23 मई की शाम हार के बाद जैसे ही टेलीविजन स्क्रीन पर राहुल गांधी का चेहरा नजर आया, राम प्रकाश सोनकर कहते हैं कि उन्हें थोड़ी देर के लिए अपराध बोध हुआ। अपनी पूरी जिंदगी कांग्रेस के चुनाव चिह्न पंजा पर वोट देने के बाद नेहरू-गांधी परिवार के उत्तराधिकारी को छोड़ कर स्मृति इरानी के खेमे में जाना उनके लिए एक कठिन विकल्प था। लेकिन वह सोचते हैं कि उनका फैसला सही था। वीवीआइपी संस्कृति असहनीय हो गयी थी और राहुल गांधी अपने मतदाताओं की वास्तविक समस्याओं को दूर करने की बजाय उनको गारंटी मान रहे थे।
पेशे से ट्रक ड्राइवर राम प्रकाश कहते हैं, राहुल जी ने सोचा कि अमेठी के लोग उनके मुरीद हैं। वह आयेंगे, हाथ हिलायेंगे और हम उनकी एक झलक पाने के बाद ही उनके पक्ष में मतदान कर देंगे, भले ही उन्होंने हमारे लिए कुछ नहीं किया हो।
राम प्रकाश ने तिलोई में भरी दोपहरी में एकत्र दलितों के एक समूह की भावनाओं को व्यक्त कर रहे थे। तिलोई अमेठी संसदीय क्षेत्र के पांच विधानसभा क्षेत्रों में से एक है, जहां इस बड़े राजनीतिक परिवर्तन को बड़ी मुश्किल से स्वीकार किया जा रहा है। गांव के लोग अब भी राहुल गांधी की पराजय को पचा नहीं पा रहे हैं।
स्थानीय लोगों, जिनमें युवा और बुजुर्ग शामिल हैं, का आरोप है कि राहुल गांधी अपने चुनाव क्षेत्र के औपचारिक दौरे के दौरान चुने हुए बड़े लोगों के एक समूह से ही मिलते हैं, जबकि 2014 में चुनाव हारने के बाद स्मृति इरानी ने इलाके में अपनी गतिविधि बढ़ा ली। वह लगातार ग्रामीण इलाकों का दौरा करती रहीं, स्थानीय लोगों की मौलिक और ढांचागत सुविधाओं के लिए पहल करती रहीं, समस्याएं दूर करने की कोशिश करती रहीं।
राहुल गांधी ने अमेठी को गारंटी के तौर पर लिया, यह बात उसी दिन प्रमाणित हो गयी, जिस दिन उन्होंने वायनाड से भी चुनाव लड़ने का फैसला किया। इस मौके का स्मृति इरानी ने तत्काल लाभ उठाया और उन्होंने राहुल गांधी को ‘लापता सांसद’ के विशेषण से विभूषित कर दिया।
2014 के चुनाव में राहुल गांधी ने स्मृति इरानी को एक लाख से कुछ अधिक वोटों से हराया था। उस चुनाव में राहुल को 4.08 लाख वोट मिले थे, जबकि स्मृति इरानी को तीन लाख वोट मिले थे। प्रतिशत के हिसाब से यह 11 प्रतिशत कम था। लेकिन 2019 में मायावती द्वारा रायबरेली और अमेठी में सोनिया-राहुल के समर्थन करने और दलित नेता उदित राज के पाला बदलने और इन दोनों के लिए प्रचार करने के बावजूद राहुल 55 हजार से अधिक वोट से चुनाव हार गये। यहां यह भी बताना उल्लेखनीय है कि अमेठी में अंतिम दिन तक उनकी बहन प्रियंका गांधी ने भी प्रचार किया था।
कल्याण योजनाओं का स्वागत
ऐसा लगता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा शुरू की गयी रसोई गैस, शौचालय, पक्का घर और बिजली कनेक्शन जैसी कल्याण योजनाओं ने जातीय फर्क को मिटा दिया और गरीब मतदाताओं को उनके पक्ष में कर दिया।
स्मृति इरानी ने इन योजनाओं को लागू करने के लिए बहुत काम किया और इसके लिए ही उन्हें इनाम भी मिला। पूर्व जिला अध्यक्ष दयाशंकर यादव कहते हैं कि 2014 में चुनाव हारने के बाद स्मृति इरानी ने कुल 42 बार अमेठी का दौरा किया। इस दौरान उन्होंने अग्निकांड में अपनी झोपड़ी गंवा चुके गरीब लोगों को राहत उपलब्ध कराया, जगदीशपुर के पिपरी गांव में एक बांध का निर्माण कराया, जिससे लोगों को गोमती नदी की धारा को मोड़ने के प्रयास से मुक्ति मिली, क्योंकि हर साल इस नदी के कारण उनकी फसल चौपट हो जाती थी और संपत्ति भी नष्ट हो जाती थी।
पिपरी बांध से लाभान्वित होनेवालों में सत्यनारायण मिश्रा भी शामिल हैं, जो पारंपरिक रूप से बनाये जानेवाले बर्फ के गोले बेचते हैं। बांध बनने से पहले सत्यनारायण मिश्रा की डेढ़ बीघा जमीन की फसल नदी की बाढ़ में बह गयी थी। पिछले सालों के दौरान उन्हें कम से कम पांच बार मिट्टी का अपना घर बनवाना पड़ा। भाजपा को वोट देनेवाले सत्यनारायण कहते हैं, स्मृति इरानी ने हमारी वे शिकायतें सुनीं, जिन पर आज तक किसी ने ध्यान नहीं दिया था।
लोकसभा चुनाव का परिदृश्य विधानसभा चुनाव से अलग रहा, अमेठी में कांग्रेस नेता का जनाधार 2014 के बाद से ही सिकुड़ता रहा। यूपी विधानसभा चुनाव में 2017 में अमेठी के पांच विधानसभा क्षेत्रों में भाजपा को कुल 3.45 लाख वोट मिले थे, जो करीब 44 हजार पांच सौ अधिक थे। इसके विपरीत कांग्रेस को अमेठी का पांच विधानसभा क्षेत्रों में 2.36 लाख वोट ही मिले, जो 2014 में मिले वोटों से 1.72 लाख कम थे।
कांग्रेस ने वह चुनाव सपा के साथ तालमेल कर लड़ा था और दो सीटों पर दोनों दलों में दोस्ताना मुकाबला हुआ था, जिसमें सपा को एक लाख 36 हजार 628 वोट मिले थे। सपा और कांग्रेस को मिला कर कुल 3.73 लाख वोट मिले थे, जो भाजपा से केवल 27 हजार 806 वोट अधिक थे।
इस बीच भाजपा ने स्थानीय नेतृत्व के मामले में बड़े लाभ हासिल किये, जब कांग्रेस के पूर्व विधायक डॉ मुस्लिम, बसपा के चंद्रप्रकाश, 2017 में बसपा के उम्मीदवार रहे विजय किशोर और राहुल गांधी द्वारा गोद लिये हुए गांव के प्रधान पार्टी में शामिल हो गये।
स्मृति इरानी और नरेंद्र मोदी ने जैस गांव के एक वोटर रणजीत कुमार को अपने पक्ष में कर लिया। कुमार का पक्का घर केवल तीन महीने पहले बना था। सफेद रंग में रंगे उनके घर में भाजपा के झंडे और ‘दीदी है तो मुमकिन है’ के नारे लिखे स्टिकर चिपके हुए हैं, जो भाजपा नेता के प्रति सम्मान दिखाते हैं।
कुमार कहते हैं, जो काम करेगा, अब अमेठी उसका गढ़ होगा। कुमार के पास अब राशन कार्ड भी है और वह नये बिजली कनेक्शन की प्रतीक्षा कर रहे हैं।
गरीब की उपेक्षा : वह आम तौर पर सुनी गयी एक शिकायत दोहराते हैं कि स्थानीय कांग्रेस नेता केवल अमीर और प्रभावशाली लोगों से ही मिलते हैं और गरीबों और नीची जाति के लोगों की उपेक्षा करते हैं।
वह कहते हैं, हमसे कुत्ते जैसा व्यवहार किया गया। एक बार मैं चिकित्सा सहायता के लिए आवेदन लेकर खुद राहुल गांधी के पास गया, लेकिन उन्होंने मेरे सामने ही उसे फाड़ कर फेंक दिया। स्मृति इरानी अच्छी महिला हैं और वह गरीबों को भी सम्मान देती हैं।
एक कोचिंग सेंटर में विद्यार्थियों को पढ़ानेवाले धर्मेंद्र सोनकर योगी आदित्यनाथ सरकार द्वारा सहायक शिक्षकों के 27 हजार पद नहीं भरे जाने को लेकर नाराज हैं। लेकिन उन्हें मोदी से कोई शिकायत नहींं है और वह पीएम-किसान योजना के तहत दो हजार रुपये और सीमेंट का नया घर पाकर खुश हैं।
सोनकर कहते हैं, राहुल गांधी सड़क मार्ग से आते थे और हमारे प्रखंड से होकर गुजर जाते थे। 15 साल तक वह हमारे सांसद रहे, लेकिन एक बार भी उन्होंने हमारा हाल-चाल नहीं लिया।
और यह बात सभी वर्गों के साथ है। एक दलित मजदूर श्याम बाबू ने कहा कि उसने भाजपा को वोट दिया, क्योंकि उसके जीवन में पहली बार भाजपा की सरकार ने उसे सीमेंट का घर दिया। वह पूछता है, मैं उसे वोट नहीं देकर नमक हराम कैसे हो सकता हूं। जैस में बीड़ी बनाने का कारखाना चलानेवालों में से एक मुस्लिम पार्षद जहीर खान के अनुसार अमेठी उनका घर है, इसलिए राहुल गांधी ने मान लिया था कि वह कभी हार नहीं सकते। हालांकि वैचारिक कारणों से खान ने कांग्रेस को वोट दिया, वह राहुल गांधी के हारने पर उदास नहीं हैं। खान समाजवादी पार्टी का समर्थन करते हैं और वह वैसे लोगों में से एक हैं, जिनके वोट की बदौलत कांग्रेस अध्यक्ष ने अपने गढ़ में मुकाबला किया। स्थानीय लोगों के अनुसार, यदि सपा ने यहां से प्रत्याशी दिया होता, तो स्थिति और भी खराब होती। स्थानीय लोगों का मानना है कि 2014 में सपा ने अपने मंत्री गायत्री प्रजापति को यहां राहुल गांधी की जीत में मदद करने के लिए तैनात किया था।
खान कहते हैं कि दशकों तक अमेठी पर राज करने के बावजूद उनके जैस प्रखंड में आज भी एक डिग्री कॉलेज और अस्पताल नहीं है। इसलिए गर्भवती महिलाओं को प्रसव के लिए 32 किलोमीटर दूर रायबरेली ले जाना पड़ता है। एक अन्य स्थानीय व्यक्ति के अनुसार 1980 में जब अमिताभ बच्चन इलाहाबाद गये थे, तो उन्होंने कहा था कि वह इसे अमेठी जैसा बना देंगे। यदि वह आज अमेठी आयें और यहां की हालत देखें, तो उन्हें रोना आ जायेगा।
लेकिन कांग्रेस के पुराने समर्थक सकते में हैं। उन्हें विश्वास नहीं हो रहा है। राम बरन तर्क देते हैं कि पार्टी ने जमींदारी प्रथा को खत्म किया, लोगों को घर और शौचालय देने की योजनाएं शुरू की। वह योजनाओं को लागू करने में स्थानीय स्तर पर गड़बड़ी को दोष देते हुए पूछते हैं, इसमें कांग्रेस की गलती कहां है कि लोग शराब और शादियों में पैसा खर्च करते हैं।
यहां बहुत से दलितों की तरह राम बरन को भी विश्वास है कि भाजपा दलित विरोधी है और आरक्षण को कम कर रही है। एक बेरोजगार दलित युवक सरोज कुमार चंचल कहते हैं कि भाजपा ने उनके समुदाय, खटिक से किसी को भी मंत्री नहीं बनाया, जबकि इस समुदाय के तीन सांसद, भोला सिंह, नीलम सोनकर और विनोद सोनकर चुने गये हैं।
चंचल कहते हैं, राहुल गांधी ने कुछ अच्छा नहीं किया, तो कुछ बुरा भी नहीं किया। हालांकि बहुत से दलितों ने शिकायत की कि कांग्रेस के स्थानीय ब्राह्मण-ठाकुर नेताओं ने दलितों को पार्टी तक पहुंचने से रोका, जिससे उनका एक वर्ग भाजपा की ओर चला गया, जबकि अन्य ने कहा कि कांग्रेस ने केवल मुस्लिमों और ब्राह्मणों को ही पद दिया।
डॉ अंबेडकर सेवा समिति के प्रमुख आरएस सोनकर भी इसी रास्ते पर जानेवाले थे, लेकिन स्थानीय कांग्रेस नेतृत्व द्वारा की गयी व्यक्तिगत बेइज्जती और चोट को किनारे रख कर उन्होंने राहुल गांधी के लिए सक्रिय रूप से प्रचार किया। सोनकर का आरोप है कि कांग्रेस के ऊंची जाति के पदधारियों ने खुद को भाजपा के हाथों बेच लिया और लगातार कई सालों तक कार्यकर्ताओं की पहुंच को रोक कर अमेठी में पार्टी की संरचना को नुकसान पहुंचाया।
वह कहते हैं, इसलिए परिणाम के दिन जब भाजपा के लोगों ने मेरे दरवाजे के सामने पटाखे फोड़ कर मुझ पर व्यंग्य कसा, तो यह पचा पाना मेरे लिए बहुत कठिन था। लेकिन मुझे चुप रहना पड़ा, क्योंकि भाजपा राज्य और केंद्र में सत्ता में है और पुलिस भी उनकी है। सोनकर जिस वक्त यह सब बता रहे थे, उसी समय टेलीविजन पर पूर्व ग्राम प्रधान की हत्या की खबर चलती है, जिन्हें स्मृति इरानी का करीबी माना जाता था।
सोनकर कड़वे होकर कहते हैं, इंतजार करिये, वह कल उनके परिवार के पास आयेंगी। वह ठाकुर हैं। यदि एक ठाकुर या ब्राह्मण को कुछ भी होता है, तो कांग्रेस के लोग भी उनके घर जायेंगे। लेकिन जब आइटीबीपी में तैनात मेरे दामाद की 2018 में हत्या हुई थी, कांग्रेस का कोई भी व्यक्ति मेरे घर नहीं आया था।
और वह सही थे। स्मृति इरानी मारे गये नेता की अंत्येष्टि में शामिल ही नहीं हुईं, बल्कि उनके लिए प्रचार करनेवाले व्यक्ति की अर्थी को कंधा भी दिया।