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    Home»Top Story»प्रवासियों के धैर्य दे रहे जवाब, सब कुछ त्याग श्रमिक लौट रहे घर
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    प्रवासियों के धैर्य दे रहे जवाब, सब कुछ त्याग श्रमिक लौट रहे घर

    sonu kumarBy sonu kumarJuly 7, 2020No Comments4 Mins Read
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    बेगूसराय। लॉकडाउन के बाद अनलॉक-टू चल रहा है, जिसमें लॉकडाउन के दौरान बंद हुए तमाम काम-धंधे शुरू हो चुके हैं। कोरोना का संक्रमण भले ही बढ़ रहा है लेकिन जिंदगी धीरे-धीरे पटरी पर आ रही है। इन सारी कवायदों के बीच कोरोना के बढ़ते मामलों ने तीन महीने तक परदेस में लॉकडाउन रहे बिहार के श्रमिकों-कामगारों को अब डराना शुरू कर दिया है, जिसके कारण घर वापसी का सिलसिला लगातार जारी है। देश के विभिन्न शहरों में कोरोना संक्रमण के बढ़ते मामले को लेकर प्रवासियों का धैर्य जवाब दे चुका है। दिल्ली, मुंबई और पूर्वोत्तर भारत कि विभिन्न शहरों में रहने वाले कामगार जहां ट्रेन से लौट रहे हैं, वही कोलकाता, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश राजस्थान आदि राज्यों से आने के लिए साधन बन रही है निजी सवारी गाड़ियां। लौट रहे लोगों के दुख, दर्द अलग-अलग तरह के हैं, किसी को लॉकडाउन में जलालत झेलनी पड़ी थी, भूखे रहना पड़ा था, तो कोई अनलॉक में भी परेशान है।
    कुछ लोग अपने परिवार के दबाव में भी घर वापस लौट रहे हैं, तो अधिकतर लोगों को घर वापसी का कारण बन रही है प्रधानमंत्री गरीब कल्याण रोजगार अभियान और बिहार सरकार की जल जीवन हरियाली समेत अन्य रोजगार परक योजना। बेगूसराय और आसपास के जिलों में सबसे ज्यादा लोग आ रहे हैं पूर्वोत्तर भारत के असम, मणिपुर, सिक्किम आदि के विभिन्न शहरों से। वहां से आने वाले लोग कुछ लोग अपना सब कुछ लेकर आ रहे हैं, तो कुछ लोगों ने अपना सब कुछ त्याग दिया है। बरौनी-कटिहार रेलखंड पर स्थित बेगूसराय स्टेशन के प्लेटफार्म नंबर-एक पर गुवाहाटी लोकमान्य तिलक टर्मिनल स्पेशल एक्सप्रेस रुकती है तो किसी भी ढाई-तीन सौ से कम प्रवासी नहीं उतरते हैं। यह ट्रेन बेगूसराय के बाद बरौनी से मोकामा, पटना के रास्ते मुंबई जाती है। जिसके कारण बेगूसराय, समस्तीपुर, दरभंगा, मुजफ्फरपुर, गोपालगंज समेत उत्तर बिहार के तमाम जिलों के प्रवासी नहीं उतरते हैं और यहां के बाद बस एवं अन्य निजी वाहनों से अपने गांव की ओर प्रस्थान करते हैं।
    बेगूसराय स्टेशन पर आने वाले प्रवासी जब अपना दर्द बयां करते हैं तो अच्छे-अच्छे लोगों की आंखों से अश्रुधार चल पर पड़ती है। असम के कोकराझार में सपरिवार रहने वाले प्रमोद राय, नाथो महतों, रमेश महतों आदि ने बताया कि वह लोग दस साल से वहां रहकर अपने श्रम को सस्ते में बेच रहे थे। वे लोग मोटिया का काम करते थे, तो पत्नी विभिन्न तरह के स्वरोजगार में लगी हुई थी, सुख पूर्वक दिन बीत रहे थे। कभी सोचा नहीं था कि ऐसा एक दिन आएगा, जब जलालत झेलने का दौर शुरू हो जाएगा। लॉकडाउन हुआ तो जिंदगी पर भी लॉक लग गया, खाना मिलना मुश्किल हो गया। बच्चों के लिए दूध लेने निकलते थे तो कभी-कभी लाठी भी खानी पड़ती थी। सरकारी स्तर पर खाने की कोई व्यवस्था नहीं, पुलिस वाले ऐसा व्यवहार करते थे जैसे हम लोग आतंकवादी हों, उग्रवादी हों। जिस ठेकेदार के अंदर काम करते थे उसने राशन का कुछ जुगाड़ कर रखा था लेकिन वह भी कितने दिन चलता और सिर्फ राशन से तो काम चलना मुश्किल था।
    छोटे-छोटे बच्चे थे उनके लिए काफी परेशानी का सामना करना पड़ता था। अनलॉक शुरू हुआ तो काम भी शुरू हो गया, फिर से जिंदगी रफ्तार पकड़ रही थी। कोरोना संक्रमण के बढ़ते मामलों ने बेचैन कर दिया, जिसके कारण अब गांव आ गए हैं। गांव में ही काम करेंगे, जितना सामान संभव था ला सके, शेष समान मकान मालिक को ही दे दिया। जान बचेगी तो रोटी का जुगाड़ किसी तरह कर लेंगे, यहां तो प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री ने हम लोगों के लिए बहुत कुछ सोचा है। अब यही कमाएंगे-खाएंगे और परिवार के साथ दिन गुजारेगें, दो रोटी कम भी मिली तो कोई बात नहीं, कम से कम जलालत तो नहीं झेलनी पड़ेगी, समाज तो अपना होगा।
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    sonu kumar

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