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    Home»Top Story»चार साल में सोनू-सुदेश बन गये अरबपति
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    चार साल में सोनू-सुदेश बन गये अरबपति

    azad sipahi deskBy azad sipahi deskJanuary 20, 2020No Comments6 Mins Read
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    झारखंड खनिज संपदाओं से भरपूर प्रदेश है। ऊर्जा के सबसे प्रमुख स्रोत कोयले का यहां भंडार है। जाहिर है कि इस काले हीरे का सही-गलत धंधा भी झारखंड में खूब फलता-फूलता है। झारखंड में कोयले का धंधा आॅक्टोपस जैसा है। राजनीति से लेकर पुलिस प्रशासन और अपराध-उग्रवाद की दुनिया से भी इस काले हीरे का गहरा नाता है। कोयले के अवैध कारोबार को पुलिस प्रशासन और उग्रवाद की दुनिया के खिलाड़ियों ने कैसे प्रोत्साहित किया, इस बारे में आजाद सिपाही क्राइम ब्यूरो की खास रिपोर्ट।

    अकूत संपत्ति अर्जित करनी है, तो झारखंड आइये। यहां आपका इंतजार वैसे पुलिस अधिकारी कर रहे हैं, जिनके सहयोग से आप खाकपति से सीधे अरबपति बन सकते हैं। सब कुछ अनुकूल है, वैसे लोगों के लिए जो लक्ष्मी की पूजा तो करते हैं, लेकिन लक्ष्मी बांटने में भी माहिर हैं। पश्चिम बंगाल का रहनेवाला सोनू अग्रवाल और सुदेश केडिया, रघुराम रेड्डी, ये वैसे नाम हैं, जिन्होंने कोयले की कमाई से अपनी स्थिति तो बदली ही, वैसे पुलिस अधिकारियों की आर्थिक दशा भी बदल डाली, जो उन्हें कोयले के अवैध कारोबार में मदद करते रहे हैं। इस काले धंधे में डुबकी तो कुछ नेताओं और पत्रकारों ने भी लगायी है। यहां पुलिस, नेता, पत्रकार, सीसीएल के अधिकारियों के गंठजोड़ ने बड़े पैमाने पर कोयला तस्करों को पोसा है। टंडवा में सीसीएल की दो कोलियरियां मगध और आम्रपाली में तो सारे नियम और कायदे टूट गये। यहां टीपीसी नामक उग्रवादी संगठन ने कब्जा जमाया। उसने दबंग कमेटी बनायी, जो ट्रांसपोर्टरों से अवैध वसूली करने लगी। इस वसूली का वड़ा हिस्सा पोसनेवालों को मिला। वहीं टीपीसी उग्रवादी भी अचानक कुबेर बनते चले गये। तीन-चार ऐसे चेहरे सामने आये, जो टीपीसी उग्रवादियों को मोटी रकम पहुंचाते थे। इसी में रघुराम रेड्डी, सोनू अग्रवाल, सुदेश केडिया के भी नाम हैं।
    इस धंधे की जानकारी जब एक बड़े उद्योगपति नवीन जिंदल को लगी, तो वह भी यहां कारोबार करने पहुंचे। पहले से काम करनेवाले लोगों ने उन्हें झटक लिया। उस समय राजनाथ सिंह गृह मंत्री थे। नवीन जिंदल उनसे जा मिले और लिखित ज्ञापन देकर टंडवा में जांच कराने की मांग कर डाली। जिंदल की मांग पर ही मामला एनआइए को गया था और अचानक टंडवा थाना में चार मामले दर्ज हुए। एनआइए ने कांड संख्या 22/18 को टेकओवर किया। साथ ही एक नया मामला 322/2018 दर्ज किया। इस मामले में वे सभी लोग आरोपी हैं, जो इस धंधे से जुड़े हैं। इनमें आधुनिक पावर के महाप्रबंधक संजय कुमार जैन, ट्रांसपोर्टर सुधांशु रंजन उर्फ छोटू, सुभान खान, बिंदेश्वरी गंझू, विनोद गंझू, आक्रमण जी, सोनू अग्रवाल, सुदेश केडिया, महेश अग्रवाल, विनीत अग्रवाल, आधुनिक के एमडी महेश अग्रवाल और ट्रांसपोर्टर अजय सिंह शामिल हैं।

    एनआइए ने मारे थे ताबड़तोड़ छापे
    इस मामले को लेकर एनआइए की टीम ने ताबड़तोड़ छापेमारी की थी। बीजीआर कंपनी के जीएम रघुराम रेड्डी को लेकर उसके घर पहुंची और दस्तावेजों को खंगाला था। इस दौरान टीम ने रेड्डी की दो महंगी गाड़ियों की भी जांच की और उनमें रखे दस्तावेजों की छानबीन की थी। जानकारी के मुताबिक रेड्डी किराये पर रहते हैं। उन्होंने स्वीकार भी किया था कि बगैर टीपीसी को पैसा दिये धंधा नहीं किया जा सकता है।

    कश्मीर के बाद अब झारखंड में सामने आये बड़े अफसरों के नाम
    चतरा के टंडवा स्थित आम्रपाली और मगध कोयला परियोजना से खनन, व्यवसाय और ट्रांसपोर्टिंग में टेरर फंडिंग मामले की जांच कर रही राष्ट्रीय जांच एजेंसी को कई अहम जानकारियां हाथ लगी हैं। गिरफ्तार व्यवसायी सुदेश केडिया और ट्रांसपोर्टर पूर्वी सिंहभूम निवासी अजय कुमार सिंह से एनआइए को कुछ बड़े अधिकारियों के नाम भी मिले हैं, जो उन्हें सहयोग किया करते थे। सुदेश केडिया को तो सरकारी अंगरक्षक भी मिला हुआ था, इसका खुलासा हो चुका है। टेरर फंडिंग की राशि कहां-कहां बंटती थी, इसकी भी जानकारी एनआइए को मिल चुकी है, जिसकी पड़ताल जारी है। सुदेश केडिया के करीबी अधिकारी उसकी गिरफ्तारी के बाद से ही विचलित हैं। बड़े नाम सामने आने के बाद एनआइए इस मामले में फूंक-फूंक कर कदम उठा रही है। व्यवसायी और ट्रांसपोर्टर को रिमांड पर लिये जाने की तैयारी है।
    टेरर फंडिंग के इस बहुचर्चित मामले में 23 अगस्त 2019 को आधुनिक पावर कंपनी के महाप्रबंधक संजय जैन, ट्रांसपोर्टर सुधांशु रंजन उर्फ छोटू, सीसीएलकर्मी सुभान खान, तृतीय सम्मेलन प्रस्तुति कमेटी (टीएसपीसी) का नक्सली बिंदेश्वर गंझू उर्फ बिंदू गंझू, प्रदीप राम, अजय सिंह भोक्ता, विनोद गंझू, मुनेश गंझू और बीरबल गंझू के खिलाफ आरोप तय किया गया था।

    प्रति ट्रक 23 सौ रुपये की वसूली का भी हुआ था खुलासा
    एनआइए की जांच शुरू होने से पूर्व मगध और आम्रपाली कोयला परियोजना से 23 सौ रुपये प्रति ट्रक लिये जाने की बात सामने आयी थी। इसमें नौ सौ रुपये टोकन और ब्रोकर चार्ज के नाम पर और 14 सौ रुपये पेपर वर्क के नाम पर लिये जाते थे। यह राशि लोडिंग, बिलिंग और ट्रांसपोर्टिंग में सुविधा के रूप में ली जाती थी। लोडिंग चार्ज का कुछ प्रतिशत विस्थापित और प्रभावित क्षेत्र के मजदूरों को दिया जाता था। वसूली का बड़ा हिस्सा उग्रवादी संगठनों के साथ-साथ जिले के सरकारी और गैर सरकारी व्यक्तियों के बीच बंटता था।

    पांच साल से कोयला व्यापार से जुड़ा है केडिया
    सुदेश केडिया पांच साल से कोयला व्यापार से जुड़ा है। मध्यम वर्गीय परिवार से आनेवाला सुदेश केडिया कुछ साल पहले तक ट्रांसपोर्ट और मोटर पार्ट्स के व्यवसाय से जुड़ा था। कोयला व्यवसाय में आने के बाद उनके पास काफी पैसा आने की चचार्एं होने लगीं।

    क्या है पूरा मामला
    टंडवा थाने में दर्ज प्राथमिकी 22/18 को एनआइए ने टेकओवर करते हुए जांच शुरू की थी। यह मामला सीसीएल, पुलिस, उग्रवादी और शांति समिति के बीच समन्वय को लेकर लेवी वसूली से संबंधित है। एनआइए ने सीसीएल कर्मी सुभान खान सहित 14 आरोपियों के विरुद्ध चार्जशीट दाखिल की थी। चार्जशीट में लिखा था कि टीएसपीसी को लेवी देने के लिए ऊंची दर पर मगध और आम्रपाली कोल परियोजना से कोयला ढुलाई का ठेका लिया गया था। इसमें टीएसपीसी उग्रवादी आक्रमण जी ने अनुशंसा की थी और ट्रांसपोर्टर सुधांशु रंजन उर्फ छोटू सिंह को ठेका मिला था। इसमें मिली राशि का बड़ा हिस्सा टीएसपीसी को जाता था।

    सबसे बड़ा सोनू अग्रवाल सलामी मारते हैं पुलिस अफसर
    सोनू अग्रवाल का नाम चार साल में तेजी से सामने आया। सोनू की उम्र करीब 32 वर्ष होगी। मूल रूप से वह कोलकाता का रहनेवाला है। उसे रांची, धनबाद और बंगाल पुलिस के अंगरक्षक मिले हैं। सोनू को झारखंड पुलिस का हर अधिकारी जानता है। उसकी आर्थिक स्थिति के बारे में भी सबों को पता है। उसके कहने पर थानों के प्रभारी और जिलों के एसपी भी बदले जाते हैं। अब उसकी गिरफ्तारी की संभावना है। हालांकि चर्चा है कि एनआइए आसानी से उस पर हाथ नहीं डाल पायेगी।

    एक प्रतिष्ठित अखबार को खरीदने पहुंच गया था सोनू अग्रवाल
    कोयला के काले कारोबार में डुबकी लगानेवाला सोनू अग्रवाल के पास कितनी अकूत संपत्ति हो गयी है, यह इससे भी स्पष्ट हो जाता है कि वह झारखंड के एक प्रतिष्ठित अखबार को खरीदने पहुंच गया था। उसने अखबार के शेयर खरीदने के लिए मुंह मांगी रकम देने को तैयार था। किन्हीं कारणों से यह सौदा नहीं हो पाया।

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