झाविमो लोकसभा चुनाव के बाद पस्त है। झाविमो के अंदर ही विवाद गहरा गया है। विधायक दल के नेता प्रदीप यादव की दूरियां पार्टी से बढ़ी हैं। एक महिला के साथ विवाद के बाद पार्टी अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी ने श्री यादव से महासचिव पद छोड़ने के लिए कहा, तो श्री यादव ने घंटे भर के अंदर पद छोड़ दिया। बदलते राजनीतिक घटनाक्रम के बीच झाविमो में टूट संभव है। श्री यादव दूसरा ठौर तलाश सकते है। लोकसभा चुनाव में करारी शिकस्त झेलने के बाद झारखंड विकास मोर्चा बड़ी टूट की ओर बढ़ रहा है। लक्ष्मण स्वर्णकार के भाजपा में शामिल होने के बाद अब 17 जुलाई को पार्टी केंद्रीय प्रवक्ता योगेंद्र प्रताप सिंह, कोषाध्यक्ष केके पोद्दार, पार्टी अल्पसंख्यक मोर्चा के केंद्रीय अध्यक्ष मुन्ना मल्लिक भाजपा में शामिल होंगे। इन लोगों के साथ कई जिला एवं महानगर अध्यक्ष समेत सैकड़ों की संख्या में झाविमो कार्यकर्ता भाजपा का दामन थामेंगे। इस बात की पुष्टि योगेंद्र प्रताप सिंह ने की है। कहा जा रहा है कि झाविमो छोड़ने का सिलसिला यहीं थमनेवाला नहीं है। अभी कई और पार्टी के वरीय नेता इस कतार में शामिल हैं।
जानकारी के अनुसार झाविमो विधायक दल के नेता प्रदीप यादव, पूर्व मंत्री रामचंद्र केशरी, पार्टी के वरीय उपाध्यक्ष डॉ सबा अहमद समेत कई वरीय पदाधिकारी भी इस राह में आगे बढ़ चुके हैं। प्रदीप यादव को लेकर थोड़ा पेंच खुद भाजपा में फंसता दिख रहा है। इसको लेकर भाजपा में अंतर्विरोध के स्वर खड़े होने के कारण फिलहाल इनकी बात अभी ज्वाइनिंग तक नहीं पहुंच सकी है। खुद प्रदीप यादव लोकसभा चुनाव के बाद मुख्यमंत्री से मिल चुके हैं।
पार्टी के समक्ष क्षेत्रीय दल की मान्यता बचाने की चुनौती
वर्तमान समय में झाविमो के समक्ष क्षेत्रीय दल की मान्यता बचाए रखने की चुनौती आन पड़ी है। अगर गठबंधन के तहत चुनाव लड़ा गया और सम्मानजनक परिणाम एवं वोट नहीं मिला, तो पार्टी की मान्यता समाप्त हो सकती है। इसी कारण इस बात की संभावना प्रबल हो चुकी है कि वोट प्रतिशत बढ़ाने के लिए पार्टी सभी 81 सीटों पर अकेले ही चुनाव लड़े।
कांग्रेस ने दिया है बाबूलाल को पार्टी विलय का आॅफर
झाविमो से मिली जानकारी के अनुसार कांग्रेस प्रभारी आरपीएन सिंह एवं प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष डॉ अजय कुमार ने बाबूलाल मरांडी को पूरी पार्टी का विलय कांग्रेस में करने का आॅफर दिया है। मरांडी के समक्ष यह भी प्रस्ताव रखा गया है कि पूरी पार्टी का विलय कर लें, इसके बाद उनके नेतृत्व में कांग्रेस विधानसभा का चुनाव लड़ेगी। कांग्रेस के इस प्रस्ताव पर पार्टी केंद्रीय महासचिव बंधु तिर्की ने बाबूलाल मरांडी को काफी समझाया, मगर मरांडी इसके लिए तैयार नहीं हुए। बंधु तिर्की जल्द ही कांग्रेस का दामन थाम सकते हैं।
सब कुछ ठीक नहीं है जेवीएम में
अन्य दलों की तरह झाविमो के अंदर भी सब कुछ ठीक नहीं है। बीते दिनों पार्टी पदाधिकारियों की बैठक और कार्यसमिति की बैठक में भी पार्टी के नेताओं का आपसी मतभेद-मनभेद छलक उठा। पार्टी के शीर्ष नेताओं-पदाधिकारियों के बीच उभरे मतभेद पर पार्टी अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी ने फिलहाल मौन रहना ही श्रेयष्कर समझा।
2014 से पार्टी में बिखराव लगातार जारी है। कई बड़े नेता पार्टी को अलविदा कह चुके हैं। बाबूलाल मरांडी और प्रदीप यादव की इस हार के बाद अब झाविमो के अस्तित्व पर ही सवाल उठने लगा है। पार्टी को अब इससे उबरने के लिए संगठन को फिर से खड़ा करने की जरूरत है।
पिछले विधानसभा चुनाव से पहले भी झाविमो में हुई थी टूट
झाविमो में यह कोई नयी बात नहीं है। कह सकते हैं कि झारखंड में झाविमो एक तरह से सियासी पाठशाला बन गया है। पिछले विधानसभा चुनाव के पहले भी झाविमो को टूट का सामना करना पड़ा था। लगभग आधा दर्जन के करीब विधायकों ने पार्टी को बाय-बाय किया था। उस समय तो ऐसा लगा था कि वर्ष 2014 के विधानसभा चुनाव में झाविमो कहीं झारखंड के राजनीतिक पटल से गायब न हो जाये, लेकिन चुनाव परिणाम झाविमो में खुशियां लेकर आया था। आठ विधायक जीत कर आये। मगर पार्टी अपने विधायकों को सहेज कर नहीं रख सकी। नतीजा यह हुआ कि कुछ महीने के अंदर ही झाविमो के छह विधायक भाजपा में चले गये। उस समय यह कहा जा रहा था कि प्रदीप यादव के कारण विधायक और बड़े नेता पार्टी छोड़ रहे हैं। इसमें बहुत हद तक सच्चाई भी थी। यही वजह है कि लोकसभा चुनाव के दौरान प्रदीप यादव पर एक पार्टी कार्यकर्ता के साथ मामला आने पर बाबूलाल मरांडी ने बिना वक्त गंवाये उनसे प्रधान महासचिव का पद छीन लिया। कहा जा रहा है कि बिना जांच के पार्टी के इस निर्णय से प्रदीप यादव काफी आहत थे। जानकारी के अनुसार इसी दौरान उन्होंने भाजपा से नजदीकी बढ़ानी शुरू कर दी थी। कहा तो यह भी जा रहा है कि प्रदीप यादव ने मुख्यमंत्री रघुवर दास से भी इस बाबत बातें की हैं। भाजपा में प्रदीप यादव के अभी भी कई घनिष्ठ मित्र हैं। कहा जा रहा है कि प्रदीप यादव को फिर से भाजपा में लाने की मुहिम में ये नेता लगे हुए हैं।
बहरहाल अब देखना दिलचस्प होगा कि क्या झाविमो पार्टी में व्याप्त असंतोष को दूर कर पायेगा? क्या बाबूलाल मरांडी अपने कुनबे को समेट कर रख सकेंगे या इस सप्ताह पार्टी को एक बार फिर बड़ी टूट का दंश झेलना पड़ेगा।
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