें भी पेश की हैं। इसके अलावा राकेश अस्थाना ने आलोक वर्मा के खिलाफ पिछले साल कैबिनेट सचिव और सीवीसी को जो शिकायत भेजी थी, उन पर सीवीसी ने जो गोपनीय टिप्पणियां की थीं, वे सब कमेटी के सदस्यों को दिखाये गये हैं।
बताया जाता है कि सीवीसी ने अपनी जांच में यह भी लिखा था कि दोनों निदेशकों की लड़ाई जांच एजेंसी को नुकसान पहुंचा रही है। भले ही सीवीसी ने नाम लेकर न सही, लेकिन उन्होंने अपनी रिपोर्ट में इस बात का स्पष्ट संकेत दिया था कि आलोक वर्मा और राकेश अस्थाना, दोनों को कहीं दूसरी जगह शिफ्ट कर दिया जाये। अगर इनमें से कोई भी निदेशक सीबीआइ में सभी अधिकारों के साथ दोबारा लौटता है, तो वह एजेंसी के लिए ठीक नहीं होगा।
नेता प्रतिपक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे चाहते थे कि आलोक वर्मा सेलेक्ट कमेटी के सामने अपनी बात रखें। उन्होंने बुधवार को हुई बैठक के दौरान पीएम नरेंद्र मोदी और जस्टिस सीकरी को अपने पक्ष से अवगत करा दिया था। उनका तर्क था कि सेलेक्ट कमेटी केवल सीवीसी की रिपोर्ट पर चर्चा कर रही है। इसी आधार पर आलोक वर्मा के भविष्य का फैसला नहीं हो सकता। इसके लिए जरूरी है कि आलोक वर्मा को कमेटी के सामने बुलाया जाये।
दूसरी ओर, आलोक वर्मा ने ज्वाइनिंग के पहले ही दिन अपने चहेते अफसर एके बस्सी, अश्विनी गुप्ता, एसपी ग्रुम और संयुक्त निदेशक एके शर्मा को वापस बुला लिया है। वर्मा के छुट्टी पर जाने के बाद इनमें किसी अफसर का दिल्ली से बाहर तबादला कर दिया गया, तो अन्य अफसर दूसरी ब्रांच में तैनात कर दिये गये। इनमें डीएसपी एके बस्सी को अंडमान भेजने के आदेश जारी हुए थे। अपने तबादला आदेश के खिलाफ वह अदालत भी गये थे। बस्सी को आलोक वर्मा का विश्वासपात्र माना जाता है। राकेश अस्थाना के के खिलाफ लगे आरोप की जांच बस्सी को ही सौंपी गयी थी।