झारखंड की आर्थिक स्थिति पर एक बार फिर सियासत गरम हो गयी है। भाजपा सांसद जयंत सिन्हा ने वर्तमान सरकार पर राज्य को बदहाली के कगार पर ले जाने का आरोप लगाया है, तो सत्ताधारी झामुमो की ओर से महासचिव सुप्रियो भट्टाचार्य ने आंकड़े देते हुए भाजपा को आइना दिखाया है। इस आरोप-प्रत्यारोप से झारखंड को कोई लाभ नहीं होगा। यह सच है कि झारखंड की आर्थिक स्थिति बेहद खराब है। पिछले दो महीने में हालांकि राज्य में आर्थिक गतिविधियां बढ़ी हैं, लेकिन इसके संतोषजनक स्तर तक पहुंचने में लंबा वक्त लगेगा। इसलिए झारखंड की बदहाल आर्थिक स्थिति को अब सियासी चश्मे से नहीं, बल्कि हकीकत के नजरिये से देखना होगा। केंद्र सरकार की ओर से राज्य के बकाया भुगतान के लिए कोई पहल नहीं की जा रही है, जबकि डीवीसी का बकाया वसूलने के लिए राज्य के खाते से पैसे काट लिये जा रहे हैं। आखिर झारखंड की सवा तीन करोड़ जनता के साथ इस तरह का सलूक क्यों किया जा रहा है। पिछले साल दिसंबर में जब हेमंत सोरेन ने सत्ता संभाली थी, तभी से कहा जा रहा है कि राज्य का खजाना खाली है और कोरोना संकट ने इस स्थिति को और विकराल बना दिया है। अब, जबकि हालात सामान्य हो रहे हैं, झारखंड को मदद की सख्त जरूरत है। इसके लिए यह राज्य अपने उन 14 सांसदों की सकारात्मक पहल की ओर टकटकी भरी निगाहों से देख रहा है, जो डेढ़ साल पहले चुन कर देश की सबसे बड़ी पंचायत में पहुंचे हैं। झारखंड की आर्थिक स्थिति पर जारी सियासत और इसके परिणाम का विश्लेषण करती आजाद सिपाही ब्यूरो की खास रिपोर्ट।
कोरोना संकट के सात महीने बाद पटरी पर लौटती झारखंड की आर्थिक स्थिति को लेकर सियासत एक बार फिर गरम हो गयी है। 11 महीने पहले जब राज्य में हेमंत सोरेन सरकार ने सत्ता संभाली थी, तब राज्य का खजाना लगभग खाली था और तीन महीने बाद ही कोरोना के कारण लॉकडाउन हो गया, जिससे हालत और खराब हो गयी। आर्थिक गतिविधियां पूरी तरह ठप पड़ गयीं और राज्य सरकार के सामने बड़ा संकट पैदा हो गया। लेकिन हेमंत सोरेन सरकार ने किसी तरह काम चलाया, खर्चों में कटौती की गयी और कई योजनाएं बंद करनी पड़ीं। इसके बाद राज्य सरकार ने आर्थिक स्थिति पर जो श्वेत पत्र जारी किया, उस पर सवाल उठाये जा रहे हैं।
मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन और वित्त मंत्री डॉ रामेश्वर उरांव बार-बार कह चुके हैं कि राज्य की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है। यह हकीकत भी है, क्योंकि नयी सरकार को विरासत में खजाना खाली मिला था। इतना ही नहीं, राजकोष की स्थिति चिंताजनक थी। यहां इस हकीकत को भी स्वीकार करना होगा कि राज्य गठन के साथ ही झारखंड की आर्थिक स्थिति कभी सु़दृढ़ नहीं रही। यह तो अतीत की बात है और कौटिल्य ने कहा है कि अतीत से सबक लेकर भविष्य का रास्ता तय करना चाहिए। आज झारखंड के हर व्यक्ति पर करीब 24 हजार रुपये का कर्ज है। सरकारी आंकड़े बताते हैं कि 2014 से पहले तक झारखंड ने जितना कर्ज लिया था, उससे कहीं अधिक का कर्ज केवल पांच साल में लिये गये। इसका सीधा परिणाम यह हुआ कि राज्य का अधिकांश पैसा ब्याज और कर्ज के भुगतान में जाने लगा। आर्थिक मामलों के जानकार कहते हैं कि यदि पूंजीगत खर्च का अधिकांश हिस्सा कर्ज के भुगतान में खर्च होने लगे, तो सतर्क हो जाना चाहिए। यह विडंबना है कि झारखंड की किसी भी सरकार ने इस पर ध्यान नहीं दिया और इससे राज्य की स्थिति बदतर होती गयी।
ऐसे में राजनीति ने झारखंड के जले पर नमक ही छिड़का है। पहले केंद्रीय सहायता मद में कटौती की गयी, जीएसटी की क्षतिपूर्ति का भुगतान नहीं किया गया और अंत में डीवीसी के बकाये की वसूली के लिए अचानक डेढ़ हजार करोड़ रुपये राज्य के खाते से काट लिये गये। झारखंड का यह दुर्भाग्य है कि दिल्ली में किसी ने भी इसके विरोध में आवाज नहीं उठायी। इतना ही नहीं, झारखंड के खाते से पैसे तो काट लिये गये, लेकिन जब राज्य का बकाया भुगतान करने की बात आयी, तो चुप्पी साध ली गयी। इस नाइंसाफी के खिलाफ भी किसी ने आवाज नहीं उठायी। इस हकीकत से कोई मुंह नहीं मोड़ सकता कि यदि केंद्रीय उपक्रमों के पास झारखंड का करीब एक लाख करोड़ रुपये का बकाया मिल जाये, तो राज्य की हालत पूरी तरह सुधर जायेगी। इसके विपरीत राज्य को कर्ज लेने की सलाह दी जा रही है। यह राज्य को एक और शिकंजे में फंसा सकता है। इसलिए हेमंत सरकार ने इस सलाह को मानने से इनकार कर दिया है।
अब पिछले दो महीने से झारखंड की अर्थव्यवस्था पटरी पर लौटने लगी है। राज्य में अक्टूबर महीने में पिछले साल की तुलना में जीएसटी मद में 23 फीसदी ज्यादा राशि की वसूली हुई है। इससे झारखंड में कारोबार और सेवाओं में उछाल के संकेत मिल रहे हैं। यह कोरोना काल में राज्य के लोगों के लिए निकट भविष्य में उम्मीद जगाती है। पिछले साल अक्टूबर महीने में झारखंड में जीएसटी मद में 1437 करोड़ की वसूली हुई थी। यह वसूली इस साल अक्टूबर महीने में बढ़कर 1771 करोड़ हो गयी। 23 फीसदी की इस बढ़ोतरी से यहां के कारोबार में भी लगभग एक चौथाई बढ़ोतरी की उम्मीद जतायी जा रही है। यह लगातार दूसरा महीना है, जब पिछले साल की तुलना में जीएसटी के संग्रह में बढ़ोतरी देखने को मिल रही है। राज्य सरकार ने भी खजाने के खस्ताहाल होने के कारण खर्च पर लगी रोक को काफी हद तक हटा दिया है। इसलिए उम्मीद है कि अब सूबे की ढांचागत परियोजनाओं में भी तेजी आयेगी। आंकड़े बताते हैं कि झारखंड में जीएसटी की वसूली में प्रतिशत वृद्धि देश से ज्यादा हुई है। पिछले साल की तुलना में अक्टूबर महीने में प्रतिशत बढ़ोतरी देश में 11 फीसदी हुई है। यह झारखंड में हुई 23 फीसदी बढ़ोतरी के आधे से भी कम है। पड़ोसी बिहार में यह महज सात फीसदी, पश्चिम बंगाल में 15 फीसदी, उत्तर प्रदेश में सात फीसदी और ओड़िशा में 21 फीसदी है। छत्तीसगढ़ में यह वृद्धि 26 फीसदी है।
लेकिन इस सकारात्मक संकेत के बरअक्स राज्य में काम कर रहे बैंकों का आंकड़ा चिंताजनक है। झारखंड में पिछले तीन माह में बैंकों का प्रदर्शन कई मायने में औसत से नीचे चला गया है। बैंकों के नकद-जमा अनुपात में भारी गिरावट हुई है। यही हाल रहा, तो झारखंड में बैंक कर्ज देने की स्थिति में नहीं रह जायेंगे।
इसलिए झारखंड की आर्थिक स्थिति पर सियासत का वक्त अब खत्म हो गया है। अब जरूरत राज्यहित में सकारात्मक पहल करने की है। इसके लिए सांसदों को आगे आना होगा। राज्य सरकार अपनी क्षमता के अनुसार उपाय कर रही है। इसमें यदि उसे मदद कर दी जाये, तो फिर झारखंड भी विकास की दौड़ में आगे बढ़ सकेगा।