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    Home»Top Story»झारखंड में भाजपा को पटरी पर लाना नड्डा की बड़ी चुनौती
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    झारखंड में भाजपा को पटरी पर लाना नड्डा की बड़ी चुनौती

    azad sipahi deskBy azad sipahi deskJanuary 22, 2020No Comments6 Mins Read
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    भाजपा के नये अध्यक्ष के रूप में जगत प्रकाश नड्डा की ताजपोशी के साथ ही अब प्रदेशों में संगठन में फेरबदल का दौर शुरू होनेवाला है। कभी भाजपा के मजबूत गढ़ रहे झारखंड में भाजपा को पटरी पर लाना नये अध्यक्ष के लिए बड़ी चुनौती होगी। विधानसभा चुनाव में प्रदेश अध्यक्ष के साथ रघुवर दास और दूसरे बड़े नेताओं की हार के बाद पार्टी सकते में है। 20 साल में सबसे खराब प्रदर्शन करनेवाली भाजपा के सामने पार्टी नेताओं और कार्यकर्ताओं के गिरे हुए मनोबल को दोबारा उठाने की चुनौती है। आज झारखंड भाजपा की स्थिति यह है कि चुनाव खत्म होने के करीब एक महीने बाद भी विधायक दल का नेता नहीं चुना गया है। इतना ही नहीं, हार के कारणों की पड़ताल भी संगठन के स्तर पर नहीं की गयी है। पार्टी के नये राष्टÑीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने अपने पहले संबोधन में कहा भी है कि उनकी पहली प्राथमिकता पार्टी को जीत की पटरी पर लौटाना है। ऐसे में झारखंड में पार्टी को वह कैसे जीत की पटरी पर लौटाते हैं, यह देखना दिलचस्प होगा। नड्डा के सामने की इस चुनौती पर आजाद सिपाही पॉलिटिकल ब्यूरो की खास रिपोर्ट।

    नेताओं-कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ाने का है चैलेंज
    21वीं शताब्दी के पहले दशक के अंतिम वर्ष में दुनिया की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी भाजपा को नया अध्यक्ष मिला है। जगत प्रकाश नड्डा की ताजपोशी के बाद सबसे बड़ा सवाल यही उठ रहा है कि राज्यों के चुनाव में खराब प्रदर्शन कर रही भाजपा को नये अध्यक्ष कितना संबल प्रदान करेंगे। अमित शाह की आक्रामक शैली और नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता की छत्रछाया में राजनीति का ककहरा सीखनेवाले नड्डा आम तौर पर सॉफ्ट नेता माने जाते हैं। ऐसे में जब उन्होंने अध्यक्ष के रूप में अपने पहले संबोधन में यह कहा कि उनकी प्राथमिकता पार्टी को जीत की पटरी पर दोबारा लौटाना होगी, तो इसके कई अर्थ निकलते हैं। करीब सात महीने पहले देश में हुए आम चुनाव में ऐतिहासिक जीत हासिल कर भाजपा ने साबित कर दिया कि फिलहाल उसे केंद्र में कोई खतरा नहीं है। लेकिन पिछले एक साल के दौरान जिस तरह उसके हाथ से राज्य दर राज्य फिसलते जा रहे हैं, कहीं न कहीं यह सवाल भी पैदा करता है कि आखिर पार्टी की नीतियों में कहां कमी रह गयी है कि केंद्र में अपराजेय होने के बावजूद राज्यों की जनता उसे क्यों अस्वीकार कर रही है।
    इस मायने में भाजपा के नये अध्यक्ष जेपी नड्डा के सामने झारखंड सबसे बड़ी चुनौती के रूप में खड़ा है। विधानसभा चुनाव में पार्टी का प्रदर्शन 20 साल में सबसे खराब रहा। पार्टी महज 25 सीटें ही जीत सकी। आदिवासियों के लिए आरक्षित सीटों पर उसका प्रदर्शन तो और भी खराब रहा। पार्टी को ऐसी 28 सीटों में से केवल दो पर जीत मिली। पार्टी के सबसे बड़े नेता रघुवर दास समेत लगभग सभी कद्दावर नेता चुनाव में हार गये। चुनाव में हार के बाद प्रदेश अध्यक्ष लक्ष्मण गिलुआ ने इस्तीफा दे दिया। चुनावी हार के झटके से पार्टी संगठन अब तक उबर नहीं सका है। हालत यह है कि पार्टी के स्तर पर अब तक हार के कारणों की पड़ताल भी नहीं हो सकी है। हालांकि लक्ष्मण गिलुआ इसके लिए विपक्षी दलों के दुष्प्रचार को बड़ा कारण मानते हैं। उनका कहना है कि सरकार के खिलाफ विपक्षी दलों ने ऐसा माहौल बनाया, जिससे जनता दिग्भ्रमित हो गयी। लेकिन दूसरी तरफ पार्टी के दूसरे नेता अब कहने लगे हैं कि सरकार के शीर्ष स्तर पर लिये गये कुछ फैसले और व्यवहार ने पार्टी को जनता से काट कर रख दिया। इन परस्पर विरोधी दावों के बीच हकीकत का पता लगाना भी नड्डा के लिए बड़ी चुनौती है।
    नड्डा की ताजपोशी के बाद भाजपा के भीतर चर्चा आम है कि यह केंद्र में अमित शाह युग और झारखंड में रघुवर युग की समाप्ति का संकेत है। यदि यह आकलन सही है, तो नड्डा के सामने अमित शाह की आक्रामक कार्यशैली के समानांतर एक नयी कार्यप्रणाली विकसित करनी होगी, ताकि प्रदेश संगठन में नयी जान आ सके। जैसा कि सभी जानते हैं कि अमित शाह के दौर में भाजपा ने सफलता की नयी इबारत लिखी। दक्षिण से लेकर पूर्वोत्तर के राज्यों में पार्टी का परचम लहराया, लेकिन इस दौरान पार्टी ने प्रदेश संगठनों को पूरी तरह नजरअंदाज कर दिया था। केंद्रीय स्तर पर जहां पार्टी लगातार मजबूत हो रही थी, वहीं प्रदेशों में संगठन खोखला होता जा रहा था। शायद यही कारण था कि पहले राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ तथा फिर महाराष्टÑ और बाद में झारखंड की सत्ता भाजपा के हाथ से निकल गयी। अमित शाह के दौर में रघुवर दास हों या डॉ रमन सिंह, शिवराज सिंह चौहान हों या वसुंधरा राजे या फिर देवेंद्र फडणवीस, सभी अपराजेय लग रहे थे, लेकिन हकीकत यह थी कि ये नेता केवल अमित शाह-नरेंद्र मोदी के करिश्माई व्यक्तित्व की मदद से ही जनता के बीच बने हुए थे। इनमें से किसी ने भी अपने-अपने राज्य में अपना जनाधार बढ़ाने पर ध्यान नहीं दिया। इसी क्रम में संगठन का कामकाज भी प्रभावित हुआ।
    भाजपा के नये अध्यक्ष के लिए अब झारखंड में संगठन को नयी धार देने की चुनौती है। आदिवासियों के बीच पार्टी को दोबारा स्थापित करने में उन्हें कड़ी मशक्कत करनी होगी। भाजपा भले ही बाबूलाल मरांडी को अपने पाले में करने में कामयाब हो जाये, लेकिन उसे अभी लंबा सफर तय करना है। बाबूलाल मरांडी जिस स्तर के नेता हैं और उनकी जो छवि है, उसका कितना लाभ भाजपा उठा सकेगी, यह देखना दिलचस्प होगा। पार्टी के नये प्रदेश अध्यक्ष का चयन भी आसान नहीं है। पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष रह चुके प्रो रविंद्र कुमार राय और अभी पार्टी के प्रदेश महासचिव दीपक प्रकाश के अलावा कई और बड़े नाम इस पद के लिए चर्चा में हैं। नड्डा के सामने पार्टी को नया प्रदेश अध्यक्ष देने और फिर पार्टी को एकजुट रखने की बड़ी चुनौती है। पार्टी की जिला इकाइयों को दोबारा मजबूत बनाने और वहां नया अध्यक्ष बनाने की परीक्षा भी उन्हें देनी होगी। लक्ष्मण गिलुआ कहते हैं कि यह सब काम आसानी से हो जायेगा। जेपी नड्डा के अध्यक्ष बनने के बाद संगठन में नयी जान आयेगी। नीचे से ऊपर तक फेरबदल होगा। लेकिन कब और कैसे होगा, इसका जवाब किसी के पास नहीं है। गिलुआ के पास भी नहीं।

    Nadda's big challenge to derail BJP in Jharkhand
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