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    Home»देश»‘वंदे मातरम्’ पर चर्चा से आगामी पीढ़ियों को इसके असली महत्व को समझने में मिलेगी मदद : अमित शाह
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    ‘वंदे मातरम्’ पर चर्चा से आगामी पीढ़ियों को इसके असली महत्व को समझने में मिलेगी मदद : अमित शाह

    shivam kumarBy shivam kumarDecember 9, 2025No Comments5 Mins Read
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    नई दिल्ली। केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने मंगलवार को राज्यसभा में राष्ट्रीय गीत वंदे मातरम् की 150वीं वर्षगांठ पर चर्चा की शुरुआत करते हुए कहा कि संसद के दोनों सदनों में इस अमर कृति पर विमर्श आने वाली पीढ़ियों को इसके वास्तविक महत्व, गौरव और राष्ट्रीय चेतना से जोड़ने का कार्य करेगा। उन्होंने जोर देकर कहा कि वंदे मातरम् केवल एक गीत नहीं, बल्कि भारत माता के प्रति भक्ति, कर्तव्य और समर्पण की भावना का शाश्वत प्रतीक है, जिसने स्वतंत्रता संग्राम में देश की आत्मा को जागृत किया।

    शाह ने कहा कि उस दौर में वंदे मातरम् देश को आजाद कराने का कारण बना था और अमृतकाल में यह देश को विकसित तथा महान बनाने का नारा बनेगा। उन्होंने स्पष्ट कहा कि वंदे मातरम् पर चर्चा को बंगाल चुनाव से जोड़ने वाले लोग इसकी ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्ता को कम आंकने की कोशिश कर रहे हैं, जबकि यह विषय राजनीति से परे राष्ट्रीय गौरव का विषय है।

    गृहमंत्री ने कहा कि वंदे मातरम् की प्रासंगिकता उसकी रचना के समय भी थी, आजादी के आंदोलन में भी थी, आज भी है और 2047 में विकसित भारत के निर्माण के समय भी बनी रहेगी। उन्होंने बताया कि स्वतंत्रता संग्राम के दौरान जहां भी देशभक्त एकत्र होते थे, उनकी हर बैठक की शुरुआत वंदे मातरम् के साथ होती थी। आज भी सीमा पर जब वीर जवान सर्वोच्च बलिदान देते हैं, तब उनकी ज़ुबान पर एक ही शब्द होता है—वंदे मातरम्।

    अमित शाह ने विपक्ष पर निशाना साधते हुए कहा कि संसद में जब वंदे मातरम् का गान होता है, तब इंडी गठबंधन के कई सदस्य सदन से बाहर चले जाते हैं। उन्होंने 1992 का उल्लेख करते हुए कहा कि जब भाजपा सदस्य राम नाईक की पहल और लालकृष्ण आडवाणी के आग्रह पर लोकसभा में वंदे मातरम् का सामूहिक गान फिर शुरू हुआ, तब भी कई विपक्षी दलों ने इसका विरोध किया था।

    उन्होंने कांग्रेस पर तीखा हमला बोलते हुए कहा कि तुष्टीकरण की राजनीति ने राष्ट्रीय गीत को भी बांट दिया। शाह ने कहा, “मेरे जैसे कई लोगों का मानना है कि अगर कांग्रेस ने तुष्टीकरण की नीति के तहत वंदे मातरम् को दो हिस्सों में नहीं बांटा होता, तो देश का विभाजन नहीं होता और भारत आज भी पूरा होता।”

    शाह ने कहा कि जब वंदे मातरम् के 50 वर्ष पूरे हुए, तब देश अभी आजाद नहीं हुआ था, लेकिन स्वतंत्रता के बाद इसकी स्वर्ण जयंती के समय तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने इसे दो अंतरों तक सीमित कर दिया, जिसे उन्होंने तुष्टीकरण की शुरुआत बताया।

    गृहमंत्री ने वंदे मातरम् की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि, सांस्कृतिक महत्ता और इसके राष्ट्रीय प्रभाव का विस्तृत उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय ने 7 नवंबर 1875 को इस रचना को पहली बार सार्वजनिक किया, और कुछ ही समय में यह उत्कृष्ट साहित्यक कृति से आगे बढ़कर भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का प्रेरणास्रोत और राष्ट्रजागरण का मंत्र बन गई।

    उन्होंने महर्षि अरविन्द के कथन का उल्लेख करते हुए कहा, “वंदे मातरम् भारत के पुनर्जन्म का मंत्र है।” शाह ने बताया कि जब अंग्रेजों ने वंदे मातरम् पर प्रतिबंध लगाया, तब बंकिम बाबू ने कहा था कि उनकी सारी रचनाएं गंगा में बहा दी जाएं, लेकिन वंदे मातरम् का मंत्र सदैव जीवित रहेगा और भारत का पुनर्निर्माण इसी से होगा।

    उन्होंने कहा कि भारत किसी लड़ाई या वैधानिक समझौतों से नहीं बना, बल्कि इसकी सीमाओं को सदियों पुरानी संस्कृति ने गढ़ा है। इसी सांस्कृतिक राष्ट्रवाद को सबसे पहले बंकिम बाबू ने जागृत किया। उन्होंने कहा कि भारत केवल जमीन का टुकड़ा नहीं है, बल्कि करोड़ों भारतीयों की मां है, और यह भावना वंदे मातरम् में सर्वाधिक प्रकट होती है।

    गृहमंत्री ने बताया कि वंदे मातरम् ने कश्मीर से कन्याकुमारी तक, पंजाब के गदर आंदोलन से महाराष्ट्र के गणपति उत्सवों तक और तमिलनाडु में सुब्रमण्यम भारती के अनुवादों से हिन्द महासागर तक, क्रांति और राष्ट्रभक्ति की चेतना को जगाया। 1907 में ‘बंदे मातरम्’ नाम से एक अखबार भी निकलता था, जिसके संपादक अरविन्द घोष थे, जिसे अंग्रेजों ने प्रतिबंधित कर दिया था।

    शाह ने कहा कि रामायण में भगवान श्रीराम से लेकर आचार्य शंकर और चाणक्य तक सभी ने मातृभूमि की महिमा का उल्लेख किया। बंकिम बाबू ने भी इसी चिरंतन भाव को पुनर्जीवित किया और भारत माता को सरस्वती, लक्ष्मी और दुर्गा के संयुक्त रूप में प्रस्तुत किया।

    उन्होंने कहा कि जब वंदे मातरम् 100 वर्ष का हुआ, तब इसका सम्मान नहीं किया गया क्योंकि आपातकाल के दौरान वंदे मातरम् बोलने वालों को जेल में डाल दिया गया था और देश को दमन के वातावरण में बंदी बनाकर रखा गया था।

    सांसदों से आग्रह करते हुए शाह ने कहा कि युवा पीढ़ी में वंदे मातरम् की भावना, संस्कार और समर्पण को बढ़ावा देना हम सबकी साझा जिम्मेदारी है। उन्होंने कहा, “हर बच्चे के मन में वंदे मातरम् की भावना पुनर्जीवित करें और बंकिम बाबू की उस महान भारत की कल्पना को साकार करें, जिसे उन्होंने इस रचना के माध्यम से देखा था।”

    उन्होंने कहा कि संसद में वंदे मातरम् पर चर्चा इसलिए नहीं हो रही है कि चुनाव निकट हैं, बल्कि इसलिए कि यह गीत भारत की आत्मा है और इसकी गूंज आने वाले विकसित भारत के निर्माण की प्रेरणा बनेगी।

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