रांची। कहते हैं कि विकास की कोई सानी नहीं होती। झूठ की राजनीति का अंत होता ही है और यह अंत भी विकास के रास्ते ही संभव है। इस बात को इस लोकसभा चुनाव में भाजपा ने संथाल में साबित कर दिखाया। तभी तो, कभी भूख, गरीबी, अशिक्षा, कुपोषण और ऐसे कई तरह की विकास विरोधी सवालों के लिए जाने जानेवाला संथाल आज चुनौती दे रहा है देश और राज्य के बड़े-बड़े विकसित शहरों को। कभी संथालपरगना में लोग जाने के लिए दस बार सोचते थे। नक्सलियों का खौफ, आवागमन की समस्या और कई अन्य तरह की समस्याएं इस इलाके की नियति थी। प्रकृति की बेशुमार सौगातों से भरा यह क्षेत्र गरीबी, अशिक्षा और कुपोषण के लिए जाना जाता था। राजनीतिक रूप से यह क्षेत्र अपंग था। संथाल आदिवासियों का यह इलाका विकास के लिए तरस रहा था। रोजगार के नाम पर कुछ नहीं था। पलायन इस इलाके के लोगों की नियति बनी हुई थी। अलग राज्य बनने के बाद भी यहां राजनीति तो खूब हुई पर विकास नहीं हुआ। भाजपा ने विकास की राजनीति को संथाल का मोहरा बनाया। इस क्षेत्र को केंद्र और राज्य की बड़ी-नदी योजनाओं से आच्छादित कर दिया। यही वजह है कि पिछले पांच वर्षों में इस क्षेत्र में ऐतिहासिक बदलाव हुआ है। देखा जाय तो सबसे ज्यादा विकास के काम इसी इलाके में हुए हैं। गोविंदपुर से साहेबगंज, दुमका से गोड्डा, गोड्डा से महगामा होते हुए साहेबगंज, देवघर से गोड्डा-साहेबगंज और दुमका, सभी सड़कें एक से बढ़कर एक। ऐसी सड़क जिसपर गाड़ियां सरपट दौड़ती मिली। कहीं हिचकोले नहीं खायी। सडकों पर कोई अतिक्रमण नहीं। इस क्षेत्र में कई ऐसे विकास के काम हुए हैं जो झारखंड के लिए मील का पत्थर साबित हो सकते हैं। देवघर के देवीपुर में बन रहा एम्स इस इलाके के साथ-साथ बिहार और बंगाल के लोगों के लिए वरदान की तरह है। जहां एम्स बन रहा है, दो साल पहले यह इलाका वीरान था। इस उजाड़ इलाके की रौनक पूरी तरह से बदल गयी है। झारखंड को स्वास्थ्य के क्षेत्र में यह सबसे बड़ी सौगात है। काम तेजी से चल रहा है। दुमका में मेडिकल कॉलेज का निर्माण कोई छोटी बात नहीं है। देवघर में अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा का काम चल रहा है। यह झारखंड की देवनागरी को केंद्र सरकार की बड़ी सौगात है। इस तरह का विकास संथाल में दिख रहा है। सड़कें सिर्फ केंद्र सरकार यानि एनएच के ही नहीं राज्य सरकार की तरफ से बनी एसएच भी चमक रही है। इन सडकों पर गाड़ियां सरपट दौड़ती नजर आती हैं। बिहार को जोड़नेवाली गंगा पुल का या फिर साहेबगंज में बन रहे अंतर्राष्ट्रीय बंदरगाह इस बात की ताकीद कर रहा है कि विकास संथाल पहुंच गया है। साहेबगंज में गंगा पिल को लेकर अलग राज्य बनने के बाद से ही सिर्फ राजनीति होती थी। पहली बार प्रथम मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी के समय इसको लेकर प्रयास हुआ था, लेकिन उनका प्रयास मुकाम हासिल नहीं कर सका। इसके बाद जितनी भी सरकार बनी सभी ने साहेबगंज में गंगा पुल को लेकर वादे तो किये लेकिन एक कदम भी आगे नहीं चल सके। इस बीच वर्ष 2006 में कांग्रेस समर्थित मधु कोड़ा की सरकार बनी। केंद्र में भी कांग्रेस नेतृत्व की सरकार थी, बात नहीं बनी। दुबारा वर्ष 2013 में हेमंत सोरेन की सरकार बनी। कांग्रेस भी सरकार में शामिल थी। केंद्र में भी कांग्रेस की ही सरकार थी। झामुमो जो संथाल की राजनीति से सत्ता पर काबिज हुई थी, संथाल की सबसे बड़ी परियोजना को धरातल पर नहीं उतार सकी। वर्ष 2014 में केंद्र में नरेंद्र मोदी की सरकार बनी। इसी वर्ष राज्य में भी रघुवर दास के नेतृत्व में भाजपा की सरकार बनी। एक वर्ष के भीतर साहेबगंज गंगा पुल पर केंद्र की सहमती मिल गयी। इतना ही नहीं झारखंड को पहली बार जलमार्ग से जोड़ने की भी योजना बनी। साहेबगंज में बंदरगाह को मंजूरी दी गयी। दोनों पर काम चल रहा है। यहां पर पहाड़िया बटालियन की बात नहीं की जाय तो उचित नहीं होगा। मुख्यमंत्री बनने के बाद रघुवर दास ने बजट तैयार करने को लेकर ग्रामीणों के साथ बैठकर योजना बनाओ अभियान शुरू किया। इसको लेकर सबसे पहले संथाल के लिट्टीपाड़ा में योजना बनाओ अभियान की शुरुआत हुई। इसी क्रम में मुख्यमंत्री को आदिम जनजाति की दशा को नजदीक से देखने और समझने का मौका मिला। उसी वर्ष मुख्यमंत्री ने बजट भाषण में पहाड़िया बटालियन के गठन की घोषणा की। जो आज मुकाम ले चूका है। कभी जंगलों, पहाड़ों में जीवन बसर करनेवाले इन आदिम जनजाति के युवाओं के नहीं सोचा था कि उन्हें भी पुलिस में नौकरी करने का मौका मिलेगा। इस इलाके के आदिवासियों के लिए पेयजल सबसे बड़ी समस्या थी। राज्य सरकार ने सुदूर इलाके में बोरिंग कर पानी की टंकी की व्यवस्था की है। इन सबसे बड़ी बात तो यह है कि विकास में सबसे बड़ा बाधक नक्सली जड़ से उखड़ गये हैं। नक्सलियों के नाम का पता नहीं है। राज्य सरकार ने साढ़े चार वर्षों में संथाल को सौगातों की भरमार की है। पहाड़ों पर जीवन बसर करनेवाले पहाड़िया आदिम जनजाति को मुख्यधारा से जोड़ने के लिए कई काम किये गये हैं। कह सकते हैं कि इस जनजाति के उत्थान के लिए रघुवर सरकार ने खजाना खोल दिया है। पहाड़िया आदिम जनजाति को सरकार की तरफ से मिलनेवाली मुफ्त आनाज लाभुकों को मिले इसके लिए डाकिया योजना की शुरूआत कर घर-घर आनाज पहुंचाया जा रहा है। सरकारी स्कूलों का जाल बिछाया जा रहा है। संथाल भाषा की ओलचिकी लिपि को राष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिली है। अब तो इस लिपि में रेलवे स्टेशन पर उद्घोषणा की जा रही है। पिछले पांच वर्षों में केंद्र की नरेंद्र मोदी की सरकार और साढ़े चार वर्ष की रघुवर दास की सरकार ने जो विकास के काम संथाल में किये उसे संथाल की जनता ने ब्याज सहित वापस लोकसभा चुनाव में किया है। संथाल की जनता ने इस मिथक को तोड़ा है कि अब जाति,धर्म की राजनीति नहीं चलेगी, सिर्फ विकास की राजनीति ही चलेगी। तभी तो ग्रामीण क्षेत्र की महिलाओं ने पुरुषों से ज्यादा बढ़ चढ़कर लोकसभा के महापर्व में भागीदारी दी। कभी सोचा नहीं होगा कि संथाल जैसे इलाके में महिलाओं का वोट प्रतिशत 65-70 प्रतिशत होगा। इसमें कोई दो राय नहीं है कि झारखंड का सबसे पिछड़ा प्रमंडल संथाल आज हर मामले में राज्य के विकसित प्रमंडल को चुनौती दे रहा है। इस चुनाव ने विकास बाधक को भी सबक सिखाने का काम किया है। गोड्डा में बन रहे आडानी पावर प्लांट और एनटीपीसी की योजना का झाविमो सहित सभी विपक्षी दलों ने विरोध किया। खासकर झाविमो के प्रधान महासचिव प्रदीप यादव ने तो इसके लिए उग्र आंदोलन किया। जेल भी गये, लेकिन भाजपा ने जनता को समझाया कि इन प्लांट के लगने से स्थानीय लोगों को रोजगार मिलेगा। इलाके में समृधि आएगी। जनता ने बखूबी भाजपा की बातों को समझा, नतीजा यह हुआ कि लोकसभा चुनाव में प्रदीप यादव को अपने ही विधानसभा क्षेत्र में मुंह की खानी पड़ी। जनता विकास चाहती है। युवा रोजगार चाहते हैं। प्रधानमंत्री की कौशल विकास योजना भी चुनाव परिणाम देने में सार्थक रही। महिलाओं को गैस कनेक्शन, शौचालय और सबको आवास योजना ने भी भाजपा को जनता से जोड़ने का काम किया और इसका नतीजा यह हुआ कि संथाल से विपक्ष के पांव उखड़ गये।
वर्ष 2014 से ही भाजपा कर रही थी संथाल फतह पर काम
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