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    Home»Top Story»रोचक होगी कोलेबिरा, पोड़ैयाहाट, लोहरदगा की जंग
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    रोचक होगी कोलेबिरा, पोड़ैयाहाट, लोहरदगा की जंग

    azad sipahi deskBy azad sipahi deskOctober 3, 2019No Comments8 Mins Read
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    झारखंड के तेज तर्रार और मुखर माने जानेवाले तीन नेता जेल से बाहर आ गये हैं। विधानसभा चुनाव के ठीक पहले इन तीनों नेताओं आजसू के कमल किशोर भगत, झारखंड पार्टी के एनोस एक्का और झाविमो के प्रदीप यादव का बाहर आना पूरे झारखंड में चर्चा का विषय बना हुआ है। राजनीतिक रणनीतिकार इसके कई मायने और मतलब निकाल रहे हैं। कहा जा रहा है कि इनके आने के बाद तीनों के विधानसभा क्षेत्र पोड़ैयाहाट, लोहरदगा और कोलेबिरा में राजनीतिक समीकरण बदलेगा। क्योंकि तीनों ही नेताओं की अपने क्षेत्र में धाकड़ पकड़ है। तीनों लोकप्रिय हैं, जुझारू हैं और बोलक्कड़ के रूप में जाने जाते हैं। इसी कारण तीनों के जेल से बाहर आने के बाद राजनीतिक चिंतक जोड़ तोड़ का हिसाब लगाने में जुट गये हैं। इसी जोड़तोड़ और बदलते हालात के राजनीतिक समीकरणों पर नजर डाल रही है दीपेश कुमार की रिपोर्ट।

    कांग्रेस की बढ़ सकती हैं मुश्किलें, तो झामुमो की है पैनी निगाह

    बदलते राजनीतिक समीकरण में लोहरदगा में कांग्रेस की मुश्किलें बढ़ती दिख रही हैं। वहीं, झामुमो भी स्थिति पर पैनी निगाह रखे हुए हैं। कहा जा रहा है कि खास कर एनोस एक्का और कमल किशोर भगत के बाहर आने से लोहरदगा और कोलेबिरा सीट पर ज्यादा हलचल मच सकती है।
    क्योंकि दोनों ही जेल जाने से पहले इन क्षेत्रों के विधायक थे। कमलकिशोर भगत लोहरदगा से आजसू के विधायक थे, तो एनोस एक्का कोलेबिरा से झापा के विधायक थे। आज दोनों ही सीटें कांग्रेस के पास हैं। यह भी तय है कि तीनों नेता जब जेल से बाहर आ गये हैं, तो आगामी विधानसभा चुनाव में पूरा जोर लगायेंगे। इसके संकेत भी उन्होंने दे दिये हैं। एनोस और कमल किशोर भगत के परोक्ष रूप से चुनावी जंग में कूदने से कांग्रेस की परेशानी बढ़ेगी। अब तक जो कांग्रेस दोनों सीटों को लेकर निश्चिंत नजर आ रही थी, वह स्थिति अब नहीं रहनेवाली। इस स्थिति का लाभ उठाने की कोशिश झारखंड मुक्ति मोर्चा भी कर सकता है। फिलहाल वह हालात को भांपने की कोशिश कर रहा है।

    सहानुभूति पाने की कोशिश में जुटे प्रदीप यादव

    सबसे पहले हम बात करेंगे धाकड़-बोलक्कड़ नेता और राजनीति में गहरी पकड़ रखनेवाले झारखंड विकास मोर्चा के डॉ प्रदीप यादव की। प्रदीप यादव फिलहाल पोड़ैयाहाट से विधायक हैं। झाविमो की ही एक महिला नेत्री के यौन उत्पीड़न मामले में वह पिछले दो माह से जेल में थे। हाइकोर्ट से बेल मिलने के बाद तीन दिन पहले ही वह जेल से बाहर आये हैं। दरअसल, ये पिछले लोकसभा चुनाव में गोड्डा से ही पार्टी के उम्मीदवार भी थे। उसी दौरान पार्टी की नेत्री ने उन पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया था, जिसमें वह इस कदर फंसे कि जेल तक जाना पड़ा। लोकसभा चुनाव के दौरान मोदी लहर होने के बावजूद गोड्डा में उनकी स्थिति काफी मजबूत मानी जा रही थी। राजनीतिक विश्लेषक समेत उनके विरोधी भी मान रहे थे कि प्रदीप यादव को हराना मुश्किल होगा, परंतु प्रदीप यादव इस यौन उत्पीड़न के मामले में ऐसे उलझे कि इज्जत और प्रतिष्ठा तो गयी ही, चुनाव भी बुरी तरह से हारे। इतना ही नहीं, चुनाव के बाद तो पार्टी ने भी उनसे मुंह मोड़ लिया और उन्हें पद छोड़ना पड़ा। अब वह जेल से बाहर आ गये हैं और आते ही राजनीतिक समीकरण बिठाने में जुट गये हैं। अपने विधानसभा क्षेत्र का भ्रमण उन्होंने शुरू कर दिया है। लोगों के बीच जाकर इस पूरे प्रकरण को सहानुभूति के माहौल में बदलने का प्रयास कर रहे हैं। बता रहे हैं कि उन्हें राजनीतिक साजिश के तहत फंसाया गया। कुल मिलाकर कहा जाये, तो वह एक बार फिर से विधानसभा चुनाव के लिए अपनी राजनीतिक जमीन मजबूत करने में जुट गये हैं। जानकारों की मानें, तो प्रदीप यादव को इसमें ज्यादा परेशानी भी नहीं होगी, क्योंकि वह लोकप्रिय तो हैं ही, क्षेत्र में एक वर्ग के लोगों के बीच उनकी पकड़ भी है। तेज तर्रार भी हैं। माहौल को अपने हक में बनाना भी उन्हें आता है। इसके अलावा पार्टी के स्तर पर देखा जाये, तो प्रदीप यादव के आने से झाविमो को भी मजबूती मिलेगी। बाबूलाल मरांडी के बाद वह पार्टी के दूसरे सबसे बड़े नेता के रूप में जाने जाते हैं। पूरे राज्य में लोग उन्हें पहचानते हैं। राज्यभर में लोगों के बीच जाकर वह इस मामले को एक साजिश के रूप में भुनाने का प्रयास कर सकते हैं, लोगों की सहानुभूति हासिल कर पार्टी को लाभ पहुंचा सकते हैं। हालांकि उनकी रिहाई के बाद से ही अब तक पार्टी की ओर से कोई बड़ा या खास बयान नहीं आया है और न ही किसी ने कोई उत्साह दिखाया है। पार्टी उन्हें लेकर काफी संयमित है, बयानबाजी से बच रही है। क्योंकि पार्टी के बड़े नेता जानते हैं कि उन पर यौन उत्पीड़न का आरोप है, जो भारतीय समाज में काफी हेय दृष्टि से देखा जाता है।

    सबसे ज्यादा जोड़तोड़ हो सकती है लोहरदगा में
    कमल किशोर भगत जेल जाने से पहले लोहरदगा के विधायक थे। वर्षों पहले राजधानी के बरियातू में डॉ केके सिन्हा के आवास पर हुई एक मारपीट के मामले में उन्हें सजा हुई और विधायकी चली गयी। 21 साल पुराने इस मामले में कोर्ट ने उन्हें सात साल की कैद की सजा सुनायी थी। उनके जेल जाने के चार साल बाद सरकार ने उनकी सजा माफ कर दी है और वह बाहर आ सके हैं। कमलकिशोर भगत लोहरदगा से आजसू के विधायक थे। हालांकि विधायकी छोड़ने से पहले उन्होंने अपनी राजनीतिक जमीन बचाने के लिए शादी कर ली। इसके बाद लोहरदगा में जब उप चुनाव हुए, तो उन्होंने अपनी पत्नी को आजसू के टिकट पर ही चुनाव मैदान में उतार दिया, परंतु उनकी सीट नहीं बच सकी। इस चुनाव में काफी कोशिश के बावजूद कांग्रेस के सुखदेव भगत ने उनकी अनुभवहीन पत्नी को पटखनी दे दी। अब जब कमल किशोर बाहर आ गये हैं, तो आजसू को भी एक मजबूत और पुराना साथी मिल गया है। कमल किशोर भगत की छवि आंदोलनकारी की रही है। तेज तर्रार और लड़ाका माने जाते हैं। अपने क्षेत्र में काफी लोकप्रिय भी रहे हैं। हालांकि वह चुनाव तो नहीं लड़ पायेंगे और अपनी पत्नी को जीत दिलाने में कोई कसर नहीं छोड़ेंगे, यह तय है। अब आजसू भी एक बार फिर से लोहरदगा सीट को लेकर मजबूत दावा पेश कर सकती है। अब उसके दावे को नकारना भाजपा के लिए भी आसान नहीं होगा। हां, हालात तब बदल सकते हैं, यदि सुखदेव भगत कांग्रेस छोड़कर भाजपा का दामन थाम लें। इसकी चर्चा भी राजनीतिक फिजां में जोरशोर से हो रही है। सुखदेव के आने पर भाजपा का टिकट उन्हें ही मिलेगा, यह तय है। तब लोहरदगा में नया राजनीतिक समीकरण देखने को मिल सकता है। संभव है सुखदेव के पाला बदलने पर कमल किशोर भगत कुछ न कुछ राजनीतिक कदम उठायें, यह देखना दिलचस्प होगा।

    कोलेबिरा में दिख सकता है नया चेहरा
    झापा के पूर्व विधायक और राज्य के पूर्व मंत्री एनोस एक्का के जेल से बाहर आने के बाद सबसे ज्यादा हलचल मची हुई है। एनोस एक्का दमदार नेता माने जाते हैं। पहली बार ही चुनाव जीतने के बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। न ही कोई चुनाव हारे। यह अलग बात है कि उनकी पत्नी पिछला उप चुनाव हार गयीं। एनोस की नक्सलियों के बीच भी पैठ मजबूत मानी जाती है। दरअसल इसी से संबंधित मामले में फंसे भी। पारा शिक्षक की हत्या की साजिश के मामले में उन्हें आजीवन कारावास की सजा निचली कोर्ट से सुनायी गयी है। मामले में 2014 से ही वह जेल में थे। सजा सुनाये जाने के बाद उन्हें विधायकी छोड़नी पड़ी। इसके बाद झापा के टिकट पर ही उनकी पत्नी मेनन एक्का उप चुनाव में उतरीं, परंतु झामुमो का समर्थन मिलने के बाद भी वह हार गयीं। एनोस की सीट कांग्रेस के विक्सल कोनगाड़ी के पास चली गयी। अब जेल से छूटते ही एनोस एक्का ने घोषणा कर दी है कि अगला विधानसभा चुनाव उनकी बेटी लड़ेगी। इससे कोलेबिरा और झापा के कार्यकर्ताओं में काफी उत्साह है। एनोस के बाहर आने से कांग्रेस की परेशानी भी बढ़ गयी है। सीट भले ही उसके पास हो, पर उसे पता है कि विक्सल कोनगाड़ी एनोस के मुकाबले कहीं नहीं ठहरते। उनमें एनोस के मुकाबले अनुभव की भी कमी है। एनोस को हर तरह के लोगों का समर्थन भी मिल सकता है। वह बाहर रहेंगे, तो अपने तरीके से जोड़तोड़ करेंगे, जिसमें वह माहिर भी हैं। कल तक जो उनके परिवार से दूर हो गये थे, वह भी साथ आयेंगे। इन सबके बीच भाजपा जरूर अपने लिए मौके तलाश सकती है। क्योंकि भाजपा को पता है कि यहां महागठबंधन की राह मुश्किल हो सकती है। एनोस तो इसका हिस्सा बनेंगे नहीं, क्योंकि उन्हें बेटी को जीत दिलाकर अपनी राजनीतिक जमीन मजबूत करनी है। उधर कांग्रेस भी अपनी सीटिंग सीट छोड़ेगी नहीं। यहां दिलचस्प यह देखना होगा कि झामुमो क्या रवैया अपनाता है। पिछले उप चुनाव में झामुमो ने कांग्रेस का विरोध कर एनोस की पत्नी मेनन एक्का को अपना समर्थन दिया था।
    तीनों बोलक्कड़ जो जेल से बाहर आये हैं, उनके विधानसभा क्षेत्रों के हालात पर गौर करें, तो सबसे ज्यादा पेंच कोलेबिरा में ही देखने को मिल सकती है। कोलेबिरा में भाजपा की रणनीति क्या होगी, यह भी देखना रोचक होगा। बहरहाल झारखंड में चुनावी जंग को रोमांचक बनाने के लिए तीनों नेता बाहर आ गये हैं और तमाम राजनीतिक विश्लेषकों का फोकस भी अब इन्हीं पर है।

    Lohardaga will be interesting Podaihat The battle of Kolebira
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