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    Home»Jharkhand Top News»झारखंड की जख्मी आर्थिक स्थिति पर केंद्र का नमक
    Jharkhand Top News

    झारखंड की जख्मी आर्थिक स्थिति पर केंद्र का नमक

    azad sipahi deskBy azad sipahi deskJuly 28, 2020No Comments6 Mins Read
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    दिसंबर में हेमंत सोरेन के नेतृत्व में जब झारखंड में नयी सरकार ने कामकाज संभाला था, तभी कहा गया था कि राज्य की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है। मुख्यमंत्री ने कई अवसरों पर कहा था कि राज्य का खजाना खाली है और आनेवाले दिनों में कई कड़े फैसले लिये जा सकते हैं। ऐसा हुआ भी और हेमंत सरकार ने फिजूलखर्ची पर सख्ती से रोक लगायी और सरकार की आमदनी बढ़ाने के उद्देश्य से कई योजनाओं को बंद कर दिया। इसके बाद कोरोना का संकट आया और इसने पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था को तबाही की कगार पर लाकर खड़ा कर दिया। झारखंड भी इससे अछूता नहीं रहा। चार महीने से जारी लॉकडाउन ने इसकी कमर तोड़ कर रख दी है। ऐसे में अर्थव्यवस्था को जान फूंकने के लिए केंद्र सरकार ने 20 लाख करोड़ का विशेष पैकेज जारी किया। इसका कुछ न कुछ लाभ पूरे देश को मिला, लेकिन इसके साथ ही अब खनिज संपदा से भरपूर इस राज्य को दोहरा झटका लगा है। केंद्रीय करों में झारखंड की हिस्सेदारी में करीब नौ हजार करोड़ की कटौती कर दी गयी है। इतना ही नहीं, राज्य सरकार द्वारा सूखा राहत का जो प्रस्ताव केंद्र को भेजा गया था, उसे भी केंद्र ने रद्द कर दिया है। संकट के दौर में इस तरह के आर्थिक प्रहार का झारखंड पर क्या असर पड़ेगा और इससे क्या नुकसान होगा, इस पर आजाद सिपाही ब्यूरो की खास रिपोर्ट।

    पिछले साल 29 दिसंबर को झारखंड के मुख्यमंत्री का पद संभालने के बाद हेमंत सोरेन ने साफ किया था कि राज्य की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है और उनकी सरकार को विरासत में खाली खजाना मिला है। इसके बाद उन्होंने कई ऐसे उपाय किये, जिससे सरकार की फिजूलखर्ची पर रोक लगी और कुछ अतिरिक्त आमदनी भी हुई। लेकिन कोरोना संकट के कारण ये उपाय नाकाफी साबित हुए। तब हेमंत सोरेन ने केंद्र सरकार से विशेष सहायता देने का आग्रह किया, ताकि राज्य का काम चल सके। उन्होंने विभिन्न लोक उपक्रमों पर बकाया 70 हजार करोड़ रुपये का भुगतान कराने का आग्रह किया और यह भी कहा कि बिना केंद्र की मदद से झारखंड की गाड़ी नहीं चल सकती है। हेमंत सोरेन के आग्रह का कितना असर हुआ, इसका तो पता नहीं है, लेकिन अब केंद्र सरकार के दो फैसलों ने झारखंड सरकार को करारा झटका दे दिया है।
    केंद्र सरकार ने झारखंड सरकार के उस प्रस्ताव को रद्द कर दिया है, जिसके तहत झारखंड के सात जिलों के किसानों को सूखा राहत सहायता दी जानी थी। यह प्रस्ताव इसी साल अप्रैल में भेजा गया था। इसके तहत इन सात जिलों के 55 प्रखंडों के 11 लाख किसानों को मुआवजा दिया जाना था। पिछले साल राज्य सरकार ने 38 प्रखंडों को मध्यम और 17 को गंभीर रूप से सूखाग्रस्त माना था। पूर्व की सरकार ने प्रस्ताव तो तैयार कर लिया, लेकिन उसे केंद्र के पास नहीं भेजा। हेमंत सरकार ने यह फाइल भेजी, लेकिन केंद्र का कहना है कि इसमें बहुत देर हो चुकी है। इसलिए इसे स्वीकार नहीं किया जा सकता है। इस तरह राज्य के इन 11 लाख किसानों को अब सूखा राहत मुआवजा नहीं मिलेगा। इसके साथ ही केंद्र ने केंद्रीय करों में झारखंड के हिस्से में भी कटौती कर दी है। केंद्र सरकार का तर्क है कि कोरोना संकट के कारण करों की कम वसूली के कारण यह कटौती की गयी है। इस कटौती का झारखंड पर व्यापक असर पड़ना स्वाभाविक है।
    केंद्र सरकार ने इस साल के बजट में झारखंड के लिए केंद्रीय करों में हिस्सेदारी की रकम 25 हजार 978 करोड़ रुपये तय की थी। अब केंद्र ने सूचित किया है कि यह हिस्सेदारी घटा कर 17 हजार करोड़ कर दी गयी है, क्योंकि केंद्रीय करों की वसूली आशा के अनुरूप नहीं हुई है। इस वर्ष के पहले चार महीनों में झारखंड को केंद्रीय करों में हिस्सेदारी के रूप में अब तक 5884 करोड़ रुपये मिल चुके हैं। इसका मतलब यह हुआ कि अगले आठ महीनों में झारखंड को 11 हजार करोड़ से कुछ अधिक रकम ही मिल सकेगी। इसका सीधा असर राज्य के बजट पर पड़ेगा। इस बात की पूरी आशंका है कि केंद्र प्रायोजित कई योजनाएं बंद करनी पड़े, क्योंकि राज्य सरकार उनमें अपना हिस्सा देने की स्थिति में नहीं होगी।
    संकट के दौर में इस तरह के फैसले अक्सर राजनीतिक विवाद के विषय बनते हैं। इस बार भी कुछ ऐसा ही होगा। लेकिन विवादों के बरअक्स यह भी तय करना होगा कि आखिर झारखंड जैसे छोटे राज्य इस कटौती को कैसे झेल पायेंगे। भारत की संघीय व्यवस्था में केंद्र की जिम्मेदारी बड़ी है, क्योंकि उसके कंधे पर पूरे देश का बोझ होता है। अर्थव्यवस्था में केंद्र की भूमिका ही मुख्य होती है। ऐसे में यदि संकट के दौर में इस तरह की कटौती पर उसे दोबारा विचार करना ही चाहिए।
    दूसरी तरफ इस कठिन चुनौती के कारण झारखंड को अपने पैरों पर खड़ा होने के लिए हर तरफ से बहुत जोर लगाना होगा। इसके लिए केंद्र और राज्य सरकारों को मिल कर काम करना होगा। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन कई बार कह चुके हैं कि झारखंड पूरी तरह केंद्र पर निर्भर है और राज्य के विकास का खाका तो राज्य सरकार खींच सकती है, लेकिन उसके लिए संसाधन केंद्र को ही देना होगा। यदि ऐसा नहीं हुआ, तो फिर झारखंड के लिए विकास की बात बेमानी साबित होगी। मुख्यमंत्री का यह स्टैंड बहुत हद तक सही है, क्योंकि देश में जीएसटी का प्रावधान लागू होने के बाद राज्यों के आर्थिक स्रोत एक तरह से बंद हो गये हैं। जीएसटी में राज्यों को जो हिस्सा मिलता है, वही उनकी आय का मुख्य स्रोत बन गया है। इस हालत में सबसे जरूरी झारखंड की आर्थिक स्थिति को पटरी पर लाने की है। झारखंड के साथ किये गये इस व्यवहार पर अब बयानों के तीर चलेंगे और आरोप-प्रत्यारोप भी होंगे, लेकिन जरूरत झारखंड के हितों की रक्षा के लिए एकजुट होकर आवाज उठाने की है। केंद्र के फैसले का विरोध होना भी स्वाभाविक है, लेकिन प्रतिक्रिया के स्तर का विरोध वाजिब नहीं कहा जा सकता। अभी जरूरत मिल-बैठ कर रणनीति बनाने की और केंद्र के सामने अपना पक्ष मजबूती से रखने की है, ताकि राज्य को उसका वाजिब हक मिल सके।

    Center's salt on the injured economic condition of Jharkhand
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