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    Home»Breaking News»​सुपर हरक्यूलिस के पुर्जों के लिए पेंटागन ने दी मंजूरी
    Breaking News

    ​सुपर हरक्यूलिस के पुर्जों के लिए पेंटागन ने दी मंजूरी

    sonu kumarBy sonu kumarOctober 2, 2020No Comments3 Mins Read
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    ​​भारतीय वायु सेना ​ने ​अमेरिका को ​अपने परिवहन बेड़े के ​​सी​-​130 जे-30 एस ​​​​सुपर हरक्यूलिस विमानों ​​के ​बेड़े के लिए ​अमेरिका से 90 मिलियन डॉलर के स्पेयर पार्ट्स खरीदने ​का अनुरोध किया था, जिसे अमेरिकी रक्षा मंत्रालय पेंटागन ने मंजूरी दे दी है।​​​ ​​मौजूदा समय में वायुसेना के पास 11 ​​​सुपर हरक्यूलिस ​हैं​​।​ ​भारत उन 17 देशों में से एक है, जिन्हें अमेरिका ने अपना ​​सी-130 जे सुपर हरक्यूलिस विमान बेचा है​​।​​
     
    ​​​भारतीय वायुसेना ने अपने परिवहन बेड़े ​के लिए अमेरिका से 2008 ​की शुरुआत​ में छह सी-130जे ​​​​सुपर हरक्यूलिस​ ​खरीदे​ थे​।​ इसमें से एक विमान प्रशिक्षण मिशन ​के दौरान ​28 मार्च​,​ 2014 को ग्वालियर में दुर्घटनाग्रस्त हो गया, जिसमें सभी 5 ​सवार ​मारे गए ​थे।​ ​अक्टूबर 2011 में भारत ने सिक्किम भूकंप राहत कार्यों में ​इन परिवहन विमानों का इस्तेमाल किया​​​​​।​ अनुकूल प्रदर्शन के बाद छह अतिरिक्त विमान​ दिसम्बर, 2013 में खरीदे​।​ यानी इस समय वायुसेना के परिवहन बेड़े में ग्यारह सी​-​130जे-30 ​सुपर हरक्यूलिस​ ​हैं​।​ ​भारतीय वायुसेना ने अप्रैल 2013 ​में डीबीओ ​में ​​16,614 फीट ऊंचाई पर​ मिलिट्री ट्रांसपोर्ट एयरक्राफ्ट सी-130जे सुपर हरक्यूलिस ​की लैंडिंग ​कराकर दुनिया की सबसे ऊंची हवाई पट्टी ​पर परिवहन विमान उतारने ​का खिताब हासिल किया था।   
     ​​
    भारत ​ने ​अपने बेड़े के सी-130 जे सुपर हरक्यूलिस विमान​ में लगने वाले कई पुर्जों ​की मरम्मत या वापसी के लिए अमेरिका से अनुरोध किया था​।​ इन पुर्जों में ​कार्ट्रिज एक्टिवेटेड डिवाइसेज/प्रोपेलेंट एक्टिवेटेड डिवाइसेज​, फायर एक्सटिंग्विशर कारतूस, फ्लेयर कार्ट्रिज, ​बीबीयू-35/​बी ​ कारतूस इम्पल्स स्किब ​शामिल ​हैं।​​​​ भारत ने एक अतिरिक्त एएन​/​एएलआर​-​56 एम एडवांस्ड रडार वार्निंग रिसीवर ​शिपसेट के लिए भी ऑर्डर दिया है​​।​ ​इसके अलावा ​स्पेयर एएन​/​एएलई-47 काउंटरमेशर्स डिस्पेंसर सिस्टम शिपसेट​, दस लाइटवेट नाइट विजन दूरबीन (एफ-5032)​,​​​ दस एएन​/​एवीएस-9 नाइट विजन गॉगल (एनवीजी) (एफ 4949)​,​ जीपीएस और इलेक्ट्रॉनिक वारफेयर​​ का भी ऑर्डर दिया गया है।​​​​ ​भारत ने इन उपकरणों ​के साथ ​​संयुक्त मिशन योजना प्रणाली​, ​क्रिप्टोग्राफिक डिवाइस पुर्जों और लोडर​,​ सॉफ्टवेयर और सॉफ्टवेयर का समर्थन​,​ प्रकाशन और तकनीकी दस्तावेज​, कर्मियों को प्रशिक्षण और ​इससे सम्बंधित उपकरण​,​ ठेकेदार इंजीनियरिंग, तकनीक और अन्य संबंधित प्रयोगशाला उपकरणों की भी मांग ​की है​।​​
     
    ​रक्षा सुरक्षा सहयोग एजेंसी ने कहा कि प्रस्तावित बिक्री अमेरिका-भारत के रणनीतिक संबंधों को मजबूत करने में मदद ​करने के साथ ही अमेरिका की विदेश नीति और राष्ट्रीय सुरक्षा का समर्थन करेगी।​ अमेरिका चाहता है कि प्रशांत और दक्षिण एशिया क्षेत्र में ​भारत ​​​राजनीतिक स्थिरता, शांति और आर्थिक प्रगति के लिए एक महत्वपूर्ण शक्ति ​बने​​​। ​​अमेरिकी कांग्रेस की अधिसूचना के अनुसार प्रस्तावित बिक्री ​से पहले ​यह सुनिश्चित ​किया जाना जरूरी है कि पहले से खरीदे गए विमा​​न भारतीय वायु सेना, सेना और नौसेना की परिवहन आवश्यकताओं, स्थानीय और ​अंतरराष्ट्रीय मानवीय सहायता और क्षेत्रीय आपदा राहत की जरूरतों को पूरा करने के लिए प्रभावी ढंग से संचालित होते हैं​ या नहीं​।​
     
    ​अधिसूचना में ​​यह भी कहा गया है कि इस सौदे से भारतीय वायु सेना ​अपने ​उच्च मिशन​ ​के लिए जहाजों के बेड़े को बनाए रखने में सक्षम ​होगी​।​ ​अमेरिकी नियमों के अनुसार आर्म्स एक्सपोर्ट कंट्रोल एक्ट के तहत ऐ​से बड़े सौदों से पहले अधिसूचना ​जारी करना ​अनिवार्य है। ​इस प्रस्तावित बिक्री की समीक्षा करने के लिए सांसदों के पास 30 दिन हैं। ​इस सौदे को रक्षा प्रमुख लॉकहीड-मार्टिन द्वारा निष्पादित किया जाएगा।​ बिक्री से पहले अमेरिका यह भी सुनिश्चित करना चाहता है कि ​इस प्रस्तावित बिक्री से क्षेत्र में बुनियादी सैन्य​ ​संतुलन में बदलाव नहीं होगा।
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