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    Home»Jharkhand Top News»बिहार की तर्ज पर झारखंड में भी पीएम केयर्स फंड से खुले कोविड अस्पताल
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    बिहार की तर्ज पर झारखंड में भी पीएम केयर्स फंड से खुले कोविड अस्पताल

    azad sipahi deskBy azad sipahi deskAugust 27, 2020No Comments5 Mins Read
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    कोरोना संकट के दौर में पूरे देश और राज्यों में सबसे अधिक दबाव स्वास्थ्य सेवाओं और सामाजिक मोर्चे पर है। हालांकि मार्च से लेकर अब तक की पांच महीने की अवधि में राज्यों की स्वास्थ्य सेवाओं ने उल्लेखनीय काम किया है। राष्ट्रीय स्तर पर भी हम पश्चिमी देशों से बहुत पीछे नहीं हैं। लेकिन इस उपलब्धि का एक और पहलू यह भी है कि हिंदी पट्टी के प्रदेशों में कोरोना संक्रमण तेजी से फैल रहा है। यह दीगर है कि संक्रमण से मुक्त होने की दर संतोषजनक है। झारखंड में कोरोना संक्रमण के मामले जिस तेजी से बढ़ रहे हैं, उससे चिंता तो होने लगी है, साथ ही राज्य की स्वास्थ्य सेवाओं की बदहाली भी लगातार सामने आ रही है। ऐसे में इस राज्य को केंद्र सरकार की मदद की बहुत जरूरत है। केंद्र सरकार ने कोरोना संकट का सामना करने के लिए जो पीएम केयर्स फंड बनाया है, उसका बहुत अधिक लाभ झारखंड को अब तक नहीं मिला है, जबकि बिहार में दो कोविड अस्पताल स्थापित करने के लिए केंद्र ने इसी फंड से मदद दी है। झारखंड के सांसदों-विधायकों को अब आगे आकर राज्य के लिए मदद हासिल करने के काम में जुटना होगा। जब तक केंद्र से मदद नहीं मिलेगी, झारखंड इस लड़ाई को जीत नहीं सकता। झारखंड की जरूरतों को रेखांकित करती आजाद सिपाही ब्यूरो की खास रिपोर्ट।

    25 मार्च को जब पूरे देश में कोरोना महामारी के मद्देनजर लॉकडाउन लागू किया गया था, झारखंड इस बीमारी से अछूता था, लेकिन पांच महीने बाद राज्य में संक्रमितों की संख्या 31 हजार के पार पहुंच गयी है। हालांकि एक बात संतोषजनक है कि इसमें संक्रमण मुक्त हो चुके मामलों की संख्या भी 21 हजार से अधिक हो गयी है, यानी राज्य में महज नौ हजार से कुछ अधिक लोग ही संक्रमण के शिकार हैं। यह संख्या हर दिन बढ़ रही है और ठीक होनेवालों की संख्या भी कम नहीं है। इन आंकड़ों के साथ एक और बात गौर करनेवाली है कि इन पांच महीनों में राज्य की स्वास्थ्य मशीनरी बहुत हद तक चुस्त हुई है। आज राज्य में हर दिन 11 हजार से अधिक सैंपलों की जांच हो रही है और राज्य में कोरोना संक्रमितों के लिए बिस्तरों की संख्या भी 20 हजार के आसपास हो गयी है।
    लेकिन इन तमाम आंकड़ों के बीच यह भी हकीकत है कि झारखंड की स्वास्थ्य सेवाओं को कोरोना जैसी चुनौती का सफलतापूर्वक सामना करने के लिए तैयार होने में लंबा सफर तय करना है। जब कोरोना का संकट शुरू हुआ था, तब मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने साफ कह दिया था कि झारखंड पूरी तरह केंद्र पर निर्भर है। राज्य को हर मोर्चे पर केंद्र की मदद की जरूरत है। हेमंत ने यह मुद्दा प्रधानमंत्री और दूसरे केंद्रीय मंत्रियों के साथ बातचीत के दौरान भी उठाया।
    अब झारखंड को लग रहा है कि उसकी जरूरतों को नजरअंदाज किया जा रहा है। हाल ही में पीएम केयर्स फंड से बिहार को दो कोविड अस्पताल स्थापित करने के लिए अच्छी खासी रकम दी गयी है। इस रकम से पटना और मुजफ्फरपुर में पांच-पांच सौ बिस्तरों वाले दो अस्पतालों की स्थापना करनी है। पटना का अस्पताल तो शुरू भी हो गया है। मुजफ्फरपुर का अस्पताल भी अगले एक-दो दिन में शुरू हो जायेगा। इन अस्पतालों में सेना के डॉक्टरों को तैनात किया गया है और संचालन का जिम्मा रक्षा अनुसंधान विकास संगठन को दिया गया है। यह पहला मौका है, जब हिंदी पट्टी के किसी राज्य को पीएम केयर्स फंड से सीधे मदद दी गयी है। अब झारखंड को भी यह उम्मीद जगी है कि उसकी जरूरतों पर भी केंद्र सरकार ध्यान देगी और पीएम केयर्स फंड से झारखंड में भी कम से कम दो अस्पताल स्थापित करने के लिए सहायता मिलेगी।
    झारखंड की यह उम्मीद अनुचित भी नहीं है। 20 साल पहले बिहार से अलग हुए झारखंड में स्वास्थ्य जैसी ढांचागत संरचनाओं का बहुत अधिक विकास नहीं हुआ। एकीकृत बिहार के जमाने में जो तीन मेडिकल कॉलेज यहां थे, उनमें कोई खास विकास नहीं हुआ। हालांकि चार नये मेडिकल कॉलेज जरूर खुले हैं, लेकिन वहां जरूरी संरचना अब तक विकसित नहीं हो सकी है। निजी अस्पतालों की संख्या जरूर तेजी से बढ़ी है, लेकिन उनमें इलाज की कीमत को देख कर समझा जा सकता है कि झारखंड की अधिकांश आबादी वहां जाने की हिम्मत नहीं जुटा पाती है। ऐसे में झारखंड यदि केंद्र की मदद से राज्य में कोविड अस्पताल स्थापित करने की उम्मीद लगाये हुए है, तो इसे अनुचित नहीं कहा जा सकता है।
    दूसरी महत्वपूर्ण बात यह है कि झारखंड को ढांचागत संरचनाओं के विकास के लिए अभी बहुत बड़ी मदद की जरूरत है। यह जरूरत केंद्र सरकार ही पूरी कर सकती है। चाहे अस्पताल हो या स्कूल, सड़क हो या नयी राजधानी का विकास, झारखंड को हर कदम पर केंद्र की सक्रिय सहायता जरूरी है। यदि ऐसा नहीं हुआ, तो देश की खनिज आवश्यकताओं की 40 फीसदी जरूरत पूरा करने वाला यह प्रदेश विकास की दौड़ में बहुत पीछे छूट जायेगा।
    झारखंड की यह उम्मीद तभी पूरी हो सकती है, जब यहां के सांसद, विधायक और दूसरे जन प्रतिनिधि एकजुट होकर इस दिशा में काम करें। राज्य से लोकसभा के 14 और राज्यसभा के छह सांसद हैं। ये सब मिल कर केंद्र पर यदि झारखंड के हितों के लिए दबाव बनायें, तो राज्य का बहुत भला हो सकता है। लेकिन इसके लिए जरूरी है कि दलीय राजनीति और प्रतिबद्धता से उन्हें ऊपर उठना होगा। राज्य सरकार अपनी ताकत से काम कर रही है और संकट के इस दौर में राजनीति से अलग हट कर दूसरे दलों को भी सोचने की जरूरत है। यदि ऐसा हो गया और राज्य के सभी दल एकजुट होकर झारखंड के हितों के लिए आगे आये, तो केंद्र को भी सोचने पर विवश होना पड़ेगा। वैसे भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कई अवसरों पर झारखंड के प्रति अपनी विशेष आसक्ति को व्यक्त कर चुके हैं और राज्य को आपदा की स्थिति में मदद भी मिली है, लेकिन कोरोना एक संकटकालीन स्थिति है। अभी यदि केंद्र से मदद मिलती है, तो झारखंड इसे हमेशा याद रखेगा।

    Kovid Hospital opens in Jharkhand with PM Cares Fund On the lines of Bihar
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