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    Home»Jharkhand Top News»कोरोना के ताप से कुम्हला रहा है बचपन
    Jharkhand Top News

    कोरोना के ताप से कुम्हला रहा है बचपन

    azad sipahi deskBy azad sipahi deskJuly 22, 2020No Comments6 Mins Read
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    कोरोना के खिलाफ जंग और चार महीने के लॉकडाउन के दौरान कई बातें हुईं, बहसें हुईं, आरोप-प्रत्यारोप भी खूब लगे और काम भी हुए। लेकिन इस तमाम कोलाहल के बीच हमारे समाज का एक तबका चर्चा से गायब रहा, जो सीधे हमारे भविष्य से जुड़ा है। कोरोना संकट के इस दौर में कभी किसी ने बच्चों की बात नहीं की, उनके बारे में नहीं सोचा। लॉकडाउन के शुरुआती दौर में देश के सामने कई ऐसी तस्वीरें आयीं, जिन्हें देख कर लोगों की आंखें भर आयीं, लेकिन बाद में सब कुछ भुला दिया गया। कोरोना ने बच्चों को समय से पहले बड़ा बना दिया है और यही कारण है कि उनका बाल मन एक अंजान आशंका से बुरी तरह घिरा हुआ है। बच्चों के हितों के संरक्षण के लिए काम करनेवाली कई संस्थाओं ने भारत जैसे देशों के बच्चों के भविष्य को लेकर गंभीर चिंता जतायी है। यह चिंता उस समय और भी गंभीर हो जाती है, जब एक भयावह आंकड़ा हमारे सामने रखा जाता है। यह आंकड़ा कहता है कि लॉकडाउन के इन चार महीनों में हमारे देश में कुल 646 बच्चों ने अलग-अलग कारणों से आत्महत्या जैसे खतरनाक कदम उठाये हैं। इनमें झारखंड के 37 बच्चे भी हैं। यह वाकई चिंतनीय है। कोरोना ने हमारी भावी पीढ़ी को कितना असुरक्षित कर दिया है और इसके क्या दुष्परिणाम होंगे, इन्हीं सवालों का जवाब तलाशती आजाद सिपाही ब्यूरो की खास रिपोर्ट।

    कोरोना से जंग लड़ रहे हिंदुस्तान के 130 करोड़ लोग कई तरह की मुश्किलों से जूझ रहे हैं और अपने-अपने तरीके से इस जंग को जीतने की कोशिश कर रहे हैं। सरकार, प्रशासन और समाज भी इस लड़ाई में अपना योगदान दे रहा है। लेकिन इस लड़ाई में एक ऐसा तबका पूरी तरह भुला दिया गया है, जो न बोल सकता है और न विरोध कर सकता है। इस तबके के पास केवल प्यार और मासूमियत है, अपनी हरकतों से बड़े से बड़े दुख-दर्द को कुछ देर के लिए भुला देने की ताकत है। यह तबका है छोटे बच्चों का।
    कोरोना संकट के इस दौर में बच्चों द्वारा आत्महत्या किये जाने का आंकड़ा वाकई डरावना है। देश में पिछले चार महीने में 646 बच्चों ने अलग-अलग कारणों से आत्महत्या कर ली। अकेले केरल में 66 बच्चों ने अपनी इहलीला समाप्त कर ली है।
    इसके अलावा लॉकडाउन के दौरान बच्चों में चिड़चिड़ापन और हिंसक प्रवृत्ति भी बढ़ी है। विशेषज्ञ कहते हैं कि असल में बच्चों पर बंदिशों का उनके मानसिक स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ा है। पहले लॉकडाउन और अब कोरोना के डर के कारण अभिभावक बच्चों को काउंसिलिंग के लिए अस्पताल लेकर नहीं पहुंच रहे हैं। इस कारण स्थिति बिगड़ रही है। स्कूल बंद होने से बच्चों में तनाव, घबराहट और बेचैनी बढ़ रही है। दोस्तों से न मिल पाने से बच्चे अलग-थलग महसूस कर रहे हैं, खासकर किशोर उम्र के। अवसाद और बेचैनी उन्हें जान देने के लिए विवश कर रही है। विशेषज्ञों के अनुसार कोरोना ने समाज में हर तरफ डर का माहौल पैदा कर दिया है। इसका सीधा और सबसे गहरा असर बच्चों पर पड़ा है। सामान्य जीवन में कई तरह के प्रतिबंधों के कारण बच्चों की जिंदगी सिमट सी गयी है। इसके कारण उनमें निराशा घर कर रही है और इस दबाव को वे बर्दाश्त नहीं कर पा रहे हैं। इसलिए वे आत्महत्या जैसे कठोर कदम तक उठाने लगे हैं।
    यदि केवल झारखंड की बात करें, तो लॉकडाउन शुरू होने के बाद से अब तक 126 लोगों ने आत्महत्या की है। इनमें 37 की उम्र 16 वर्ष से कम थी। यह किसी भी समाज और सरकार के लिए चिंताजनक है। बच्चों के बीच तेजी से घर कर रही असुरक्षा की भावना को तत्काल दूर करने की कोशिश करनी होगी। इसकी सबसे पहली जिम्मेदारी अभिभावकों की है।
    अभिभावकों को परिवार की जिम्मेदारी के साथ बच्चों की भी चिंता करनी है। विशेषज्ञ बताते हैं कि बच्चे का व्यवहार अचानक से बदलने पर उन्हें सतर्क होना होगा। बच्चा चुपचाप रहने लगे, खाना न खाये, छोटी-छोटी बातों पर चिड़चिड़ाने लगे या बहुत अधिक गुस्सा करने लगे, उसके भीतर नकारात्मक विचार आने लगें, तो बिना देर किये डॉक्टरी सलाह लेनी चाहिए। जरा सी चूक या लापरवाही बच्चे के जीवन पर भारी पड़ सकती है।
    ऐसा नहीं है कि यह केवल भारत में हो रहा है। दुनिया भर के बच्चों में डर और असुरक्षा की भावना घर कर रही है। ब्रिटेन के चाइल्ड मॉर्टेलिटी डाटाबेस के अनुसार इसका प्रमुख कारण स्कूलों का बंद होना, उनकी बेहतर देखभाल न होना, घर पर तनाव की स्थिति और लड़ाई-झगड़ा, एक जगह बंद रहने से उनकी मनोदशा खराब होना है। रिपोर्ट कहती है कि लॉकडाउन के दौरान बच्चों की आत्महत्याओं का सीधा संबंध कोरोना महामारी से है। विशेषज्ञों का कहना है कि अभिभावकों के पूरा समय नहीं दे पाने से बच्चे अकेला महसूस कर रहे हैं। घर-परिवार में नकारात्मक बातें होने पर भी मनोस्थिति बिगड़ सकती है। जब बच्चे अकेला महसूस करते हैं, उनके विचारों और भावनाओं को कोई समझ नहीं पाता है, तब वे भयावह फैसला लेते हैं।
    आखिर इन मासूमों का कसूर क्या है, जो इन्हें इतने दबाव में छोड़ दिया गया है। यकीन मानिये, हम कोरोना के खिलाफ जंग भले ही जीत जायें, इन मासूमों का दर्द हमें कई पीढ़ियों तक दुख देता रहेगा। यह हम कैसा समाज बना रहे हैं, जहां हमारे बच्चे ही निराशा और डर के दबाव में जीने को मजबूर हो रहे हैं। इन बच्चों की तकलीफों के बारे में किसी को कोई चिंता क्यों नहीं हो रही है। तमाम प्रयास और अभियान तब तक बेकार ही रह जायेंगे, जब तक हमारे देश का एक भी बच्चा इस तरह डर और दबाव में आत्महत्या करेगा।
    अब भी वक्त है संभलने का और संवेदनशील बनने का। अब यह संकल्प लेने का वक्त आ गया है कि हम यदि कहीं किसी भी बच्चे को तकलीफ में देखेंगे, तो खुद की तकलीफ से पहले उसकी मदद करेंगे। बच्चों को न धर्म से मतलब होता है और न राजनीति से। वे अपने-पराये में भी कोई भेद नहीं करते। लेकिन जीवन की शुरुआत में ही यदि उन्हें इस तरह के दर्द झेलने के लिए अकेला छोड़ दिया जाये, तो फिर विश्वगुरु बनने की हमारी लालसा और हमारा प्रयास बेकार हो जायेगा। हमें यह समझना होगा कि ये बच्चे हमारा भविष्य हैं और इनकी बदौलत ही हम भारत को दुनिया के शीर्ष पर ले जा सकते हैं। इसलिए हमें अपने बगीचे के इन खूबसूरत फूलों को कुम्हलाने नहीं देना चाहिए। यदि हम इस संकल्प पर अड़े रहे, तो यकीनन भारत को विश्वगुरु बनने से दुनिया की कोई ताकत नहीं रोक सकती।

    Childhood is withering due to Corona's temperature
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