Close Menu
Azad SipahiAzad Sipahi
    Facebook X (Twitter) YouTube WhatsApp
    Monday, June 9
    • Jharkhand Top News
    • Azad Sipahi Digital
    • रांची
    • हाई-टेक्नो
      • विज्ञान
      • गैजेट्स
      • मोबाइल
      • ऑटोमुविट
    • राज्य
      • झारखंड
      • बिहार
      • उत्तर प्रदेश
    • रोचक पोस्ट
    • स्पेशल रिपोर्ट
    • e-Paper
    • Top Story
    • DMCA
    Facebook X (Twitter) Instagram
    Azad SipahiAzad Sipahi
    • होम
    • झारखंड
      • कोडरमा
      • खलारी
      • खूंटी
      • गढ़वा
      • गिरिडीह
      • गुमला
      • गोड्डा
      • चतरा
      • चाईबासा
      • जमशेदपुर
      • जामताड़ा
      • दुमका
      • देवघर
      • धनबाद
      • पलामू
      • पाकुर
      • बोकारो
      • रांची
      • रामगढ़
      • लातेहार
      • लोहरदगा
      • सरायकेला-खरसावाँ
      • साहिबगंज
      • सिमडेगा
      • हजारीबाग
    • विशेष
    • बिहार
    • उत्तर प्रदेश
    • देश
    • दुनिया
    • राजनीति
    • राज्य
      • मध्य प्रदेश
    • स्पोर्ट्स
      • हॉकी
      • क्रिकेट
      • टेनिस
      • फुटबॉल
      • अन्य खेल
    • YouTube
    • ई-पेपर
    Azad SipahiAzad Sipahi
    Home»Jharkhand Top News»यूं ही पाला नहीं बदला है दिग्गज राजेंद्र सिंह ने
    Jharkhand Top News

    यूं ही पाला नहीं बदला है दिग्गज राजेंद्र सिंह ने

    azad sipahi deskBy azad sipahi deskOctober 8, 2020No Comments6 Mins Read
    Facebook Twitter WhatsApp Telegram Pinterest LinkedIn Tumblr Email
    Share
    Facebook Twitter WhatsApp Telegram LinkedIn Pinterest Email

    बिहार विधानसभा का आगामी चुनाव हर दिन नया आकार ले रहा है और हर दिन समीकरण बदल रहे हैं। आज से 15 दिन पहले का समीकरण पूरी तरह धराशायी हो चुका है और चुनाव मैदान में आमने-सामने आये दो प्रमुख गठबंधनों का आकार और स्वरूप पूरी तरह बदल गया है। अपनी अलग और विशिष्ट राजनीतिक शैली तथा दुनिया को लोकतंत्र का पहला पाठ पढ़ानेवाले बिहार में 15 साल से सत्तारूढ़ जदयू-भाजपा गठबंधन का खेमा जीतनराम मांझी की हम और मुकेश सहनी की वीआइपी के शामिल होने से अतिरिक्त ताकत बटोर चुका है, तो लोजपा के रूप में एक अहम सहयोगी को खोने के कारण कमजोर भी हुआ है। उधर राजद और कांग्रेस के कथित महागठबंधन में तीन वामपंथी दलों के शामिल होने से नयी ऊर्जा का संचार हुआ है, तो हम, वीआइपी और रालोसपा के अलग होने से इसकी सेहत पर असर पड़ा है। इन सबके बीच सबसे अधिक चौंकानेवाली घटना यह हुई है कि संघ से अपने कैरियर की शुरुआत करनेवाले, भाजपा के दिग्गज राजेंद्र सिंह लोजपा में शामिल हो गये हैं। उनके इस पाला बदलने से साफ हो गया है कि बिहार का सियासी परिदृश्य अब 10 नवंबर के बाद की संभावनाओं पर आकर टिक गया है। राजेंद्र सिंह के आने से लोजपा की ताकत कई गुना बढ़ गयी है, जबकि सियासी रूप से इसे भाजपा का ऐसा ‘प्लान बी’ माना जा रहा है, जिसकी काट न नीतीश के पास है और न विपक्ष के पास। राजेंद्र सिंह के पाला बदलने की घटना के सियासी असर का आकलन करती आजाद सिपाही पॉलिटिकल ब्यूरो की खास रिपोर्ट।

    साल 2015 और महीना अक्टूबर। बिहार में विधानसभा चुनाव का प्रचार अभियान चरम पर था। रोहतास जिले की दिनारा विधानसभा सीट से भाजपा के उम्मीदवार राजेंद्र सिंह के पक्ष में बिहार के साथ-साथ झारखंड और यूपी के कई बड़े नेता और मंत्री लगातार दौरा कर रहे थे। जिस दिन राजेंद्र सिंह ने नामांकन किया था, बिहार का कौन सा ऐसा नेता था, मंत्री या कार्यकर्ता, जो उसमें शामिल नहीं हुआ था। झारखंड के सामाजिक कार्यकर्ताओं का भी एक बड़ा वर्ग नामांकन के समय में वहां मौजूद था। कहा जा रहा था कि राजेंद्र सिंह बिहार के मनोहरलाल खट्टर हैं। लोगों को लगा कि राजेंद्र सिंह बिहार में भाजपा के सीएम पद का चेहरा हैं। लेकिन बहुत कम लोगों को इस कथन का असली मतलब समझ में आया। वह यह था कि राजेंद्र सिंह संघ के इतिहास के तीसरे शख्स थे, जो किसी प्रदेश का संगठन मंत्री रहते हुए चुनाव मैदान में उतरे थे। संघ ने इसके लिए अपने संविधान को बदला था। उनसे पहले गुजरात में नरेंद्र मोदी और हरियाणा में मनोहर लाल खट्टर को ही यह अनुमति मिली थी। खैर, परिणाम आया और राजेंद्र सिंह लगभग ढाई हजार मतों से चुनाव हार गये। कहानी खत्म हो गयी।
    लेकिन पांच साल बाद एक बार फिर अक्टूबर के महीने में ही वही राजेंद्र सिंह बिहार की राजनीति में तूफान पैदा कर चुके हैं। वह भाजपा छोड़ कर लोजपा में शामिल हो गये हैं और एक बार फिर दिनारा सीट से चुनाव मैदान में हैं। उनके सामने जदयू के जयकुमार सिंह होंगे, जो नीतीश सरकार में मंत्री हैं। पिछले चुनाव में भी राजेंद्र सिंह के सामने वही थे।
    अब यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि आखिर 32 साल तक संघ के अनुशासन में तपे-तपाये राजेंद्र सिंह ने अचानक भाजपा क्यों छोड़ दी। सतही तौर पर यह उनकी बढ़ती हुई राजनीतिक महत्वाकांक्षा का प्रतीक मानी जा रही है, लेकिन इसके पीछे का असली खेल कुछ और है। यह खेल 10 नवंबर को चुनाव परिणाम के बाद की सियासत का है। बिहार में भाजपा के सामने जदयू का नेतृत्व स्वीकार करने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा था, क्योंकि अलग-अलग चुनाव लड़ने का परिणाम पिछले चुनाव में वह भुगत चुकी थी। पिछले पांच साल में भाजपा पर सत्ता हासिल करने के लिए अनैतिक हथकंडों के इस्तेमाल का जो कलंक लगा है, उसे पार्टी बिहार में हर कीमत पर धोना चाहती है। इसलिए वह पहले से ही सतर्क है और अपने ‘प्लान बी’ पर काम कर रही है। जदयू के साथ चुनाव लड़ कर यदि सीधे सत्ता मिल गयी, तो ठीक, वरना उसके पास लोजपा का एक विकल्प तैयार रहेगा। इसलिए भाजपा का एक वर्ग चाहता है कि लोजपा अधिक से अधिक मजबूत हो और वह जदयू के बराबर नहीं, तो कम से कम मोल-भाव की स्थिति में आ जाये। इसका लाभ यह होगा कि अपेक्षित चुनावी सफलता नहीं मिलने की स्थिति में नीतीश को घुटने टेकने पर मजबूर किया जा सकेगा।
    दूरगामी राजनीतिक रणनीति का यह खेल सिर्फ और सिर्फ भाजपा को ही लाभ पहुंचायेगा। एक संभावना यह भी बन रही है कि चुनाव के बाद चिराग पासवान को आगे बढ़ा कर भाजपा बंगाल और यूपी में दलितों को साध सकेगी। इसलिए आनेवाले दिनों में भाजपा के कई बड़े नेता लोजपा की झोंपड़ी में आ जायें, तो किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए। लोजपा ने नीतीश को हराने का संकल्प लिया है और वह उन सीटों पर अपना उम्मीदवार देगी, जहां जदयू मैदान में होगा। टिकट नहीं मिलने या सीट के जदयू कोटे में चले जाने से असंतुष्ट भाजपा के लोग लोजपा के सहारे विधानसभा में पहुंचने की कोशिश करेंगे और तब 10 नवंबर के बाद का परिदृश्य क्या होगा, इसकी सहज ही कल्पना की जा सकती है।
    तो कुल मिला कर राजेंद्र सिंह का लोजपा में शामिल होना और दिनारा से जदयू के मंत्री के खिलाफ ताल ठोंकना इसी दूरगामी रणनीति का हिस्सा है। यह मानने में कोई गुरेज नहीं है कि चिराग पासवान अपने बल पर नीतीश के सामने इतनी बड़ी चुनौती पेश कर सकते हैं। इसलिए उन्होंने भाजपा से अपने रिश्ते को मजबूत ही किया है और बार-बार कह रहे हैं कि बिहार में अगली सरकार भाजपा-लोजपा की बनेगी। उधर भाजपा किसी भी कीमत पर नीतीश को नाराज करना नहीं चाहती, इसलिए उसने साफ कर दिया है कि जो नीतीश को नेता नहीं मानता है, वह बिहार में राजग का हिस्सा नहीं है। यह ऐसी राजनीतिक रणनीति है, जिसकी काट फिलहाल तो नीतीश के पास नजर नहीं आ रही। बिहार का अंतिम चुनाव परिणाम क्या होगा और वहां किसकी सरकार बनेगी, यह तो 10 नवंबर को पता चलेगा, लेकिन फिलहाल लोजपा के कांटे से नीतीश को फंसाने की भाजपा की रणनीति सफल होती दिख रही है। इस रणनीति से बिहार का चुनावी परिदृश्य बेहद दिलचस्प मोड़ पर पहुंच गया है।

    Just as the veteran Rajendra Singh has not changed
    Share. Facebook Twitter WhatsApp Telegram Pinterest LinkedIn Tumblr Email
    Previous Articleशाहीन बाग पर सुप्रीम कोर्ट की सख्त टिप्पणी- सार्वजनिक स्थानों पर अनिश्चितकाल के लिए प्रदर्शन नहीं हो सकता
    Next Article भाजपा की ताकत बढ़ी एनडीए में वीआइपी की इंट्री
    azad sipahi desk

      Related Posts

      राज्यपाल ने भगवान बिरसा मुंडा की 125वीं पुण्यतिथि पर श्रद्धांजलि अर्पित की

      June 9, 2025

      भाजयुमो ने यातायात पुलिस के व्यवहार में सुधार की मांग को लेकर एसएसपी को सौंपा पत्र

      June 9, 2025

      बिरसा मुंडा का 125वां शहादत दिवस धूमधाम से मनाया गया

      June 9, 2025
      Add A Comment

      Comments are closed.

      Recent Posts
      • भारत ने पिछले 11 वर्षों में विभिन्न क्षेत्रों में तेजी से परिवर्तन देखा: प्रधानमंत्री मोदी
      • ठाणे में चलती लोकल ट्रेन से गिरकर 6 यात्रियों की मौत, सात घायल
      • प्रधानमंत्री ने भगवान बिरसा मुंडा को उनके बलिदान दिवस पर श्रद्धांजलि दी
      • हिमाचल प्रदेश के राज्यपाल ने श्री महाकालेश्वर भगवान के दर्शन किए
      • ‘हाउसफुलृ-5’ ने तीसरे दिन भी की जबरदस्त कमाई, तीन दिनों का कलेक्शन 87 करोड़
      Read ePaper

      City Edition

      Follow up on twitter
      Tweets by azad_sipahi
      Facebook X (Twitter) Instagram Pinterest
      © 2025 AzadSipahi. Designed by Microvalley Infotech Pvt Ltd.

      Type above and press Enter to search. Press Esc to cancel.

      Go to mobile version