भ्रष्टाचार के खिलाफ कार्रवाई होनी चाहिए या नहीं? अगर किसी सरकारी दफ्तर में गड़बड़ी की शिकायतें मिल रही हों और उन्हें दुरुस्त करने के लिए कोई अभियान चले तो क्या इसका विरोध होना चाहिए? दुर्भाग्य से झारखंड में अब यह भी हो रहा है। बुधवार को भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो ने राज्य के चार सरकारी दफ्तरों पर छापा क्या मारा, विपक्ष बिफर पड़ा है। भाजपा की ओर से इसे बदले की कार्रवाई बताया जा रहा है, जो इससे पहले कभी नहीं हुआ। जो पार्टी सत्ता में रहते हुए भ्रष्टाचार के खिलाफ जीरो टॉलरेंस के दावे करती थी, उसका यह रंग देखकर लोग दंग हैं। दरअसल यह भाजपा की सोची-समझी रणनीति है। क्या है भाजपा की मंशा और वह इसमें कितनी सफल हो सकती है, इसका जायजा लेती आजाद सिपाही पॉलिटिकल ब्यूरो की खास रिपोर्ट।
बुधवार 26 फरवरी को राज्य की भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो (एसीबी) ने सरकार के चार कार्यालयों पर छापा मारा और दिन भर वहां फाइलों को खंगाला। इन कार्यालयों में रांची और धनबाद नगर निगम के अलावा रांची का रजिस्ट्री आॅफिस और डोरंडा थाना शामिल थे। यहां एसीबी की अलग-अलग टीमों ने फाइलों और दस्तावेज खंगाले और अधिकारियों-कर्मचारियों से पूछताछ की। एसीबी की ओर से कहा गया कि इन कार्यालयों में भ्रष्टाचार और गड़बड़ियों के कारण आम लोगों को परेशानी होने की शिकायत मिली थी। इसके बाद सरकार के आदेश के आलोक में छापामारी की गयी। छापामारी न किसी अधिकारी के खिलाफ थी और न ही किसी कर्मचारी के खिलाफ। छापामारी में क्या हासिल हुआ, इस बारे में कोई जानकारी नहीं दी गयी। लेकिन शाम होते-होते भाजपा की ओर से इस छापामारी का विरोध किया जाने लगा। भाजपा ने इस कार्रवाई को बदले की भावना की कार्रवाई करार दिया। इतना ही नहीं, रांची और धनबाद के मेयर ने एसीबी की कार्रवाई को नगर निगम की स्वायत्तता पर आघात करार दिया। भाजपा के प्रवक्ताओं, सांसद और अन्य नेताओं ने छापेमारी के खिलाफ आधिकारिक बयान जारी किया और कहा कि हेमंत सरकार बदले की कार्रवाई कर रही है।
भाजपा का यह विरोध कहीं दरअसल हेमंत सोरेन के नेतृत्व में बनी पूर्ण बहुमत की पहली गैर-भाजपा सरकार को घेरने की सोची-समझी रणनीति का हिस्सा तो नहीं है।
29 दिसंबर को कार्यभार संभालने के बाद मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन लगातार भ्रष्टाचार के खिलाफ सख्त कदम उठा रहे हैं और इसकी तारीफ भी हो रही है। हालांकि वह कह चुके हैं कि उनकी सरकार बदले की भावना से कोई कार्रवाई नहीं करेगी, लेकिन गड़बड़ियों और भ्रष्टाचार के खिलाफ कदम उठाने से भी नहीं हिचकेगी। उन्होंने घोटालों के आरोपी पथ निर्माण विभाग के अभियंता प्रमुख रास बिहारी सिंह को निलंबित कर ताकतवर इंजीनियर लॉबी को बता दिया है कि वह अपने संकल्प से पीछे नहीं हटनेवाले। इतना ही नहीं, उन्होंने आइएएस और आइपीएस अधिकारियों अनुराग गुप्ता और राहुल पुरवार के खिलाफ कार्रवाई के जरिये यह संदेश दिया है कि उनकी सरकार में गड़बड़ियों की कोई जगह नहीं है। बुधवार का छापा भी इसी संदेश का हिस्सा था।
विरोध के पीछे की रणनीति
राजनीति के जानकार मानते हैं कि विधानसभा चुनाव में शिकस्त झेलने के बाद अब भाजपा ने सत्ता पक्ष को घेरने के लिए एक नयी रणनीति पर काम करना शुरू किया है। भाजपा चाहती है कि हेमंत सोरेन सरकार को पिछली सरकार के फैसलों की समीक्षा में उलझा कर रख दिया जाये, ताकि वह चुनाव में जनता से किये गये वादों पर काम शुरू ही नहीं कर सके। इतना ही नहीं, कार्यपालिका की सहानुभूति बटोर कर सरकार की ताकत को कम किया जाये। भाजपा की इसी रणनीति के तहत एसीबी की कार्रवाई का चौतरफा विरोध किया गया, जबकि यह कार्रवाई किसी के खिलाफ नहीं थी। रांची और धनबाद के मेयर ने जिस अंदाज में इस कार्रवाई का विरोध किया, उससे साफ हो जाता है कि इन्होंने एसीबी के छापे को अपने खिलाफ माना है।
सवाल यह उठता है कि यदि सरकारी कार्यालयों में किसी दूसरी सरकारी एजेंसी ने तलाशी ली है, तो फिर इसका विरोध क्यों हो रहा है। सवाल तो यह भी उठता है कि क्या रांची और धनबाद के मेयर यह मानते हैं कि उनकी नाक के नीचे गड़बड़ियां हो रही हैं, जिस पर पर्दा डालना जरूरी है या यह सरकारी अधिकारियों-कर्मचारियों की सहानुभूति बटोरने की कोशिश है। छापेमारी का विरोध करनेवाले रांची और धनबाद के मेयर यह दावे के साथ कह सकते हैं कि वहां सरकारी कर्मचारी किसी काम के एवज में पैसे नहीं लेते। क्या जन्म प्रमाणपत्र बिना पैसे के मिल जाता है। पिछली सरकार के कार्यकाल में एसीबी की किसी भी कार्रवाई का विरोध नहीं हुआ और यह पहला मौका है, जब भय-भूख-भ्रष्टाचार के खिलाफ राजनीति करने का दावा करनेवाली भाजपा एसीबी की कार्रवाई को राजनीति के चश्मे से देखने लगी है।
राजनीतिक रणनीति के जानकार कहते हैं कि भाजपा के सामने ऐसा करने के अलावा कोई रास्ता भी नहीं बचा है। झारखंड के आदिवासी इलाकों में उसका जनाधार बुरी तरह खिसका है। अल्पसंख्यक उससे पहले ही बिदके हुए हैं।
भाजपा का सबसे मजबूत समर्थक, कारोबारी और गैर-आदिवासी वर्ग ने भी इस विधानसभा चुनाव में रघुवर दास की सरकार की कार्यप्रणाली से नाराजगी जतायी। यह भी सच है कि रघुवर दास सरकार में नौकरशाही का बड़ा वर्ग सरकार की कार्यशैली से नाराज था। भाजपा मानती है कि इसका सीधा असर चुनाव परिणाम पर पड़ा। इसलिए अब पार्टी ने इस वर्ग का समर्थन हासिल करने के लिए यह रणनीति बनायी है। भ्रष्टाचार के खिलाफ हेमंत सोरेन सरकार के हल्ला बोल से नौकरशाही डरेगी और वह फैसला लेने से पीछे हटने लगेगी। इसका सीधा असर सरकारी नीतियों के क्रियान्वयन पर पड़ेगा और जनता नाराज होने लगेगी। यानी भाजपा लंबी लकीर खींचने की बजाय सरकार की लकीर को छोटी करने की रणनीति पर काम करने लगी है।
भाजपा की यह रणनीति कितनी सफल होगी, यह तो अभी नहीं कहा जा सकता है, लेकिन इतना तय है कि इससे सत्ता पक्ष को भले ही नुकसान हो, भाजपा की छवि भी बहुत नहीं चमक सकेगी। भ्रष्टाचार के खिलाफ सरकार की कार्रवाई का विरोध करने से जनता के बीच गलत संदेश जा सकता है, लेकिन भाजपा शायद यह मानती है कि लंबी अवधि में इसका लाभ उसे मिलेगा। जो भी हो, झारखंड जैसे राज्य के लिए यह रणनीति बहुत मुफीद नहीं होगी, क्योंकि यह राज्य भ्रष्टाचार और राजनीतिक अस्थिरता के लिए पहले ही बहुत बदनाम हो चुका है। 20 में से साढ़े 16 साल सत्ता में रहनेवाली भाजपा को इस तथ्य से आंखें नहीं बंद करनी चाहिए। उम्मीद तो यह की जानी चाहिए कि भाजपा के शासनकाल में अगर भ्रष्टाचार नहीं हुआ है, तो उसे दो कदम आगे बढ़ कर भ्रष्टाचार के खिलाफ उठाये जा रहे कदम का स्वागत करना चाहिए।