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    बुझने लगी लालू की लालटेन

    azad sipahi deskBy azad sipahi deskJune 24, 2019No Comments7 Mins Read
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    रांची। कभी बिहार से झारखंड तक लालू के लालटेन की लौ के सामने कोई पार्टी तन कर खड़ा नहीं हो पाती थी। समय का तकाजा देखिये, आज झारखंड में लोकतंत्र के सबसे बड़े मंदिर विधानसभा में राजद का एक भी प्रतिनिधि नहीं है। वहीं दूसरी ओर लोकसभा में भी बिहार और झारखंड से राजद का सूपड़ा साफ हो गया है। अब तो झारखंड और बिहार के चुनाव में राजद के परफॉरमेंस पर सबकी नजरें हैं। कारण इस वक्त राजद मृत्युशैया पर दिखायी दे रहा है। एक ओर सुप्रीमो जेल में हैं। कयास लगाया जा रहा है कि विधानसभा चुनाव के पहले तक चारा घोटाला के अन्य मामले में भी फैसला आ जाये। इधर, इडी ने भी शिकंजा कसना शुरू कर दिया है। तेजस्वी का तेज लोकसभा चुनाव परिणाम के बाद मलिन हो गया है। अब उनके नेतृत्व को बड़े नेता मानने को तैयार नहीं हैं। राजद की यह स्थिति अचानक नहीं हुई है। इसके पीछे कहीं न कहीं राजद आलाकमान भी जिम्मेवार है। इसी का नतीजा है कि समय के साथ इस प्लेटफार्म को यूज करके कार्यकर्ता नेता बनते गये और पार्टी से किनारा भी करते गये।
    झारखंड की बात करें, तो अलग राज्य से पहले जब लालू ने कहा था कि झारखंड मेरी लाश पर बनेगा, उस समय यह शब्द झारखंडियों के जनमानस में गहरा असर कर गया। इसी का नतीजा है कि यह पार्टी कभी झारखंड की खाटी माटी की पार्टी नहीं बन पायी। इसका प्रभुत्व झारखंड के उन इलाकों में ही सिमट कर रह गया, जो बिहार से सटे हुए थे। चाहे बात कोडरमा, पलामू, चतरा, देवघर, गोड्डा, गिरिडीह या फिर जमुआ की हो। इसके अलावा किसी क्षेत्र में पार्टी अपना आधिपत्य कायम नहीं कर पायी। चारा घोटाले में लालू के जेल जाते ही जनता और कार्यकर्ताओं से उनका डायलॉग बंद हो गया। उनके सामने भी पार्टी को बचाने और दोनों बेटे को राजनीति में स्थापित करने की चुनौती थी। वह बिहार में तो इस मिशन में कामयाब हो गये, लेकिन झारखंड में उनका पांव समय के साथ उखड़ता गया। अब तो स्थिति यह है कि रिम्स में लालू से मिलनेवालों की कतार समय के साथ छोटी होती जा रही है।
    दूसरी ओर अब लालू परिवार की नजर में झारखंड प्राथमिकता सूची में भी नहीं है। परिवार रांची आता है। लालू यादव से रिम्स में मुलाकात करता है और फिर पटना लौट जाता है। यही कारण है कि आज पार्टी में टूट पर टूट हो रही है, लेकिन किसी बड़े नेता को डैमेज कंट्रोल के लिए नहीं उतारा गया। बात चाहे अन्नपूर्णा देवी, जनार्दन पासवान, गिरिनाथ सिंह की हो या फिर अभी गौतम सागर राणा और उनकी टीम की। इसकी बड़ी वजह यह भी है कि झारखंड की कमान तो बड़े नेताओं को मिली, लेकिन पार्टी में उनकी एक नहीं चलती थी। सेकेंड कतार के नेताओं की लालू दरबार में सीधी इंट्री झारखंड के अध्यक्ष को हमेशा ही सालती रही है।
    समय के साथ झारखंड में बुझ गयी लालेटन की लौ
    चाहे संगठन सरकारी हो अथवा गैर सरकारी या फिर राजनीतिक दल, संगठन को क्रियाशील रखने के लिए फंड और फंक्शनरीज पहली आवश्यक शर्त है। दुर्भाग्यवश झारखंड में टिमटिमा रही लालटेन की लौ को तेज करने की जद्दोजहद कर रहा राजद दोनों ही मामलों में बेहद कमजोर रहा। राज्य गठन के बाद प्रदेश राजद की सक्रियता का ग्राफ गिरने का सिलसिला जो शुरू हुआ, उसकी भरपाई आज तक नहीं हो सकी। अविभाजित बिहार में झारखंड से राजद के नौ विधायक हुआ करते थे। 2005 में यह संख्या घट कर सात हो गयी और 2009 में पांच। 2014 में राज्य से इनका पत्ता ही साफ हो गया। एक भी विधायक नहीं जीता। यह स्थिति तब हुई, जब झामुमो नीत वाली तत्कालीन हेमंत सोरेन की सरकार में राजद के कोटे से दो मंत्री थे। प्रदेश में राजद की बद से बदतर होती स्थिति की यह बानगी भर है।
    बिहार में लालू केमेस्ट्री फेल, पार्टी पहली बार जीरो पर आउट
    लोकसभा चुनाव में बिहार में सबसे ज्यादा सीटों पर चुनाव लड़नेवाली पार्टी राजद को जहां सबसे बड़ी जीत की उम्मीद थी, वहीं परिणाम आने के बाद ये झटके से कम नहीं था कि पार्टी एक सीट भी जीत नहीं सकी जो कि अबतक का सबसे खराब प्रदर्शन कहा जा सकता है। कई दिग्गजों ने इस बार अपनी किस्मत आजमायी थी, जमकर चुनाव प्रचार भी किया गया। लेकिन, जनता ने एक भी उम्मीदवार पर भरोसा नहीं किया और पार्टी शून्य पर सिमट गयी। राजद सुप्रीमो लालू यादव की पार्टी की यह अब तक की सबसे बुरी हार है। लालू ने काफी मेहनत और मशक्कत से राजद को बिहार में स्थापित किया और राजनीति के दिग्गज खिलाड़ी रहे लालू को उनके बेटे तेजस्वी ने कहा था कि लालू एक विचार हैं, एक विज्ञान हैं। तो क्या लालू के जेल में रहने से उनकी केमेस्ट्री फेल हो गयी।
    तेजस्वी ने निराश किया
    लालू प्रसाद यादव चारा घोटाला मामले में सजायाफ्ता हैं। लेकिन, उन्हें पार्टी और परिवार की चिंता लगी रहती है। लालू ने इस बार लोकसभा चुनाव की गोटियां रांची के रिम्स अस्पताल से सेट कीं। लेकिन, इस बार उन्होंने पार्टी की कमान अपने छोटे बेटे तेजस्वी के हाथों सौंपी थी। तेजस्वी ने लालू को निराश किया। महागठबंधन के लिए लालू ने अविश्वसनीय राजनीतिक सहयोगी माने जाने वाले रालोसपा के उपेंद्र कुशवाहा, हम के जीतन राम मांझी और विकासशील इंसान पार्टी के मुकेश सहनी के साथ मिलकर महागठबंधन बनाया और इसमें कांग्रेस को भी शामिल किया। महागठबंधन का निर्माण तो हो गया और लालू ने जेल से ही चुनावी गोटियां फिक्स की, लेकिन जादू नहीं चल पाया।
    खराब प्रदर्शन का जिम्मा तेजस्वी यादव पर
    लोकसभा चुनाव में राजद का सबसे खराब प्रदर्शन रहा। राजद के इस प्रदर्शन पर सोशल मीडिया पर जारी चर्चाओं में तेजस्वी यादव को इस खराब प्रदर्शन के लिए जिम्मेदार ठहराया जा रहा है। महागठबंधन को इस चुनाव में राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव की कमी खली। तेजस्वी यादव के नेतृत्व में पूरे चुनाव प्रचार के दौरान कुशल नेतृत्व का घोर अभाव दिखा। 2014 की मोदी लहर में भी आरजेडी चार सीटें जीतने में सफल रही थी, लेकिन इस बार तो राजद का सूपड़ा ही साफ हो गया।
    बड़े नेताओं ने राजद से किया किनारा
    दल की स्थिति झारखंड में नाजुक हो गयी है। कई बड़े नेताओं ने इससे किनारा कर लिया। वर्तमान में स्वास्थ्य मंत्री रामचंद्र चंद्रवंशी कभी राजद के बड़े स्तंभ माने जाते थे। इस दल से विधायक भी बने। लेकिन 2014 में पाला बदल कर भाजपा में चले गये और जीत कर विधानसभा पहुंचे। इसी तरह प्रकाश राम ने भी 2014 में ही दल का साथ छोड़ दिया और झारखंड विकास मोर्चा में शामिल होकर विधायक बने। राजद छोड़कर झाविमो में शामिल हुए जानकी यादव भी 2014 में विधायक चुने गये। इसके अलावा प्रदेश से लेकर जिला स्तर तक कई नेताओं ने दल का साथ छोड़ दिया।
    अब तो हर दिन यह खबर बन रही है कि आज किसने राजद का साथ छोड़ा। राजद से भागने की जो रफ्तार है, उसे देख कर कहा जा सकता है कि जल्द ही यह खबर बनने वाली है कि अब कौन-कौन राजद में हैं। यह स्थिति झारखंड की ही नहीं, बिहार में भी विधानसभा चुनाव से पहले बड़ी भगदड़ होेनेवाली है। इसका सबसे बड़ा कारण यही है कि राजद के परंपरागत वोटरों ने भी अब उसका साथ छोड़ दिया है। उसकी पूंजी थी माय समीकरण। अब वह भहरा गया है। दोनों ही राजद से अलग हो गये हैं। और जब वोटर ही नहीं रहेंगे, तो पार्टी रहेगी कैसे! राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि लालू के परिवारवाद ने भी पार्टी का भट्टा बैठा दिया। लालू यादव, राबड़ी यादव, तेज प्रताप यादव, तेजस्वी यादव, मीसा भारती यानी परिवार से अलग कोई ऐसा नेता ही रहा, जिस पर लालू को विश्वास रहा हो और यही कारण है कि अब लोगों का विश्वास इस परिवार पर से उठ गया है।

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