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    Home»Jharkhand Top News»हेमंत सोरेन की गुगली से केंद्र सरकार भी हैरान
    Jharkhand Top News

    हेमंत सोरेन की गुगली से केंद्र सरकार भी हैरान

    azad sipahi deskBy azad sipahi deskJune 22, 2020No Comments5 Mins Read
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    झारखंड सरकार ने कोयले की कॉमर्शियल माइनिंग की नीलामी के केंद्र सरकार के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटा कर एकबारगी सबको चौंका दिया है। करीब छह महीने पहले सत्ता में आयी हेमंत सोरेन सरकार के इस कदम को राजनीतिक और प्रशासनिक हलकों में आश्चर्य के साथ देखा जा रहा है। आज से पहले न तो बिहार में ऐसा हुआ था और न ही झारखंड अलग राज्य बनने के बाद। जब झारखंड अलग राज्य नहीं बना था, तब भाड़ा समानीकरण, यानी फ्रेट इक्वलाइजेशन के मुद्दे पर अकसर केंद्र और राज्य के बीच टकराव पैदा होता रहता था और उस समय यह चुनावी मुद्दा भी बनता था, लेकिन झारखंड सरकार ने पहली बार अपनी धरती के गर्भ में छिपी खनिज संपदा पर अपने अधिकार के लिए अदालत से गुहार लगायी है। केंद्र सरकार ने जब आत्मनिर्भर भारत अभियान के तहत कोयला खनन के क्षेत्र में निजी क्षेत्र को प्रवेश की अनुमति देने का फैसला किया, तब उसका झारखंड सरकार ने समर्थन किया, लेकिन साथ ही झारखंड के हितों की रक्षा के लिए नीलामी प्रक्रिया को कुछ दिनों तक स्थगित रखने का आग्रह किया, लेकिन इस आग्रह को नामंजूर कर केंद्र ने नीलामी की प्रक्रिया शुरू कर दी। हेमंत सरकार ने इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर बड़ा दांव खेला है। सुप्रीम कोर्ट इस पर क्या निर्णय देता है, यह तो भविष्य के गर्भ में है, लेकिन हेमंत सरकार के इस निर्णय से केंद्र और राज्य के संबंधों के बीच निश्चित रूप से असर पड़ेगा। हेमंत के इस निर्णय को जहां महागठबंधन अपने हक-अधिकार के लिए अस्तित्व की लड़ाई मान रहा है, वहीं विपक्ष इसे नाहक में टांग अड़ाने की संज्ञा दे रहा है। झारखंड सरकार के इस फैसले के संभावित असर का आकलन करती आजाद सिपाही ब्यूरो की खास रिपोर्ट।

    कोरोना संकट के दौर में पिछले महीने की शुरुआत में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जब आत्मनिर्भर भारत अभियान का एलान किया और बाद में केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कोयले के वाणिज्यिक खनन को निजी क्षेत्र के लिए खोलने की घोषणा की, तब किसी को अंदाजा नहीं था कि यह कदम अदालत में चला जायेगा। देश के कोयले की जरूरत का अधिकांश हिस्सा पूरा करनेवाले झारखंड ने केंद्र के फैसले का समर्थन तो किया, लेकिन उसने नीलामी प्रक्रिया को कुछ दिनों तक स्थगित रखने का आग्रह किया, ताकि इस प्रक्रिया में विदेशी कंपनियां हिस्सा ले सकें और झारखंड को उसका लाभ मिल सके। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने 13 जून को इस बारे में केंद्रीय कोयला मंत्री को एक पत्र भी भेजा, जिसमें नीलामी प्रक्रिया रोकने के पीछे तर्क दिये गये थे। केंद्र ने झारखंड के इस आग्रह को नहीं माना और तीन दिन पहले 41 कोल ब्लॉक की नीलामी की प्रक्रिया शुरू कर दी। अब झारखंड सरकार ने इसे रोकने के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है।
    कोल ब्लॉक की नीलामी पर छिड़े इस विवाद को केंद्र-राज्य के बीच के टकराव के रूप में देखा जा रहा है। टकराव की शुरुआत झारखंड से हुई है, इसलिए राजनीतिक और प्रशासनिक हलकों में इस पर अचरज भी है। लेकिन मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन अपने इस कदम के प्रति पूरी तरह आश्वस्त हैं। उन्होंने केंद्र सरकार के कदम को सुप्रीम कोर्ट में चुनौैती देने के पीछे के कारणों को स्पष्ट भी कर दिया है कि झारखंड को अपने हितों की रक्षा करने का हक भी है और तरीका भी आता है। हेमंत ने जब नीलामी प्रक्रिया को स्थगित रखने का पत्र लिखा था, तब उन्होंने कहा था कि अभी लॉकडाउन की वजह से विदेशी कंपनियां इस नीलामी प्रक्रिया में शामिल नहीं हो सकेंगी, जिससे झारखंड को नुकसान होगा। इसके अलावा उन्होंने झारखंड में कोयला खनन से जुड़े सामाजिक और पर्यावरणीय मुद्दों को भी उठाया था। दरअसल झारखंड में कोयला खनन एक जटिल प्रक्रिया है। जमीन अधिग्रहण से लेकर उत्पादित कोयले के डिस्पैच तक में सामाजिक, आर्थिक और पर्यावरण के मुद्दे जुड़े रहते हैं। खनन के कारण होनेवाला विस्थापन अंतत: राज्य के लिए बड़ी समस्या खड़ी करता है। हेमंत सोरेन कहते हैं कि वह इन समस्याओं से अच्छी तरह वाकिफ हैं। इसलिए वह कोई भी फैसला पूरी तरह ठोक-बजा कर लेना चाहते हैं। कोयला खदान की नीलामी प्रक्रिया को स्थगित रखने के आग्रह के पीछे भी उनका यही तर्क है। शनिवार को जब हेमंत सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर किये जाने की बात कर रहे थे, तब उन्होंने अपनी मंशा को भी जता दिया। उन्होंने साफ कहा कि केंद्र सरकार झारखंड के हितों की अनदेखी कर रही है। केंद्र सरकार पर सौतेला व्यवहार करने का आरोप वह पहले भी लगाते रहे हैं। कोरोना संकट के दौर में प्रधानमंत्री के सामने अपनी बात रखने का मौका नहीं दिये जाने का दर्द वह पहले भी व्यक्त कर चुके हैं। इस बार उन्हें केंद्र पर सीधे वार करने का मौका मिला और हेमंत ने इसे हाथ से नहीं जाने दिया।
    राजनीतिक हलकों में हेमंत सरकार के इस स्टैंड की भले ही आलोचना हो रही है, लेकिन उनकी पार्टी झामुमो का स्पष्ट स्टैंड है कि झारखंड के व्यापक हित में इस नीलामी को स्थगित करना ही चाहिए। इन दिनों, जब लॉकडाउन के कारण आर्थिक गतिविधियां लगभग ठप हैं, इस तरह आनन-फानन में इतना बड़ा आर्थिक कदम उठाना खतरे से खाली नहीं है। यदि विदेशी कंपनियां झारखंड में कोयला खनन करेंगी, तो यहां के सामाजिक और दूसरे मुद्दों पर अधिक ध्यान दिया जा सकेगा। इसके साथ ही विस्थापन जैसी समस्याओं का हल भी आसान हो सकेगा। झामुमो का स्टैंड है कि महागठबंधन की सरकार राज्यहित की चिंता करती है और इसकी रक्षा के लिए वह किसी भी हद तक जा सकती है। हेमंत ने केंद्र पर झारखंड के हितों की उपेक्षा का जो आरोप लगाया है, उसे भी पार्टी पूरी तरह सही मान रही है। पार्टी मानती है कि सुप्रीम कोर्ट जाने का फैसला कर हेमंत सरकार ने प्रशासनिक और राजनीतिक रूप से बहुत महत्वपूर्ण और सटीक कदम उठाया है। झारखंड का यह कदम भारतीय संघवाद का नया अध्याय है।

    Central government also surprised by Hemant Soren's googly
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