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    Home»Top Story»झामुमो के रणनीतिक कौशल की कड़ी परीक्षा लेगा संथाल
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    झामुमो के रणनीतिक कौशल की कड़ी परीक्षा लेगा संथाल

    azad sipahi deskBy azad sipahi deskSeptember 20, 2019No Comments7 Mins Read
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    2019 के लोकसभा चुनावों में अपने गढ़ संथाल के दुमका में भाजपा के सुनील सोरेन के हाथों हारने के बाद झामुमो में शिबू सोरेन का युग लगभग अवसान की ओर है। वहीं आसन्न विधानसभा चुनावों के लिए पार्टी की रणनीति तय करने की कमान स्वाभाविक रूप से हेमंत सोरेन के हाथों में है। झारखंड और केंद्र में सत्तारूढ़ भाजपा से मुकाबले के लिए हेमंत पूरी ताकत लगाये हुए हैं पर भाजपा की राजनीतिक बमबारी से वे घिर गये हैं। चुनावी रणक्षेत्र में महागठबंधन के साथियों के साथ उन्हें भाजपा से जोर-आजमाइश करनी है, पर भाजपा की महारथियों से भरी विशाल सेना के आगे महागठबंधन का कुनबा बिखरा सा लगता है। बीते लोकसभा चुनावों में महागठबंधन को सिर्फ दो सीटों पर संतोष करना पड़ा था, वहीं भाजपा 12 सीटों पर कब्जा करने में सफल रही थी। इस जीत से भाजपा जहां आत्मविश्वास की लहर पर सवार है, वहीं महागठबंधन को विधानसभा चुनावों के लिए जो ऊर्जा चाहिए, वह उसे अपेक्षित मात्रा में मिल नहीं रही। महागठबंधन का सबसे बड़ा दल होने के कारण आसन्न विधानसभा चुनावों में भाजपा के निशाने पर झामुमो ही है। हालांकि पार्टी कांग्रेस पर भी हमला बोलने से नहीं चूक रही है। भाजपा का सबल पक्ष यह है कि वह न सिर्फ चुनावों के लिए अपने पत्ते खोल चुकी है, बल्कि झामुमो के गढ़ में घुसकर राजनीतिक बमबारी भी कर रही है। वहीं, झामुमो अपने पत्ते खोलने से परहेज कर रहा है। आनेवाला चुनाव यह साफ कर देगा कि संथाल और कोल्हान के अपने गढ़ में झामुमो बचा रहेगा या फिर मोदी लहर में चौतरफा राजनीतिक हमले में साफ हो जायेगा? राजनीतिक हालात ये साफ इशारा कर रहे हैं कि रघुवर दास के राजनीतिक कौशल ने झामुमो को चारों ओर से घेर दिया है। हेमंत सोरेन ऐसे राजनीतिक चक्रव्यूह से घिर गये हैं, जिससे निकलना उनके लिए आसान नहीं है। इससे यह भी स्पष्ट है कि आगामी चुनाव में संथाल परगना झामुमो के रणनीतिक कौशल की कड़ी परीक्षा लेने जा रहा है। नतीजा जो भी निकले पर यह साफ है कि दोनों दल चुनावों में अपने पक्ष में जनता को खींचने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ रहे। विधानसभा चुनाव के लिए भाजपा और महागठबंधन की रस्साकशी पर नजर डालती दयानंद राय की रिपोर्ट।

    चुनाव सिर्फ चुनाव नहीं होते। कई बार वे किसी दल या व्यक्ति विशेष के राजनीतिक भविष्य की कसौटी भी होते हैं और नवंबर-दिसंबर में होनेवाला विधानसभा चुनाव तो कई अर्थों में झारखंड में झामुमो के राजनीतिक भविष्य की कसौटी बनेगा। यह चुनाव झारखंड में न सिर्फ झामुमो का राजनीतिक भविष्य तय करेगा, बल्कि झामुमो के कार्यकारी अध्यक्ष हेमंत सोरेन के रणनीतिक कौशल की भी कड़ी परीक्षा लेगा। इतिहास पर नजर डालें, तो 2009 के विधानसभा चुनावों में झारखंड में 18 सीटें जीतनेवाला झामुमो मोदी लहर के बावजूद 2014 में 19 सीटें जीतने में सफल रहा था। इन नतीजों के बाद भाजपा को यह समझते देर नहीं लगी कि झामुमो झारखंड में ताकतवर है, तो इसके पीछे संथाल और कोल्हान में उसकी मजबूत पकड़ है। इसके बाद भाजपा ने 2019 के चुनावों के लिए अपनी पूरी ताकत कोल्हान और संथाल में झोंक दी है। भाजपा की पूरी कोशिश है कि संथाल और कोल्हान में झामुमो को इतना कमजोर कर दो कि फिर उसका वजूद ही संकटग्रस्त हो जाये। यही कारण है कि इस बार भाजपा ने अपने 56 इंच के सीने वाले कई महारथियों जिनमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, अमित शाह, जेपी नड्डा, रघुवर दास, ओम प्रकाश माथुर, नंदकिशोर यादव, लक्ष्मण गिलुआ और धर्मपाल सिंह को संथाल और कोल्हान के साथ पूरे झारखंड में 65 प्लस का लक्ष्य जीतने के लिए लगा रखा है, वहीं उनके मुकाबले हेमंत सोरेन लगभग अकेले हैं। उनकी हालत महाभारत के अभिमन्यु जैसी हो गयी है, जो चारों ओर से महाबलियों के चक्रव्यूह में फंस गया है। झामुमो की दिक्कत यह है कि पार्टी में हेमंत सोरेन के कद का कोई दूसरा नेता नहीं है। वहीं भाजपा में कद्दावर नेताओं की पूरी फौज है। ले-देकर हेमंत को चुनावों में किसी का सहारा है तो वह झामुमो के अपने दमखम और महागठबंधन के साथियों का है। झामुमो के लिए राहत की बात यह है कि कांग्रेस ने आखिरकार झामुमो को अपना बड़ा भाई मान लिया है और उसका नेतृत्व भी स्वीकार कर चुकी है। होटल रैडिशन ब्लू में बुधवार को आयोजित पूर्वोदय में कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष रामेश्वर उरांव ने यह साफ कर दिया कि लोकसभा में झामुमो का जो गठबंधन कांग्रेस और साथी दलों के साथ था, वह विधानसभा में जारी रहेगा और हेमंत ही महागठबंधन के नेता होंगे। कार्यक्रम में हेमंत सोरेन मुखर दिखे। साफ कहा कि रघुवर सरकार को झारखंड में पूर्ण बहुमत मिला, तब भी वह अपने कार्यकाल में कोई लंबी लकीर खींचने में सफल नहीं हो सके, जबकि हमने गठबंधन की सरकार सफलतापूर्वक चला कर दिखायी। अपनी बदलाव यात्रा के क्रम मेें हेमंत सोरेन साफ तौर पर कह चुके हैं कि वे झारखंड से रघुवर सरकार को उखाड़ कर रहेंगे, चाहे इसके लिए उन्हें अपनी बलि ही क्यों न चढ़ानी पड़े। वहीं, मुख्यमंत्री रघुवर दास भी अपने भाषणों में यह कहते नहीं थक रहे कि झारखंड को झामुमो से मुक्त करना है।
    चुनावों को रघुवर ने प्रतिष्ठा का प्रश्न बना लिया है

    आसन्न विधानसभा चुनावों को मुख्यमंत्री रघुवर दास ने प्रतिष्ठा का प्रश्न बना लिया है। इस वजह से अपने लगभग पांच वर्षों के कार्यकाल में उन्होंने 40 दफा संथाल का दौरा किया। अमित शाह ने यहां बुधवार को ही संथाल परगना के जामताड़ा में जन आशीर्वाद योजना का शुभारंभ किया और झामुमो तथा कांग्रेस को आड़े हाथों लेते हुए कहा कि कांग्रेस ने लंबे समय तक देश और झारखंड में सरकार चलायी पर झारखंड के लिए कुछ नहीं किया। नरेंद्र मोदी की सरकार ने झारखंड को सींचा और डेढ़ गुणा राशि देकर झारखंड का विकास किया। वहीं रघुवर दास ने कहा कि कांग्रेस और झामुमो मिलकर झारखंड को लूटने का प्लान बना रहे हैं। संथाल परगना ने तीन-तीन मुख्यमंत्री दिये पर किसी ने यहां के बारे में नहीं सोचा। वहीं, रघुवर अपने भाषण में यह कहने से भी नहीं चूके कि आइये झारखंड को झामुमो मुक्त बनायें। संथाल परगना के अपने छह दिनों के दौरे में रघुवर 44 जनसभाएं और 581 किलोमीटर की यात्रा करेंगे। संथाल के बाद भाजपा कोल्हान में झामुमो को पस्त करना चाहती है। यहां भी भाजपा की रणनीति के तहत मुख्यमंत्री रघुवर दास 25 सितंबर से प्रवास और जन आशीर्वाद योजना की शुरुआत करेंगे। दुर्गा पूजा से पहले वह संथाल और कोल्हान की यात्रा पूरी कर लेंगे।

    पत्ते खोलने से बच रहे हेमंत

    विधानसभा चुनावों के लिए झामुमो समेत पूरे महागठबंधन की क्या रणनीति है इसका खुलासा करने से हेमंत सोरेन बच रहे हैं। जब पूर्वोदय कार्यक्रम में उनसे चुनावी तैयारियों पर सवाल किया गया तो उन्होंने साफ कुछ न कहते हुए यह कहा कि पार्टी अपने तरीके से चुनावी तैयारियों में जुटी हुई है। जाहिर है कि भाजपा के मिशन 65 प्लस के लक्ष्य ने महागठबंधन के पसीने छुड़ा दिये हैं। इसकी वजह यह है कि जहां केंद्र और झारखंड में भाजपा की सरकार होने के कारण पार्टी के पास बैकअप की कोई कमी नहीं है, वहीं विपक्ष में रहने के कारण झामुमो संसाधनों की कमी से जूझ रहा है। झामुमो के मुकाबले कांग्रेस के पास अपेक्षाकृत बेहतर बैकअप है, पर इसका कितना इस्तेमाल पार्टी झारखंड में करेगी यह बहुत क्लियर नहीं है। कांग्रेस के लिए संकट यह है कि चुनावों के ठीक पहले कांग्रेस में अध्यक्ष के पद पर हुए फेरबदल से पार्टी में गुटबाजी और तीव्र हो गयी है। हालांकि रामेश्वर उरांव सबको साथ लेकर चलने की बात कहते हैं, पर यह वे कर दिखायेंगे इस पर संशय बरकरार है, क्योंकि सुखदेव भगत उनके खिलाफ हमलावर हो चुके हैं। ऐसे में कांग्रेस की चुनावी नैया पार कराना उनके लिए असंभव नहीं तो कठिन टास्क तो हो ही गया है। रामेश्वर उरांव के लिए यह चुनाव भी किसी परीक्षा से कम नहीं है, क्योंकि इसी चुनाव से यह तय हो जायेगा कि वे लंबे समय तक प्रदेश अध्यक्ष रहेंगे या नहींं। कुल मिलाकर भाजपा झारखंड में झामुमो और कांग्रेस दोनों को निस्तेज करने में जुटी हुई है, क्योंकि इन्हें निस्तेज किये बिना उसका 65 प्लस का लक्ष्य पूरा नहीं होनेवाला। वहीं हेमंत की रणनीति महागठबंधन को साथ लेकर भाजपा का चक्रव्यूह भेदने की है। इस लड़ाई में किसके हाथ विजय और किसके हाथ पराजय आयेगी यह तो चुनाव के परिणाम बतायेंगे पर वर्तमान स्थिति तो यह है कि हर दल मैदान मारने की तमन्ना रखता है।

    Santhal will take a rigorous examination of JMM's strategic skills
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