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    Home»Jharkhand Top News»लालू प्रसाद यादव : बदनाम हुए तो क्या नाम न होगा
    Jharkhand Top News

    लालू प्रसाद यादव : बदनाम हुए तो क्या नाम न होगा

    azad sipahi deskBy azad sipahi deskNovember 27, 2020No Comments6 Mins Read
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    रिम्स में इलाजरत सजायाफ्ता लालू यादव का फोन कॉल वायरल होने पर बिहार-झारखंड की सियायत में भूचाल आ गया है। लालू के विरोधियों ने इसे मुद्दा बना लिया है। खासकर भाजपा का आरोप है कि लालू यादव जेल से ही बिहार में बनी एनडीए की सरकार गिराने की साजिश रच रहे हैं। हालांकि राजद ने इस आॅडियो का खंडन किया है। राजद नेता भाई वीरेंद्र ने कहा कि लालू की आवाज में बातें करनेवाले कई लोग हैं। ये सुशील कुमार मोदी का प्रोपेगंडा है। सुशील मोदी अपनी बेरोजगारी दूर करने के लिए लालू यादव का नाम उछाल रहे हैं। इस मामले की सच्चाई क्या है, यह तो जांच के बाद सामने आयेगा। लेकिन इस विवाद से लालू यादव फिर सुर्खियों में हैं। राजद सुप्रीमो के लंबे सियासी सफर में उनके साथ जुड़े विवादों पर नजर डालती दयानंद राय की रिपोर्ट।

    आजाद भारत के सबसे विवादास्पद राजनीतिज्ञों में से एक लालू प्रसाद यादव एक बार फिर चर्चा में हैं। राजद के आजीवन अध्यक्ष बनाये जा चुके लालू की शख्सियत पर बदनामी के इतने दाग लगे हैं कि यदि उन्हें ‘भ्रष्टाचार का पर्याय’ कहा जाये, तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। मुख्य सचिव को बड़ा बाबू संबोधित करने, भ्रष्ट अधिकारियों को पंखा पर टांग देने और जिलाधिकारियों से खैनी रगड़वाने से लेकर रेल मंत्री के रूप में सरकारी होटलों को निजी हाथों में देने तक के वाकयों से उनका राजनीतिक कैरियर भरा पड़ा है। उनकी शख्सियत का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि 1997 में उनकी गिरफ्तारी के लिए सीबीआइ के तत्कालीन संयुक्त निदेशक यूएन विश्वास को सेना तक की मदद मांगनी पड़ी थी। मंंडल के बाद की राजनीति में बिहार की राजनीति को एक नया मोड़ देनेवाले इस नेता को ‘विवादों’ में रहने की आदत है।
    बिहार के गोपालगंज जिले के फुलवरिया गांव में एक गरीब परिवार में जन्मे और करीब साढ़े तीन दशक तक सक्रिय राजनीतिक पारी खेलनेवाले लालू प्रसाद यादव के दामन पर चारा घोटाले से बदनामी का जो दाग लगा, उसने फिर उनका पीछा नहीं छोड़ा। इस घोटाले के कारण उन्हें 1997 में मुख्यमंत्री की कुर्सी गंवानी पड़ी। जब उन्होंने मुख्यमंत्री की कुर्सी छोड़ी, तो अपनी जगह राबड़ी देवी को बिहार का मुख्यमंत्री बना दिया। तब राबड़ी देवी को रबर स्टांप कहा गया और लालू यादव पर रिमोट के जरिये सरकार चलाने के आरोप लगे। चारा घोटाले ने लालू यादव को बदनामी तो दी ही, उनके राजनीतिक कैरियर को भी लगभग खत्म कर दिया। वह सांसद बने, मंत्री भी बने, लेकिन बाद में सजायाफ्ता होने के कारण चुनाव लड़ने से ही वंचित कर दिये गये। हालांकि इन आरोपों पर पलटवार करते हुए लालू यादव ने तब दावा किया था कि चारा घोटाला विपक्षियों की साजिश है, ताकि उनके बढ़ते राजनीतिक कद को रोका जा सके। पर चारा घोटाले ने उन्हें इतनी बुरी तरह घेरा कि वह फिर से इससे उबर न सके और इस मामले में अब भी सजायाफ्ता हैं। उनके हेमामालिनी वाले बयान पर खासा विवाद हुआ था। अपने एक बयान में लालू यादव ने कहा था कि बिहार की सड़कें ओमपुरी के गाल की तरह हैं, इन्हें हेमामालिनी के गाल जैसा बनायेंगे। जब इस पर विवाद बढ़ा तो उन्होंने कहा कि वे हेमामालिनी का बेहद सम्मान करते हैं। इसी तरह शहाबुद्दीन से नजदीकियों के कारण वे विवादों में रहे। एक अन्य मामले में भाजपा नेता सुशील मोदी ने लालू यादव पर आरोप लगाया कि उन्होंने अपने परिवार के लिए एक शॉपिंग मॉल के निर्माण से निकली मिट्टी को संजय गांधी जैविक उद्यान को बगैर टेंडर के बेच दिया। मिट्टी को 90 लाख रुपये में बेचा गया। विपक्ष ने बिहार में लालू प्रसाद यादव के शासनकाल को जंगलराज बताया। हालांकि विपक्ष का यह आरोप बेबुनियाद भी नहीं था। सात जून, 2002 की रात जब लालू प्रसाद और राबड़ी देवी की दूसरी बेटी रोहिणी की शादी एक अणे मार्ग (पटना) में थी, उसमें करीब 25 हजार बाराती आये। बारातियों को चमचमाती नयी गाड़ियों से दरवाजे तक लाना था, इसलिए राजद कार्यकर्ताओं ने मारूति और महिंद्रा के शो रूम से बिना नंबर प्लेट वाली नयी गाड़ियां ले लीं। आरोप लगा कि इस घटना के पीछे राबड़ी देवी के दोनों भाई साधु यादव और सुभाष यादव थे। एक दूसरी कहानी यह भी है कि हाजीपुर रेलवे स्टेशन पर 13 फरवरी, 2007 को उत्तर बिहार संपर्क क्रांति एक्सप्रेस रुकी, तो टीटीइ ने फर्स्ट एसी के एक कूपे में एक बुजुर्ग दंपति को जगह दी। बाद में पता चला कि वे तत्कालीन रेल मंत्री लालू प्रसाद यादव के सास-ससुर थे। उन्हें छपरा जाना था, जबकि उस ट्रेन में हाजीपुर से छपरा तक का टिकट बनता ही नहीं था। सत्ता के दुरुपयोग की यह कहानी यहीं खत्म नहीं होती। लालू प्रसाद जब रेल मंत्री थे, तब उनके साले सुभाष यादव को गुवाहाटी राजधानी एक्सप्रेस से दिल्ली तक की यात्रा करनी थी। 2006 में उस दिन ट्रेन को प्लेटफॉर्म नंबर तीन पर रुकना था, लेकिन सुभाष यादव ने उसे प्लेटफॉर्म नंबर एक पर रुकवाया। बाद मेें जब इसकी आलोचना हुई, तो रेलवे ने लीपापोती कर यह बयान जारी किया कि सुभाष यादव ने अपनी जान पर खतरा बताया था, इसलिए ऐसा किया गया। लालू यादव से जुड़ा एक और बड़ा विवाद होटल के टेंडर में निजी कंपनियों को फायदा पहुंचाने से जुड़ा। वर्ष 2006 के दौरान लालू प्रसाद यादव जब यूपीए सरकार में रेल मंत्री थे और उन पर आरोप लगा कि उन्होंने रेलवे के होटल टेंडर के जरिये निजी कंपनियों को दिये। रेल मंत्री के तौर पर ऐसा करके उन्होंने निजी कंपनी को फायदा पहुंचाया। इस मामले में आइआरसीटीसी के तत्कालीन प्रबंध निदेशक, एक निदेशक, एक निजी मार्केटिंग कंपनी के दो निदेशक और एक अन्य कंपनी के दो निदेशक के खिलाफ मामला दर्ज किया गया था। जाहिर है कि आरोपों की छाया से लालू यादव कभी मुक्त नहीं हो सकेंगे। उनका जीवन विरोधाभासों का वह समुच्चय है, जिसने बिहार और केंद्र की राजनीति में एक लंबी लकीर तो खींची, पर साथ ही बदनामी भी बहुत करायी। जेल में रहने के बाद भी लालू लगातार सुर्खियों में बने रहे और उनके लगभग हर बयान पर खबरें बनीं। 72 साल के लालू यादव के जीवन पर ‘गोपालगंज से रायसीना’ तक किताब भी लिखी गयी है और फिल्म भी बनी है।

    Lalu Prasad Yadav: What if there is a bad name
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