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    Home»बिजनेस»रामरतन ने आत्मसात कर लिया है आपदा को अवसर में बदलने का मूलमंत्र
    बिजनेस

    रामरतन ने आत्मसात कर लिया है आपदा को अवसर में बदलने का मूलमंत्र

    sonu kumarBy sonu kumarAugust 9, 2020No Comments3 Mins Read
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    वैश्विक महामारी कोविड-19 के कारण वर्ष 2020 इतिहास के पन्नों पर काले अध्याय के रूप में दर्ज होगा। इसके साथ 2020 आपदा को अवसर में बदलने के लिए भी जाना जाएगा। लॉकडाउन होने के बाद जब भुखमरी की नौबत आई तो देश के तमाम शहरों से लाखों श्रमिकों की भागम-भाग हुई। अपने को समाज हितैषी, लोक हितैषी कहने वाले बड़े-बड़े उद्योगपतियों ने वर्षों से काम कर रहे श्रमिकों को दुत्कार कर भगा दिया। दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, आसाम, राजस्थान समेत अन्य राज्य में रहकर औद्योगिक विकास की गाथा लिखने वाले श्रमिकों का काम जब लॉकडाउन में बंद हो गया तो इस दौरान वहां की सरकारों ने भी भाषणबाजी के अलावा मजदूरों के लिए कुछ नहीं किया। बिहार के इन मेघा श्रम साधकों को वहां की सरकार ना तो खाना दे सकी और ना ही उद्योगपति रहने की जगह दे सके। जिसके कारण पैदल ही मजदूर अपने घरों की ओर चल पड़े। रास्ते में कितनों की जान चली गई। मजदूरों की जलालत को केन्द्र सरकार ने तुरंत ही समझा और गरीब कल्याण रोजगार अभियान शुरू किए गए। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने श्रमिकों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए आपदा को अवसर में बदलने का मूल मंत्र दिया। लगातार कार्य योजनाएं बनाई जा रही है, कार्य योजनाओं को धरातलीय रूप देने की कोशिश की जा रही है। बेगूसराय के दो हजार से अधिक लोग दिल्ली के गांधीनगर, साहिबाबाद और उसके आसपास के इलाकों में रहकर कपड़ा पोलिस, रेडीमेड कपड़ा सिलाई एवं पैकेजिंग का काम करते हैं। लॉकडाउन में इन लोगों का काम बंद हो गया था तो मालिक ने भगा दिया। फिर भी 50 से अधिक लोग गांधीनगर में ही रहकर अपने घर से पैसा मंगवा कर किसी तरह जीवन गुजार रहे थे। अनलॉक हुआ तो इन लोगों को काम शुरू होने की उम्मीद जगी। काम शुरू भी हुआ, लेकिन सभी लोगों को काम नहीं मिल सका। कारोबारी को दिल्ली के स्थानीय मजदूर ही कम रेट पर मिलने लगे, जिसके कारण इन लोगों ने बिहारी श्रम साधकों का अपमान करना शुरू कर दिया। 1995 में इंटर करने वाले रामरतन राय को भी जब काफी कोशिश के बाद बिहार में काम नहीं मिला था तो अन्य लोगों के साथ दिल्ली चले गए। वहां जींस फैक्ट्री में काम करना शुरू कर दिया। 2002 से लेकर 2015 तक वहीं जींस, टी-शर्ट और शर्ट तैयार करते थे। उसके बाद फैक्ट्री मालिक ने सिलाई के साथ-साथ देखरेख और बाजार की भी जिम्मेवारी सौंप दी तो रामरतन को काफी जानकारी मिल गई। 2017 में जब गांव आए थे रेडीमेड कपड़ा तैयार करने की सोची। लेकिन भ्रष्टाचार में आकंठ डूबे उद्योग विभाग के अधिकारियों और कर्मचारियों ने बगैर कमीशन लिए आवेदन अग्रसारित नहीं किया। पांच हजार से अधिक रुपया खर्च करने के बाद जब उद्योग विभाग से अग्रसारित होकर आवेदन स्टेट बैंक गढ़पुरा पहुंचा तो वहां के मैनेजर ने व्यवसाय नहीं चलने की बात कह कर कर्ज देने से इनकार कर दिया। मन मसोसकर फिर दिल्ली चले गए थे। लेकिन अब वह हर हालत में अपने गांव में ही रेडीमेड कपड़ा का निर्माण कार्य शुरू करेंगे। रामरतन ने बताया कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी ने देश, समाज और परिवार को आत्मनिर्भर बनाने के लिए आपदा को अवसर में बदलने का नारा दिया है। इस संबंध में यूट्यूब पर ढ़ेर सारी जानकारी मिल रही है तो हम भी हर हालत में इस वैश्विक महामारी कोरोना से लड़ेंगे। कोरोना काल के इस आपदा को हम अवसर में बदलेंगे। हम भी सशक्त बनेंगे और बनाएंगे, हमारे सशक्त बनने से ही आत्मनिर्भर भारत का निर्माण होगा। उद्योगों की स्थापना से बेरोजगारी में कमी आएगी, बेरोजगारी में कमी आएगी तो अपराध पर अंकुश लगेगा और श्रम के साधक आर्थिक रूप से सशक्त बनेंगे।

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