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    रघुवर और हेमंत की साख दांव पर

    azad sipahi deskBy azad sipahi deskNovember 29, 2019No Comments7 Mins Read
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    एक वर्तमान और दो पूर्व मुख्यमंत्री तथा एक पूर्व उप मुख्यमंत्री की प्रतिष्ठा दांव पर
    विधानसभा चुनाव को लेकर राजनीतिक दलों की गतिविधियां तेज हो गयी हैं। पहले चरण के वोट 36 घंटे बाद डाले जायेंगे। ऐसे में झारखंड में सियासी फिजा पूरी तरह बदल चुकी है। सत्तापक्ष और विपक्षी दलों के उम्मीदवार चुनावी मैदान में उतर चुके हैं। एक-दूसरे के खिलाफ सियासी हमले चरम पर हैं। जनता को अपनी ओर आकर्षित करने के लिए वायदे किये जा रहे हैं और कई क्षेत्रों में किये जा चुके हैं। जहां एक ओर विपक्षी दलों ने एकजुट होकर भाजपा को शिकस्त देने की रणनीति बनायी है, वहीं भाजपा ने अपने दम पर ही मिशन 65 पार के लक्ष्य को हासिल करने के लिए पूरी ताकत झोंक रही है। भाजपा ने कुछ नये और पुराने चेहरों की बदौलत महागठबंधन को पराजित करने की रणनीति बनायी है। इन सबके बीच विधानसभा चुनाव में झारखंड के दो पूर्व मुख्यमंत्रियों सहित कई अन्य दिग्गजों की प्रतिष्ठा दांव पर है। इस विधानसभा चुनाव में दो पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी, हेमंत सोरेन और वर्तमान मुख्यमंत्री रघुवर दास चुनाव मैदान में हैं। इस बार मुख्यमंत्री रघुवर दास को जमशेदपुर पूर्वी से कड़ी टक्कर मिलने की प्रबल संभावना है, क्योंकि उनके ही मंत्रिमंडल में साथ रहे भाजपा के कद्दावर नेता सरयू राय से उनका मुख्य मुकाबला है। इधर, झारखंड विकास मोर्चा सुप्रीमो बाबूलाल मरांडी राजधनवार से चुनाव लड़ रहे हैं। उनको भाजपा उम्मीदवार लक्ष्मण सिंह, महागठबंधन से झारखंड मुक्ति मोर्चा के निजामुद्दीन अंसारी कड़ी चुनौती देने जा रहे हैं। हेमंत सोरेन बरहेट और दुमका दो जगहों से चुनाव लड़ रहे हैं। दुमका सीट पर भाजपा की लुइस मरांडी और बरहेट में सिमोन मोलतो से उनका मुकाबला माना जा रहा है। पिछली बार भी वे दोनों सीटों पर लड़े थे। दुमका में उनकी हार हुई थी, जबकि बरहेट में वह विजयी रहे थे।

    65 प्लस के लक्ष्य को भेदना है रघुवर को
    भाजपा के नेता और मुख्यमंत्री रघुवर दास के कंधे पर इस बार बड़ी जिम्मेदारी है। यह पहला मौका है, जब उन्होंने खुद के साथ पार्टी को जीत दिलाने की जिम्मेदारी भी अपने कंधे पर ले रखी है। पिछले चुनाव में भाजपा को 37 सीटें मिली थीं। इन सीटों को इस बार बढ़ा कर 65 प्लस पहुंचाने की जिम्मेदारी रघुवर दास के कंधों पर ही है। वह भी इस परिस्थिति में, जब उनके अपने ही क्षेत्र में उनके मंत्रिमंडलीय सहयोगी रहे सरयू राय बागी बनकर उन्हें चुनौती दे रहे हैं। पार्टी ने इस बार रघुवर दास पर पूरा भरोसा रखा है। उन्हें दल का नेता और भावी मुख्यमंत्री पहले ही घोषित कर दिया गया है। रघुवर भी जी-जान से लक्ष्य के संधान में जुटे हैं। उन्हें पार्टी और नेताओं का पूरा समर्थन भी मिल रहा है। एक-एक सीट के गणित का आकलन कर उम्मीदवार तय किये हैं। टिकट के फैसले में रघुवर की इच्छा का पूरा सम्मान किया गया है। हालांकि कई सीटों पर भाजपा के बागी और पूर्व सहयोगी आजसू से कड़ी टक्कर मिल रही है। ऐसे में लक्ष्य को पाना कड़ी चुनौती है। रघुवर भी जानते हैं कि अपेक्षित सीटें नहीं मिलने के बाद उनका राजनीतिक भविष्य किस कदर दांव पर लग जायेगा।

    खुद को साबित करना है हेमंत सोरेन को
    गठबंधन के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार हेमंत सोरेन के लिए यह चुनाव काफी अहम माना जा रहा है। अलग झारखंड राज्य बनने के बाद यह पहली दफा है जब कांग्रेस और झामुमो के बीच चुनाव से पहले गठबंधन पर सहमति बन गयी है। इस चुनाव में झामुमो, राजद और कांग्रेस ने चुनाव पूर्व गठबंधन किया है। गठबंधन ने सीटों के बंटवारे के समय ही हेमंत सोरेन का नाम नेता के रूप में घोेषित कर दिया है। वर्ष 1975 में जन्मे हेमंत सोरेन को झारखंड आंदोलन के प्रमुख नेता शिबू सोरेन का उत्तराधिकारी माना जाता है। वर्ष 2014 के विधानसभा चुनाव में झामुमो ने राज्य में अकेले चुनाव लड़ा। तब पार्टी को 19 सीटों पर जीत मिली थी। इस बार के चुनाव में झामुमो सत्ता में वापसी के प्रयास में है। हेमंत सोरेन ने झामुमो की कमान संभालने के बाद पार्टी के जनाधार को शहर में फैलाने का प्रयास किया है। सोशल मीडिया पर भी झामुमो इस बार के विधानसभा चुनाव में मजबूत उपस्थिति दर्ज करा रहा है। पार्टी ने उन्हें पूरी तरह फ्री हैंड छोड़ा है। झामुमो सुप्रीमो गुरुजी का आशीर्वाद भी उन्हें प्राप्त है। अब देखना है कि इस चुनाव जनता हेमंत सोरेन के भाग्य का क्या फैसला सुनाती है।

    संगठन विस्तार के साथ प्रदर्शन भी चुनौती है सुदेश के लिए
    विधानसभा चुनाव में भाजपा और आजसू की सियासी राहें जुदा हो गयी हैं और दोनों पार्टियां एक दूसरे के खिलाफ चुनावी मैदान में ताल ठोक रही हैं। हालांकि दोनों के बीच कई जगहों पर दोस्ती का सीन भी दिख रहा है। बता दें कि एनडीए से सुदेश महतो के अलग होने के बाद से भाजपा नेताओं ने अब तक आजसू और सुदेश महतो पर किसी तरह की तीखी टिप्पणी नहीं की है। माना जा रहा है कि भाजपा चुनाव बाद की रणनीति को भी ध्यान में रखकर चल रही है। दोनों पार्टियां अलग-अलग होकर मैदान में उतरी हैं। इसके चलते सियासी परिदृश्य में कई सीटों पर नये समीकरण उभरे हैं। 2014 में 8 विधानसभा सीटों पर लड़कर पांच सीटें जीतने वाली आजसू इस बार अब तक 52 सीटों पर प्रत्याशी दे चुकी है। आये दिन विभिन्न दलों के बागी छोटे-बड़े नेता आजसू का दामन थाम रहे हैं। कहा जाये, तो पार्टी का कुनबा लगातार बढ़ रहा है। आज कई विधायक और बड़े नेताओं से सजी यह पार्टी किसी दूसरे बड़े दल से कम नहीं दिखती। टिकट कटने से नाराज नेताओं की पहली पसंद आजसू बन गयी है। इसका लाभ सुदेश महतो ने भरपूर तरीके से उठाया है। आज वह कई सीटों पर भाजपा और झामुमो को चुनौती दे रहे हैं। पर संगठन विस्तार के साथ नतीजों को भी अपने पक्ष में करना सुदेश महतो के समक्ष बड़ी चुनौती होगी।
    आजसू को राजनीतिक क्षितिज पर बड़े आकार में स्थापित करने के लिए हर हाल में सुदेश महतो को अपने लक्ष्य को पाना होगा।

    बहुत बड़ा रिस्क लिया है बाबूलाल मरांडी ने
    बाबूलाल मरांडी झारखंड के पहले मुख्यमंत्री हैं। वे प्रदेश के सबसे सुलझे नेताओं में एक हैं। बाबूलाल मरांडी की पार्टी झारखंड विकास मोर्चा भविष्य की राजनीति को ध्यान में रख 2019 में अकेले चुनाव लड़ रही है। पार्टी ने सभी 81 सीटों पर प्रत्याशी उतारे हैं। पिछले विधानसभा चुनाव में उनकी पार्टी को 8 सीटें मिलीं थीं। अगर इस बार भी झाविमो को इसके आसपास सीटें मिल गयीं और त्रिशंकु विधानसभा की नौबत आ गयी तो मरांडी किंगमेकर बन सकते हैं। हरियाणा के दुष्यंत चौटाला की तरह बाबूलाल मरांडी भी झारखंड की राजनीति में अनिवार्य बन जायेंगे। पर यदि ऐसा नहीं हुआ, तो उनकी पूरी मेहनत पर पानी फिर जायेगा। हलांकि यह कभी नहीं कहा जा सकता कि बाबूलाल का राजनीतिक भविष्य दावं पर है या हार से वह गर्त में चले जायेंगे, क्योंकि वह जुझारू नेता के रूप में जाने जाते हैं। बार बार उठ कर फिर से चल पड़ना उनकी फितरत में है। अकेले लड़कर और 81 सीटों पर उम्मीदवार देकर बेहतर प्रदर्शन करना उनके लिए बड़ी चुनौती जरूर है। हालांकि उनके पास खोने के लिए कुछ भी नहीं है। उनकी पार्टी के पास अभी सिर्फ एक सीट है। वह जितनी सीटें बढ़ा सकें, वही उनके लिए बोनस है।

    पिछले चुनाव में हारे थे कई दिग्गज
    2014 में हुए विधानसभा चुनाव में दुमका से झामुमो के कार्यकारी अध्यक्ष हेमंत सोरेन को भाजपा की लुइस मरांडी ने हराया था। भाजपा के दिग्गज नेता और राज्य के तीन बार मुख्यमंत्री रहे अर्जुन मुंडा खरसावां सीट से झामुमो के दशरथ गगरई से चुनाव हार गये थे। धनवार सीट से बाबूलाल मरांडी को सीपीआइएमएल के राजकुमार यादव ने हराया था। वहीं, बाबूलाल मरांडी को गिरिडीह सीट से भी भाजपा के निर्भय शाहबादी के हाथों हार मिली थी। राज्य के निर्दलीय मुख्यमंत्री रहे मधु कोड़ा को मझगांव से झामुमो के निलय पूर्ति ने हराया था। आजसू सुप्रीमो सुदेश कुमार महतो को सिल्ली से झामुमो के अमित महतो ने पटकनी दे दी थी। ये सभी नेता उस चुनाव में अपने दल के नेतृत्वकर्ता भी थे।

    Raghubar and Hemant's credibility at stake
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