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    Home»राज्य»उत्तर प्रदेश»बलिया : गंगा में दिखीं डॉल्फिन मछलियां, बढ़ी जल पर्यटन की संभावनाएं
    उत्तर प्रदेश

    बलिया : गंगा में दिखीं डॉल्फिन मछलियां, बढ़ी जल पर्यटन की संभावनाएं

    sonu kumarBy sonu kumarOctober 11, 2020No Comments3 Mins Read
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     गंगा, सरयू व तमसा जैसी नदियों से आच्छादित बलिया में जल पर्यटन की अपार संभावनाएं हैं। हाल के दिनों में गंगा व तमसा के संगम स्थल पर विश्व प्रसिद्ध डॉल्फिन मछलियों को देखे जाने के बाद जल पर्यटन को लेकर संभावनाओं की तलाश शुरू हो गई है। इसकी पहल डीएम श्रीहरि प्रताप शाही ने की है।
    जिन डाल्फिनों को देखने लाखों पर्यटक उड़ीसा की चिल्का झील में जाते हैं और एक डाल्फिन को देखने के लिए घंटों इंतजार करते हैं, उन्हीं डाल्फिनों का बड़ा कुनबा जिले में बह रही गंगा नदी में है। जिले में प्रवाहित गंगा नदी के जल में डॉल्फिन के अलावा अन्य जलजीवों का भी बसेरा है। जिनका भौतिक सत्यापन करने के लिए जिलाधिकारी श्रीहरि प्रताप शाही खासे उत्साहित हैं।
    जिलाधिकारी ने मुख्य विकास अधिकारी विपिन जैन के साथ गंगा में भ्रमण कर सैकड़ों डॉल्फिन देखा है। दोनों अधिकारी सागरपाली के सामने गंगा-तमसा के संगम पर गंगा मे गुलाटी मारतीं डाल्फिन के झुण्डों के बीच शनिवार को पहुंच गए थे। जिलाधिकारी ने बताया कि भौगोलिक जानकारों के अनुसार गंगा नदी के जल की अविरलता-निर्मलता के लिए नदी में डॉल्फिन का पाया जाना बहुत सुखद है।
    उन्होंने कहा कि भ्रमण के दौरान देखा गया कि सागरपाली से लेकर बड़काखेत तक की गंगा घाटी में इन डाल्फिनों के वयस्क, बच्चे सभी बड़े आनंद से विचरण करते मिले।
     जिलाधिकारी ने बताया कि गंगा नदी में जल पर्यटन की भी अपार संभावना है। जो पर्यटक इन डॉल्फिनों के पानी पर उछलने का आनंद उठाने के शौकीन हैं, उन्हें गंगा नदी के ये अनछुए तट आकर्षित करेंगे। लोग दूरदराज के अन्य प्रांतों में इन्हीं डॉल्फिन को देखने के लिए धन खर्च करते हैं और काफी देर इंतजार करते हैं। डॉल्फिन मछली का बड़ी संख्या में गंगा में होना काफी सुखद है। इससे बलिया में पर्यटन की संभावनाओं को भी बल मिलेगा। जिलाधिकरी जब गंगा में जल पर्यटन की संभावनाओं को टटोल रहे थे, उसी दौरान रोमांचक जीवन और मछलियों मारने का आनंद लेने आये इंदारा मऊ के बुनकरों की टोलियां भी मिलीं।
    मृगों व चीतलों की भी है शरणस्थली
    गंगा की इस तलहटी में कृष्णाजिन मृगों एवं चीतलों के होने की जानकारी मिली है। जिनकी खोज में स्थानीय भौगोलिक परिस्थितियों के जानकार व साहित्यकार शिवकुमार सिंह कौशिकेय ने जिले के डीएम को बताया है। उनकी इस जानकारी के बाद दियारा में डीएम टोह लेने का प्रयास कर चुके हैं। हालांकि, मृगों व चीतलों के झुंड तो नहीं दिखाई पड़े, लेकिन स्थानीय लोगों की मानें इनकी काफी संख्या है।
    सुरहा में हर साल आते हैं साइबेरियन पक्षी
    सिर्फ गंगा में ही जल पर्यटन की संभावना नहीं है, विश्व प्रसिद्ध साइबेरियन पक्षियों के लिए मशहूर ऐतिहासिक सुरहा ताल भी आकर्षक का केंद्र है। यहां हर साल विदेशी साइबेरियन पक्षियों का झुंड आता है। जिसे देखने काफी दूर से लोग आते हैं। हालांकि, सरकारी उदासीनता के कारण सुरहा ताल उपेक्षा का शिकार है। पिछले तीन सालों से सुरहा के पानी की समुचित निकासी नहीं होने से तटवर्ती गांवों के लोग परेशान हैं। उनकी खेती चौपट हो जा रही है। जबकि नौकायन की संभावनाएं भी छीड़ हो जाती हैं। यदि सरकार की नजरें पड़ जाती तो सुरहा की सुरम्य वादियों में पर्यटन की संभावनाओं को पंख लग जाते।
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